''अगर अपराध करेंगे तो ठोक दिए जाएंगे''. योगी आदित्यनाथ की ये लाइन याद होगी आपको. अपराधियों को ठोकने यानी एनकाउंटर को सही बताते हुए उन्होंने ये बात कही थी. योगी सरकार की एनकाउंटर्स पॉलिसी की मीडिया के भी एक धड़े ने खूब तारीफ की. कहा गया कि देखो सीएम योगी कितने सख्त हैं, क्राइम को लेकर. और मुख्यमंत्री से फुल समर्थन मिला तो फिर एनकाउंटर्स को आतुर पुलिस को और क्या चाहिए था. धड़ाधड़ एनकाउंटर्स हुए. जब बंदूक नहीं चल पाई, तो मुंह से ही ठांय ठांय की आवाज़ निकालकर एनकाउंटर कर दिए. लेकिन इतनी खुली छूट में पता ही नहीं चला कि कब पुलिस वाले अपनी भूमिका भूलकर लााइन के दूसरी तरफ चले गए. खुद अपराधी बन गए. अपराधियों के बजाय आम लोगों के साथ ही अपराधियों सा सलूक करने लगे. आप उस पुलिस का चरित्र सोचकर देखिए, जो सिर्फ आईकार्ड ना दिखाने पर पीट पीटकर हत्या कर दे.

''हम कोई आतंकवादी थोड़ी हैं, जो इस तरह चेकिंग कर रहे हो.'' इतनी सी बात कहने पर किसी आम नागरिक की जान ले ले. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गृह ज़िले गोरखपुर में ऐसा कह देने वाले 35 साल के युवक को पुलिस ने बुरी तरह से पीटा. इतना ज्यादा की उसकी मौत हो गई. फिर पिटाई के आरोपी पुलिस वालों को बचाने में जिले के पुलिस कप्तान और डीएम लग जाते हैं. एसएसपी कहते हैं कि बेड से गिरने की वजह से मौत हो गई. सूबे के एडीजी कहते हैं कि भगदड़ में गिरने की वजह से मौत हो गई. ऐसा लगता है कि पूरा पुलिस सिस्टम ही अपने अंदर के अपराधियों को बचाने में लग गया है. बात दबाने की कोशिश होती है और दबती नहीं है तो कार्रवाई के नाम पर 6 पुलिस वालों को सस्पेंड कर दिया जाता है.
तो असल में हुआ क्या. ये पूरा मामला शुरू से समझते हैं. मनीष गुप्ता. 35 साल की उम्र. कानपुर के रहने वाले थे. 4 साल के बच्चे के पिता. कारोबारी बताए जा रहे थे, कहीं-कहीं प्रॉपर्टी डीलर भी लिखा जा रहा है. कोरोना और लॉकडाउन से पहले नोएडा में किसी प्राइवेट बैंक में नौकरी करते थे. लॉकडाउन में कानपुर चले गए. मनीष के परिवार वाले ये भी कह रहे हैं कि चार महीने पहले वो बीजेपी में शामिल हुए थे. लगातार बीजेपी के कार्यक्रमों में शामिल हो रहे थे. हालांकि उनके साले ने लल्लनटॉप को बताया कि वो सिर्फ पीएम मोदी को पसंद करते थे, किसी पार्टी में नहीं थे. खैर, यहां उनके राजनीतिक रुझान मायने नहीं रखते.

तो मनीष अपने दोस्त हरवीर सिंह और प्रदीप चौहान के साथ 27 सितंबर को कानपुर से गोरखपुर गए थे. कहा जा रहा है कि वो ये देखने गए थे कि गोरखपुर कितना सज-संवर रहा है, कितना बदलाव हो रहा है. मतलब कहिए कि घूमने फिरने गए थे. मनीष अपने दोस्तों के साथ गोरखपुर के रामगढ़ताल इलाके के होटल कृष्णा पैलेस में रुके थे. कमरा नंबर 512.
