The Lallantop
Advertisement
  • Home
  • India
  • Nitin Nabin national working president of the BJP profile

नितिन नबीन जिनके पिता नीतीश सरकार में मंत्री नहीं बन पाए, BJP ने पार्टी की कमान सौंप दी!

नितिन नबीन BJP के कार्यकारी राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाए गए हैं. वह सिर्फ 45 साल के हैं और बांकीपुर से विधायक हैं. नीतीश सरकार में मंत्री भी हैं. उनके पिता नवीन किशोर सिन्हा भाजपा के बड़े नेता रहे हैं.

Advertisement
Nitin Nabin
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ नितिन नवीन की पुरानी तस्वीर. (India today)
pic
राघवेंद्र शुक्ला
14 दिसंबर 2025 (Published: 12:43 AM IST)
font-size
Small
Medium
Large
font-size
Small
Medium
Large
whatsapp share

BJP ने जेपी नड्डा के बार-बार ‘विस्तारित’ होते कार्यकाल को विराम लगाकर जिसे राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया है, उनकी उम्र सिर्फ 45 साल हैं. जिस उम्र में BJP में मंडल अध्यक्ष होते हैं, उस उम्र का नेता पूरी पार्टी 'चलाएगा'. 48 साल की उम्र में अमित शाह BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे. तब वो पार्टी के सबसे युवा प्रमुख थे. 52 साल की उम्र जेपी नड्डा की थी, जब उन्होंने संगठन की कमान संभाली थी. अब भगवा पार्टी के पास उसका सबसे युवा अध्यक्ष है. नाम है नितिन नबीन. 

कल तक वह सिर्फ एक राज्य की सियासत के नेता थे. मंत्री भी थे. अब वो ‘देश की सबसे बड़ी’ पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं. अभी कार्यकारी हैं लेकिन माना जा रहा है कि जेपी नड्डा के बाद बीजेपी अध्यक्ष की मशाल उन्हीं को दी जानी है. 

कौन हैं नितिन नबीन?

ये साल 2005 की बात है. बिहार की सत्ता में महापरिवर्तन हुआ था. लालू प्रसाद यादव के शासन का अंत करते हुए नीतीश कुमार के नेतृत्व में नेशनल डेमोक्रेटिक अलायंस यानी एनडीए ने सरकार बनाई. उस समय राज्य में BJP के तीन बड़े नेता थे- सुशील मोदी, नंद किशोर यादव और नबीन किशोर सिन्हा. पटना में ये BJP के पिलर माने जाते थे. BJP की मदद से नीतीश की सरकार बनी तो सुशील मोदी बने डिप्टी सीएम और वित्त मंत्री. सड़क निर्माण मंत्रालय गया नंद किशोर यादव के पास. लेकिन नबीन किशोर सिन्हा को कोई पद नहीं मिला. 

इंडिया टुडे मैग्ज़ीन के सीनियर स्पेशल करेस्पॉन्डेंट हिमांशु शेखर बताते हैं कि 

नबीन किशोर वेस्ट पटना सीट से लड़ते थे और उस समय सबसे ज्यादा मार्जिन से जीतने वाले नेताओं में थे. ये उन लोगों में से थे, जिन्होंने बिहार में BJP को खड़ा किया और सींचा था. ऐसे नबीन किशोर सिन्हा का नीतीश सरकार में मंत्री बनना लगभग तय माना जा रहा था लेकिन उन्हें मंत्रालय नहीं मिला. सरकार बनने के कुछ ही महीनों बाद 2 जनवरी 2006 को सिन्हा का हार्ट अटैक से निधन हो गया. उस समय वो दिल्ली में थे. 

लंबे समय से बिहार की राजनीति कवर कर रहे आजतक से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार सुजीत कुमार झा बताते हैं कि उस समय ये आरोप लगे कि मंत्री नहीं बनाया गया, इसी वजह से सिन्हा को सदमा लगा और यही उनकी मौत की वजह बन गई. 

b
बीजेपी अध्यक्ष बनने के बाद पिता को प्रणाम किया (X)

नबीन किशोर की मौत के बाद खाली सीट पर उनके बेटे को उपचुनाव लड़ाया गया और इस तरह नितिन नबीन की पॉलिटिक्स में एंट्री हो गई. नितिन पहली बार साल 2006 में विधानसभा उपचुनाव जीते. पश्चिमी पटना की वही सीट थी, जहां से उनके पिता लड़ते थे. इन सबके बीच BJP के पुराने लोग नबीन किशोर को भी याद करते हैं और कहते हैं कि वो BJP के संघर्ष के साथी थे, लेकिन जब पार्टी के उत्कर्ष दौर आया तब वो इस दुनिया में नहीं हैं. 

