
मेघालय के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टॉन तिनसॉन्ग.
और इस लिस्ट में नया शामिल हुआ राज्य है मेघालय. 1 नवंबर, 2019. पूर्वोत्तर के राज्य मेघालय की कैबिनेट ने एक फैसला किया. फैसला ये कि अब भारत के किसी दूसरे राज्य के रहने वाले किसी भी नागरिक को मेघालय में 24 घंटे से ज्यादा का वक्त बिताने के लिए मेघालय सरकार के पास रजिस्ट्रेशन करवाना होगा. मेघालय के उपमुख्यमंत्री प्रेस्टॉन तिनसॉन्ग ने बताया-
''मेघालय सरकार ने मेघालय रेज़िडेंट्स सेफ्टी ऐंड सिक्योरिटी ऐक्ट, 2016 में बदलाव को मंजूरी दे दी है. यह तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है. अलग-अलग राजनीतिक दलों, एनजीओ और सिविल सोसाइटी के लोगों से बातचीत के बाद सरकार ने ये फैसला लिया है कि अगर मेघालय के बाहर का कोई भी आदमी मेघालय में आता है और वो 24 घंटे से ज्यादा का वक्त बिताता है, तो उसे मेघालय सरकार से इज़ाजत लेनी होगी. हालांकि केंद्रीय कर्मचारियों और राज्य सरकार के कर्मचारियों को इस नियम से छूट मिली हुई है.''क्यों लिया गया फैसला?
पूर्वोत्तर के ही राज्य असम में पिछले कुछ दशकों से एनआरसी की कवायद चल रही है. एनआरसी यानी कि नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजनशिप. आसान भाषा में कहें तो जिन लोगों का नाम इस रजिस्टर में शामिल है, वो असम के नागरिक हैं और जिनका नाम इस लिस्ट में शामिल नहीं है, वो असम के नागरिक नहीं है. फिलहाल 19 लाख से ज्यादा ऐसे लोग हैं, जिनका नाम एनआरसी की आखिरी लिस्ट में शामिल नहीं है. हालांकि इनके पास फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल के अलावा हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में अपील करने का मौका है, लेकिन मेघालय के लोगों के अलावा वहां की सरकार को डर है. डर इस बात का कि असम के एनआरसी से बाहर हुए लोग मेघालय में दाखिल हो सकते हैं. और इस डर को लेकर मेघालय के सिविल सोसाइटी के लोग, पॉलिटिकल पार्टियों के लोग और खुद मुख्यमंत्री कोनराड संगमा कई बार बयान जारी कर चुके हैं. इसको लेकर मेघालय में लंबे समय से अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम की तरह इनर लाइन परमिट जारी करने की मांग हो रही है. मेघालय सरकार ने इनर लाइन परमिट तो जारी नहीं किया है, लेकिन उसने मेघालय रेजिडेंट सेफ्टी ऐंड सिक्योरिटी ऐक्ट (MRSSA), 2016 में बदलाव कर नया नियम बना दिया है. 2016 में जब पहली बार ये नियम बना था, तो इसे मेघालय में रहने वाले किराएदारों को ध्यान में रखकर बनाया गया था.

मेघालय सरकार को डर इस बात का है कि असम की एनआरसी लिस्ट से बाहर हुए लोग मेघालय के अंदर दाखिल हो सकते हैं.
क्या होता है इनर लाइन परमिट, जिसकी मांग कर रहा था मेघालय
इनर लाइन परमिट एक तरह का दस्तावेज होता है, जिसके जरिए देश का कोई भी नागरिक देश के किसी खास हिस्से में घूमने के लिए या फिर नौकरी करने के लिए जा सकता है. इसे बंगाल इस्टर्न फ्रंटियर रेग्युलेशन ऐक्ट (BEFR) 1873 के तहत जारी किया जाता है. इसकी शुरुआत अंग्रेजों के जमाने से हुई थी. अंग्रेजों ने अपने व्यापारिक हितों की रक्षा के लिए इस दस्तावेज को बनाया था. देश की आजादी के बाद भी ये इनर लाइन परमिट लागू रहा, लेकिन वजह बदल गई. भारत सरकार के मुताबिक, आदिवासियों की सुरक्षा के लिए ये इनर लाइन परमिट जारी किया जाता है. आसान भाषा में कहें, तो इनर लाइन परमिट भारत सरकार की ओर से भारत के ही लोगों को दिया जाने वाला एक तरह का वीजा है. ये भी दो तरह का होता है. पहला है टूरिस्ट इनर लाइन परमिट और दूसरा है जॉब्स इनर लाइन परमिट. टूरिस्ट परमिट कम वक्त के लिए ही होता है, जबकि जॉब्स परमिट लंबे वक्त के लिए मिलता है.

मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग में ऐसी कई खूबसूरत जगहें हैं.
कहां-कहां है इनर लाइन परमिट की ज़रूरत?
भारत के तीन राज्य ऐसे हैं, जहां जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है. ये राज्य हैं अरुणाचल प्रदेश, नगालैंड और मिजोरम. इन राज्यों के किसी भी हिस्से में जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है.
# अरुणाचल प्रदेश : आप अरुणाचल प्रदेश में कहीं से भी दाखिल हों, आपको इनर लाइन परमिट की ज़रूरत पड़ेगी. ये परमिट अरुणाचल प्रदेश सरकार के सेक्रेटरी की ओर से जारी किया जाता है. टूरिस्ट इनर लाइन परमिट एक हफ्ते के लिए होता है, जिसे बढ़ाया जा सकता है. वहीं नौकरी करने वालों के लिए 1 साल का इनर लाइन परमिट मिलता है.
# मिजोरम : मिजोरम के लिए इनर लाइन परमिट मिजोरम सरकार जारी करती है. ये भी सात दिन के लिए ही वैलिड होता है, जिसे 15 दिन के लिए बढ़ाया जा सकता है. कुछ विशेष परिस्थितियों में इसे एक महीने के लिए भी बढ़ाया जा सकता है.

मिजोरम में घूमने जाने के लिए भी इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है.
# नगालैंड : नगालैंड के लिए इनर लाइन परमिट जारी करने की जिम्मेदारी नगालैंड सरकार की है. यहां पर भी इनर लाइन परमिट की अवधि एक हफ्ते से लेकर 15 दिनों तक की है, जिसे विशेष परिस्थितियों में बढ़ाया जा सकता है. नगालैंड में दीमापुर इकलौती ऐसी जगह है, जहां जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत नहीं होती है.
इसके अलावा भी कई और राज्य हैं, जिनके कुछ हिस्सों में जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है.
# सिक्किम : पूर्वी सिक्किम के इलाकों जैसे टॉन्ग्सो लेक, नाथूला, कुपुप और मेनमेचो के साथ ही उत्तरी सिक्किम के चुंगतांग, लाचुंग, यमतांग वैली, युमेसामडॉन्ग, लाचेन, थांगू, चोपटा और गुरुडोंगमार लेक तक जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है.
# लद्दाख : केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लेह जिले में भी जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत पड़ती है. हालांकि 2014 में लेह के लिए इनर लाइन परमिट की व्यवस्था खत्म कर दी गई थी, लेकिन अप्रैल 2017 से इसे फिर से शुरू कर दिया गया है. लेह के भी कुछ खास हिस्सों में ही इनर लाइन परमिट की ज़रूरत होती है.

लेह के लिए साल 2017 में जारी नया आदेश.
# लक्षद्वीप : लक्षद्वीप घूमने वालों को भी परमिट की ज़रूरत होती है. लेकिन इसे इनर लाइन परमिट न कहके टूरिस्ट परमिट कहा जाता है. इस परमिट को बनवाने के पैसे नहीं लगते हैं.
इनके अलावा अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर से लगते राज्यों जैसे राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के बॉर्डर वाली कुछ जगहों पर जाने के लिए इनर लाइन परमिट की ज़रूरत पड़ती है.
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