
इसे ईवन टांगें लेकर जीवन में स्थायित्व नहीं चाहिए. टिकने थोड़ी न आता है ये. ये तो पैदा ही होता है किसी के पेट में जाने के लिए. बहुत छोटा लाइफ-स्पैन रहता है इसका. गरम रहता है तो दुकनदार की बड़ी सी थरिया में इसका चार-पांच मिनट भी टिकना बड़ी बात समझो. हां. कभी-कभार जब ठंडा हो जाता है, तो जरूर दुत्कारा जाता है, लेकिन इसका भी इलाज है. अगली फेरी में फिर से कढ़ाई में डालकर चमका दिया जाता है. इसकी तीन टांगें देखकर बचपन में गणित की क्लास में पढ़ाया गया समबाहु त्रिभुज याद आ सकता है. समोसे को चाहे दुकान पर ही खड़े होकर खाओ या फिर घर के लिए पैक करवा लेओ. एक्स्ट्रा चटनी की पुड़िया मांगने पर दुकनदार का गंदा लुक फिरी.

हमाये हिसाब से तो समोसा उत्तर भारत का राष्ट्रीय स्नैक्स-व्यंजन है. अनऑफीसियल ही सही. वैसे तो लगभग हर शहर में समोसा बहुत खाया जाता होगा, लेकिन कानपुर की बातै कुछ और है. यहां हर छोटे-बड़े चौराहे पर मोबाइल रीचार्ज की दुकान मिले न मिले, समोसे की दुकान जरूर मिल जाती है. जनता भी कम दीवानी नहीं है. शाम के वक्त अगर कानपुर के मोहल्लों में छापेमारी कर दी जाए, तो दस में से तीन-चार घरों में लोग समोसा भकोसते पकड़े जायेंगे, सेट मैक्स पर कोई हिंदी पिच्चर देखते हुए. हम भी ठहिरे कनपुरिया. ज्यादा दिन समोसा न खाएं, तो साला पेट अहिंड़ जाता है. हमसे तो कॉलेज में रैगिंग में भी जब पूछा गया था कि कानपुर में क्या फेमस है? तो हमाये मुंह से सबसे पहिला शब्द यही तीन अक्षर वाला तिकोना 'समोसा' ही निकला था.
चलो समोसे के गुणधर्म बहुत गिना दिए. अब आते हैं स्टोरी पर. तो बात कुछ अइसी है कि हम चार-पांच दोस्त लोग साइकिल से बालाजी चौराहे वाली रोड से होते हुए कोचिंग जाते और लौटते थे. जवाहर नगर से होते हुए नेहरू नगर निकलते थे. बालाजी चौराहे के थोड़ी सा ही आगे बाएं हाथ पर मुन्ना समोसे वाले की दुकान पड़ती थी. आज भी पड़ती है. जब भी वहां से गुजरते थे, तो पेट में कुलबुली मच जाती थी. पेट दिमाग से अपना रोना रो देता था और दिमाग के जरिए पैरों को आदेश मिल जाता था धीरे पैडल मारने का.
मन के और जमीन के घर्षण से साइकिलें बिल्कुल दुकान के सामने ही आकर रुक जातीं थीं. फिर सबकी जेबें झरियाई जातीं थीं और अगर सबके लिए एक-एक समोसे का भी जुगाड़ हो जाता था, तो वहीं अगली फेरी के समोसे सिंकते हुए देखने के लिए खड़े हो जाते थे. अब यार गरम का ही जमाना है. ठंडा समोसा कौन खाता है बे? हमाये लिए तो भईया समोसा जीभजलाऊ गरम होना चाहिए. फूंकते-फूंकते खाओ, तभी तो मजा आता है.

मैदे के लिफाफे में आलू का भरता भरकर बनाए गए सफेद समोसे कढ़ाई के गर्म तेल में लुढ़का दिए जाते थे. फिर उनका रंग सुनहरा हो जाने तक उन्हें तेल में ही तैरते देखते रहो. ऊपर निकलती भाप देखकर हम भौतिक विज्ञान के अपवर्तन यानी रिफ्रैक्शन का लाइव डेमो लिया करते थे. फिर जैसे ही बड़ी आली कल्छुली से समोसों की खेप निकाली जाती थी, जनता टूट पड़ती थी. दुकान काफी फेमस थी और आस-पास के लोग हमाये जैसे चटोरे, जीभ के लिए घर की देहरी खोदकर बेच दें. पिल पड़ते थे सब. हमाये पांच पैक करो, हमाये दस. भसड़ मच जाती थी. और उसी भसड़ में हम या हमारा कोई दोस्त भी पिला रहिता था. जब दस-बीस समोसों वाले बड़े-बड़े आर्डर निपटा लिए जाते थे, तो हमाये जैसे गरीबों का नंबर आता था.
