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दुनिया को एक करना है तो नोट फूंक दो, सिक्के गला दो

प्रेम, सौहार्द, भाईचारा और इंसानियत बढ़ाने के लिए दुनिया पर एलियन अटैक जरूरी नहीं.

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फोटो - thelallantop
बाज दफे लोग कुछ भी ओंगा पोंगा कहते हुए मिल जाते हैं. जैसे कि आज एक एटीएम की लाइन से छिला खरोंचा हुआ तत्काल बना अर्थशास्त्री कह रहा था. कहिस कि "कुछ नहीं. देश में बड़ा सन्नाटा चल रहा था. मोदी जी को लगा कि एडवेंचर मांगता है. बस रात के आठ बजे टिंचर दिया, सुबह से एडवेंचर शुरू. अब जब तक फकीर सी हालत रहेगी, एडवेंचर चलता रहेगा."
मन तो किया कि मुंह पर ही जवाब दे दें. लेकिन कही सुनी बातों का रिकॉर्ड नहीं होता कुछ. लिखा पढ़ी वाला हिसाब पक्का रहता है. इसलिए लिख रहा हूं. ये एडवेंचर के लालच में नहीं किया है मोदी जी ने. उनके लिए एडवेंचर की क्या कमी. अरविंद केजरीवाल के रहते. जब तक वो आदमी है कोई न कोई लकड़ी दिए ही रहेगा. फिर क्यों किया? चश्मा उतारो देखें कौन सा है? ह्म्म्म्म. दूरदृष्टि दोष है आपको. चश्मा कमजोर हो रहा है, नंबर बढ़ाओ. तो ये कदम दूरदृष्टि का नतीजा है. मोदी जी देश को एकता के सूत्र में पिरोना चाहते हैं. जो इंसानियत और प्रेम की भावना एकदम निल बटे सन्नाटा हो गई है, उसको फिर से जागृत करना ही लक्ष्य है. एक शेर अर्ज है- एटीएम की कतार तो एक बहाना है. इसी के रस्ते आपके दिल में उतर जाना है.
मालूम है फूहड़ था. तो उस पर अटकने को किसने कहा है. चलो आगे बढ़ो. आपको क्या लगता है. देश कैसे एक होगा? प्रेम समर्पण की भावना कैसे बलवती होगी? पब्लिक का ध्यान बेवफा सोनम गुप्ता से अपने वफादार दोस्तों रिश्तेदारों पर कैसे शिफ्ट होगा? क्या उसके लिए एलियन अटैक का इंतजार कर रहे हो? जैसे हर तीसरी हॉलीवुड फिल्म में होता है. अमेरिका की धरती पर एलियन हमला करते हैं. अलग अलग तरीकों से. फिर पूरी दुनिया एकउट जाती है. जापान चीन से लेकर ईराक अफगानिस्तान तक उसकी मदद के लिए तैयार हो जाते हैं. उनके पास तो तकनीक है. वो ओसामा बिन लादेन की रूह से भी हेल्प मांग सकते हैं. वो वहीं जन्नत से अपने एजेंट भेज कर एलियन को ठिकाने लगा सकता है. तो क्या उसी का इंतजार कर रहे हो? कि कोई बाहरी हमला करे तो हम एक हों. नहीं. इसकी जिम्मेदारी हमारे अपनों ने उठाई है इस बार. हमारे अपने प्रधानमंत्री ने.
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आज सुबह का वाकया बताता हूं. मेरे पास पर्स में तीन ठो पुराने पनसौव्वा नोट बचे. एक ठो हजार का. 10-10 की दो नोटें पड़ी थीं. उनको निकाला. आंखों से लगाया. कातर निगाहों से देख रहा था. ये दोनों नोट दफ्तर तक जाने में खर्च हो जाने थे. ई रिक्शे वाला फूफा कहने से तो छोड़ेगा नहीं. उसके घर में भी बच्चे दाल के लिए उसका पजामा खींचते होंगे. गलती से नाड़े पर हाथ चला जाए तो इज्जत दाल की भेंट चढ़ जाए. उसकी इज्जत बचाना हमारा फर्ज है. और वो बचनी थी उन 10 के अंतिम नोटों से. उसके बाद मेरी जेब में ग़म खाने के भी पैसे नहीं बचते. हां भाई चेविंग गम. अचानक किचन से निकली देवी. रोज मुझे वो सिंपल सी बीवी लगती है. आज देवी लगी. मुझसे कहा "सुनो. क्या हुआ? ये गधे सा मुंह क्यों लटका रखा है? ये हाथ में चोर सा क्या छिपा रहे हो? छिनला आदमी सा कौन पाठ पढ़ाने जा रहे हमको?" उसकी बातें दल पर लगीं. आंसू आने से पहले ही उसने पर्स छीनकर तलाशी ली. फिर 50 ठो रुपए लाकर हाथ पर रखे. 