27 सिंतबर की रात करीब 12 बजे रामगढ़ताल थाने की पुलिस होटल में पहुंची. इसमें इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह और सब इंस्पेक्टर अक्षय मिश्र थे. कुछ सिपाही भी साथ थे. कमरे का दरवाजा खटखटाकर खुलवाया गया. साथ में होटल का रिसेप्शनिस्ट स्टाफ भी था. पुलिसवालों ने कहा कि चेकिंग हो रही है, आईडी प्रूफ़ दिखाओ. हरवीर और प्रदीप ने तो अपनी आईडी दिखा दी. एक तस्वीर भी आई है जिसमें पुलिस वाले होटल के कमरे में दिख रहे हैं. उस वक्त मनीष सोए हुए थे. ख़बरों के मुताबिक़, उठाए जाने पर मनीष ने कहा कि ये कौन सा समय है चेकिंग करने का? क्या हम लोग आतंकवादी हैं? आरोप है कि इतनी सी बात पर पुलिस वालों ने मनीष के साथ मारपीट शुरू कर दी. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में चोट की पुष्टि हुई है. मनीष के शरीर पर 4 गंभीर चोटों की जानकारी मिली है. उनके सिर में 5 सेंटीमीटर बाइ 4 सेंटीमीटर का घाव मिला. इसके अलावा दाहिने हाथ में डंडा मारने के निशान, बाईं आंख और कई जगह पर हल्के चोट के निशान मिले.

पीटने के बाद पुलिस वाले मनीष को होटल से ले गए. फिर बीआरडी मेडिकल कॉलेज अस्पताल लेकर गए. वहां मनीष को मृत घोषित कर दिया गया.परिवार वालों का कहना है कि जब पुलिस वाले पिटाई कर रहे थे तो मनीष ने घर फोन किया था, मदद मांगी थी. मनीष के साले ने बताया,
वाजपेयी जी हैं उनके भाजें को किया था फोन.बताया था कि पुलिस परेशान कर रही है. देखो जरा कुछ हो सकता है तो. 20 सेकेंड से ज्यादा बाद नहीं हुई. 4 बजे बताया गया कि वो खत्म हो गए हैं. इसके बाद परिवार को फोनकर बताया गया कि आ जाइए. खत्म हो गए हैं.उसकी मौत की जानकारी परिवार वालों को लगी तो मनीष की पत्नी मीनाक्षी गोरखपुर गई. पुलिसवालों के खिलाफ हत्या की एफआईआर लिखवाई. कार्रवाई के लिए थाने के बाहर धरना दिया. लेकिन पुलिस के बड़े अधिकारियों ने कार्रवाई करने के बजाय मामले में लीपापोती की कोशिश की. वो वीडियो आया जिसमें एसएसपी और डीएम परिवार को केस दर्ज नहीं कराने के लिए मना रहे हैं. डीएम विजय किरण आनंद कह रहे हैं कि वो बड़े भाई के नाते समझा रहे हैं कि सुलह कर ली जाए.
गोरखपुर के एसएसपी ने शुरुआती जांच में इसे बिस्तर से गिरकर हुई मौत का मामला बताया था. जब मनीष गुप्ता की पत्नी कार्रवाई करने पर अड़ी रहीं और इस मामले को लेकर विवाद गहराया, तब कहीं जाकर 6 पुलिसकर्मियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई. धारा 302 के तहत यानी हत्या का मामला. एफआईआर में 3 लोग नामजद और 3 अज्ञात. रामगढ़ताल SO जगत नारायण सिंह, सब इंस्पेक्टर अक्षय मिश्र और सब इंस्पेक्टर विजय यादव का नाम लिखा गया है. बाकी तीन आरोपी हैं, सब इंस्पेक्टर राहुल दुबे, हेड कांस्टेबल कमलेश यादव और हेड कांस्टेबल प्रशांत कुमार. ये 6 लोग सस्पेंड किए जा चुके हैं. किसी की गिरफ्तारी की जानकारी नहीं आई है. फरार बताए जा रहे हैं.