सिंगल समोसा कागज पर रखकर मिलता था और डबल समोसा प्लेट में. हम लोग जनरली एक-एक ही लेते थे, लेकिन कागज में खाना भी नहीं चाहते थे. गरम समोसा खाते नहीं बनता था यार कागज पर और चटनी भी चू जाती थी इधर-उधर. ऊपर से आखिरी में चटनी भी ठीक से चाट नहीं पाते थे. इसलिए दुकनदार को अपने बच्चे होने और स्टूडेंट होने का हवाला देकर प्लेट में ही देने के लिए मनाना पड़ता था. 'मनाना' थोड़ा सोफिस्टिकेटेड लग रहा होगा, इसे रिरियाना कहा जाय, तो सही रहेगा. फाइनली, समोसा मिलने पर फूंक मार-मारकर खाते थे. गरम समोसे का एक और फायदा है. चलता देर तक है. इसीलिए मजा भी लॉन्ग-लास्टिंग रहता है. दो-तीन बार चटनी डलवाना तो खैर रिवाज ही बन गया था.

ऐसी समोसा-खिलाई अक्सर ही होती रहती थी. हम सब लोग दो-दो, तीन-तीन रुपया जोड़कर समोसा खा लेते थे. एक दिन हमाये दोस्त अमित ने कहा कि चलो आज के समोसे हमाई तरफ से. हम लोगों को उत्ती ही खुशी हुई, जित्ती कि दूरदर्शन के किसी धार्मिक नाटक में राक्षस को कई वर्षों की तपस्या के बाद वरदान देने के लिए प्रकट हुए ब्रह्मा जी दिखने पर होती होगी. आज जेब में पइसे ज्यादा थे तो एक-एक समोसे से तो काम चलना नहीं था.
शान से आर्डर दिया: 'पांच जगह डबल समोसे, चटनी डालकर'
'फोड़ के कि बिना फोड़े?'
'फोड़कर ही खाते हैं हम लोग तो. रोज खाते हैं. पहिली बार थोड़े न खा रहे हैं. याद रखा करो डेली कस्टमरों को.'
दुकनदार कम-कम चटनी डाल रहा था.
'अउर डालो चटनी. खट्टी-मीठी दोनों. इत्ता इन्वेस्टमेंट कर रहे हैं और तुम चटनी कम डाल रहे हैं. ऊपर से जलजीरा वाला नमक भी उर्रा देना. बिल्कुल चाट जैसा लगना चाहिए खाने में.', हमने कहा.
मस्त समोसा खाकर आत्मा तृप्त हुई. बगल वाली थाल में रखीं गुझियां भी बुला रहीं थीं. गुझिया भी सही चीज़ होती है और समोसे के बाद गुझिया के कॉम्बिनेशन को वैसे भी यूनेस्को बेस्ट कॉम्बिनेशन के अवार्ड से नवाज चुकी थी. लेकिन, फिर सोचा अमित अपने मन से खिला रहा है, ज्यादा लूटना सही नहीं रहेगा. डिप्लोमेसी दिखाते हुए समोसे खाने के बाद ही भोज का समापन कर दिया गया. बाकी दोस्त पानी-वानी पीकर साइकिल की ओर बढ़ चुके थे. हम समोसा खाने के बाद पानी नहीं पीते हैं. क्या है न कि समोसा खाकर तुरंत पानी पी लेओ, तो समोसे-चटनी का पूरा स्वाद मर जाता है. पेट भरने के लिए थोड़े न कोई समोसा खाता है. जीभ के लिए खाते हैं, तो स्वाद भी तो रहिना चाहिए थोड़ी देर कि नहीं.
'पइसे निकालो यार. जल्दी देओ इनको और फिर निकला जाय.', हमने अमित से कहा.
थोड़ी देर जेब टटोलने के बाद वो गंदे एक्सप्रेशन देने लगा, 'अबे कल मौसी आईं थीं. बीस रुपए दे गईं थीं. खरा-खरा नोट डालकर लाए थे सुबह.'
'हां तो निकालो खरा-खरा.'
'कहां से निकालें? मिली नहीं रहा है.'
'अबे लफद्दरांय न करो. अगर मजाक कर रहे हो तो दौंचे जाओगे.'
