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BJP ने कार्यकारी अध्यक्ष पद के लिए नितिन नबीन को ही क्यों चुना?

BJP के राष्ट्रीय महासचिव Arun Singh ने एक पत्र जारी कर बताया कि पार्टी के संसदीय बोर्ड ने बिहार सरकार में मंत्री Nitin Nabin को कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष नियुक्त किया है. कार्यकारी अध्यक्ष के लिए नितिन नबीन के नाम की घोषणा ने आम लोगों ही नहीं राजनीतिक पंडितों को भी चौंका दिया है.

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नितिन नबीन को बीेजेपी का कार्यकारी अध्यक्ष नियुक्त किया गया है. (फेसबुक)

साल 2010. पटना में बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी. गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी भी पटना आए थे. नरेंद्र मोदी के स्वागत में धन्यवाद देने वाले बड़े-बड़े होर्डिंग्स और बैनर भी लगवाए गए थे, क्योंकि 2008 में कोसी बाढ़ के दौरान गुजरात ने बिहार की आर्थिक मदद की थी. अगले दिन बिहार के दो प्रमुख अखबारों में नीतीश कुमार का हाथ पकड़े नरेंद्र मोदी की एक तस्वीर छपी. अगले दिन सुबह जब नीतीश कुमार के घर अखबार पहुंचा तो वह आग बबूला हो गए. नीतीश कुमार ने बीजेपी नेताओं के लिए डिनर रखा था, रद्द कर दिया गया. 

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नीतीश ने गुजरात सरकार की आर्थिक मदद वापस कर दी, क्योंकि उन्हें धन्यवाद देने वाले पोस्टर्स भी पसंद नहीं आए थे. इन पोस्टर्स को लोकल बीजेपी यूनिट के दो नेताओं ने छपवाया था. नाम संजीव चौरसिया और नितिन नबीन. 15 साल बाद अब नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री हैं और नितिन नबीन बीजेपी के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष.

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साल 2009 के लुधियाना रैली की तस्वीर. (स्क्रीनग्रैब)

बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा का कार्यकाल खत्म हुए दो साल से ज्यादा हो गया था. उनको कार्यकारी अध्यक्ष के तौर पर लगातार एक्सटेंशन दिया जा रहा था. सवाल उठने लगे देश की सबसे बड़ी पार्टी का दावा करने वाली पार्टी अपना राष्ट्रीय अध्यक्ष नहीं चुन पा रही है. बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए कई नामों की चर्चा थी. मसलन धर्मेंद्र प्रधान, भूपेंद्र यादव और बीएल संतोष जैसे हैवीवेट. लेकिन नितिन नबीन के नाम की घोषणा ने आम लोगों के साथ-साथ राजनीतिक विश्लेषकों को भी चौंका दिया.

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बीजेपी और संघ की खींचातानी का परिणाम!

नई दिल्ली में 26 से 28 अगस्त तक राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का तीन दिवसीय संवाद था. इस संवाद के आखिरी दिन सरसंघचालक मोहन भागवत ने प्रेस कॉन्फ्रेंस किया. इसमें उनसे बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष को लेकर संघ और बीजेपी के बीच टकराव को लेकर सवाल किया गया. जवाब में संघ प्रमुख ने कहा, 

हमारे यहां मतभेद हो सकता है, लेकिन मन भेद नहीं है. क्या RSS सब कुछ तय करता है? यह पूरी तरह से गलत है. ऐसा बिल्कल नहीं हो सकता. मैं कई सालों से संघ चला रहा हूं. और वे सरकार चला रहे हैं. इसलिए हम केवल सलाह दे सकते हैं. निर्णय नहीं ले सकते. अगर हम निर्णय लेते तो क्या इसमें इतना समय लगता?

