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राहुल गांधी के युवा तुर्क कहे गए नेता जिन्हें UPA-2 में मंत्री बनाया था, उनका अब क्या हाल है?

कांग्रेस छोड़ने वाले युवा नेता, क्या कहकर पार्टी से पल्ला झाड़ रहे हैं?

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राहुल गांधी के करीबी और कांग्रेस के युवा तुर्क कहे जाने वाले नेताओं का कांग्रेस से मोहभंग होता जा रहा है. राइट साइड की तस्वीर सोशल मीडिया पर काफी वायरल है. तस्वीर में लेफ्ट से सचिन पायलट, आरपीएन सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद (फोटो-पीटीआई/ट्विटर)
कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री जितिन प्रसाद बुधवार, 9 जून को पार्टी छोड़कर बीजेपी में शामिल हो गए. इससे पहले भी 2019 के चुनाव में उनके बीजेपी में जाने की चर्चा चली थी.लेकिन कहा जाता है कि उस समय प्रियंका गांधी ने उन्हें मना लिया था. हालांकि इस बार ऐसा हो ना सका. ये पहली बार नहीं है कि कांग्रेस के किसी युवा नेता ने पार्टी छोड़ी है. राहुल गांधी के युवा तुर्क कहे जाने वाले कई नेताओं ने कांग्रेस छोड़ दूसरी पार्टियों का दामन थामा है. वहीं कई पार्टी छोड़ते-छोड़ते रह गए. राहुल के युवा तुर्क, जो मनमोहन सरकार में मंत्री बने साल 2011-12 में यूपीए-2 सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से जूझ रही थी. ऐसे में मनमोहन सिंह ने मंत्रिमंडल में फेरबदल किया. राहुल गांधी के कहने पर कई युवा चेहरों को सरकार में महत्वपूर्ण पद दिए गए. ज्योतिरादित्य सिंधिया को ऊर्जा मंत्रालय में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार बनाया गया. जितिन प्रसाद को रक्षा मंत्रालय में राज्यमंत्री बनाया गया. महाराष्ट्र से सांसद मिलिंद देवड़ा को आईटी मिनिस्ट्री में राज्यमंत्री नियुक्त किया गया. सचिन पायलट को मिनिस्ट्री ऑफ कॉर्पोरेट अफेयर्स में राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार का पद दिया गया.
ये सब वो नेता थे, जिन्हें कांग्रेस की आने वाली पीढ़ी का नेता माना जा रहा था. इन पर न सिर्फ राहुल गांधी, बल्कि पार्टी ने भी भरोसा जताया था. पार्टी के भविष्य कहे जा रहे ऐसे ही दो बड़े नेता साल 2021 आते-आते पार्टी छोड़ कर चले गए. ये नेता हैं ज्योतिरादित्य सिंधिया और जितिन प्रसाद. कई ऐसे भी हैं जो पार्टी में अलग-थलग पड़ गए हैं. वो पार्टी लाइन से अलग अपनी राय रखते हैं. अपनी नाखुशी जताते रहते हैं. आखिर पार्टी छोड़ने वालों युवा नेताओं ने क्या कह कर पार्टी से पल्ला झाड़ा. जितिन प्रसाद उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण चेहरा माने जा रहे जितिन प्रसाद ने भले ही 9 जून 2021 को पार्टी छोड़ी हो, लेकिन उन्होंने पार्टी से असंतुष्टि के संकेत 2019 से ही देने शुरू कर दिए थे. कई मौकों पर नरेंद्र मोदी और बीजेपी सरकार की नीतियों की तारीफ करते नजर आए. उनकी असंतुष्टी के कई कारण रहे. उन्हें पार्टी की वर्किंग कमेटी में कोई पद नहीं दिया गया. उन्हें यूपी कांग्रेस में भी दरकिनार कर दिया गया. एक वक्त उनका नाम उत्तर प्रदेश कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष की दौड़ में था, लेकिन प्रियंका गांधी के यूपी में सक्रिय होने के बाद वह हाशिए पर चले गए. इसके बाद से ही उनके पार्टी छोड़ने के कयास लगाए जाने लगे. 2019 में हुई कांग्रेस वर्किंग कमेटी की मीटिंग में उन्होंने अनुच्छेद 370 पर पार्टी के विरोध को जनभावना के खिलाफ बताया था. सितंबर 2019 में उन्होंने पीएम मोदी के जनसंख्या पर चिंता के सुर में सुर मिलाया. उन्होंने कहा कि अब वक्त आ गया है कि हम देश को जनसंख्या नियंत्र और स्थिरीकरण पर जागरूक करें.
