हर मुसलमान के 5 फ़र्ज़ होते हैं. पहला, ईश्वर एक ही है और पैगंबर उनका संदेश पहुंचाने वाले दूत. नमाज़ दूसरा फ़र्ज़ है. तीसरा है रमज़ान में रोज़े रखना. चौथा है ज़कात यानी दान करना. पांचवा फ़र्ज़ है हज करना. कहते हैं इसे हर उस मुसलमान को करना चाहिए जो जेब से मज़बूत और शरीर से तंदुरुस्त हो. लेकिन ऐसा क्या खास है हज यात्रा में? कैसे और कब से शुरू हुआ हज का सिलसिला? और कौन था पहला हाजी? समझते हैं.
हज की हकीकत! पहला हाजी कौन था और क्यों है ये फ़र्ज़?
Islamic Calender का आख़िरी महीना होता है ज़िल-हिज्जा. इसके शुरू होते ही दुनिया भर के मुसलमानों का रुख Islam के दो सबसे ज़रूरी शहरों की तरफ़ होता है, Mecca और Medina.

इस्लामी कलेंडर का आख़िरी महीना होता है ज़िल-हिज्जा. इसके शुरू होते ही दुनिया भर के मुसलमानों का रुख इस्लाम के दो सबसे ज़रूरी शहरों की तरफ़ होता है. मक्का और मदीना. मक्का की मस्जिद-अल-हरम और मदीने में नबी की मस्जिद, जिसे मस्जिद-ए-नबवी भी कहते हैं. दोनों सऊदी अरब की चौहद्दी में पड़ते हैं.

हज की शुरुआत इस्लाम से भी बहुत पहले की है. करीब आज से 4 हज़ार साल पहले. हज़रत इब्राहीम की पत्नी का नाम था हज़रत हाजरा. बेटे थे हज़रत इस्माइल. कहते हैं, अल्लाह के हुक्म पर हज़रत इब्राहीम ने पत्नी और हाथ भर के बच्चे को मक्का के रेगिस्तान में छोड़ दिया. प्यास बढ़ी, पर तपते रेगिस्तान में पानी था नहीं. सो हाजरा बेटे के लिए पानी की तलाश में सफा और मरवा की पहाड़ियों के बीच सात बार दौड़ीं. उनकी मेहनत और सब्र के बाद, अल्लाह की कुदरत से ज़मज़म का कुआं फूटा, जो आज भी मौजूद है. इसके बाद, हज़रत इब्राहीम और हज़रत इस्माइल ने मिलकर काबा का निर्माण किया. और इसे अल्लाह की इबादत के लिए सबसे पाक जगह का दर्ज़ा दिया. यहीं से हज की पहली दावत भी दी गई.

कुछ इतिहासकार मानते हैं कि इस्लाम से पहले भी मक्का एक अहम तीर्थस्थल था. पीटर वेब के शोध ‘दी हज़ बिफ़ोर मुहम्मद’ से इसकी जानकारी मिलती है. रस्में भी काफी हद तक आज जैसी ही थीं. हालांकि, उस दौर में काबा के आसपास मूर्तियों के होने का ज़िक्र भी मिलता है. कई तरह के कबीले थे, इसलिए कई तरह की पूजा पद्धतियां होना लाज़िमी है. मक्का की जड़ें भी काफी गहरी और पुरानी हैं. रोमन जोग्राफ़र और एस्ट्रोनॉमर टॉलमी इसे ‘मकोरबा’ नाम से चिन्हित करते हैं. सऊदी से सटे यमन में उसी दौर के आदिम जातियों के लोग इसे ‘मक-रब’ यानी ‘खुदा का घर’ कहते थे.
570 ईसवी में मक्का के कुरेश कबीले में मुहम्मद साहब का जन्म हुआ. करीब 40 की उम्र में उनकी ज़िंदगी में एक घटना घटी. काबा शरीफ के पास ऊंट के कूबड़ जैसी एक पहाड़ी है, गारे हिरा. इसे जबल-ए-हिरा यानी रोशनी वाला पहाड़ कहते हैं. मुहम्मद नबी इसी पहाड़ी की एक गुफ़ा में अंतर्मनन और ध्यान में समय बिता रहे थे. एक रात देवदूत जिबरील, मुहम्मद साहब के सामने आए और कुछ आयतें पढ़कर उन्हें दोहराने को कहा. यहीं से कुरआन की पहली आयतें नाजिल हुईं. नतीजतन, वे अल्लाह की बातों को लोगों में प्रसारित करने लगे. पैगंबर मुहम्मद की इन्हीं बातों को आयतों में ढाला गया. आयतों का संकलन सूरह में हुआ. सूरह के कम्पाइलेशन को कुरआन कहा गया.

