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टाइटैनिक का मलबा दिखाने गई पनडुब्बी गायब, लोगों के बचने की कितनी संभावना?

टाइटैनिक दिखाने गई पनडुब्बी गुम, पूरा सच ये है!

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18 जून को जहाज का मलबा दिखाने 5 लोगों को लेकर समंदर में गई टाइटन नामक पनडुब्बी गुम हो गई. (OceanGate Expeditions/Handout via Reuters)

टाइटैनिक अपने समय के सबसे विशाल और आलीशान जहाज ‘टाइटैनिक’ का संभवत: इकलौता उपलब्ध वीडियो है. तारीख़, 02 अप्रैल 1912. टाइटैनिक को मौजूदा समय में आयरलैंड की राजधानी बेलफ़ास्ट से इंग्लैंड के साउथेम्पटन के लिए रवाना किया जा रहा है. साउथेम्पटन के बंदरगाह पर इसमें 22 सौ से अधिक लोग सवार हुए. इनमें दुनिया की कुछ सबसे चर्चित हस्तियां भी थीं. उनकी मंज़िल लगभग साढ़े 05 हज़ार किलोमीटर की दूरी पर बसा अमेरिका का न्यू यॉर्क शहर था. लेकिन सफ़र की शुरुआत में ही टाइटैनिक बर्फ की चट्टान से टकरा कर ओझल हो गई. हादसे में डेढ़ हज़ार से अधिक लोग मारे गए. जो बच गए, उनके पास रह गई कहानियां. दुनिया के हिस्से में आया, कुछ अनसुलझा रहस्य. मसलन, सबसे बड़ा और अजेय कहा जाने वाला जहाज डूबा कैसे? उसका मलबा कहां गया? और, क्या टाइटैनिक बनाना एक भूल थी?

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कट टू 2023.

टाइटैनिक एक बार फिर से चर्चा में है. दरअसल, 18 जून को जहाज का मलबा दिखाने 05 लोगों को लेकर समंदर में गई टाइटन नामक पनडुब्बी गुम हो गई. कंट्रोल रूम से उसका संपर्क टूट गया. फिर सर्च एंड रेस्क्यू ऑपरेशन शुरू हुआ. कई देशों की नौसेना और कंपनियां उन्हें ढूंढ़ने में जुटी है. अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन भी ऑपरेशन पर नज़र बनाए हुए हैं. लेकिन अभी तक उसका कोई निशान नहीं मिला है. समय के बीतने के साथ-साथ उम्मीद भी बीत रही है. टाइटन गोलाकार कैप्सूल की तरह दिखती है. इसे समंदर के अंदर चलने और सर्वाइव करने के लिए बनाया गया है. हालांकि, टाइटन में अब कुछ ही घंटों का ऑक्सीजन बचा है. अगर उससे पहले लोगों को नहीं निकाला गया तो उनके बचने की उम्मीद घट जाएगी. आशंका ये भी जताई जा रही है कि ये घटना भी टाइटैनिक की तरह महज एक रहस्य बन सकती है.

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तोआइए हम जानते हैं,

- पनडुब्बी में बैठे टूरिस्ट कौन हैं और वे क्या देखने गए थे?
- और, इसमें सवार लोगों के बचने की कितनी संभावना है?

टाइटैनिक जहाज़ (AFP)

 की कहानी 1900 के दशक में शुरू हुई थी. उस वक़्त ब्रिटेन में जहाज बनाने वाली कंपनियों के बीच जंग चल रही थी. एक कंपनी थी, वाइट स्टार लाइन. इसका मालिकाना हक़ मशहूर बैंकर जे. पी. मॉर्गन के पास था. वाइट स्टार का मुकाबला कुनार्ड स्टीमशिप कंपनी लिमिटेड से था. वे ज़्यादा बड़ी और अधिक सुविधाओं वाले जहाज बनाकर रेस में आगे निकलना चाहते थे. 1906-07 में कुनार्ड ने दो तेज़ रफ़्तार वाले जहाज बनाकर बाकियों को पीछे छोड़ दिया. तब वाइट स्टार के कर्ता-धर्ता नई योजना लेकर आए. उन्होंने स्पीड की बजाय साइज़ और फ़ैसिलिटीज़ पर ध्यान देने का फ़ैसला किया. इसके तहत तीन नए जहाज बनाए गए. इस सीरीज़ में पहला जहाज 1911 में पानी में उतारा गया. इसका नाम था, ओलंपिक. ये प्रयोग बहुत सफ़ल नहीं हो सका. सितंबर 1911 में ये एक मिलिटरी शिप से टकरा गया. जांच में पता चला कि ग़लती ओलंपिक की थी. 1935 में इसको कबाड़ में भेज दिया गया. सीरीज़ का तीसरा जहाज था, ब्रिटैनिक. उसे 1914 में लॉन्च किया गया था. ये पहले वर्ल्ड वॉर के दौरान डूब गया.

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वाइट स्टार लाइन के जिस जहाज ने सबसे ज़्यादा सुर्खियां बटोरीं, वो थी टाइटैनिक. ये कई मायनों में बाकी जहाजों से अलग थी. टाइटैनिक की कुल लंबाई 882.75 फ़ीट की थी. उस समय तक इससे लंबा जहाज नहीं बना था. इसको बनाने में 75 लाख डॉलर्स लगे थे. अभी के हिसाब से 04 करोड़ डॉलर्स यानी लगभग 350 करोड़ रुपये टाइटैनिक में सात तल्ले थे. कुल क्षमता 32 सौ से अधिक लोगों की थी. टाइटैनिक मार्च 1912 में बनकर तैयार हुई थी.

10 अप्रैल 1912 को ये पहली ट्रिप पर साउथेम्पटन से न्यू यॉर्क के लिए निकली. इसमें 22 सौ से अधिक लोग सवार थे. पैसेंजर्स की सीटों को तीन क्लास में बांटा गया था.
फ़र्स्ट क्लास में अमीर बिजनेसपर्सन और मशहूर हस्तियां का क़ब्ज़ा था. वे एडवेंचर और घूमने के मकसद से टाइटैनिक में बैठे थे. सेकेंड और थर्ड क्लास में बैठे अधिकतर लोग अमेरिका में नया जीवन बसाने निकले थे. साउथेम्पटन से न्यू यॉर्क तक थर्ड क्लास के टिकट की कीमत 07 पाउंड रखी गई थी. आज के समय में ये रकम एक लाख रुपये के बराबर होगी. सबसे महंगा टिकट फ़र्स्ट क्लास सुइट का था. आज के समय में लगभग 01 करोड़ रुपये.

टाइटैनिक जब अपनी पहली ट्रिप पर निकली, तब इसका ज़ोर-शोर से प्रचार किया गया. विज्ञापनों में उसे ‘क़्वीन ऑफ़ द सी’ यानी समंदर की महारानी बताया जाता था. न्यूज़पेपर्स और मैगज़ीन्स में लिखा गया कि टाइटैनिक कभी डूब नहीं सकती. इसके अलावा स्विमिंग पूल, स्क़्वैश कोर्ट और जिम जैसी सुविधाओं का भी जमकर प्रचार किया गया. उस दौर में किसी जहाज पर इस तरह की सुविधाओं के बारे में कोई सोच भी नहीं सकता था. इसी वजह से टाइटैनिक बहुतों के लिए किसी पहेली की तरह थी.

ये पहेली 14 अप्रैल की रात और गहराने वाली थी. रात के 11 बजकर 40 मिनट पर जहाज बर्फीले चट्टान से टकराकर डूबने लगा. उसने बाहर से मदद मांगी. लेकिन तीन घंटे बाद ग्राउंड से संपर्क टूट चुका था. 10 मिनट बाद इसमें पानी भरने लगा और ये समंदर में डूबने लगा. जब तक मदद पहुंची, तब तक 15 सौ से अधिक लोगों की जान जा चुकी थी. जहाज दो टुकड़ों में बंटकर समंदर में समा चुका था. मलबा 600 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैल गया. ये मलबा क्रैश वाली जगह से लगातार ड्रिफ़्ट करता रहा. इसके चलते इसको लोकेट करना आसान नहीं था. कालांतर में कई खोजियों ने मलबा ढूंढ़ने की कोशिश की. लेकिन हर बार उनके हिस्से में नाकामी आई.

फिर आया सितंबर 1985. यूएस नेवी के अफ़सर डॉक्टर रॉबर्ट बलार्ड एक खोजी जहाज के अंदर अपने कमरे में किताब पढ़ रहे थे. तभी उनके दरवाज़े पर दस्तक हुई. जहाज का रसोइया उन्हें कंट्रोल रूम में चलने के लिए बुलाने आया था. जब रॉबर्ट की नज़र कंट्रोल रूम में लगी टीवी स्क्रीन पर पड़ी, उनका चेहरा सन्न रह गया. स्क्रीन पर टाइटैनिक का एक हिस्सा दिख रहा था. 73 बरस बाद टाइटैनिक मिल चुकी थी. ये अविश्वसनीय था. इस खोज की कहानी भी दिलचस्प है.

