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अगर आप भी सिगरेट और चाय उधार की पीते हैं तो ये पढ़िए!

इस तकलीफ की जड़ें खोद निकाली गई हैं.

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vineet singh विनीत दी लल्लनटॉप के रीडर और पक्के वाले दोस्त हैं. बलिया से हैं. जहां से चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे. उन्हीं ने देवस्थली विद्यापीठ स्कूल खोला था जिस स्कूल में पढ़े हैं विनीत. आजकल मुंबई में रहते हैं और वहीं से दुनिया देख रहे हैं. अपने देखे सुने का तमाम एक्सपीरिएंस लल्लन के साथ भी बांटते हैं. अपने दोस्त मकालू से परेशान रहते हैं, उसके किस्से भेजते हैं. आप भी पढ़िए.


मेरा दोस्त मकालू अधिकतर फिजूल की ही बातें करता है लेकिन कभी-कभी कमाल की बातें भी कर देता है, उसके साथ बात करते वक्त या तो आप अपना आपा खो बैठते हैं या बहुतेरी संभावना है कि वो आपका उत्तेजित हुआ पड़ा आपा और आपकी उलझनों को ढंग से समेट कर आपके हाथ में थमा दे. आज कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ. सुबह चाय की दुकान पर चाय वाले से बहस हो गई. मैंने चाय और सिगरेट मांगा तो साले ने मना कर दिया. ऊपर से बवाल अलग काट दिया. बोलता है पहले पिछले तीन महीनों का बिल चुकाओ और उसके बाद यहां बैठ कर नेतागीरी हांको. मुफ्तखोर कहीं के और ना जाने क्या क्या बकने लगा. मुझे भी गुस्सा आ गया और सुना दिया साले को- तुम गरीब लोग इसीलिए गरीब हो और हमेशा रहोगे क्योंकि तुम लोगों को बिजनेस करने नहीं आता है. तुमको क्या पता बिजनेस एटीकेट्स के बारे में. बड़े बड़े बिजनेस में लोन और क्रेडिट पर काम होता है. जितना बड़ा बिजनेस उतना ही बड़ा लोन, अरे मैं कोई भाग रहा हूं क्या? इसी बीच मकालू ना जाने कहां से टपक पड़ा, मुझसे मुखातिब होकर बोला- गुरु अगर जेब में पैसे नहीं होते तो क्यूं उधार की महंगी सिगरेट पीते हो और उल्टा इस चाय वाले से कुतर्क कर रहे हो. मैंने कहा - मकालू माइंड योर बिजनेस, किसी ने राय नहीं मांगा तुमसे. मकालू बड़े फिलासोफिकल मूड में था, बोला- गुरु जरूरत तुम्हें है अपने बिजनेस पर ध्यान देने की. वर्ना जिंदगी भर खुद दूसरों के बिजनेस के लिए नौकरी कर कर के मर जाओगे और ऐसे ही कर्जो से दबे रहोगे. दोष दोगे महंगाई को और बॉस को और कहते फिरोगे की प्रमोशन नहीं दिया कंपनी ने वर्ना तुमसे बड़ा रईस नहीं होता. तुमसे बेहतर तो ये चाय वाला है जो अपना निजी काम तो कर रहा है और किसी की मुफ्तखोरी नहीं कर रहा है. बड़े आए, तुमको पता भी है कि मैं कितने बड़े कारपोरेट में काम करता हूं?- मुझे अब मकालू पर गुस्सा आ रहा था. मकालू बोला- तुम ही नहीं, बहुत बड़ी फौज हैं तुम्हारी बिरादरी की जो गलतफहमी में जी रही है, ना तो वो अपने मन वाला काम कर रहे हैं और ना ही वो अपने लिए काम कर रहे हैं, बस इस भ्रम में रहते हैं कि कभी वो एक दिन आएगा जब वो 'फिनेन्सली इंडेपेंडेंट' हो जाएंगे. सच ये है कि तुम लोग दिन रात काम कर के पहले उद्योगपतियों को अमीर बनाते हो, फिर सरकार को. सैलरी हाथ में आने से पहले ही सरकार को टैक्स जा चुका होता है, मतलब दूसरे नंबर पर सरकार को अमीर बनाते हो, तीसरे नंबर पर बैंकों के लिए काम करते हो. सारी तनख्वाह उठाकर घर, कार, इंश्योरेंस और क्रेडिट कार्ड के किश्तों में दे आते हो. जितनी सैलरी बढती हैं उतना ही लोन और किश्तों की रकम बढ़ जाती है और फिर भी कर्ज खत्म नहीं होते तुम्हारे. फिर चाय सिगरेट के कर्जो के लिए सड़कों पर गालियां खाते फिरते हो. जमा करते हो तो सिर्फ और सिर्फ डिप्रेशन और केलेस्ट्राल. इसीलिए कहा रहा हूं ट्राई टू स्टार्ट माइंडिंग योर ओन बिजनेस. समझ गए तो ठीक वर्ना किसी दूसरे चाय की दुकान पर खाता खुलवा लो और इधर का रास्ता बदल दो. कहता हुआ मकालू आगे बढ़ गया और मैं भारी कदमों से घर की तरफ. पीछे से दुकानदार के तानों की आवाजें आ रही थी,लेकिन मुझे बिल्कुल बुरा नहीं लग रहा था क्योंकि ये तानें मेरे सच जितने कड़वे नहीं थे, फिर नया खाता खुलवाने के लिए दूसरी दुकान भी तो खोजनी थी. चाय और सिगरेट की तलब कहां मानती है बातों से. और वैसे भी मकालू को क्या पता कि देश में स्टार्ट अप्स और इनवेस्टमेंट के क्या हालात हैं. छोटे और मझोले वाले कितने सारे स्टार्ट अप तो बंद हो गए और बड़े वालों को फंडिंग मिलनी बंद हो गई है और हालात इतने बुरे हैं कि हर जगह कर्मचारियों की छटनी शुरू हो गई है. और ये मुझे अपना काम शुरू करने का ज्ञान दे रहा था. चाहें कम ही सही लेकिन कम से कम नौकरी में तनख्वाह तो आ रही है और चाय सिगरेट का क्या है एक दुकानदार ने नहीं दिया तो दूसरा ठिकाना खोज लेंगे और लो पहुंच भी गया नए ठिकाने पर. भइया एक सिगरेट देना, छोटी नहीं बड़ी.

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