Jitin Prasada Amit Shah बीजेपी में शामिल होने से पहले जितिन प्रसाद ने अमित शाह से मुलाकात की.
पार्टी छोड़ते हुए क्या कहा? जितिन प्रसाद ने पार्टी छोड़ते हुए कहा,
मेरा कांग्रेस पार्टी से 3 पीढ़ियों का साथ रहा है. यह महत्वपूर्ण निर्णय मैंने बहुत सोच समझ कर लिया है. सवाल यह नहीं है कि मैं किस दल को छोड़ कर आ रहा हूं. बड़ा सवाल यह है कि मैं किस दल में जा रहा हूं और क्यों जा रहा हूं. मैंने कुछ वर्षों से यह महसूस किया है कि असली मायने में देश में एक ही संस्थागत ही राजनीतिक दल है तो वह है बीजेपी. बाकी दल तो व्यक्ति विशेष या क्षेत्र विशेष तक सीमित रह गए. जिस दल में मैं था वहां मैं अपने देश और अपने लोगों की सेवा करने लायक नहीं महसूस कर रहा था. मैं अपने कांग्रेस के साथियों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने इतने दिन तक साथ दिया.  
ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी छोड़ने वाले युवा नेताओं में सबसे बड़ा नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का रहा. वह एक वक्त राहुल गांधी के बहुत करीबी माने जाते थे. संसद में वह राहुल के बगल में बैठते थे. मध्य प्रदेश में जब कांग्रेस ने 15 साल बाद 2018 में विधानसभा का चुनाव जीता तो सिंधिया को उम्मीद थी कि उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जाएगा. लेकिन तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने कमलनाथ को सीएम बना दिया था. इस फैसले से सिंधिया और उनके समर्थक नाराज हुए. कमलनाथ के कई फैसलों का उन्होंने खुलकर विरोध किया. लगभग 15 महीने बाद सिंधिया गुट के विधायकों ने नाटकीय घटनाक्रम में इस्तीफा दे दिया. इसके बाद कमलनाथ की सरकार गिर गई. ज्योतिरादित्य सिंधिया ने 10 मार्च 2020 को कांग्रेस छोड़ दी और बीजेपी में शामिल हो गए.
ज्योतिरादित्य सिंधिया 11 मार्च को बीजेपी में शामिल हुए. ज्योतिरादित्य सिंधिया.
पार्टी छोड़ते हुए क्या कहा?
ज्योतिरादित्य सिंधिया ने कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को सौंपे अपने इस्तीफ़े में लिखा था कि उनका उद्देश्य देश और उनके राज्य (मध्य प्रदेश) के लोगों की सेवा करना रहा है और कांग्रेस में रहते हुए वो ऐसा नहीं कर पा रहे हैं. बीजेपी जॉइन करते हुए कहा था,
कांग्रेस में जो आज स्थिति पैदा हुई है, वहां जनसेवा के लक्ष्य की पूर्ति उस संगठन के माध्यम से नहीं हो पा रही है. इसके अतिरिक्त वर्तमान में जो स्थिति कांग्रेस पार्टी में है, वो अब पहले वाली पार्टी नहीं रही है. कांग्रेस पार्टी वास्तविकता से इनकार कर रही है, नए नेतृत्व-नए विचार को नकार रही है. 2018 में हम एक सपना लेकर आए थे, लेकिन उन सपनों को पूरा नहीं किया गया. मध्य प्रदेश में कांग्रेस सरकार ने वादे पूरे नहीं किए हैं. कांग्रेस में रहकर जनसेवा नहीं की जा सकती.  