अब जिस बात का हम थोड़ी देर पहले ज़िक्र कर रहे थे कि एनकाउंटर्स की छूट से कैसे पुलिस वालों की भूमिका ही संदिग्ध हो जाती है, उसका उदाहरण है इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह. जगत नारायण सिंह पर पहले भी कई गंभीर आरोप लगे हैं. रिपोर्ट्स के मुताबिक पिछले साल गोरखपुर के बांसगांव में इंस्पेक्टर रहते उसने शुभम नाम के आरोपी को एक मामले में गिरफ्तार किया था. पुलिस कस्टडी में शुभम की मौत हो गई थी, परिवार वालों ने पुलिस पर पीट पीटकर का हत्या का आरोप लगाया था. इसी साल अगस्त में सिकंदर नाम के युवक को मुठभेड़ में पकड़ने का दावा किया था. उसे गोली मारी गई थी. खबरें ये भी हैं कि उस पर कोई आरोप नहीं था. और भी कई कथित आरोपियों को गोली मारने के मामले में इंस्पेक्टर जगत नारायण सिंह का नाम आया.

हालांकि डिपार्टमेंट ने गोली मारने या पीटने की कला को जगत नारायण सिंह की काबिलियत समझी. उसका आउट ऑफ टर्न प्रमोशन हुआ. सिपाही से प्रमोशन के बाद इंस्पेक्टर रैंक तक पहुंच गए. यानी उसकी भूमिका जांचने बजाय इनाम दिया गया.
मनीष गुप्ता की हत्या मामले में भी पुलिस के आला अधिकारी नारायण सिंह और बाकी आरोपियों की तरफदारी करते दिखे. पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट आने के बाद भी पुलिस की तरफ से गिरने से चोट लगने वाली थ्योरी दी जा रही है. एडीजी प्रशांत कुमार ने कहा है कि भगदड़ में गिरने से चोट लगने की जानकारी मिली है. उन्होंने कहा,
एक होटल में चेकिंग कराई गई. जो आदेश वहां से SSP के जनरल आदेश के तहत की जा रही थी. कमरे में तीन व्यक्ति थे. दो व्यक्तियों ने अपना पहचान पत्र दिखाया. तीसरा व्यक्ति जिसके पास संभवत: कोई आईडी प्रूफ नहीं था, उसने भागने का प्रयास किया. उस दौरान गिरने से उसे चोट आई जिसे उपचार के लिए ले जाया गया अस्पताल. जहां उसकी मृत्यु हो गई.अगर इस मामले पर इतना बवाल नहीं होता, तो शायद अब तक केस पुलिस रफादफा कर चुकी होती. लेकिन विपक्षियों की तरफ से इस मुद्दे को लेकर सरकार पर सवाल उठाए गए. आज समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव ने परिवार से मुलाकात की. न्यायिक जांच की मांग कर दी. कहा-
समाजवादी पार्टी की मांग है कि इसकी जांच हो लेकिन सीटिंग जज की मॉनिटरिंग में ही जांच हो. जो हाईकोर्ट के सीटिंग जज घटना की जांच करें. दोषी लोगों को कड़ी से कड़ी सजा मिले.सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी परिवार से मुलाकात की. मुलाकात के बारे में मृतक मनीष की पत्नी ने कहा,
माननीय मुख्यमंत्री ने जितनी भी मेरी समस्याएं थीं, उसका समाधान पूर्ण रूप से करा है. जैसे कि मैंने अपनी सरकारी जॉब की विनती रखी थी तो उन्होंने कहा कि पूर्ण रूप से प्राप्त होगा. उन्होंने मेरी केडीए में नियुक्ति करवा दी है. दूसरा मेरे बच्चे के भविष्य के लिए जो लोन वगैरह हैं उसके लिए राशि चाहिए थी. उन्होंने कहा कि आप 10 लाख रुपए अभी ले लीजिए. बाकी का हम कर देंगे. एक और भी मांग रखी थी CBI की तो उन्होंने कहा कि लिखकर दीजिए मैं कर दूंगा. मुझे सीएम की बात अच्छी लगी कि उन्होंने मुखिया की तरह मेरी समस्याओं का फैसला किया. मुझे उनसे कहना नहीं पड़ा कि केस की गंभीरता को देखते हुए उन्होंने पहले ही बोल दिया कि केस को कानुपर ट्रांसफर करते हैं और एक अलग टीम नियुक्त करते हैं.दी लल्लनटॉप से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह एक बात सीएम से कहना भूल गई थीं जिसे वह प्रेस के माध्यम से उन तक पहुंचाना चाहती हैं.