पैगंबर मुहम्मद का नया पंथ इस्लाम एक ईश्वर की संकल्पना पर आधारित था. और मक्का बहुदेववादी कबीलों का इलाका बन चुका था. आसपास मौजूद कबीले अपनी आस्था में बदलाव नहीं चाहते थे. विरोध के चलते 622 में मुहम्मद साहब को मक्का छोड़कर मदीने जाना पड़ा, तब इस जगह को ‘याथरिब’ कहते थे. इसी 622 से इस्लामी सम्वत ‘हिजरी’ की शुरुआत हुई. 8 साल के संघर्ष के बाद 630 में मुहम्मद ने मक्का पर फतह हासिल की.

पैगंबर मुहम्मद के मदीना गए आठ-नौ साल हो गए थे. मक्का पर फतह के बाद अब शांति और स्थिरता दिखने लगी थी. अरब के कबीले एक के बाद एक इस्लाम अपना रहे थे. अबू बक्र और अली इस दौर में मुहम्मद साहब के साथ रहे थे. अबू बक्र उनके ससुर थे. वहीं अली, मुहम्मद साहब के दामाद. हिजरी के नौवें साल, मुहम्मद साहब ने मक्का की पहली हज यात्रा की अगुवाई की ज़िम्मेदारी अबू को सौंपी. इस यात्रा से भविष्य में अनुयायियों के लिए एक खाका तैयार होने वाला था. अबू के साथ अली और लगभग 300 मुसलमानों का एक जत्था तैयार हुआ. काम था हज करने के तौर तरीक़े सिखाना, ताकि हर कोई ठीक से जान सके कि हज जाना है तो क्या-क्या करना होगा?

