साल 1971, समंदर का एहसास कराती उफनती मेघना नदी. चौड़ाई इतनी कि दूसरा किनारा दिखाई ही न दे. चारों ओर सिर्फ पानी ही पानी. एक अभेद्य दीवार. नियाजी की सेना पुल उड़ाकर गफलत में थी कि भारतीय सेना अब आगे नहीं बढ़ पाएगी. लेकिन उन्हें ये एहसास नहीं था कि उनका सामना भारतीय सेना के उस जांबाज से है, जिसकी 'आउट-ऑफ-द-बॉक्स' रणनीतियां असंभव को संभव बनाने के लिए जानी जाती थीं. भारत के इसी ऑफिसर की वजह से बिना पुल के मेघना नदी पार करना और दुश्मन के इलाके में सटीकता के साथ पैर जमाने का करिश्मा मुमकिन हो सका. तो जानते हैं कि क्या है इस 'ऑपरेशन कैक्टस लिली' की कहानी.
मेघना नदी पार करने का वो 'आदेश' जो मिला ही नहीं था, लेकिन इस जनरल ने अमल कर पाकिस्तान के दो टुकड़े करवा दिए
1971 की जंग में Pakistan Army को ये एहसास नहीं था कि उनका सामना भारतीय सेना के उस जांबाज से है, जिसे 'आउट-ऑफ-द-बॉक्स' सोचने की आदत थी.


साल 1971, का नवंबर महीना. 20 तारीख को 57वीं माउंटेन डिवीजन (57th Mountain Divison) के कमांडर Major General BF Gonsalves ने अपने सभी ऑफिसर्स को इकठ्ठा किया. आदेश मिला था कि उन्हें बॉर्डर पार कर ईस्ट पाकिस्तान में घुसना था. उनका टारगेट था अखौरा. बांग्लादेश का वो शहर जो बिल्कुल भारत की सीमा पर है. ये शहर त्रिपुरा में अगरतला के करीब है. हालांकि काम इतना आसान नहीं था. पाकिस्तानी सैनिकों ने इस पूरे इलाके की किलेबंदी कर रखी थी. फिर भी 57वीं माउंटेन डिवीजन को इसे कैप्चर में ज्यादा जद्दोजहद नहीं करनी पड़ी. 5 दिसंबर को सैनिकों ने पूरे इलाके में पैठ बना ली. इसके बाद टुकड़ी का अगला टारगेट मेघना नदी के पूर्व में ब्राह्मणबारिया था. यहां कंट्रोल पाने का मतलब था ढाका की ओर जाने वाले रास्ते पर कंट्रोल.
8 दिसंबर को भारतीय सेना ने यहां भी कब्जा जमा लिया. इस जगह से सिलहट की दूरी लगभग 135 किलोमीटर है. ब्राह्मणबारिया पर कैप्चर के बाद सिलहट में मौजूद 2 पाकिस्तानी इंफैंट्री ब्रिगेड अलग- थलग पड़ गईं, क्योंकि सप्लाई लाइन और सैन्य सहायता का रास्ता यहीं से जाता था. और भारतीय सेना ने इसे बाधित कर रखा था. अब सिलहट में तैनात पाकिस्तानी सेना को न तो गोला-बारूद, न ही खाना या दूसरी मदद मिल रही थी.
नदी के इस पार का काम तो हो चुका था, लेकिन ढाका में बैठा दुश्मन अभी दूर था. बीच में उफनती मेघना नदी भारतीय सेना को मानो मुंह चिढ़ा रही थी. ऐसा इसलिए क्योंकि सेना के पास नदी पार करने का कोई जरिया ही नहीं बचा था.
पुल क्यों उड़ाया?दरअसल, भारतीय जवानों ने नदी के इस पार पैठ जमाए बैठे पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ दिया था. जब इस बात की भनक पाकिस्तानी सेना को लगी तो उन्होंने मेघना नदी पर मौजूद अशुगंज पुल को ही उड़ा दिया. यानी की उन तक पहुंचने का रास्ता ही खत्म कर दिया.

