साल 1981. नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) ने पहली बार एक स्पेस शटल को अंतरिक्ष में भेजा. इसका नाम रखा गया ‘कोलंबिया’. पहली उड़ान सफल रही तो आगे सिलसिला चल निकला. 2003 तक ऐसे 27 मिशन अंतरिक्ष से सफलतापूर्वक वापस लौट चुके थे.
फिर आई तारीख़ 16 जनवरी, 2003 की. इस दिन कोलंबिया अपने कैरियर के 28वें मिशन पर निकला. इसमें सात लोग सवार थे. मकसद था, अंतरिक्ष में विज्ञान से जुड़ी शोध करना. इस मिशन में एक हिस्सा भारत का भी था. बतौर मिशन स्पेशलिस्ट. हरियाणा में पैदा हुईं और अंतरिक्ष-विज्ञान में देश का नाम रौशन करने वाली कल्पना चावला.

पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएशन करने के बाद कल्पना चावला अमेरिका चली गईं. 1991 में उन्होंने अमेरिका की नागरिकता ग्रहण कर ली.
कल्पना चावला बचपन से ही उड़ने का सपना देखती थीं. घरवालों का साथ मिला तो इंजीनियरिंग को अपना कैरियर बनाया. पंजाब इंजीनियरिंग कॉलेज से ग्रेजुएट होने के बाद वो अमेरिका गईं. आगे की पढ़ाई के लिए कल्पना अमेरिका गई. 1988 में ‘नासा’ के साथ काम करना शुरू कर दिया. तीन बरस बाद ही उन्हें अमेरिका की नागरिकता मिल गई.
कल्पना अपने काम में अव्वल थीं. जल्दी ही उन्हें नासा के एस्ट्रोनॉट कोर का हिस्सा बनने का मौका मिल गया. इसने उनके सपनों को पंख लगा दिए. कल्पना हमेशा कहा करती थीं, ‘मैं अंतरिक्ष के लिए ही बनी हूं. हर पल अंतरिक्ष के लिए ही बिताया है, और इसी के लिए ही मरूंगी.’
कल्पना चावला का पहला सफ़र 1997 के साल में शुरू हुआ. वो 5 एस्ट्रोनॉट साथियों के साथ इस मिशन पर गईं थी. 10.4 मिलियन माइल्स का सफर तय किया. किया. पृथ्वी के 252 चक्कर काटे. पहला मिशन सफल रहा था.
अंतरिक्ष में जाने की अगली बारी 6 बरस बाद आई. कोलंबिया का 28वां मिशन कल्पना चावला का दूसरा स्पेस मिशन था. कोलंबिया STS-107 को 16 दिन बाद वापस लौटना था. लेकिन उड़ान भरने के तुरंत बाद इसमें खराबी आ गई थी. एक्सटर्नल टैंक से शटल को जोड़ने वाला फ़ोम टूट गया था. ये बार-बार स्पेस शटल के लेफ़्ट विंग से टकराने लगा. ये सब लॉन्च के वीडियो में भी दिखा.
लेकिन नासा ने इसपर कोई कार्रवाई नहीं की. डिपार्टमेंट ऑफ़ डिफ़ेस ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया. लेकिन नासा ने मदद लेने से मना कर दिया. ये बाद में काफी खतरनाक साबित होने वाला था.

स्पेस शटल कोलंबिया STS-107 के क्रू मेंबर्स.
1 फ़रवरी, 2003 की तारीख़ को मुक़द्दर तय होने वाला था. उस दिन स्पेस शटल कैनेडी स्पेस सेंटर की तरफ वापस आने वाला था. शुरुआती पल तो ठीक दिख रहे थे. लेकिन फिर मिशन कंट्रोल रूम में हड़कंप मच गया. स्क्रीन पर दिख रही रीडिंग आड़ी-तिरछी दिशा में भागने लगीं. धीरे-धीरे वो रीडिंग स्क्रीन से गायब हो गईं. अब कंट्रोल रूम को ये पता नहीं था कि स्पेस शटल कहां और किस हालत में है.
मिशन कंट्रोल ने कई बार संपर्क करने की कोशिश की. पर सब बेकार गया. तभी कंट्रोल रूम में एक फ़ोन कॉल आया. उधर से कहा गया, ‘टीवी देखो’. वहां किसी स्पेस शटल के दुर्घटनाग्रस्त होने की ख़बर चल रही थी. ये कोलंबिया STS-107 ही था.
नासा ने तुरंत रिसर्च एंड रेस्क्यू टीम्स को संभावित इलाके की तरफ रवाना किया. वो पहुंचे. मगर वहां मलबे के सिवा कुछ और नहीं था. उसी दिन नासा ने सभी अंतरिक्षयात्रियों की मृत्यु का ऐलान कर दिया. इनमें से एक कल्पना चावला भी थीं. उनका जीवन अंतरिक्ष में बीत गया था. पहले और दूसरे स्पेस मिशन को मिलाकर कल्पना ने स्पेस में कुल 30 दिन, 14 घंटे और 54 मिनट बिताए थे.
हादसे के बाद जांच हुई. पता चला कि स्पेस शटल के बाहरी टैंक से ‘फोम इन्सुलेशन’ का एक हिस्सा टूट गया था. जिससे ऑर्बिटर का लेफ्ट विंग काफी प्रभावित हुआ. कुछ इंजीनियर्स का ऐसा मानना है कि ये स्पेस शटल के लिए काफी बड़ा डैमेज था. नासा मैनेजर्स ने कहा कि अगर क्रू को दिक्कत पता थी, तो उसे फिक्स कर लेना चाहिए था. 1 फरवरी को जब स्पेस शटल ने जैसे ही पृथ्वी के वायु-मंडल में एंट्री की, उस छोटे से डैमेज की वजह से गर्म गैसें स्पेसक्राफ्ट के अंदर घुस गईं. जिसकी वजह से स्पेसक्राफ्ट टूटकर बिखर गया था.

स्पेस शटल के मलबे को ढूंढने में कई हफ्तों का समय लग गया.
स्पेसक्राफ़्ट के मलबे को ढूंढने में कई हफ्ते लगे. ये एक मैराथन मिशन था. क्योंकि ये मलबा 2000 वर्ग मील के इलाके में बिखरा हुआ था. नासा को कुल 84,000 टुकड़े मिले. फिर भी ये पूरे स्पेसक्राफ्ट का 40 प्रतिशत ही था.
1986 में ‘चैलेंजर’ नामक स्पेस शटल उड़ने के तुरंत बाद क्रैश कर गया था. इसमें भी सात अंतरिक्ष यात्रियों की जान गई थी. कोलंबिया ने पुराने ज़ख्मों को ताज़ा कर दिया था. अगले दो वर्षों तक किसी भी स्पेस शटल को अंतरिक्ष में नहीं भेजा गया. 2011 में स्पेस शटल प्रोग्राम को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया.