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BLA पर बैन, लेकिन परमाणु धमकी पर चुप्पी,क्या बदल गई है ट्रंप राज में अमेरिका की चाल?

India-US relations 2025: अमेरिका ने पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठन बलूच लिबरेशन आर्मी (BLA) को विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया, लेकिन पाकिस्तानी नेता की भारत को खुलेआम परमाणु हमले की धमकी पर चुप्पी साध ली. क्या यह ट्रंप प्रशासन की नई पाकिस्तान-फ्रेंडली विदेश नीति का संकेत है? इस रिपोर्ट में जानिए ऑपरेशन सिंदूर, वॉशिंगटन की डबल स्टैंडर्ड डिप्लोमेसी, और भारत पर इसके संभावित असर की पूरी कहानी, इंटरनेशनल मीडिया रिपोर्ट्स और एक्सपर्ट राय के साथ...

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BLO पर बैन, Nuke धमकी पर चुप्पी… ट्रंप के अमेरिका की बदली चाल?

कभी चीन को बैलेंस करने के लिए भारत की तरफ देखने वाला अमेरिका, क्या डॉनल्ड ट्रंप के नेतृत्व में अपने पुराने दोस्त पाकिस्तान की ओर लौट रहा है? हाल के घटनाक्रम और बयानों ने यह सवाल फिर से जिंदा कर दिया है. तीन बड़ी घटनाएं-BLA को आतंकवादी संगठन घोषित करना, पाक आर्मी चीफ़ का अमेरिका से भारत को एटमी धमकी देना, और “ऑपरेशन सिंदूर” के बीच ट्रंप का संतुलन साधने वाला रुख-इस बहस को हवा दे रहे हैं.

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हाल की तीन घटनाएं जो शक पैदा करती हैं

पहली-अमेरिका ने बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) को Foreign Terrorist Organization (FTO) घोषित कर दिया. सतह पर देखें तो यह पाकिस्तान के हक में नहीं लगता, लेकिन इंटरनेशनल रिलेशंस एक्सपर्ट्स मानते हैं कि यह कदम पाकिस्तान को कुछ हद तक संतुष्ट करने का तरीका भी हो सकता है.

दूसरी-पाक आर्मी चीफ़ जनरल आसिम मुनीर ने अमेरिका की धरती पर खड़े होकर भारत को एटमी हमले की धमकी दी. हैरानी की बात यह रही कि अमेरिकी प्रशासन ने सिर्फ “We take note” जैसा हल्का जवाब दिया. Observer Research Foundation (ORF) के एक विश्लेषक के मुताबिक, 

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यह चुप्पी बताती है कि वॉशिंगटन इस वक्त इस्लामाबाद से सीधे टकराव नहीं चाहता.

तीसरी-भारत के “ऑपरेशन सिंदूर” के दौरान राष्ट्रपति ट्रंप के तेवरों में पाकिस्तान और भारत को बराबरी पर रखने का अंदाज़ झलकता दिखा. The Washington Post ने पाकिस्तान की हालिया अमेरिकी यात्राओं को “Charm Offensive” कहा-यानी रिश्तों में पुरानी गर्मजोशी वापस लाने की कोशिश.

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क्यों हो सकता है अमेरिका का रुख बदल रहा हो

अमेरिका के लिए पाकिस्तान एक “Transactional Partner” है-Brookings Institution की रिपोर्ट कहती है, “Inconvenient but necessary.”

  • अफगानिस्तान: वहां के हालात और आतंकी नेटवर्क पर नज़र रखने के लिए पाकिस्तान का भूगोल अहम है.
  • चीन: CPEC और चीन–पाक रिश्तों को समझने और संतुलित करने के लिए भी इस्लामाबाद से तालमेल ज़रूरी.
  • रूस और मिडल ईस्ट: ऊर्जा और हथियार सौदों के बीच पाकिस्तान की भूमिका अमेरिका के लिए एक उपयोगी चैनल बन सकती है.
लेकिन पूरी तस्वीर एकतरफा नहीं है

“प्रो-पाकिस्तान” कहना अतिशयोक्ति भी हो सकता है. इसकी वजह भी है.

  • BLA को FTO में डालना एक कठोर कदम है, जो पाकिस्तान में सक्रिय कई तत्वों पर वित्तीय और राजनीतिक दबाव बढ़ाता है.
  • भारत–अमेरिका रिश्ते डिफेंस, टेक और ट्रेड में ऐतिहासिक रूप से मज़बूत हैं.
  • अमेरिका QUAD और इंडो-पैसिफिक स्ट्रैटेजी में भारत के साथ खुलकर खड़ा है.
भारत पर इसका असर

अगर अमेरिका का झुकाव सचमुच पाकिस्तान की तरफ बढ़ा, तो भारत के लिए कुछ चुनौतियां साफ हैं,

  • कूटनीतिक दबाव: वॉशिंगटन में भारत की लॉबिंग और मज़बूत करनी होगी.
  • सुरक्षा तैयारी: पाकिस्तान की आक्रामक बयानबाज़ी और सीमाई हलचल के बीच इंटेलिजेंस और डिफेंस को हाई अलर्ट रहना होगा.
  • इमेज वॉर: ग्लोबल मीडिया नैरेटिव में पाकिस्तान की चालाकी और भारत की सुरक्षा चिंताओं को ठोस डेटा के साथ पेश करना पड़ेगा.
भारत क्या कर सकता है

जाहिर सी बात है कि अगर अमेरिका का झुकाव हमारे पड़ोसी की तरफ होगा, तो शक्ति संतुलन के लिए भारत को कुछ ना कुछ तो करना ही होगा. अब सवाल है कि वो कदम क्या हैं, जिन्हें भारत उठा सकता है.

  • अमेरिका में Track 2 Diplomacy और बिज़नेस कनेक्ट बढ़ाना.
  • रक्षा सौदों में अमेरिका के साथ सक्रिय बने रहना ताकि सामरिक हित जुड़े रहें.
  • क्षेत्रीय गठबंधन-जैसे जापान, ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस-के साथ तालमेल मज़बूत करना.
  • ग्लोबल टेक और ग्रीन एनर्जी सेक्टर में अमेरिका के लिए प्रमुख साझेदार बने रहना.

अभी यह कहना जल्दबाज़ी होगी कि अमेरिका पूरी तरह पाकिस्तान की तरफ चला गया है. लेकिन इतना साफ है कि वॉशिंगटन इस वक्त अपने हितों के लिए इस्लामाबाद को फिर से अहमियत दे रहा है. भारत के लिए चुनौती यही है कि वह इस बदलाव को समय रहते पहचानकर कूटनीतिक और रणनीतिक दोनों मोर्चों पर अपनी स्थिति मज़बूत करे.

वीडियो: ट्रंप के टैरिफ के बाद भारत के पास क्या विकल्प हैं?

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