रॉबर्ट बलार्ड 1942 में अमेरिका के कंसास स्टेट में पैदा हुए थे. 23 की उम्र में उन्होंने यूएस आर्मी जॉइन की. 1967 में उन्होंने नेवी में ट्रांसफ़र की रिक़्वेस्ट दी. अप्रूवल मिलने के बाद वो यूएस नेवी का हिस्सा बन गए. 1970 में उन्होंने एक्टिव ड्यूटी छोड दी. लेकिन रिजर्व फ़ोर्स का हिस्सा बने रहे. डीपवॉटर रिसर्च में उनकी काफ़ी दिलचस्पी थी. 1977 में वो पहली बार टाइटैनिक के मलबे की तलाश में निकले थे. लेकिन उस दफा उनके हाथ निराशा आई. 1980 के दशक में उन्होंने एक अंडर-वॉटर रोबोट बनाने के लिए फ़ंड मांगा. इसमें कैमरा लगाया जाता और इसे पानी के नीचे लगभग 20 हज़ार फ़ीट तक भेजा जा सकता था. उसके साथ किसी इंसान को नीचे जाने की ज़रूरत नहीं थी.

रॉबर्ट बलार्ड

यूएस नेवी को आइडिया अच्छा लगा. लेकिन वो किसी के पर्सनल मिशन पर पैसा लगाने के लिए तैयार नहीं थी. तब एक डील का मसौदा तैयार हुआ. नेवी ने कहा, हम पैसा देंगे. बशर्ते आप हमारी दो सबमरीन्स का पता लगा दें. ये सबमरीन्स 1960 के दशक में डूबीं थी.

रॉबर्ट ने डील पर हामी भर दी. काम शुरू हुआ. लेकिन उसी समय कोल्ड वॉर भी चल रहा था. इसलिए मिशन को पब्लिक नहीं किया जा सकता था. बाहर की दुनिया को बताया गया कि रॉबर्ट एक खोजी हैं. जो समंदर की रिसर्च करने निकले हैं. लेकिन असल में उन्हें एक्टिव ड्यूटी पर रखा गया था. इसी क्रम में 01 सितंबर 1985 को उनकी टीम टाइटैनिक का मलबा तलाशने में कामयाब रही.

आपके मन में सवाल उठ रहा होगा कि आज हम टाइटैनिक के मलबे की कहानी क्यों सुना रहे हैं? जैसा कि हमने शो की शुरुआत में बताया, इस मलबे को लेकर रोमांच और रहस्य हमेशा से बना रहा है. इसी कड़ी में कुछ कंपनियां लोगों को मलबा दिखाने के लिए ट्रिप का आयोजन करती है. ऐसी ही एक कंपनी है, ओशनगेट. कंपनी की वेबसाइट के मुताबिक, इसने पहली ट्रिप 2021 में आयोजित की थी. ओशनगेट कैप्सूल जैसी दिखने वाली पनडुब्बी चलाती है. जो पनडुब्बी गायब हुई है, उसका नाम टाइटन है. इसका साइज़ छोटी कार के बराबर है. लंबाई लगभग सात मीटर है. इसकी क्षमता पांच लोगों की है. ये कार्बन-फ़ाइबर से बनी पनडुब्बी है. जो न्यूफ़ाउंडलैंड के सेंट जॉन्स से यात्रा शुरू करती है और मलबे तक जाती है. 

टाइटन में सामने की तरफ़ पारदर्शी खिड़की लगी है. इसमें बैठने के लिए कोई कुर्सी नहीं है. लोगों को फर्श पर टेक लगाकर बैठना होता है. टाइटन में एक प्राइवेट टॉयलेट भी बना हुआ है. मीडिया रपटों के मुताबित, पूरी ट्रिप आठ दिनों की है. इस दौरान कई बार डुबकी लगवाई जाती है. टाइटैनिक का मलबा अटलांटिक सागर में लगभग चार हज़ार मीटर नीचे है. हर एक डुबकी में लगभग आठ घंटों का वक़्त लगता है. एक बार डुबकी लगाने के बाद ये पानी में 96 घंटों तक रह सकती है. 17 साल से ऊपर के लोग इसका टिकट ले सकते हैं. एक टिकट की कीमत लगभग दो करोड़ रुपये है. इसको बाहर से किसी दूसरी पनडुब्बी या सतह पर मौजूद जहाज से कंट्रोल किया जाता है. टाइटन को पोलर प्रिंस नाम के दूसरे जहाज से सपोर्ट मिल रहा था.

