राजनीतिक कौशल और सभी पार्टियों में अपने दोस्तों की वजह से प्रणब मुखर्जी भारतीय राजनीति के खास किरदार रहे.
पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी अब नहीं रहे. प्रणब मुखर्जी को उनकी तेज याद्दाश्त और हरदिल अजीज़ व्यक्तित्व के लिए तो याद किया ही जाएगा, साथ ही उन्हें एक ऐसे व्यक्ति के तौर पर भी जाना जाएगा, जिन्होंने जिंदगी में समय-समय पर कई कठोर फैसले भी लिए. बतौर राष्ट्रपति उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान फांसी की सजा पा चुके अपराधियों की दया याचिकाओं को निबटाने में तेजी दिखाई. अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने 97 फीसदी दया याचिकाएं खारिज की थीं.
सिर्फ सात को किया माफ प्रणब मुखर्जी से ज्यादा दया याचिकाएं सिर्फ आर. वेंकटरमण ने ही खारिज की थीं. आर. वेंकटरमण 1987 से लेकर 1992 तक राष्ट्रपति रहे. इस दौरान उन्होंने कुल 44 दया याचिकाएं खारिज की थीं. उनके बाद राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का ही नंबर आता है, जिन्होंने 37 प्रार्थियों से जुड़ी 28 दया याचिकाओं को खारिज कर दिया. प्रणब से पहले राष्ट्रपति रहीं प्रतिभा पाटिल ने सबसे ज्यादा 30 लोगों को फांसी के फंदे से बचाया था. प्रणब ने सिर्फ सात की फांसी की सजा माफ की. प्रणब मुखर्जी की मुहर से ही तीन आतंकियों को फांसी की सजा मिली. इनमें संसद पर हमले का आरोपी अफजल गुरु, मुंबई के 26/11 हमले का आरोपी अजमल कसाब और मुंबई धमाकों का आरोपी याकूब मेनन शामिल है.
अजमल कसाब अजमल कसाब मुंबई हमले के दौरान जिंदा पकड़ा गया एकमात्र आतंकवादी था. 26 नवंबर, 2008 को भारत की आर्थिक राजधानी मुम्बई पर आतंकी हमला हुआ था. इस हमले के कारण पूरा देश सकते में था. सरकार से लेकर सेंसेक्स तक, सब हलकान थे. हमले के मुख्य अभियुक्त अजमल कसाब को जिंदा पकड़ने के मिशन में मुम्बई पुलिस के सब-इंस्पेक्टर तुकाराम ओंबले ने अपनी जान तक गंवा दी थी. अजमल कसाब के खिलाफ भारत की अदालतों में लंबी कानूनी प्रक्रिया चली. मुंबई की अदालत ने कसाब को 6 मई, 2010 को मौत की सजा सुनाई. कसाब ने बॉम्बे हाई कोर्ट में मौत की सजा को चुनौती दी. 21 फरवरी, 2011 हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले को बरकरार रखा. 30 जुलाई, 2011 को कसाब ने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. 29 अगस्त, 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने भी ट्रायल कोर्ट के फैसले की पुष्टि कर दी. इसके बाद सजा के खिलाफ कसाब ने तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के समक्ष दया याचिका दाखिल की. 5 नवंबर, 2012 को कसाब की दया याचिका को प्रणब मुखर्जी ने खारिज कर दिया. 21 नवंबर, 2012 को मुंबई हमलों के दोषी कसाब को फांसी दे दी गई.
अफजल गुरु कश्मीरी आतंकवादी अफजल गुरु संसद पर हमले का दोषी था. 13 दिसंबर, 2001 को शीतकालीन सत्र के दौरान संसद पर आतंकी हमला हुआ था, जिसमें संसद के कई कर्मचारी और सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई थी. इसके कुछ दिनों के बाद अफजल गुरु की गिरफ्तारी हुई और उसे इस हमले का मास्टरमाइंड माना गया. 18 दिसंबर, 2002 को दिल्ली की अदालत ने अफजल गुरु को मौत की सजा सुनाई. 4 अगस्त, 2005 को सुप्रीम कोर्ट ने भी अफजल की मौत की सजा बरकरार रखी. अक्टूबर, 2006 को अफजल गुरु की पत्नी तबस्सुम गुरु ने तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम के पास सजा माफी के लिए दया याचिका दाखिल की. कलाम 2002 से 2007 के बीच भारत के राष्ट्रपति रहे. इनके बाद प्रतिभा पाटिल राष्ट्रपति बनीं. इनके बाद प्रणब मुखर्जी 2012 से 2017 के बीच राष्ट्रपति रहे. 3 फरवरी, 2013 को प्रणब मुखर्जी ने अफजल की दया याचिका खारिज कर दी. 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली के तिहाड़ जेल में फांसी दे दी गई.
याकूब मेमन याकूब मेमन 1993 के बंबई सिलसिलेवार बम धमाकों का आरोपी था. 12 मार्च, 1993 को बंबई में धमाके हुए थे. याकूब मेमन अगस्त, 1994 में गिरफ्तार हुआ था. 2007 में टाडा कोर्ट ने याकूब मेमन को दोषी पाया. मार्च, 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने याकूब मेमन की मौत की सजा कायम रखी. 29 जुलाई, 2015 को याकूब मेमन ने 14 पन्नों की दया याचिका पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को भेजी. उसी दिन तत्कालीन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने याकूब मेमन की दया याचिका खारिज कर दी. लेकिन इस मामले में अफजल गुरु और अजमल कसाब की तरह गोपनीयता नहीं बरती गई और अगले ही दिन 30 जुलाई, 2015 को फांसी की तारीख मुकर्रर कर दी गई. जैसे ही फांसी की तारीख तय हुई, उसके बाद उसके वकील प्रशांत भूषण (जिन पर हाल ही में अवमानना के एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने एक रुपये का जुर्माना ठोका है) और इन्दिरा जयसिंह ने 29 जुलाई, 2015 की रात एक आखिरी कोशिश शुरू की.

याकूब की फांसी पर 14 दिन की रोक लगाने की मांग को लेकर रात साढ़े बारह बजे प्रशांत भूषण और इन्दिरा जयसिंह समेत करीब एक दर्जन वकीलों ने चीफ जस्टिस एच.एल. दत्तू के घर का दरवाजा खटखटाया. तब जस्टिस दत्तू ने जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच से कहा कि वह मामले की तत्काल सुनवाई की आवश्यकता के मद्देनजर रात को ही इस केस की सुनवाई करे. सभी वकील जब जस्टिस मिश्रा के घर पहुंचे, तो उन्होंने घर पर सुनवाई करने की बजाय सुप्रीम कोर्ट में रात के ढाई बजे सुनवाई करने का निर्णय किया. रात के ढाई बजे कोर्ट खुला और सुनवाई शुरू हुई. एक ओर सुप्रीम कोर्ट के अंदर सुनवाई हो रही थी, जबकि दूसरी ओर बाहर मीडिया और फांसी के समर्थन और विरोध में नारे लगाने वाले संगठनों का हुजूम उमड़ा हुआ था. लेकिन न्यायालय इन सब प्रदर्शनों से नहीं, बल्कि केस की मेरिट के आधार पर फैसले करता है. इस मामले में भी यही हुआ. लगभग आधे घंटे तक वकीलों की दलीलें सुनने के बाद इस मामले को खारिज कर दिया गया.
महामहिम: कहानी भारत के 13वें राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की