मक्का पहुंचते ही, अबू बक्र और अली ने पैगंबर की तरफ़ से दो जनसंदेश जारी किए ‘कोई भी मूर्तिपूजक हज नहीं करेगा’ और ‘काबा का तवाफ़ यानी परिक्रमा अब से ढके बदन होगी’. ये दोनों बातें वक़्त के माकूल बड़ी बातें थी, क्योंकि इस्लाम से पहले लोग अधनंगे बदन भी तवाफ़ किया करते थे. रही बात मूर्ति पूजा की. तो इसके पहले के कबीले मक्का में बहुदेववादी और मूर्तिवादी प्रथाएं अपनाते आए थे. सभी को चार महीने की मोहलत दी गई. या तो इस्लाम चुनो या इलाक़ा छोड़ दो.
देखा जाए तो पैगंबर इब्राहीम और उनके बेटे इस्माइल ने हज़ शुरू किया. फिर पैगंबर मुहम्मद साहब ने हज़ की यात्रा के मानक तय किए. मुहम्मद के आदेश पर अबू बक्र और अली का हज करना सिर्फ़ एक घटना नहीं थी. अबू बक्र के नेतृत्व में इस हज ने दो बेहद ज़रूरी भूमिकाएँ निभाई. पहला, सूरह अत-तौबा को पढ़कर सभी कबीलों के सामने मुसलमान होने की शर्तें साफ़ कर दी. पश्चाताप की आयतों पर आधारित ये हिस्सा कुरआन का नौवा अध्याय है. दूसरा, हज के तौर-तरीके तय करके पुरानी रस्मों को भी अलविदा कह दिया गया. मुहम्मद ने काबा से मूर्तियां हटाई और हज को इस्लाम के दायरे में लाकर एकेश्वरवादी शक्ल दी. फिर, 632 में, मुहम्मद ने अगले हज़ की अगुवाई की. इसे विदाई हज़ कहा जाता है. एक लाख से ज़्यादा मुसलमान उनके साथ इसका हिस्सा बने. इस दौरान उन्होंने हज की सभी रस्मों को तय किया. यहीं से हज इस्लाम के पांच बुनियादी स्तंभों में से एक बना.
अब्बासी खलीफाओं से लेकर सऊदी के आज के मुखिया तक, सभी हज की बेहतरी के लिए काम करते आए हैं. भारत से भी लाखों मुसलमान हज के लिए जाते हैं. मुग़लिया दौर से आज तक हज़ के लिए सरकारी मदद की भी जारी है. आज भी सरकार सभी राज्यों से तय कोटा के आधार पर यात्रियों का चयन करती है. इसी सिलसिले में, 18वीं सदी के समय मक्का-मदीना में, भारतीयों ने भी गेस्ट हाउस बनवाए थे. इन्हें सऊदी में रुबथ कहा जाता हैं. हैदराबाद के निज़ाम अफ़जल-उद-दौला, अर्कोट-कर्नाटक के नवाब मुहम्मद अली वल्लाजाह, मालाबार के व्यापारी मयंकुट्टी केयी जैसे नाम इससे जुड़ते हैं.
मयनकुट्टी बड़े व्यापारी थे, जो मुंबई से यूरोप तक व्यापार करते थे. मक्का की मस्जिद अल हरम के पास ही मयनकुट्टी ने केयी रुबथ नाम से 1848 में एक लॉज बनवाई. 1971 में, मस्जिद के विस्तार के चलते सऊदी सरकार ने इसे ढहा दिया. लेकिन मोटा मुआवज़ा भी देना तय किया.
ये पैसा सऊदी की सरकार के खजाने में 50 साल से जमा है. पहले तो सऊदी सरकार को मयंकुट्टी का कोई वारिस नहीं मिला. फिर जब मुआवज़े की खबर फैली तो केयी के परिवार के साथ, उनकी पत्नी का परिवार भी दावा ठोंकने अदालत पहुंच गया. दरअसल, मयंकुट्टी केयी की पत्नी अरक्कल शाही परिवार से थीं. अरक्कल, केरल का मुस्लिम शाही परिवार है, जो मातृसत्ता के आधार पर चलता है. बीबीसी की एक रिपोर्ट कहती है कि 2011 में करीब 2500 लोग कन्नूर जिला कार्यालय पहुंचे. इन सभी ने ख़ुद को केयी का वंशज बताया. टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक़ 2013 में 45 लोगों ने मुआवजे की रकम पर अपना दावा ठोंका. इसीलिए केयी रुबथ के तार इतने उलझे हुए थे.
समय के साथ, मुस्लिम साम्राज्यों ने हज को और आसान बनाने के लिए कई काम किए. मसलन 8वीं से 10वीं सदी के दौर में अब्बासी खलीफाओं ने ‘दरब ज़ुबैदा हज मार्ग’ बनावाया, जो अब यूनेस्को से संरक्षित है. इस मार्ग में कुएं, आरामगाह और सड़कें शामिल थीं. फिर ममलूक और उस्मानी साम्राज्य ने भी हज की सुविधाओं को बढ़ाया. 20वीं सदी में ‘हिजाज़ रेलवे’ भी बनाई गई, जिससे सफ़र और आसान हुआ. बीती सदी से अभी तक सऊदी के सुल्तानों ने भी मक्का का विस्तार किया.
हज की यात्रा में कई बार रुकावटें भी आईं. पुराने दौर में जंग और हमलों ने इसे रोका. 19वीं सदी में हैजा और प्लेग जैसी बीमारियों के चलते हज़ में खलल पड़ा. कोरोना महामारी के दौरान हाजियों की संख्या घटाई गई. इन रुकावटों के बावजूद मुसलमानों का हज करना सालों से ज़ारी है.
वीडियो: तारीख: कैसे हुई हज की शुरुआत? कौन था पहला हाजी?