संघ प्रमुख भले ही इस बात से इनकार कर गए कि बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम में उनकी भूमिका सलाह देने भर की है. लेकिन कहानी इतनी सीधी नहीं है. दोनों के बीच विवाद या कहें संघ की नाराजगी की शुरुआत लोकसभा चुनाव के ठीक पहले राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के एक बयान से हुई. जिसमें उन्होंने कहा कि अब बीजेपी चुनाव जीतने के लिए संघ के भरोसे नहीं है. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक लोकसभा नतीजों के बाद से ही संघ किसी भी हाल में जेपी नड्डा की विदाई चाह रहा था. जबकि नड्डा मोदी-शाह की गुडबुक में होने के चलते लगातार एक्सटेंशन पा रहे थे. वहीं दूसरी तरफ नए राष्ट्रीय अध्यक्ष के नाम पर दोनों संगठनों में सहमति नहीं बन पा रही थी. लल्लनटॉप के पॉलिटिकल एडिटर पंकज झा ने बताया,

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 संघ और बीजेपी राष्ट्रीय अध्यक्ष के लिए किसी एक नाम पर सहमत नहीं हो पा रहे थे. जो नाम संघ की ओर से आए उन पर मोदी-शाह की सहमति नहीं थी. और जो नाम मोदी-शाह की ओर से आगे किए गए उन पर संघ मुहर नहीं लगा रहा था. ऐसे में मोदी-शाह की ओर से एक ऐसे नाम को आगे किया गया जिसे संघ काट नहीं सका. और देश भर में मैसेज गया कि बीजेपी में वो जमाना लद गया जब संघ के कहने पर नितिन गडकरी या फिर किसी को भी राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया जाता था. अब संघ के करीबी का युग नहीं नरेंद्र मोदी और अमित शाह के करीबी का युग आ गया है.

भविष्य की लीडरशिप डेवलप करने की तैयारी

बीजेपी के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन की उम्र 45 साल है. वो बीजेपी के इतिहास में सबसे कम उम्र के नेता हैं जिन्हें पार्टी की कमान मिली है. इससे पहले अमित शाह को 49 साल में राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा बताते हैं कि बीजेपी अब पूरी तरह से अगली पीढ़ी की लीडरशिप डेवलप करने पर फोकस कर रही है. इससे पहले भी पार्टी ने राजस्थान, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ में अपेक्षाकृत युवा और कम चर्चित चेहरों को कमान दी है.  इस मामले में RSS भी बीजेपी के साथ खड़ी दिखती है, क्योंकि सरसंघचालक मोहन भागवत ने भी कुछ दिन पहले पार्टी में युवा नेतृत्व को मौका देने की बात कही थी. 

कार्यकर्ताओं को मैसेज देने की कोशिश

नितिन नबीन को विरासत में राजनीति मिली जरूरी है. लेकिन उन्होंने एक सामान्य कार्यकर्ता की तरह बीजेपी में काम किया है. जब अनुराग ठाकुर बीजेपी युवा मोर्चा के अध्यक्ष थे तब नितिन नबीन बतौर महासचिव उनके साथ काम कर रहे थे. उन्होंने अनुराग ठाकुर के साथ जम्मू कश्मीर में राष्ट्रीय एकता यात्रा भी निकाला था. साथ ही 1965 के शहीदों की याद में गुवाहाटी से तवांग तक श्रद्धांजलि पदयात्रा निकाली. टाइम्स ऑफ इंडिया से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार दिवाकर बताते हैं,

 नितिन नबीन को राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने का फैसला साहसी तो है लीक से हटकर है लेकिन अप्रत्याशित नहीं. दिल्ली के लिए वो नए चेहरे हैं लेकिन पार्टी सर्किल में एक परिचित नाम हैं. युवा मोर्चा के महामंत्री के तौर पर भी काफी एक्टिव रहे हैं. मृदुभाषी हैं सरल स्वभाव के हैं, मिलनसार है. इसके चलते जो सांगठनिक जिम्मेदारियां मिलती है उसको सफलतापूर्वक निभाते हैं.

