इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) में कुलभूषण जाधव की फांसी रोकने वाली 11 जजों की बेंच में एक जज भारतीय भी था. जस्टिस दलवीर भंडारी. भारत में सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश और 2014 में पद्म भूषण से नवाजे जा चुके जस्टिस भंडारी वो शख्सियत हैं, जिनके फैसलों ने काफी हद तक देश की सूरत बदली है.
जाधव की फांसी रोकने वाली बेंच में एक जज इंडियन थे, जानिए उनके बारे में
भारत के लोगों का भला करने वाले सबसे ज्यादा और सबसे बड़े फैसले जस्टिस दलवीर भंडारी ने ही लिए हैं.

आइए, पढ़ते हैं भारतीय न्याय व्यवस्था में 40 साल से ज्यादा अनुभव रखने वाले जस्टिस भंडारी के बारे में:
आजादी के डेढ़ महीने बाद पैदा हुए जस्टिस भंडारी जुडिशियल बैकग्राउंड से आते हैं. उनके पिता महावीर चंद भंडारी और दादा बीसी भंडारी, दोनों राजस्थान बार के सदस्य थे. भंडारी ICJ तक झटके में, किसी सोर्स से या चमत्कारिक तरीके से नहीं पहुंचे हैं. दुनिया की सबसे बड़ी कोर्ट में बैठने से पहले उन्होंने एक लंबा सफर तय किया, जिससे भारत की जुडिशियरी को सुधारने में मदद मिली.
जोधपुर हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट का सफर
जोधपुर यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री लेने के बाद 1968 में उन्होंने जोधपुर हाई कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू कर दी. दो साल की प्रैक्टिस के बाद 1970 में उन्हें शिकागो में भारतीय कानून पर होने वाली रिसर्च की वर्कशॉप में बुलाया गया. वर्कशॉप के बाद उन्होंने शिकागो की ही नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी से मास्टर्स कर लिया और नॉर्थवेस्टर्न लीगल असिस्टेंस क्लीनिक में काम करने लगे. वह क्लीनिक की तरफ से शिकागो कोर्ट में जिरह करते थे.
1973 में वह शिकागो से लौट आए और 1976 तक राजस्थान हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करते रहे. इसके बाद उनका दिल्ली आना हुआ. यहां वहह सुप्रीम कोर्ट में वकालत करते रहे और फिर 1991 में उन्हें दिल्ली हाई कोर्ट में जज बनाया गया. जस्टिस भंडारी के पास करीब 20 साल तक जज की जिम्मेदारी निभाने का अनुभव है. 2004 में उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट का जज बनाया गया और 2005 में वह सुप्रीम कोर्ट के जज नियुक्त हुए. सुधार लाने वाले सबसे ज्यादा और सबसे बड़े फैसले उन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में ही लिए.
ये है जस्टिस भंडारी का माइलस्टोन फैसला
2006 में कर्नाटक हाई कोर्ट की तीन जजों की एक बेंच ने एक कपल को बिना किसी आधार के तलाक दे दिया था. उस बेंच में जस्टिस भंडारी भी थे. असल में हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 के मुताबिक कोई भी कपल बिना किसी कारण के तलाक नहीं ले सकता. मसलन, दहेज प्रताड़ना, हिंसा, धोखा या शारीरिक संबंध न होना वगैरह. लेकिन आज अगर किसी पति-पत्नी के बीच भावनात्मक संबंध खत्म हो जाए और वो आपसी सहमति से तलाक लेना चाहें, तो उन्हें इसकी इजाजत नहीं होगी.
जस्टिस भंडारी ने जिस कपल को तलाक की इजाजत दी, वो सिर्फ चार महीने शादी में रहा था और फिर आठ साल तक तलाक के लिए जूझता रहा. भारत सरकार के लिए ये फैसला बेहद अहम है, क्योंकि इसी फैसले के आधार पर सरकार हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 या दूसरे मैरिज ऐक्ट्स में बदलाव करेगी, जो लंबे समय से अटका हुआ है.
देश के करोड़ों लोगों के लिए राहत लाए जस्टिस भंडारी के ये फैसले/आदेश
# सुप्रीम कोर्ट जज रहते हुए जस्टिस भंडारी ने अनाज आपूर्ति के मामले में सरकार को आदेश दिया था कि गरीबी रेखा से नीचे वाले लोगों को ज्यादा राशन दिया जाए. साथ ही, उन्होंने केंद्र इस बात का ध्यान रखने को कहा था कि देश में कोई भूख की वजह से नहीं मरना चाहिए. उनके आदेश के बाद राशन बढ़ाया गया था.
# ये जस्टिस भंडारी ही थे, जिन्होंने देश के सभी राज्यों की सरकारों को रैन-बसेरे बनाने का आदेश दिया था. उन्होंने कहा था कि रहने की जगह लोगों का बुनियादी अधिकार है और अगर कोई बेघर है, तो उसके लिए घर की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए. इसकी वजह से न जाने कितनों को छत नसीब हुई.
# जस्टिस भंडारी ने बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने की बात कही थी. इसके बाद देशभर के स्कूलों में प्राइमरी और सेकेंड्री के बच्चों को पढ़ाने के लिए जिन बुनियादी सुविधाओं की जरूरत थी, उन्हें पूरा किया गया.
# इनके आदेश पर ही देश में 100 साल से ज्यादा पुराने कत्लखाने बंद कराए गए और उनकी जगह जो नए कत्लखाने बने, उन्हें आधुनिक तकनीक वाला बनाया गया.
इन चीजों में है जस्टिस भंडारी की दिलचस्पी
दुनिया के कई देशों की कानूनी व्यवस्थाएं देख चुके जस्टिस भंडारी इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत समझते हैं. उन्होंने महाराष्ट्र और गोवा की सबऑर्डिनेट जुडिशरी को बहुत बेहतर इन्फ्रास्ट्रक्चर देने के लिए काम किया. सिस्टम का कंप्यूटराइजेशन करने, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग की सुविधा लाने और लोगों की कानूनी समझ को बढ़ाने के लिए प्रोग्राम कराने में उनकी खास दिलचस्पी रही. इसका असर न्यायपालिका पर दिखता भी है.
मुंबई में रहते हुए जब वो इतने सारे सुधार कर रहे थे, तभी 2005 में उन्हें सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया. उन्होंने केंद्र और राज्य सरकारों के बीच चल रहे मामले और दो या दो ज्यादा राज्यों के बीच चल रहे ढेर सारे मामलों को कम समय में निपटाया.
किसी भी जज के लिए सबसे ज्यादा गर्व की बात ये है
सुप्रीम कोर्ट के पूर्व चीफ जस्टिस टीएस ठाकुर देशभर में जजों की कमी से इतना परेशान थे कि पिछले साल एक कार्यक्रम में रो पड़े. उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने कहा था कि अदालतें खाली पड़ी हैं और न्यायपालिका पर लोगों का भरोसा कम हो रहा है. देश में जजों की कमी बड़ी चिंता है.
लेकिन ये जस्टिस भंडारी ही थे, जिनके कार्यकाल में बॉम्बे हाई कोर्ट पहली बार 60 जजों की अपनी अधिकतम सीमा को छू पाया था. उनके चीफ जस्टिस रहते हुए महाराष्ट्र और गोवा में नई अदालतें बनाई गईं और बॉम्बे हाई कोर्ट के जजों की सीमा 60 से बढ़ाकर 75 कर दी गई. वह 2005 से 2012 तक सुप्रीम कोर्ट जज रहे.
यूं पहुंचे इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में
जनवरी 2012 में भारत सरकार ने जस्टिस भंडारी को ICJ के लिए अपना ऑफीशियल कैंडिडेट बनाया था. उन्हें कैंडिडेट बनाने पर विवाद भी हुआ था. तब जॉर्डन के Awn Shawkat Al-Khasawneh ने ICJ से रिजाइन किया था, क्योंकि उन्हें अपने देश में प्रधानमंत्री चुन लिया गया था. अप्रैल 2012 में संयुक्त राष्ट्र में जब इलेक्शन हुआ, तो भंडारी को 122 वोट मिले, जबकि फिलिपींस के उनके प्रतिद्वंदी फ्लोरेंटीनो फेलिसिआनो को 58 वोट मिले थे. यानी उन्हें 122 देशों का समर्थन मिला था.
जस्टिस भंडारी से पहले 20 सालों से ICJ में कोई भारतीय जज नहीं था. उनसे पहले 1988 से 1990 तक पूर्व चीफ जस्टिस आरएस पाठक ICJ पहुंचे थे. उनका कार्यकाल 2018 में खत्म होगा. उन्होंने एक किताब भी लिखी है, 'जुडिशियल रिफॉर्म्स: रीसेंट ग्लोबल ट्रेंड्स'.
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