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पीएम मोदी के दोस्त की 'राजकीय विदाई' का विरोध क्यों हो रहा है?

जापान के कई हिस्सों में राजकीय विदाई को रोकने के लिए मुकदमे दायर किए गए हैं

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जापान के कई हिस्सों में राजकीय विदाई को रोकने के लिए मुकदमे दायर किए गए हैं

जापान में 21 सितंबर 2022 की सुबह एक शख़्स ने ख़ुद को जलाकर मारने की कोशिश की. प्रधानमंत्री के दफ़्तर के बाहर. पुलिस ने उस शख़्स को बचा लिया. बाद में उसे अस्पताल ले जाया गया. आम स्थिति में ये आत्मदाह की एक सामान्य घटना होती, लेकिन उसके पास से मिली चिट्ठी ने पूरा मज़मून बदलकर रख दिया. आग लगाने वाला पूर्व प्रधानमंत्री शिंज़ो आबे के राजकीय अंतिम-संस्कार का विरोध जताने आया था. एक सर्वे के मुताबिक, जापान की 56 प्रतिशत जनता राजकीय अंतिम-संस्कार के ख़िलाफ़ है. हालिया आत्मदाह की घटना ने इस विरोध को हवा दे दी है.

समझेंगे, जापान की बहुसंख्यक आबादी इसके ख़िलाफ़ क्यों है?

पहले घटना की टाइमलाइन जान लेते हैं.

शिंज़ो आबे जापान में सबसे लंबे समय तक प्रधानमंत्री रहे. 2020 में स्वास्थ्य कारणों से उन्होंने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था. महीनों तक वो पब्लिक लाइफ़ से गायब रहे. ठीक होकर लौटे तो पार्टी के लिए प्रचार करने लगे. जुलाई 2022 में एक रैली के दौरान उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई. घरवालों ने उनका अंतिम-संस्कार कर दिया. लेकिन अब सरकार अपनी तरफ़ से एक इवेंट का आयोजन कर रही है. आबे का राजकीय सम्मान के साथ अंतिम संस्कार 27 सितंबर को होगा. इसमें 190 देशों के प्रतिनिधि शामिल होंगे. इनमें अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हैरिस, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज भी शामिल हैं.

लेकिन कार्यक्रम से पहले ही इसका ज़ोरदार विरोध शुरू हो रहा है. जापान का एक अखबार है ‘योमिउरी शिंबुन’. इसने आबे की राजकीय विदाई को लेकर एक सर्वे किया. इसमें सामने आया कि 56 फीसदी लोग इस आयोजन के विरोध में हैं.

क्यों हो रहा है विरोध?

दरअसल जापान में राजकीय विदाई आमतौर पर हर किसी को नहीं मिलती. आबे सेकेंड वर्ल्ड वॉर के बाद इस तरह की विदाई पाने वाले जापान के दूसरे प्रधानमंत्री होंगे. इससे पहले 1967 में शिगेरु योशिदा को ये सम्मान दिया गया था.

- जापान के पूर्व पीएम के अंतिम संस्कार का खर्चा सरकार और उस नेता की राजनैतिक पार्टी के बीच बांटा जाता था. लेकिन आबे की राजकीय विदाई का पूरा खर्चा सरकार उठाने वाली है. कितना? लगभग 100 करोड़ रुपया. लोग नाराज़ हैं कि जनता के पैसे से दिखावा किया जा रहा है.

- दूसरी वजह कानूनी पक्ष से जुड़ी है. जापान की विपक्षी पार्टियों ने भी इस आयोजन का विरोध किया है. विपक्ष ने कहा कि 1947 में युद्ध के बाद बने संविधान में राजकीय विदाई की कोई गुंज़ाइश नहीं है. बात इतनी बढ़ी कि संसद में इसपर चर्चा हुई. सत्तारूढ़ पार्टी ने तर्क दिया कि ये आयोजन क़ानूनी रूप से एकदम सही है. ये संविधान की भावना के ख़िलाफ़ नहीं जाता है.
ससंद में जब इस पर तर्क-वितर्क तेज़ हो रहे थे, तब जापान के पीएम फ़ुमियो किशिदा को बयान देना पड़ा. उन्होंने चार बिंदु गिनाए. कहा-

- आबे की राजकीय विदाई इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वो वर्ल्ड वॉर के बाद सबसे लंबे वक्त तक जापान की सेवा करने वाले पीएम हैं.

- आबे ने जापान के दूसरे देशों अमेरिका के साथ रिश्तों को मज़बूत किया. वो 2011 में आई सुनामी के बाद जापान को आर्थिक सुधार की तरफ़ लेकर गए.

- आबे के निधन के बाद दुनियाभर के कई देशों से शोक संदेश मिले हैं. इस आयोजन में हमें इन संदेशों का जवाब देने का मौका मिलेगा.

- आबे को एक चुनावी कैंपेन के दौरान गोली मारी गई थी. चुनाव हमारे लोकतंत्र की नींव होते हैं, और उसी लोकतंत्र की रक्षा के लिए आबे की राजकीय विदाई करना ज़रूरी है.

फिर बात निकली जापान में आखिरी बार हुए राजकीय अंतिम संस्कार पर. सत्तारूढ़ पार्टी ने कहा कि 1967 में भी शिगेरु योशिदा को राजकीय अंतिम विदाई दी जा चुकी है ये कोई नई बात नहीं है, इसपर संसद में मुख्य विपक्षी पार्टी ‘कॉन्स्टिट्यूशन डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ जापान’ के नेता केंटा इज़ुमी ने ऐतराज़ जताया, उन्होंने कहा –

योशिदा की राजकीय विदाई का फैसला लेते वक्त सरकार ने न्यायपालिका और विधायिका के अलावा विपक्षी दलों से भी चर्चा की थी. लेकिन इस दफ़ा उचित प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया है.

विरोध में लोग क्या कर रहे?

- जापान के कई हिस्सों में राजकीय विदाई को रोकने के लिए मुकदमे दायर किए गए हैं.

- लोग पीएम ऑफिस के सामने विरोध में रैली निकाल रहे हैं,

- अब तक 4 लाख से ज़्यादा लोगों ने इस आयोजन को रोकने के लिए ऑनलाइन पिटीशन साइन किया है. जापान की कई राजनैतिक पार्टियों ने इसमें शामिल होने से मना कर दिया है.

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