बीजेपी ने नितिन नबीन को अध्यक्ष बनाकर अपने कार्यकर्ताओं को मैसेज देने की कोशिश की है कि अगर कोई ईमानदारी से पार्टी के लिए काम करता है तो पार्टी देर सबेर उसका ख्याल जरूरी करती है. पंकज झा का मानना है कि इसके जरिए बीजेपी ने मैसेज दिया है कि आप सामान्य कार्यकर्ता हैं कठोर परिश्रम और समर्पण से काम करते हैं गणेश परिक्रमा में यकीन नहीं रखते हैं तो 'स्काई इज योर लिमिट. '

बीजेपी केंद्रीय नेतृत्व की नजर में थे

नितिन नबीन पांच बार के विधायक हैं, मौजूदा बिहार सरकार में पथ निर्माण और नगर विकास मंत्री हैं. पिछली सरकार में भी पथ निर्माण विभाग की जिम्मेदारी थी. इसके अलावा छत्तीसगढ़ चुनाव में सह प्रभारी के तौर पर अपनी भूमिका से उन्होंने केंद्रीय नेतृत्व को प्रभावित किया. वहां भूपेश बघेल की सरकार काफी मजबूत मानी जा रही थी. लेकिन नितिन नबीन ने प्रभारी ओम माथुर के साथ कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाया, बूथ स्तर पर माइक्रो मैनेजमेंट किया और महतारी वंदन योजना की जानकारी आम लोगों तक पहुंचाया. नतीजा हुआ कि कांग्रेस का अभेद दिख रहा दुर्ग ढह गया. इसके बाद नितिन नबीन ने सिक्किम में भी प्रभारी की भूमिका निभाई. 

वरिष्ठ पत्रकार अरविंद शर्मा ने बताया कि मोदी युग में बीजेपी की कार्यशैली रही है कि जिस भी नेता को बड़ी जिम्मेदारी देनी होती है या नया नेतृत्व उभारना होता है तो उसे स्टेप बाय स्टेप आगे बढ़ाया जाता है. इसे रामनाथ कोविंद और द्रौपदी मुर्मु के उदाहरण से देख सकते हैं जिन्हें राष्ट्रपति बनाने से पहले क्रमश: बिहार और झारखंड का राज्यपाल बनाया गया. नितिन नबीन के प्रमोशन को भी इसी ट्रेंड से समझ सकते हैं. पहले उन्हें नीतीश सरकार में मंत्री बनाया गया. फिर कई राज्यों में सांगठनिक जिम्मेदारी दी गई और अब राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई.

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जाति की राजनीति बेअसर

लोकसभा चुनाव और उसके बाद से राहुल गांधी जिस तरह से OBC कार्ड को लेकर मुखर रहे हैं उसे देखते हुए माना जा रहा था कि ऑप्टिक्स के लिहाज से बीजेपी किसी पिछड़े या अतिपिछड़े समुदाय से आने वाले नेता को राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी सौंपेगी. लेकिन पार्टी ने इस मामले में भी राजनीतिक पंडितों को झटका दिया है. नितिन नबीन के चयन में जाति की भूमिका नगण्य दिखती है.  नितिन नबीन कायस्थ जाति से आते हैं जिसकी जनसंख्या बिहार में एक फीसदी से भी कम है. यानी जाति के मोर्चे पर बिहार में बीजेपी को कुछ भी फायदा नहीं होगा.  

लेकिन टाइम्स ऑफ इंडिया से जुड़े दिवाकर इसका एक दूसरा पहलू बताते हैं. उनका मानना है कि बिहार की राजनीति में अगड़ा पिछड़ा ध्रुवीकरण की वजह से अगर किसी दूसरे अगड़े जाति के नेता को आगे किया जाता तो पिछड़े नाराज होते वहीं पिछड़ी जाति के नेता को मौका मिलता तो अगड़े नाराज होते. लेकिन कायस्थ न्यूट्रल कास्ट टाइप हैं, जिनका कोई रिएक्शन नहीं होगा. बीजेपी भविष्य में बिहार की राजनीति में भी उनको एक चेहरा के तौर पर प्रोजेक्ट कर सकती है. 

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