"दर्जनों युद्धों में हमने आतताइयों को हमने पैरों तले रौंदा है. सातवीं सदी में बप्पा रावल ने मुहम्मद बिन क़ासिम को ईरान तक दौड़ा दौड़ा कर मारा था. ये हमें क्यों नहीं पढ़ाया जाता?"आगे बताएंगे कि इस बात की सच्चाई क्या है और मनोज मुंतशिर के दावे पर इतिहासकारों की राय क्या है. लेकिन पहले उनका वीडियो देखिए.
https://twitter.com/IndianNishachar/status/1432258341774848002
वीडियो में किए गए दावे को सोशल मीडिया पर कुछ लोगों ने काउंटर किया है. जैसे Indian History Memes-इतिहास
नाम के एक फेसबुक पेज पर मनोज मुंतशिर के सवाल का जवाब दिया गया है. उनका वीडियो पोस्ट करने के साथ कैप्शन में लिखा है,
"मनोज मुंतशिर जी पूछ रहे हैं की ये हमें क्यों नहीं पढ़ाया जाता. मुझे लगता है कि इसका एक कारण तो ये है की बप्पा रावल सातवीं नहीं आठवीं सदी में हुए थे.
दूसरा कारण ये है कि मुहम्मद बिन क़ासिम की मौत हुई थी 715 ईसवी में. उस समय बप्पा रावल केवल दो साल के थे. बप्पा रावल का जन्म ही 713 ईसवी में हुआ था.
तीसरा कारण ये है की बप्पा रावल अपनी डायनेस्टी के फाउंडर माने जाते हैं. यानी कि जब वो जवान हुए होंगे तभी उन्होंने अपने साम्राज्य की नींव रखी होगी.
चौथा कारण ये है कि मुहम्मद बिन क़ासिम ने सिंध पर हमला किया था. बप्पा रावल जहां के थे, उसके आसपास भी क़ासिम या उसकी सेना नहीं फटकी थी. और सिंध का राजा दाहिर एक बड़ा राजा था, बप्पा रावल से काफी बड़ा, तो उसे 2 साल के बच्चे की मदद की जरूरत पड़ी होगी युद्ध में, ऐसा मुझे नहीं लगता है."

मुहम्मद बिन कासिम लेफ्ट में और दाईं और बप्पा रावल.
हमने मनोज मुंतशिर के दावे पर ये तथ्य सामने रखने वाले फेसबुक अकाउंट के एडमिन से संपर्क किया. उन्होंने कहा कि ये बातें उन्होंने गूगल से उठाई हैं. ऐसे में इनकी तस्दीक के लिए विशेषज्ञों से बात करना जरूरी था. सो हमने कुछ इतिहासकारों को फोन लगाए. पूछा कि क्या सातवीं सदी में बप्पा रावल ने मुहम्मद बिन क़ासिम को ईरान तक दौड़ा-दौड़ा कर मारा था.
इस सवाल पर दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर असद अहमद ने 'दी लल्लनटॉप' को बताया,
"मुहम्मद बिन कासिम और बप्पा रावल का दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं रहा है. मुहम्मद बिन कासिम ने (सन्) 712 में सिंध पर आक्रमण किया था और उस वक्त वहां के राजा दाहिर थे. बप्पा रावल और कासिम के बीच कोई लड़ाई नहीं लड़ी गई थी. दोनों समकालीन नहीं थे."दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फरहत हसन ने 'दी लल्लनटॉप' को बताया,
"इन बातों का इतिहास से कोई लेना-देना नहीं है. बतौर हिस्टोरियन मेरा इस पर कमेंट करना ही बेकार है. इस पर बात करने का कोई फायदा नहीं है. केवल साफ करने के लिए कह दूं कि इसका इतिहास से कोई संबंध नहीं है. इसमें कोई हिस्टोरिकल एक्युरेसी नहीं है. कोई फैक्ट नहीं है. ये इतिहास है ही नहीं तो इस पर क्या बातें की जाएं."वहीं, दिल्ली विश्वविद्यालय के ही एक बेहद सीनियर प्रोफेसर ने नाम नहीं छापने की शर्त पर कहा,
"देखिए ये तथ्य नहीं है, सच नहीं है. इस पर वैसे कोई कमेंट नहीं करना चाहता. लेकिन इस तरह की खबरें नहीं लिखी जानी चाहिए, क्योंकि इससे समाज में गलत भावनाएं जाती हैं. जो भी बात वायरल हो रही है, उस पर चर्चा करके उसे बड़ा बनाया जा रहा है. खैर, रावल और कासिम के बीच कोई जंग नहीं हुई."इतिहासकारों की बातों से साफ होता है कि मुहम्मद बिन कासिम को कभी भी बप्पा रावल का सामना नहीं कर पड़ा. गूगल पर भी थोड़ा सा रिसर्च करने से ही साफ हो जाता है कि बप्पा रावल को लेकर किया गया मनोज मुंतशिर का दावा बेतुका है. यहां ये बात उल्लेखनीय है कि खुद बप्पा रावल के इतिहास को प्रमोट करने वाली चर्चित वेबसाइट्स पर भी यही लिखा है कि बप्पा रावल का जन्म सन् 713 में हुआ था. यानी जब मुहम्मद बिन कासिम को जानवर की खाल में सिलकर दमिश्क भेजा गया था, उस समय बप्पा रावल केवल 2 साल के थे.
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मुहम्मद बिन कासिम को बैल की चमड़ी में सिलकर सीरिया भेजा गया था