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जस्टिस बीआर गवई बने नए CJI, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने दिलाई शपथ

Justice B R Gawai का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक होगा. यानी करीब 7 महीने में वो Chief Justice of India के पद से रिटायर हो जाएंगे. वरिष्ठता सूची में सबसे ऊपर होने के चलते CJI संजीव खन्ना ने उनके नाम की सिफारिश की थी.

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जस्टिस बीआर गवई ने चीफ जस्टिस पद की शपथ ले ली है. (इंडिया टुडे)

जस्टिस बीआर गवई (Justice B R Gawai) ने 14 मई को भारत के 52वें चीफ जस्टिस (CGI) के रूप में शपथ ले ली है. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में आयोजित समारोह में उन्हें पद की शपथ दिलाई. उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ (Jagdeep Dhankar), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi), केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah), रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह (Rajnath Singh) और विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) समेत कई नेता शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए. 

बीआर गवई देश के सर्वोच्च न्यायिक पद पर पहुंचने वाले दूसरे दलित चीफ जस्टिस होंगे. उनसे पहले जस्टिस केजी बालाकृष्णन (K G Balakrishnan) 2007 में पहले दलित सीजेआई बने थे. सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठता सूची में बीआर गवई का नाम सबसे ऊपर है. इसलिए CGI संजीव खन्ना ने चीफ जस्टिस के लिए उनके नाम की सिफारिश की थी. जस्टिस गवई का कार्यकाल 23 नवंबर 2025 तक होगा. यानी वह इस पद पर करीब 7 महीने ही रह पाएंगे.

B R Gawai
बीआर गवई ने सीजेआई पद की शपथ ले ली है. क्रेडिट- (इंडिया टुडे)
1985 में कानूनी करियर की शुरुआत

जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था. और साल 1985 में उन्होंने अपने कानूनी करियर की शुरुआत की. 16 मार्च 1985 को वे बार काउंसिल में शामिल हुए.

साल 1987 तक उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व एडवोकेट जनरल और जज राजा एस भोंसले के साथ काम किया. 1990 के बाद उन्होंने बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में संवैधानिक और प्रशासनिक कानून में प्रैक्टिस की. इस दौरान वह नागपुर नगर निगम, अमरावती नगर निगम और अमरावती विश्वविद्यालय के स्थायी वकील भी रहे.

जस्टिस गवई ने अगस्त 1992 से जुलाई 1993 तक बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच में सहायक सरकारी वकील और अतिरिक्त लोक अभियोजक के तौर पर काम किया. 17 जनवरी 2000 को उन्हें सरकारी वकील और लोक अभियोजक के तौर पर नियुक्त किया गया. 

14 नवंबर 2003 को उनको बॉम्बे हाईकोर्ट के अतिरिक्त न्यायाधीश के तौर पर प्रमोट किया गया. और 12 नवंबर 2005 को जस्टिस गवई हाईकोर्ट के स्थायी न्यायाधीश नियुक्त किए गए.. 2005 से 2019 तक उन्होंने हाईकोर्ट के जज के तौर पर काम किया. फिर 24 मई 2019 को उनको सुप्रीम कोर्ट का न्यायाधीश बनाया गया.

संविधान पीठ के बड़े फैसलों में भागीदारी

जस्टिस बीआर गवई सुप्रीम कोर्ट के कई ‘संवैधानिक पीठ’ (Constitution Bench) का हिस्सा रहे. इस दौरान वह कई ऐतिहासिक फैसलों का हिस्सा बने. जस्टिस गवई पांच न्यायाधीशों की बेंच का हिस्सा थे जिसने सर्वसम्मति से केंद्र के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के फैसले को बरकरार रखा. जिसके तहत जम्मू और कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया गया था.

जस्टिस गवई उस बेंच का हिस्सा भी थे. जिसने एक के मुकाबले चार के बहुमत से केंद्र सरकार के विमुद्रीकरण (2016 के 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने) के फैसले को बरकरार रखा था. जस्टिस गवई पांच न्यायाधीशों की उस बेंच का भी हिस्सा रहे जिसने राजनीतिक फंडिंग के लिए इस्तेमाल की जाने वाली चुनावी बॉन्ड योजना को रद्द किया था.

जस्टिस गवई सात न्यायाधीशों वाली उस संविधान पीठ का भी हिस्सा थे जिसने एक के मुकाबले छह के बहुमत से ये फैसला दिया था कि राज्यों को अनुसूचित जातियों के भीतर उप वर्गीकरण करने का संवैधानिक अधिकार है.

जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली दो न्यायाधीशों की बेंच ने नवंबर 2024 में आरोपियों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाने की आलोचना की. और ये फैसला सुनाया कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी की भी संपत्तियों को ध्वस्त करना कानून के खिलाफ है.

जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में आरोपी आप नेता मनीष सिसोदिया को जमानत दी थी. वहीं उनकी ही अगुवाई वाली बेंच ने मोदी उपनाम मामले में राहुल गांधी की सजा पर रोक लगाने का आदेश भी पारित किया.

राहुल गांधी मामले की सुनवाई से अलग करने की पेशकश

जस्टिस गवई ने राहुल गांधी से जुड़े आपराधिक मानहानि के मामले की सुनवाई की थी. लेकिन शुरुआत में उन्होंने इस मामले से खुद को अलग करने की पेशकश की थी. 21 जुलाई 2023 को इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया. इस मामले की सुनवाई के दौरान खुद को अलग करने की पेशकश करते हुए जस्टिस गवई ने कहा, 

मेरी तरफ से इस मामले में थोड़ी समस्या है. मेरे पिता 40 सालों तक कांग्रेस से जुड़े रहे थे. वे कांग्रेस के सदस्य नहीं थे लेकिन उनकी मदद से राज्यसभा और लोकसभा पहुंचे थे. मेरा भाई भी कांग्रेस से जुड़ा हुआ है. आप सब तय करें कि क्या मुझे इस मामले की सुनवाई करनी चाहिए?

इस मामले से जुड़े दोनों पक्षों की रजामंदी के बाद उन्होंने जस्टिस पीके मिश्रा के साथ मिलकर इस केस की सुनवाई की.

जस्टिस बीआर गवई के पिता रामकृष्ण सूर्यभान गवई रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (RPI) के संस्थापक थे. और बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के बेहद करीबी थे. आरएस गवई साल 1964 से 1998 तक महाराष्ट्र की राजनीति में एक्टिव रहे. इस दौरान उन्हें संसद के दोनों सदनों में जाने का मौका मिला. इसके अलावा साल 2006 से 2011 के बीच उन्होंने बिहार, सिक्किम और केरल के राज्यपाल के तौर पर भी काम किया.

वीडियो: सुप्रीम कोर्ट और सरकार में तकरार, जस्टिस बी.आर. गवई ने क्या पूछ लिया?