'संभाल कर खर्च करना.' मैंने उसे गले लगा लिया. बरसों से जो हमारे रिश्ते से ठंडक लीक कर रही थी उसमें मोदी जी ने पैबंद लगा दिया. थैंक्यू मोदी जी.
सारा देश इस मुसीबत की घड़ी में एक होकर खड़ा है. एटीएम और बैंकों के सामने. डेबिट क्रेडिट सब कार्ड चिल्हिया का मूत हो गया. क्रेडिट किसको जाता है? बड़का रिश्तेदार अपने भिखारी रिश्तेदार के यहां लाखों रुपए भेज रहा है. अमीर का पैसा गरीब के हाथ आ रहा है. पहले लोग गंगा के पुल से गुजरते वक्त चिल्लर फेंकते जाते थे. गंगा मैया प्रदूषित हो रही थीं. प्रशासन के सामने चैलेंज था. कैसे बचाएं मां गंगा को? उसमें इत्ता खतरनाक मेटल जा रहा है. समस्या हल हो गई इस एक कदम से. अब लोग पुल से गुजरते वक्त कोशिश करते हैं कि गंगा को अर्पण किए पैसे किसी तरह वापस मिल जाते. उसकी जगह बड़े आदमी पुरानी पेपर करेंसी गंगा में बहा रहे हैं. गंगे भी खुश हैं. उनको शायद अब तक नहीं पता कि यहां ये नोट चलना बंद हो गए. क्या पता स्वर्ग में चलते हों. न भी चलें तो यहां मछलियां और कछुए खाएंगे. उनका पेट भरेगा. नोट फेंकने वाले को पुन्न मिलेगा.
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इस कदम के उठने से पहले भारत देश का क्या हाल था याद है? लोग सर्जिकल स्ट्राइक पर सवाल उठा रहे थे. शहीदों पर बयानबाजी कर रहे थे. फेसबुक व्हाट्सऐप से देशभक्ति का अलख जगाए थे. अमा सोशल मीडिया पर बूंकने से कुछ होता है क्या? प्रधानमंत्री को पता है कहां चोट पड़ने पर युवा जागेगा. जेब पर चोट मार दी. अब सोशल मीडिया पर जो लड़ाइयां करते थे दिन भर वो भी एक दूसरे से पूछते हैं "भाई, तेरी तरफ वाले एटीएम में पैसा निकल रहा है?"
मैंने दफ्तर से लौटते वक्त ठेले पर लदे हरे भरे सिंघाड़े देखे. लार घूंट कर रह गया. काले धन पर सर्जिकल स्ट्राइक से पहले ऐसा नहीं हो सकता था कि मैं बिना एक किलो सिंघाड़े लिए घर आ जाऊं. फिर आगे बढ़ा तो बढ़िया लाल लाल सेब. और आगे संतरे. और आगे अमरूद. और आगे ताजे कार्बाइड में पकाए केले. जेब में सिर्फ 10 रुपए थे. उनसे एक सेब, एक केला, एक संतरा भी नहीं आ सकता था. लेकिन एक फायदा हुआ. वह 10 रुपए भी बच गए. ये पूरा मामला जानते हो किसलिए समझा रहे हैं. वो 10 तो बचे ही, खाते में जो 2-4 हजार हैं वो भी सेफ रहेंगे. न जेब में पैसा रहेगा न खर्च होगा. क्रेडिट किसको जाता है?
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सजग सरकार और गुड गवर्नेंस की यही पहचान है. वह जनता को एक करने उसमें इंसानियत का बीज बोने के लिए वो एलियन अटैक का इंतजार नहीं करती. खुद अटैक कर देती है.


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