अब मेघना नदी के बारे में खास बात ये है कि इसका नाम सबसे चौड़ी नदियों में गिना जाता है. 1.5 किमी चौड़ी इस नदी के एक पार खड़े होकर अगर आप दूसरा छोर देखना चाहें तो ये किसी समंदर जैसी लगेगी. अलग-अलग जगहों पर इसकी चौड़ाई और भी बढ़ती गई है. एक बार के लिए टैंक ये रास्ता पार कर लें, लेकिन हजारों सैनिकों और लाव लश्कर के साथ ये बिल्कुन मुमकिन नहीं था.
जाहिर है नदी पार करने के लिए पुल बनाना कोई एक रात का तो खेल था नहीं. उधर दुश्मन चाय की चुस्कियां लेने में मशगूल हो गया और इधर मुक्ति वाहिनी समेत सेना के जवानों के कंधों पर चुनौती और समय की मार भारी पड़ रही थी.
मगर इस बीच भारतीय IV Corp में कुछ ‘पक’ रहा था. यहां एंट्री होती है IV कोर के कमांडर और इस पूरे ऑपरेशन का मोर्चा संभालने वाले जनरल सगत सिंह की. कहानी में आगे बढ़ने से पहले कुछ डिफेंस टर्मस सुलझा लेते हैं. हमने अभी 57वीं माउंटेन डिवीजन की बात की और फिर अचानक IV कोर की एंट्री हो गई.
दरअसल, फौज को लड़ाई के लिए एक खास किस्म के टुकड़ों में बांटा जाता है. जिस कोर में सगत सिंह थे यानी IV कोर, उसमें माउंटेन डिविजन था. माउंटेन डिवीजन के सैनिक पहाड़ों की लड़ाई में एक्सपर्ट होते हैं. उन्हें इसी हिसाब से ट्रेन भी किया जाता है. इसमें जाट, गोरखा, सिख सभी जवान शामिल होते हैं. IV कोर का मुख्यालय असम के तेजपुर में है. इसे गजराज कोर भी कहा जाता है.

चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ सैम मानेकशॉ, 57वीं माउंटेन डिवीजन के कमांडर Major General BF Gonsalves, IV कोर के कमांडर सगत सिंह, माने एक के बाद एक धुरंधर. नाम ही काफी है वाला सीन था. गेम इतनी आसानी से ओवर हो जाए जैसी बात पचने वाली नहीं थी. लेकिन पाकिस्तानी सेना तो फैंटम में थी कि भारतीय सेना नदी किनारे ही तंबू लगाकर बैठी है. किसी को भी नहीं पता था कि ये नदी कैसे पार की जाएगी. लेकिन मुक्ति संग्राम में अंतिम जीत की गंध हवा में फैल चुकी थी. सैनिकों में जोश था क्योंकि उनके साथ जनरल सगत सिंह थे. इस बारे में जब हमने सेना के एक अधिकारी से जानकारी ली तो उन्होंने बताया,
“सगत ‘आउट-ऑफ-द-बॉक्स’ वाली सोच और रणनीति के लिए जाने जाते हैं. सगत सिंह तो पहले आसानी से कुछ मानते नहीं थे और जो तैयार हो गए तो उसे अपने तरीके से करते थे.”
IV गार्ड बटालियन से जुड़े मेजर चंद्रकांत सिंह अपने एक लेख में बताते हैं कि किसी भी नदी को पार करने का ऑपरेशन कैसे होता है?
-नदी के तट पर पैठ बनाना.
-नदी को पार करना.
-दुश्मन की तरफ ब्रिजहेड बनाना.
-ब्रिजहेड से बाहर निकलकर आगे बढ़ना.
दुश्मन के इलाके में घुसकर अपनी सेना और हथियारों के लिए जो सुरक्षित जगह बनाई जाती है उसे ब्रिजहेड कहते हैं. नदी के तट पर पैठ बन ही चुकी थी, अब बारी थी उसे पार करने की. इतिहास में अब तक लड़े गए युद्धों में ‘सबसे बड़ी जीत’ को दर्ज दिया जाने के अगर यही फैक्टर्स हैं तो भारतीय सेना और एयरफोर्स का ये ऑपरेशन सबसे शानदार कारनामों में से एक माना जाएगा.

घड़ी में दोपहर के करीब 1 बज रहे होंगे. IV कोर की टीम ब्राह्मणबारिया स्टेडियम पहुंची. कमांडिंग ऑफिसर सगत सिंह ने सबको इकठ्ठा कर के बताया कि मेघना नदी को पार करने का आदेश मिला है. इसके लिए हेलीकॉप्टर लैंड होने वाले हैं. नए नक्शे दिए गए, जिनमें ब्राह्मणबारिया से ढाका तक का इलाका शामिल था. नदी के रायपुरा में लैंडिंग होनी तय थी. Major Chandrakant Singh ने अपने लेख में बताया है कि देहरादून में सर्वे ऑफ इंडिया प्रेस में सगत सिंह ने पहले ही मैप छपवा लिए थे. वो मैप जो उन्होंने सैनिकों को ऑपरेशन से पहले दिया था. मानो उन्हें पहले से ही इन चीजों का अंदाजा हो.

