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भारत में जनहित याचिकाओं की मम्मी को जानते हैं आप?

सुप्रीम कोर्ट में इन्हें बहुत बड़ा सम्मान मिला है.

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कपिला हिंगोरानी ने भारत में पारिवारिक अदालतों की स्थापना करने में प्रमुख भूमिका निभाई थी.
आपने पीआईएल के बारे में सुना है? नहीं सुना है तो फ़िल्म 'जॉली एलएलबी' याद कीजिए. इस फ़िल्म में अरशद वारसी ने जगदीश त्यागी नाम के वकील का किरदार निभाया था. याद कीजिए कि कैसे जज उसकी खराब इंग्लिश का मज़ाक उड़ा रहा था. जज ने भरी कोर्ट में जगदीश के लिए कहा था, 'अपील को एप्पल लिख रहा है.' जिस कागज़ पर गलती के लिए जगदीश का मज़ाक बन रहा था, वो पीआईएल का आवेदन ही था. माने पब्लिक इंटरेस्ट लिटिगेशन. माने जनहित याचिका. आज हम उस औरत की कहानी जानेंगे जिसने भारत में पहली पीआईएल दायर की थी- कपिला हिंगोरानी.
हर दूसरी कहानी की तरह, इस कहानी को भी 'एक समय की बात है' से शुरू करना सही रहेगा. तो एक समय की बात है. केन्या की राजधानी नायरोबी में एक लड़की का जन्म हुआ. इस लड़की के आदर्श अहिंसा के चैंपियन महात्मा गांधी थे. जैसे कि हम जानते हैं, गांधीजी भी वकील थे. इस लड़की ने भी तय किया कि वो वकील बनेगी. अपनी कम्यूनिटी से यूके जाने वाली वो पहली लड़की थी. ये 1947 की बात है. इसी साल भारत को महात्मा गांधी की लीडरशिप में आज़ादी मिली थी.
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कपिला का पूरा नाम पुष्पा कपिला हिंगोरानी था. Source: Youtube and Tehelka

इस लड़की का नाम था कपिला हिंगोरानी. ऐसी बहुत सी बातें हैं, जिनमें कपिला पहली रहीं.

1. माना जाता है कि वे कार्डिफ लॉ स्कूल, वेल्स से ग्रेजुएट होने वाली पहली महिला थीं.
2. वो 1961 में भारत की सुप्रीम कोर्ट में प्रैक्टिस शुरू करने वालीं पहली चार महिलाओं में से एक थीं.
3. कपिला ने भारत में पहली पीआईएल दायर की थी और उस पर सुप्रीम कोर्ट में दलील दी थी.
जब ये पहली बार कार्डिफ गई थीं, तब बच्चों के एक झुंड ने पीछे से गाना शुरू कर दिया था, 'देखो दुल्हन चली आ रही है'. इनमें से ज़्यादातर लोगों ने किसी महिला को साड़ी पहने नहीं देखा था. इसी जगह पर ही एबरडेयर हॉल में एक कमरा है, जहां लगी एक तख्ती पर उन्हें 'मानव अधिकारों की रक्षक' बताया गया है.

पहली पीआईएल में ऐसा क्या खास था?

भारत के हर लॉ स्टूडेंट ने इसके बारे में पढ़ा होगा. ये 'हुसैन आरा खातून बनाम बिहार गृह सचिव' केस था. वो केस, जिसकी वजह से 40 हज़ार अंडरट्रायल कैदियों की तुरंत रिहाई हुई. भारतीय संविधान के आर्टिकल 21 में 'स्पीडी ट्रायल' मौलिक अधिकार है. माने आपका केस कोर्ट में फुर्ती से चलना चाहिए, चाहे आपकी गलती कितनी ही बड़ी हो. अगर आप सोच रहे हैं कि आखिर कैदियों के लिए इतनी मेहनत क्यों की गई, तो वो इसलिए कि इनमें से कई ऐसे थे, जिन्होंने कोई जुर्म नहीं किया था. इनमें से कई लोग खुद किसी अपराध के विक्टिम थे. इन्हें ये सोचकर कैद में रखा गया था कि जब सुनवाई की तारीख आए, तो आसानी से अदालत में पेश कर दिया जाए.
2 मार्च, 1979 को सुप्रीम कोर्ट बार असोसिएशन ने हिंगोरानी के काम की तारीफ में एक रेज़ोल्यूशन पास किया. ये तारीफ कैदियों के अधिकारों से जुड़े इस केस को लेकर ही हुई थी.

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सुप्रीम कोर्ट लायब्रेरी में रखी कपिला की तस्वीर

कपिला सिर्फ़ यहां नहीं रुकीं

तब से लेकर अपने दुनिया छोड़ने तक, यानी 20 दिसंबर, 2013 तक, उन्होंने और उनके पति निर्मल हिंगोरानी ने कुछ ऐसे 100 केस लिए होंगे जिनके लिए कोई फ़ीस नहीं ली गई. इनमें से कुछ प्रमुख केस ये हैं:
1. एक बार कपिला का ध्यान दहेज पताड़ना के 11 मामलों की तरफ गया जो अलग- अलग लेवल पर धूल खा रहे थे. कपिला ने इसे लेकर एक केस दर्ज किया जिसके नतीजे में स्पेशल पुलिस सेल बनीं, जो विशेष रूप से महिलाओं के खिलाफ़ हो रहे अपराधों के साथ डील करते हैं.
2. कर्नाटक में देवदासी प्रथा थी. देवदासी वो महिलाएं होती थीं, जो अपना पूरा जीवन मंदिरों में देवी-देवताओं की पूजा करने में लगा देती थीं. कई बार मंदिर के पुजारी इनका शोषण करते थे. 1983 में इस पर रोक लगी. इसके पीछे भी कपिला का हाथ था.
3. कपिला ने भारत में फैमिली कोर्ट की स्थापना करने में भी प्रमुख भूमिका निभाई थी.
और अब कपिला हिंगोरानी ऐसी पहली महिला वकील भी बन गई हैं, जिनकी तस्वीर सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी में लगाई गई है. 67 साल के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है. 4 दिसंबर, 2017 को सुप्रीम कोर्ट के चीफ़ जस्टिस दीपक मिश्रा ने इस तस्वीर का अनावरण किया. इस तस्वीर का अनावरण करते हुए जस्टिस मिश्रा ने कहा,
इस पल का बड़ी देर से इंतज़ार था.


ये लेख टीना ने अंग्रेज़ी वेबसाइट 'ऑड नारी' के लिए लिखा है. वेबसाइट की इजाज़त से हम इसका हिंदी अनुवाद आपको पढ़ा रहे हैं. ये अनुवाद रुचिका ने किया है.



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