हिमांशु शेखर के मुताबिक, नबीन किशोर का काम दमदार था. उनकी इमेज अच्छी थी. पुराने लोगों से बात करिए तो सब नबीन किशोर के बारे में अच्छी-अच्छी ही बातें कहते हैं. मंत्री न बन पाए नबीन किशोर की मौत के 19 साल बाद उनका बेटा उसी संगठन की सबसे बड़ी कुर्सी पर जा बैठा है.

नबीन किशोर के साथ न्याय नहीं हुआ या उनके बेटे नितिन नबीन को पार्टी की कमान सौंप कर न्याय करने की कोशिश की गई, इन दोनों बातों पर वाद-विवाद हो सकता है. लेकिन नबीन राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष बनने के बाद एक तस्वीर पर सबकी निगाहें जरूर टिकीं. अध्यक्ष पद की घोषणा के बाद नितिन नबीन ने जो पहला काम किया, वो था अपने पिता की तस्वीर के आगे सिर झुकाकर प्रणाम करना.

आज तक चुनाव नहीं हारे

नबीन किशोर की मौत के बाद जब उनके 26 साल के बेटे नितिन नबीन राजनीति में आए तबसे आज तक एक भी चुनाव नहीं हारे. 2006, 2010, 2015, 2020 और अब 2025 में भी विधायक हैं. एक बार वो वेस्ट पटना से जीते. बाकी चार बार बांकीपुर विधानसभा सीट से. साल 2021 में वह पहली बार मंत्री बनें. इस बार भी जब नीतीश सरकार बनी तो उन्हें पथ निर्माण विभाग जैसा ‘महत्वपूर्ण’ मंत्रालय दिया गया. हिमांशु शेखर बताते हैं, 

बिहार की राजनीति में नितिन नबीन का उदय 2020 में होता है. एनडीए की सरकार बनी और वो पीडब्ल्यूडी मंत्रालय के समकक्ष पथ निर्माण विभाग के मंत्री बने. ये बहुत बड़ी छलांग थी. उसी समय लोगों को लगा कि पार्टी उनके बारे में कुछ बड़ा सोच रही है, क्योंकि ये पद हमेशा पार्टी के कद्दावर नेता नंद किशोर यादव के पास रहता था. 

वही नंदकिशोर यादव, जो उनके पिता के साथ बिहार में BJP के तीन पिलर्स में से एक माने जाते थे. कहा जाता है कि जिस साल नितिन मंत्री बने, उस साल नंद किशोर यादव को ड्रॉप किया गया. सुशील मोदी उस मंत्रिपरिषद में शामिल नहीं हुए तो ये पहला संकेत था कि पार्टी नितिन नबीन को लेकर कुछ बड़ा सोच रही है. इसके बाद 2023 में छत्तीसगढ़ का चुनाव आया. BJP ने ओम प्रकाश माथुर को प्रभारी बनाकर छ्त्तीसगढ़ भेजा. उनके साथ दो और लोग सह प्रभारी बनकर गए. एक मनसुख मांडविया और दूसरे नितिन नबीन.  बीजेपी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि

जो लोग ग्राउंड पर काम कर रहे थे, वो सब यही कह रहे थे कि माथुर साहब का कोई बहुत बड़ा रोल नहीं था. मांडविया जी और नितिन नबीन ही पूरा इलेक्शन संभाल रहे थे. छत्तीसगढ़ चुनाव के बारे में संभावना ये थी कि बिल्कुल हारा हुआ चुनाव है और भूपेश बघेल वापस आ रहे हैं. उस समय बिल्कुल हारा हुआ चुनाव ये लोग जीते. इस काम का फीडबैक ऊपर तक गया और तब लोगों को समझ में आया कि संगठन के लिहाज से नितिन उपयोगी व्यक्ति होंगे. 

बिहार के वरिष्ठ पत्रकार रमाकांत चंदन बताते हैं कि 

BJP की नजरों में नितिन नबीन की इमेज एक अच्छे संगठनकर्ता की है. वह भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय महामंत्री भी रह चुके हैं लेकिन आलाकमान को सबसे ज्यादा प्रभावित किया, छत्तीसगढ़ में उनका सहप्रभारी होना. उन्होंने वहां BJP को जो जीत दिलाई, उससे आलाकमान को लगा कि ये आदमी काम का है. 

BJP को लंबे समय से कवर करने वाले पत्रकार नवनीत मिश्रा के मुताबिक, 45 साल का होने के बावजूद नितिन नबीन का संगठनात्मक अनुभव कम नहीं है. जब अनुराग ठाकुर 2010 से 2016 के बीच में भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उस वक्त ये 6 साल तक उसके राष्ट्रीय महासचिव रहे. इसके अलावा, बिहार के BJP युवा मोर्चा के ये अध्यक्ष भी रहे हैं. दूसरी बात कि ये पांच बार के विधायक हैं और दो बार से मंत्री. सड़क निर्माण जैसी हैवी मिनिस्ट्री संभाल रहे हैं और काफी अच्छा परफॉर्म भी किया है. इस तरह मंत्री के तौर पर भी नबीन ने अपनी प्रशासनिक क्षमता साबित की है.