बहरहाल, ऑपरेशन को अंजाम देने के लिए 14 MI-4 हेलीकॉप्टर तैयार थे. अब लोडिंग की तैयारी करनी थी. एक हेलीकॉप्टर में 14 जवान और तीन-चार बंगाली कुलियों को गोला-बारूद ढोने के लिए सवार होना था. हेलीकॉप्टर में जवान और गोला बारुद थे इसलिए हेलीकॉप्टर के पेट्रोल को कम कर दिया गया. रास्ता केवल 2-3 किलोमीटर का था. उस दौर में MI-4 एक ऐसा हेलीकॉप्टर था जिसकी एज खत्म हो रही थी. ये लगभग एक्सपायर होने की कगार पर था.
गोधुली बेला के दौरान 14 हेलीकॉप्टरों ने उड़ान भर ली थी. सूरज ढलने को था. सभी हेलीकॉप्टर ग्रुप में मेघना नदी के ऊपर से गुजर रहे थे. Major Chandrakant Singh ने अपने लेख में बताया,
“ये क्षण सभी सैनिकों के लिए किसी हॉलीवुड मूवी से कम नहीं था. लेकिन इसे रिकॉर्ड करने के लिए कोई कैमरा नहीं था.”
मात्र 15 मिनट में रायपुरा में लैंडिंग होती है. पर चुनौती यहां खत्म नहीं हुई. जिस जगह लैंडिंग होनी थी वहां की मिट्टी बहुत गीली थी. हेलीकॉप्टर लैंड हुए तो जमीन धंसने सी लगने लगी. ऐसे में बाकी के सभी सैनिकों ने कूद कर लैंडिंग की. ज्यादातर सैन्य कार्रवाइयों में गांव वाले जान बचाने की होड़ में होते हैं. लेकिन बंगाली मूल ने जब हमारे सैनिकों को देखा तो वो ‘जॉय बांग्ला-जॉय इंदिरा’ के नारे लगाने लगे. उन्होंने सैनिकों को कंधे पर उठा लिया और ये भीड़ हजारों में बदल गई. पाकिस्तानियों ने भारी गोलाबारी के साथ जवाबी कार्रवाई भी थी, लेकिन सेना के साथ स्थानीय लोगों का हुजूम भी शामिल हो चुका था.
अगले ही दिन जनरल नियाज़ी ने संयुक्त राष्ट्र से संपर्क किया और शांति के लिए मुकदमा दायर किया. और इधर Commander of the Indian Eastern Command लेफ्टिनेंट जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा बातचीत के लिए पहुंच गए. पूर्वी पाकिस्तान के गवर्नर लेफ्टिनेंट जनरल आमिर अब्दुल्ला खान नियाजी के सामने अब कोई ऑप्शन नहीं था.
सरेंडर की दिलचस्प कहानी ऐसी है कि रेसकोर्स में एक मेज और दो कुर्सियां लगाई गईं. कुछ ही देर में पूर्वी सेना के कमांडर जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा वहां पहुंचे. इसके बाद जनरल नियाजी ने दुनिया का सबसे बड़ा सरेंडर किया और एक नया देश बांग्लादेश बना. जनरल जगजीत सिंह अरोड़ा ने इस सरेंडर के लिए पहले सैम मानेकशॉ को बुलाया था, लेकिन उन्होंने इसका श्रेय लेने से इनकार कर दिया. ये कहकर की ये टीम की मेहनत है. संभावित ही है कि उन्होंने IV कोर को इसके लिए फ्री हैंड दे रखा था.

अंत में आपको ये बताते चलते हैं कि IV कोर को मेघना नदी पार करने का आदेश मिला था, जैसा कि सगत सिंह ने अपनी टीम को बताया था. वास्तव में ऐसा कोई आदेश मिला ही नहीं था. टीम को केवल पूर्वी पाकिस्तान के अंदर घुसने का आदेश मिला था. मेघना नदी को पार करने का फैसला पूरी तरह जनरल सगत सिंह का था. जब जनरल अरोड़ा को सगत के प्लान के बारे में पता चला तो उन्होंने तुरंत ऑपरेशन को रोकने का आदेश दिया. लेकिन बार बार समझाने के बाद भी उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया.
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