'कसम से भाईजी, नहीं मिल रहा है नोट. कहीं चू गया है शायद.'
'जेब तो नहीं फटी है?'
'लेओ, देख ल्यो.' अमित ने जेब पूरी पलटकर निकाल ली और दिखाने लगा.
जेब सही-सलामत थी. पलटी हुई जेब में मूंगफली के छिलकों की झाड़न जरूर चिपकी हुई थी, लेकिन बीस का नोट नदारद. हम भी उस दिन बिल्कुल झड़े हुए थे. कुछ भी नहीं था हमाये पास भी. बाकी दोस्त शायद समझ गए कि कुछ गड़बड़ हो गई है, इसीलिए चुपचाप सरक लिए साइकिल लेकर.
हम और अमित ही बचे खाली.

'अब क्या किया जाए?' हमने कहा अमित से.
'हम क्या बताएं, अंकल से कहि देते हैं कि नोट कहीं गिर गया है. कल दे देंगे.'
'अच्छा? तुम कहि देओगे और वो मान जायेगा. मौसिया लगता है क्या हमारा? कहेगा कि साले दो समोसों में पांच समोसों की चटनी डलवाकर पी गए और अब मरी हुई शकल लिए खड़े हैं. बेज्जती कर देगा भाई कर्री आली.'
'अबे, अइसा करो, तुम अपना पाइलट पेन गिरवी रख देओ. बाइस रुपए का आता है. बीस देने हैं इसको. परसों ही लाए थे तुम. रेट भी सही लग जायेंगे.'
'कऊन सी दुनिया में हो? सोने की जंजीर है क्या दो तोले की जो गिरवी रख दें. और हम काहे अपना पाइलट पेन गिरवी रखें. तुम जो दसहरे के मेले से वो घड़ी लाए थे रेडियम वाली, वो गिरवी रख देओ.'
'वो पचपन रुपए की ली थी गीता पारिक के मेले से. इत्ता महंगा सामान नहीं रखा जाएगा गिरवी. पाइलट पेन रख देओ चुपचाप. खाली गिरविही तो रखना है. कल पइसे देके छुड़ा लेंगे.'
'नहीं, शाम को होमवर्क करना है. राइटिंग सही बनती है यार उससे. तुम जरूर घड़ी रख सकते हो. एक दिन टाइम नहीं देखोगे तो मर नहीं जाओगे.'
'रोज रात में हरा-हरा चमकाकर मोमबत्ती ढुंढवाते हैं उससे, जब लाइट चली जाती है. घर वाले कहेंगे नहीं कि घड़ी कहां चली गई तुम्हाई?'
हम दोनों इसी बहस में फंसें थे कि पइसा कइसे चुकाया जाय? किसका सामान गिरवी धरा जाय? तब तक समोसों की अगली खेप निकल चुकी थी और काउंटर के सामने भीढ़ बढ़ चुकी थी. हम लोग बहस करते-करते वैसे भी काफी कोने में आ गए थे. दोनों ने एक-दूसरे को देखा और समझ गए कि क्या करना है. इत्ती अच्छी अंडरस्टैंडिंग एलन डोनाल्ड और लांस क्लूसनर ने दिखा दी होती, तो साउथ अफ्रीका के पास आज एक वर्ल्ड कप हो सकता था. धीरे से सड़क पर आए. भीड़ हचककर थी. काफी नार्मल हरकत करते हुए हमने साइकिल उठाई और आगे बढ़ गए. पहिले थोड़ा धीरे-धीरे बढ़ाई साइकिल, फिर सीधे तानते चले गए. काफी दूर निकल आने के बाद डर गायब हो गया और लग रहा था कि कोई बैंक-वैंक लूटकर लौटे हों.
दोस्तों में रंगबाजी पेलने का एक और किस्सा हाथ लग गया था कि मुन्ना के यहां पांच प्लेट समोसा हुसड़ आए बिना पइसे के. समोसा काण्ड के नाम से ये किस्सा दूर-दूर तक फईल गया. अगले दिन पइसे देने का मन हुआ, लेकिन ये सोचकर नहीं दिए कि इत्ता कमाता है मुन्ना समोसा बेचकर, पांच-दस समोसों के पइसे न मिले, तो कंगला नहीं हो जाएगा.
आज तक भाईजी मुन्ना समोसे वाले के बीस रुपए हम लोगों पर उधार हैं.
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सर्जिकल स्ट्राइक करके ये लड़का बच भी गया और सबूत भी न देना पड़ा