नितिन नबीन ही क्यों?

नितिन नबीन जैसी संगठनात्मक या प्रशासनिक क्षमता वाले और लोग भी BJP में हैं लेकिन उन्हें ही चुने जाने के पीछे BJP का कुछ तो मकसद रहा होगा? नवनीत मिश्रा कहते हैं कि 

‘इस निर्णय के जरिए BJP ने आम कार्यकर्ताओं में को संदेश दिया है कि BJP ऐसी पार्टी है, जहां रातोरात आप शिखर पर पहुंच सकते हैं. इससे कार्यकर्ता और ज्यादा मनोयोग से पार्टी का काम करेंगे. उनके अंदर कोई निराशा नहीं होगी. इस निर्णय से ये भी संकेत जाएगा कि बड़े-बड़े पद पर पहुंचने के लिए बड़े नेताओं या दिल्ली की परिक्रमा करना काफी नहीं है. अपना काम खामोशी से करेंगे तो भी पार्टी आपको उठाकर कहीं से कहीं पहुंचा देगी.’

हिमांशु शेखर इसमें एक महत्वपूर्ण बात रेखांकित करते हैं. वो कहते हैं कि 

मोदी-शाह वाली BJP ने इससे एक संकेत किया है कि भले ही पार्टी में शिवराज सिंह चौहान, धर्मेंद्र प्रधान जैसे बड़े-बड़े लोग हों लेकिन वो जिसे चाहेंगे उसको राष्ट्रीय अध्यक्ष बना सकते हैं. 

रमाकांत चंदन का कहना है कि बिहार का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने के पीछे 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी भी हो सकती है. BJP की सोच यह भी हो सकती है कि उस समय तक नीतीश कुमार का सक्रिय राजनीति में रहना मुश्किल है. तब बिहार से राष्ट्रीय अध्यक्ष के बल पर यहां पार्टी की क्षमता का विस्तार किया जा सकता है. 

b
बिहार BJP के नेताओं के साथ नितिन नबीन (X)

नितिन नबीन की जाति को लेकर भी चर्चा है कि क्या BJP ने उनके चुनाव में किसी तरह के जातीय समीकरण का ध्यान रखा है? क्योंकि नितिन नबीन कायस्थ जाति से आते हैं. कायस्थ आबादी इतनी ज्यादा नहीं है कि उन्हें आगे करके कोई वोटबैंक सेट किया जा सके. हिमांशु शेखर तो इसे ही उनके चयन का बड़ा आधार बताते हैं. उनका कहना है  

नितिन नबीन का सेलेक्शन कास्ट न्यूट्रल है. मतलब कायस्थ संख्या के हिसाब से बहुत ‘डोमिनेंट कास्ट’ नहीं है. उनका सेलेक्शन इस नाते से भी किया गया होगा कि वह कंपेरेटिवली लो प्रोफाइल है. 

नवनीत इसमें एक नई बात जोड़ते हैं. वह कहते हैं 

नितिन नबीन के जरिए BJP ने जाति विमर्श को एक तरह से चुनौती दी है. जाति विमर्श की जगह सामाजिक संतुलन साधने की ये कोशिश है कि यूपी में BJP ने ओबीसी प्रेसिडेंट दे दिया. बिहार में जाति जनगणना कराने का फैसला ले ही लिया. ऐसे में वह राष्ट्रीय स्तर पर ओबीसी प्रेसिडेंट देने के दबाव से मुक्त हो गई थी. अब सवाल था कि सामान्य वर्ग से भी किस जाति से अध्यक्ष चुना जाए. अगर ब्राह्मण या राजपूत को बनाते तो अन्य जातियों के नाराज होने का खतरा था. लेकिन कायस्थ एक ऐसी जाति है जो सवर्ण है और जिसके प्रति किसी की नाराजगी ज्यादा नहीं है. नबीन के जरिए यही संतुलन साधने की कोशिश की गई है.

नितिन नबीन जेपी नड्डा के 2 साल के विस्तारित कार्यकाल के बाद कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए हैं. इस बीच कई लोगों के नाम चले, जिन्हें BJP का संभावित अध्यक्ष कहा गया. धर्मेंद्र प्रधान, शिवराज सिंह चौहान, भूपेंद्र यादव. ऐसे कई नाम लोगों ने लिए लेकिन इन सबको दरकिनार कर नितिन नबीन को BJP की राष्ट्रीय कमान थमा दी गई. ये काफी चौंकाने वाला फैसला है. रातोरात एक व्यक्ति को राज्य की राजनीति से निकालकर राष्ट्रीय राजनीति में खड़ा कर दिया गया. 

