फिर गांव छूट गया. पता चला कि दीदी का भी गांव छूट गया. वह चली गईं. मायके से.
मायके सबके छूट जाते हैं. मेरा भी छूट गया. यहां नोएडा में हूं. क्या ये भी किसी का मायका होगा.
खैर. अब जो भी है देह यहीं है. दिल करता है. सब खूंटे उखाड़ मय रस्सी दौड़ लगा जाऊं. इतनी तेज कि कोई केसना दद्दा पकड़कर कांजी हाउस में बंद न कर सके.
कुछ लोगों ने खूंटे खोल लिए हैं. चलते जाते हैं. चरते जाते हैं. बढ़ते जाते हैं. गोया मेरे महा पुरखों की लिखी ऋचा को उन्होंने ही पूरा का पूरा सुना और समझा हो.
चरैवेति-चरैवेति. चलते रहो. चलते रहो.
ये जो लोग हैं. ये हमारी रात के जुगनू हैं. जो सब दीये बुझने के बाद भी रौशनी को पेट पेट छुपाए सुबह तक पहुंचा देते हैं.
बीते रोज ऐसी ही एक जुगनू मायावी दुनिया से असल में सामने आ गई. गहरे प्याजी रंग के लिबास में. लक्ष्मी नाम है उसका.
लक्ष्मी के पांव नहीं टिकते. खूब घूमती है. और अकेले नहीं. सब लक्ष्मियों को संग साथ लिए.
इस दौरान जिन पड़ावों पर ठहरती है. जिन निगाहों को पढ़ती है. उनकी खबर भी रखती है.
हमने कहा. अपनी नजर से हमें भी घुमाओ. वो मुस्कुरा दी. जैसे भुंसारे (दिन का पहला पहर) तालाब से एक साथ दर्जनों सुफैद पक्षी एक कतार में उठे हों. आसमां की तरफ. चमकती लकीर से.
ये हां की एक तस्वीर थी.
और अब सिलसिला शुरू होने को है. दी लल्लनटॉप पर इससे पहले आप अनुराधा सिंह नाम की महिला से मिल चुके हैं. बनारस की रहने वाली. जो अपने डॉक्टर पति की खींची तस्वीरों की कहानी सुनाती रहती हैं. (पति पत्नी और वो कैमरा सीरीज
)
और अब लक्ष्मी कंवर चूड़ावत की बारी है. इन सब लड़कियों को हमारा लाख लाख सलाम. हमारी मांएं. बहनें. प्रेमिकाएं. सहेलियां. बेटियां. सब यूं ही दर दर भटकें. अपने हिस्से की चाबियां खोजें. ताले खोलें. किवाड़ों को धकेलें. और चलती जाएं.
यूं लक्ष्मी का परिचय ऐसे भी दिया जा सकता है. 25-26 बरस की लड़की. बांसवाड़ा की पैदाइश. वड़ोदरा में पली बढ़ी. पिता फौजी. मां ने घर और बेटी को बनाया. एक लंबे चौड़े कोर्स (ह्यूमन डिवेलपमेंट एंड फैमिली स्टडीज) में मास्टर्स की डिग्री. महाराजा सय्याजी राव यूनिवर्सिटी ऑफ बड़ौदा से. पत्रकार रहीं. फिर टीचर बन गईं. और आखिर में तै किया कि घुम्मी ही करनी है. travel my ladies के नाम से दोस्तों संग कंपनी चलाती हैं. जिसके तहत सिर्फ महिलाओं और लड़कियों को ही घुमाने ले जाती हैं.
भटकने के दौरान जो तस्वीरें और किस्से बटोर लाती हैं, उन्हें जब तब travellerbaisa.com पर दर्ज करती जाती हैं.
अब उनका एक पता ये भी है. आपकी वेबसाइट. thelallantop.com - सौरभ द्विवेदी
जब भी कहीं घूमने निकलती हूं. तो वहां के बारे में ज्यादा नहीं पढ़ती. दूसरों का नजरिया दिमाग में चढ़ जाता है. मैं अपना अलग मानचित्र बनाती हूं. मुझे ऐसा लगता है कि हर किसी का अपना अनुभव होता है और वो हमेशा अलग होता है. तो किसी और के अनुभव की चादर अपनी आंखों पर नहीं डालती.
बराबर याद नहीं है पर शायद जब मैं आठवीं में थी, तब पहली बार स्कूल की तरफ से खेलने के लिए अकेले गई थी. उसके बाद हर साल जाती. अकेले एक जगह से दूसरी जगह जाने का डर तब ही खत्म हो गया था. कॉलेज के दिनों में भी हॉस्टल में रही तो हौसला और बढ़ गया.
पहाड़ों से मुझे बहुत लगाव है. चाहे वो सुफैद हों या भूरे. पर सुफैद की तरफ मन ज्यादा दौड़ता है. क्योंकि उनको कम देख पाती हूं. इसलिए पिछले कुछ सालों से लगातार इनसे मिलने हिमालय की तरफ आ रही हूं. और लगाव है कि बढ़ता ही जा रहा है.