18 जून को टाइटन कनाडा के न्यूफ़ाउंडलैंड तट के नज़दीक मलबा दिखाने निकली थी. डुबकी लगाने के लगभग दो घंटे बाद टाइटन का सतह से संपर्क टूट गया. संपर्क टूटने के आठ घंटे बाद यूएस कोस्ट गार्ड को अलर्ट किया गया. उसके बाद कोस्ट गार्ड ने सर्च ऑपरेशन शुरू किया. टाइटन में पांच लोग सवार हैं. कौन-कौन हैं?

पाकिस्तानी अरबपति शहज़ादा दाऊद और उनके बेटे सुलेमान. ब्रिटिश उद्योगपति हामिश हार्डिंग. ओशनगेट के सीईओ स्टॉकटन रश और फ़्रांसीसी खोजी पॉल आनरी नार्जेलेट. हामिश हार्डिंग एक जाने-माने खोजी हैं. वो अंतरिक्ष तक जा चुके हैं और उनके नाम तीन गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स भी हैं.

इन्हें ढूंढ़ने में अमेरिका और कनाडा के अलावा कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियां भी शामिल हैं. अमेरिकी कोस्ट गार्ड के प्रवक्ता ने कहा है कि ये बचाव अभियान ‘बेहद जटिल’ है और अगर पनडुब्बी की लोकेशन पता चल जाती है तो ‘बचाव के लिए हमारे बस में जो होगा वो हम करेंगे.’

हालिया अपडेट क्या है?

पनडुब्बी जहां ग़ायब हुई है, वहां से खटखटाने की आवाज़ बहुत देर तक आई. इसके बाद सर्च ऑपरेशन को उसी एरिया में शिफ़्ट कर दिया गया. लेकिन उनके हाथ कुछ भी नहीं लगा है.
मीडिया रपटों के अनुसार, पनडुब्बी में ऑक्सीजन का स्टॉक लगातार खत्म हो रहा है. 22 जून को दोपहर साढ़े तीन बजे इसकी डेडलाइन है. अगर उससे पहले तलाश पूरी नहीं हुई तो लोगों का बचना नामुमकिन होगा.
बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इस मिशन को मुश्किल बताया जा रहा है. पानी के नीचे रौशनी नहीं जा पाती, इसलिए विजिब्लिटी नहीं है. इस इलाके का मौसम भी खराब है. हालांकि, अमेरिकी कोस्ट गार्ड ने बताया कि 20 जून से मौसम ठीक हुआ है. यूएस कोस्ट गार्ड के कैप्टन जैमी फ्रेडरिक ने कहा, 

"हमारी टीम 24 घंटे काम कर रही है. हम पूरी कोशिश कर रहे हैं कि जल्द से जल्द टाइटन और पांचों साथियों को ढूंढ लिया जाए."

ब्रिटिश अख़बार द गार्डियन की खबर के मुताबिक, टाइटन रिसर्च और सर्वे में इस्तेमाल होने वाली पनडुब्बी है. इसका इस्तेमाल समुद्र के अंदर जांच-पड़ताल और खोजबीन के मिशनों लिए होता है. मिशन के दौरान इसमें पायलट के अलावा 4 लोग रह सकते हैं. ये लोग सामान्य तौर पर आर्कियोलॉजिस्ट या समुद्र जीवविज्ञानी होते हैं. अब ये जान लेते हैं कि टाइटन में सवार लोगों के बचने की कितनी संभावना है?

लंदन के यूनिवर्सिटी कॉलेज लंदन में मरीन इंजीनियरिंग के प्रोफ़ेसर एलिस्टेयर ग्रेग ने बीबीसी को बताया कि बचावकर्मियों के लिए सबसे बड़ी समस्या लोकेशन पता करने की है. वे नहीं जानते हैं कि सर्च ऑपरेशन चलाया कहां जाए. सतह पर या पानी के अंदर? ये सवाल उनके लिए मुसीबत का कारण बन गया है.टाइटन का रंग सफेद है. सतह पर ढूंढ़ने के लिए कई लड़ाकू विमानों को तैनात किया गया है. लेकिन रंग की वजह से उसको देख पाना एक चुनौती है. सर्च एंड रेस्क्यू टीम को लगातार बदलते मौसम से भी जूझना पड़ रहा है.

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