नवनीत कहते हैं कि ये एक अपवाद है. इससे पहले BJP में ऐसा 2009 में हुआ था, जब नितिन गडकरी को महाराष्ट्र की राजनीति से निकालकर अचानक से राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था. इसके पीछे सबसे बड़ा जो संदेश है वो ये है कि BJP अगले 20 साल नेतृत्व तय करने जा रही है. इसी सिलसिले में नए-नए 50 से 60 साल के बीच के सीएम बनाए जा रहे हैं. इसी तरीके से संगठन में भी नए चेहरों की एंट्री दी जा रही है. BJP एक जनरेशन शिफ्ट की ओर है. यही इस नियुक्ति का संदेश है.

n
नितिन गडकरी को 2009 में BJP का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया गया था (india today)

बड़े नामों को पछाड़ने की बात पर नवनीत कहते हैं कि 

BJP को फिलहाल हाई प्रोफाइल अध्यक्ष की जरूरत नहीं थी. बल्कि एक ऐसे अध्यक्ष की जरूरत थी जो शांति से काम करे. जो कम चर्चित हो. उसे नेता की जरूरत नहीं थी बल्कि एक संगठक की जरूरत थी. BJP के नरेंद्र मोदी के रूप में भीड़ जुटाने वाला नेता है. रणनीतिक प्रबंधन के लिए उसके पास अमित शाह हैं. ऐसे में राष्ट्रीय अध्यक्ष की जो भूमिका होती है, वो एक संगठक की बचती है.

नवनीत मिश्रा का मानना है कि जब कोई पार्टी विपक्ष में होती है तो उसे राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में एक बहुत बड़ा चेहरा चाहिए होता है लेकिन जब पार्टी सत्ता में होती है तो आमतौर पर एक संगठक की ही जरूरत होती है जो संगठन में समन्वय स्थापित करे. 

व्यवहार के स्तर पर भी नितिन नबीन सरल, सुलभ और लो प्रोफाइल नेता माने जाते हैं. उनके पास बिहार का महत्वपूर्ण मंत्रालय है लेकिन न तो उनसे कोई विवाद जुड़ा है और न ही भ्रष्टाचार के कोई आरोप उन पर हैं. जबकि उनके अन्य साथी सम्राट चौधरी और मंगल पांडेय पर कई तरह के आरोप लगे हैं. नितिन नबीन की छवि पार्टी में अच्छी है. पार्टी से जुड़े लोग बताते हैं कि वह कार्यकर्ताओं से बड़े प्रेम से मिलते हैं. 

पटना में पुराने बीजेपी के लोग बहुत अधिकार से कहते हैं कि ‘अरे ये काम तो अपने नितिनवा के विभाग का है न. हम बोल देंगे. हो जाएगा काम.’ उन्होंने अपनी ऐसी इमेज बनाई है. जिस मंत्रालय में वो हैं, वहां पे भी कोई बड़ा आरोप नहीं लगा. जैसे मंगल पांडे पर बड़े-बड़े आरोप लगे. चुनाव के दौरान सम्राट चौधरी के पीछे तो प्रशांत किशोर ही लग गए थे.

पार्टी से जुड़े सूत्र बताते हैं कि ‘नितिन नबीन का पार्टी में भी कोई दुश्मन नहीं है. उनसे किसी को थ्रेट नहीं लगता. राजनाथ सिंह के बाद वह शायद बीजेपी के पहले अध्यक्ष होंगे, जो कार्यकर्ताओं की डांट-फटकार भी सुन लेंगे.’ 

फुल टाइम अध्यक्ष बनेंगे?

काफी लंबी माथापच्ची के बाद BJP को राष्ट्रीय अध्यक्ष तो मिला है लेकिन वो भी पूरी तरह से नहीं. सबसे बड़ा सवाल तो यही है कि क्या नितिन ही BJP के पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष बनेंगे या कार्यवाहक ही रह जाएंगे? नवनीत का मानना हैं कि जैसे जेपी नड्डा को पहले कार्यकारी अध्यक्ष बनाया गया था और बाद में वह फुल टाइम अध्यक्ष हो गए थे. वैसे ही नितिन नबीन ही BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष होंगे. नए साल में मकर संक्रांति के बाद इनको पूर्णकालिक राष्ट्रीय अध्यक्ष की जिम्मेदारी मिलेगी और जो राष्ट्रीय परिषद का अधिवेशन होगा, उसमें इनका नाम प्रस्तावित हो जाएगा. उसी में नाम पर मोहर लगेगी. 

वीडियो: एक दिये से उठा विवाद, देश की राजनीति तक पहुंचा मामला: तिरुप्परनकुंद्रम विवाद की पूरी कहानी

Advertisement

Advertisement

()