 
सचिन पायलट
राजस्थान में 10 महीने पहले की गई सचिन पायलट की पहली बगावत भले ही दब गई हो, लेकिन जानकार इसे सबकुछ ठीक हो जाना नहीं मानते. यह रोचक है कि जिस दिन जितिन प्रसाद कांग्रेस पार्टी छोड़ कर गए, उसके एक दिन पहले ही सचिन पायलट ने राजस्थान से पार्टी हाईकमान पर निशाना साधा. हिंदुस्तान टाइम्स को दिए इंटरव्यू 
 में कहा,
राजस्थान में समस्या सुलझाने में कमेटी पूरी तरह से विफल रही है. अब 10 महीने हो गए हैं. मुझे यह बताया गया था कि कमेटी तेज एक्शन लेगी, लेकिन अब सरकार का आधा कार्यकाल खत्म हो चुका है. मुद्दे अब तक नहीं सुलझाए गए हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पार्टी के जिन कार्यकर्ताओं की मेहनत से हमे यह जनादेश मिला है उनकी ही बात नहीं सुनी जा रही है.

 
पार्टी में ऐसे पड़े अलग-थलग
जून-जुलाई 2020 में राजस्थान में सचिन पायलट ने सरकार में डिप्टी चीफ मिनिस्टर रहते हुए सीएम अशोक गहलोत के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंका. उन्होंने अपने फोन टेप होने का आरोप लगाया और अपने समर्थकों के साथ हरियाणा के गुरुग्राम के एक होटल में चले आए. फिर कांग्रेस हाईकमान से मुलाकात की. सचिन पायलट खेमे की बगावत को दबाने और मुद्दों को सुलझाने के लिए अजय माकन की अध्यक्षता में तीन सदस्यों की सुलह कमेटी बनाई थी. लेकिन 10 महीने बाद भी मामला सुलझता नहीं दिख रहा है.  बाकी युवा नेताओं की तरह सचिन पायलट खुल कर पार्टी या दूसरे मुद्दों पर नहीं बोलते, लेकिन वह अपनी ही पार्टी की राजस्थान सरकार की कार्यशैली पर सवाल उठाते रहे हैं. कांग्रेस के युवा तुर्कों में शामिल सचिन पायलट भी पार्टी में अपने आस्तित्व की लड़ाई लड़ते नजर आ रहे हैं.
Sachin Pilot
सचिन पायलट की ये तस्वीर दिसंबर 2019 की है जब वह CAB (नागरिकता संशोधन बिल) के खिलाफ जयपुर में प्रदर्शन कर रहे थे. (फोटो- PTI)

 
दीपेंद्र हुड्डा
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के बेटे दीपेंद्र सिंह हुड्डा भी लंबे वक्त से पार्टी में साइड लाइन हैं. कोरोना की दूसरी लहर के बीच उन्होंने सोशल मीडिया के जरिए बहुत से लोगों को मदद पहुंचाई. अगर कांग्रेस पार्टी में दीपेंद्र हुड्डा की पोजिशन की बात की जाए तो बड़े फैसले लेने वाली कांग्रेस वर्किंग कमेटी में कोई महत्वपूर्ण पोजिशन नहीं मिली है. वह सिर्फ आमंत्रित सदस्य हैं. इसके अलावा अपने राज्य हरियाणा में भी उन्हें बड़ी जिम्मेदारी नहीं सौंपी गई है. साल 2019 में एक बार हालात ऐसे हुए कि दीपेंद्र हुड्डा के भी पार्टी छोड़ेन के कयास लगाए जाने लगे. दीपेंद्र के पिता भूपिंदर हुड्डा ने दीपेंद्र हुड्डा को पार्टी अध्यक्ष बनाने की मांग कर डाली. लेकिन राहुल गांधी के बनाए पार्टी अध्यक्ष अशोक तंवर को हटा कर पार्टी गलत संदेश नहीं देना चाहती थी. ऐसे में पार्टी ने शैलजा कुमारी को पार्टी अध्यक्ष बनाया. डैमेज कंट्रोल के लिए दीपेंद्र हुड्डा को राज्यसभा भेजा गया. हालांकि इस घटनाक्रम के बीच अशोक तंवर ने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी. इसके बावजूद दीपेंद्र हुड्डा ने मोदी सरकार के अनुच्छेद समाप्त करने के फैसले पर पार्टी लाइन से हट कर बयान दिया. दीपेंद्र हुड्डा ने अनुच्छेद 370 को खत्म करने के फैसले की तारीफ करते हुए कहा था,
मेरा हमेशा मानना रहा है कि अनुच्छेद 370 को खत्म कर देना चाहिए. 21वीं शताब्दी में इसका कोई मतलब नहीं है. इस आर्टिकल को खत्म करना देशहित और जम्मू-कश्मीर की जनता के हित में है. कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है. हालांकि भरोसेमंद माहौल में इस बदलाव के शांतिपूर्ण क्रियान्वयन की जिम्मेदारी मौजूदा सरकार पर है.
हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री और वरिष्ठ कांग्रेस नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा सोनीपत से जबकि दीपेंद्र हुड्डा रोहतक से मैदान में हैं.
दीपेंद्र हुड्डा (बीच में कैंची लिए हुए) फाइल फोटो.

 
मिलिंद देवड़ा
कांग्रेसी नेता मुरली देवड़ा के बेटे मिलिंद देवड़ा भी फिलहाल हाशिए पर हैं. एक वक्त में वह राहुल गांधी की कोर टीम के सदस्य माने जाते थे. साउथ मुंबई से सांसद रहे मिलिंद को पार्टी में महत्वपूर्ण पद 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले दिया गया था. साल 2019 के लोकसभा चुनाव के पहले उन्हें मुंबई रीजनल कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया. पार्टी बुरी तरह हारी और उन्होंने पद से इस्तीफा दे दिया. तब से ही वह पार्टी में हाशिए पर ही हैं. वह भी उन युवा नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने पार्टी लाइन के खिलाफ जाते हुए मोदी सरकार के आर्टिकल 370 को खत्म करने के फैसले का स्वागत किया था.जीतिन प्रसाद के पार्टी छोड़ कर जाने के बात भी मिलिंद देवड़ा का ट्वीट भी पार्टी को लेकर उनके विचार साफ करता दिखता है. वह इस ट्वीट में इशार कर रहे हैं कि पार्टी की सक्षम नेताओं का इस्तेमाल किए जाने की जरूरत है. वह ट्वीट में लिखते हैं.
मेरा मानना है कि देशव्यापी पार्टी के तौर पर कांग्रेस पार्टी जरूर अपना असली मुकाम हासिल करेगी. हमारे पास अभी भी एक मजबूत बेंच स्ट्रेंथ है. अगर उसे सशक्त और बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जाए, तो बेहतर नतीजे मिल सकते हैं. मैं सिर्फ यही चाहता हूं कि मेरे कई मित्र, साथी और मूल्यवान सहकर्मी हमें छोड़कर न गए होते.
इन्होंने भी छोड़ी कांग्रेस इनके अलावा भी पिछले कुछ सालों में युवा नेताओं ने कांग्रेस पार्टी से किनारा किया है.
प्रियंका चतुर्वेदी - इन्होंने साल 2019 में अचानक कांग्रेस छोड़ कर शिवसेना का दामन थाम लिया. बताया गया कि वह 2019 के चुनाव में मुंबई नॉर्थ से टिकट न दिए जाने से नाराज थीं. उन्होंने पार्टी छोड़ते हुए कहा था,
'मुझे उम्मीद थी कि पार्टी (कांग्रेस) मुझे अगले लेवल तक ले जाएगी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.'
खुशबू सुंदर - एक्ट्रेस से पॉलिटिशियन बनीं खुशबू सुंदर ने अक्टूबर 2020 में कांग्रेस पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से इस्तीफा दे दिया. कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को लिखी चिट्ठी में खुशबू सुंदर ने पार्टी में बड़े स्तर पर बैठे नेताओं पर गंभीर आरोप लगाए. अपने इस्तीफे में लिखा,
बड़े पदों पर बैठ कुछ लोगों का जमीनी स्तर के लोगों से कोई जुड़ाव नहीं है या वे जानते नहीं हैं कि पार्टी की वास्तविक स्थिति क्या है.
यूपीए के दूसरे कार्यकाल में मनमोहन सिंह सरकार में राज्यमंत्री के तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया, सचिन पायलट, जितिन प्रसाद और मिलिंद देवड़ा जैसे युवा राहुल गांधी की पैरवी पर शामिल गिए गए थे. लेकिन अब ये ही नेता एक-एक कर पार्टी छोड़कर जा रहे हैं या जो पार्टी में हैं वो हाशिए पर नजर आ रहे हैं.