हमने पहले जो एप्लीकेशन दी थी उसमें 6 लोगों के नाम दर्ज थे. वहां पर मेरी FIR दर्ज नहीं की जा रही थी. मैंने उसमें से तीन नाम हटाए थे. किसी कारण से मुझे ऐसा करना पड़ा था. पुलिस की वजह से. वहां के जो डीएम थे और एसपी थे. उन्होंने हम लोगों से कहा था कि ऑन ड्यूटी वालों का नहीं कर सकते. मुझे लगा कि तीन लोगों का नाम देकर एक कदम आगे बढ़ाना था. ये बात मैं सीएम से मिली थी लेकिन कह नहीं पाई.तो परिवार मुख्यमंत्री के आश्वासन से संतुष्ट है. तो चार दिन बाद ये मामला भी खबरों से गायब हो जाएगा. जैसे पहले के कई मामले हुए. पर सवाल ये होना चाहिए कि पुलिस का ये भरोसा आता कहां से है कि वो किसी निर्दोष की पिटाई कर देंगे, हत्या कर देंगे और किसी झूठी कहानी के सहारे बच भी जाएंगे. उनका कुछ नहीं होगा. ये होता भी है. योगी सरकार बनने के बाद कितने ही एनकाउंटर्स को लेकर सवाल उठे, फर्जी बताए गए, पुलिस वालों की भूमिका पर संदेह हुआ. लेकिन कार्रवाई के मामले देखेंगे तो कम ही मिलेंगे. योगी सरकार बनने के बाद पिछले साल तक 6 हजार से ज्यादा पुलिए ऑपरेशन हुए. इनमें 119 लोगों की मौत हुई. जबकि 2258 जख्मी हुए.
इन एनकाउंटर्स पर हर तरफ से सवाल उठे. जनवरी 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि ये बहुत गंभीर मामला है. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी एनकाउंटर्स में मौतों को लेकर कई नोटिस यूपी सरकार को दिए. लेकिन यूपी सरकार अड़ी रही कि वो जो कर रहे हैं सही ही कर रहे हैं. और ऊपर से मुख्यमंत्री की वो टैग लाइन तो थी कि जो अपराध करेंगे वो ठोक दिए जाएंगे. लेकिन अगर पुलिस को ही न्याय करना है तो फिर कोर्ट्स क्यों हैं.

पुलिस कस्टडी में मौतों के मामले में भी उत्तर प्रदेश पीछे नहीं है. संसद के मॉनसून सत्र में सरकार से पूछा गया था कि कितने आरोपियों की पुलिस और न्यायिक हिरासत में मौत हुई. गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने बताया था कि पिछले 3 साल में 348 लोगों की पुलिस कस्टडी में मौत हुई. जबकि न्यायिक हिरासत यानी जेल में 5, 221 लोगों की मौत हुई. उत्तर प्रदेश में तीन सालों में 23 लोगों की पुलिस हिरासत में मौत हुई. ये आंकड़ा छोटा नहीं है. हम ये नहीं कहते है कि बाकी प्रदेशों के पुलिस सिस्टम में सब कुछ सही है, बिल्कुल नहीं है. लेकिन ये जायज चिंता है कि है कि एनकाउंटर्स का नॉर्मलाइजेशन जगत नारायण सिंह जैसे अफसर ही पैदा करता है.