यहां कहीं कहीं रस्ते बहुत संकरे हैं. और डेवलपमेंट इतना है कि हर जगह काम चल रहा है. वशिष्ठ की तरफ जो रास्ता जाता है, वहां ये ट्रक खड़ा था तो जगह कम पड़ गई.
इस बार शुरुआत मनाली से की. बड़ौदा से दिल्ली और दिल्ली से मनाली. जिन जगहों पर मैं जा चुकी होती हूं उनके लिए रात की बस या ट्रेन पकड़ती हूं ताकि दिन में और दूसरी जगह देख सकुं. और जिन जगहों पर पहली बार जा रही होती हूं वहां के लिए दिन का सफ़र करती हूं. ताकि उनके रास्ते, लोग और बातों को थोड़ा करीब से देखूं और सुनूं.
तो मनाली पहले भी आई थी इसलिए रात की बस पकड़ी और सुबह पहुंच गई. इस बार मनाली को थोड़ा अंदर से देखने की इच्छा थी.
गरम पानी के सोते में नहातीं औरतें
मैं गरम देश से आई लड़की. मोटी जैकेट से ठंड तो बच रही थी. मगर साथ में आलस भी. वो भी ऐसा कि मेरे देवता भी न नहाएं. मगर पता था कि वशिष्ठ में जमीन से गरम पानी निकलता है. तो रोज वहां नहाने चली जाती. इस दौरान लोकल औरतों से खूब मुलाकात होती. उनसे बात करती तो शुरुआत यकीन की कमी से होती. वो ये मान ही नहीं पातीं कि मैं बिना किसी नाते रिश्तेदार यार दोस्त के चली आई हूं. जब मान जातीं तो अपनी बातें बतातीं. पर ये वक्त भी जल्दी बीत जाता.
वशिष्ठ में लक्ष्मी.
इन औरतों को घर का काम भी करना होता और बाहर का भी. यहां पहाड़ों में नशा बहुत है. छोटे छोटे लड़के भी गांजा पीने लगते हैं. औरतें इसकी चपेट में न के बराबर हैं. ऐसे में काम ज़ोर उन्हीं पर आता है.
नागा बाबा बोले, मैडम माल है क्या
फिर एक रोज मैं जोगिनी वॉटर फॉल की तरफ गई. वहां एक बाबा जी मिले. जोगिनी मंदिर के पीछे वाले हिस्से में रह रहे थे. नागा साधु थे वो. तो भारत के बहुत हिस्सों में घूमे भी थे. मैंने पूछा आपके पास बैठ जाऊं, तो उन्होंने कहा, आ जाओ. मेरे बैठते ही उन्होंने पूछा, मैडम माल है आपके पास? कुछ सेकंड लगे मुझे समझने में और फिर मैंने कहा, नहीं मैं कोई भी नशा नहीं करती. कुछ देर चुप रहकर उन्होंने कहा, आप भारत से हो और अकेले घूम रही हो और कोई नशा नहीं करती, ये बात तो जमी नहीं. मुझे उनकी ये बात चुभी पर एक गहरी सांस लेकर मैंने कहा. आप क्या हमेशा ऐसी लड़कियों से ही मिले हैं जो नशा करती हैं? उनका अगला जवाब और गहरा था.
शाम 6 बजे पर्यटकों से भरी गाड़ी जो हमटा गांव से मनाली की तरफ जा रही है.
बाबा बोले, अगर भारत में कोई लड़की कोई नशा नहीं करती तो वो अपने मां बाप से अकेले घूमने के लिए लड़ झगड़ नहीं सकती. और जो नशा करती है तो वो अपनी बात मनवाना जानती है क्योंकि वो पहले भी बहुत चीज़ों के लिए लड़ चुकी होती है.
उनकी इस बात ने मेरे सोचने का दायरा बढ़ा दिया. मैंने उन्हें कहा, मैं नशा नहीं करती हूं और न अपने माता-पिता से लड़ती हूं, घूमने के लिए. मै अपनी बात साफ़ कहती हूं और कई बार हम साथ घूमते हैं इसलिए वो जानते हैं कि मैं क्यों नहीं टिकती घर पर.
इस गुफ्तगू के बाद मन में उल्लू जुल्लू चालू हो गई थी. इसलिए उन्हें नमस्ते बोलकर वहां से निकल गयी. रास्ते भर उनकी बात के बारे में सोचती रही. दो तीन लोग और मिले और उनसे हुई बात के बाद भी ऐसा लगा, जैसे वे भी कुछ ऐसी बात कह रहे थे.
मुझे किसी के नशे से कभी आपत्ति नहीं होती, चाहे वो लड़की हो या लड़का. पर इस बार की घुमाई में ऐसा लगा जैसे मैं बिन किसी नशे के भी तो कितनी हाई रहती हूं.

और बहुत से लोग हैं. जो घूम रहे हैं अपने ही नशे में. अभी और भी घूमना बाकी है और बहुत सी अनसुनी कहानियों से मिलना है.
तब तक के लिए बाय बाय.
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