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LJP और पासवान परिवार में कलह, चिराग के करीबी सौरभ पांडेय का इसमें क्या रोल है?

प्रिंस राज ने सौरभ पांडेय को ज़िम्मेदार बताया है.

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चिराग पासवान, सौरभ पांडेय और प्रिंस राज की ये तस्वीर तब की है, जब एलजेपी में दिल ही नहीं, दामन भी जुड़े हुए थे.
लोक जनशक्ति पार्टी के अंदर छिड़े घमासान में हर दिन एक नए किरदार की एंट्री हो जाती है. अब सुर्खियों में हैं सौरभ पांडेय जो चिराग पासवान (Chirag Paswan) के साथ काम करते हैं और उनके अच्छे मित्र भी हैं. वैसे सौरभ पांडेय की एक पहचान चिराग के चाणक्य तौर पर भी है. 2014 लोकसभा चुनावों के बाद से उनका कद पार्टी में तेज़ी से बढ़ा है. अब सौरभ पांडेय को लोजपा की मौज़ूदा हालत के लिए ज़िम्मेदार बताया जा रहा है.
एलजेपी में चिराग पासवान के खिलाफ बगावत देखने को मिली. इसके बाद चिराग पासवान को लोजपा के संसदीय दल के नेता पद से हटाया गया, फिर उनसे अध्यक्ष पद की कुर्सी छीन ली गई. इस बीच चिराग पासवान के चचेरे भाई प्रिंस राज के खिलाफ यौन शोषण का मामला सामने आया.
Prince Raj With Chirag Paswan प्रिंस राज (बायीं तरफ) और चिराग पासवान.

इंडियन एक्सप्रेस अखबार में प्रिंस राज का एक इंटरव्यू
छपा है. उन्होंने लोजपा और पासवान परिवार के अंदर मचे कलह के लिए बिना नाम लिए सौरभ पांडेय (Saurabh Pandey) को ज़िम्मेदार ठहराया है. प्रिंस राज का आरोप है कि उनके खिलाफ जो यौन शोषण का मामला सामने आया है उसमें भी सौरभ का ही रोल है. इंटरव्यू में उन्होंने कहा,
"पार्टी के अंदर लंबे समय से बहुत कुछ ठीक नहीं था. बिहार चुनाव नतीजे आने के बाद पार्टी का कोई भी सदस्य खुश नहीं था. लेकिन भैया (चिराग) अपने निजी सचिव की बात मानते रहे. और ऐसे फैसले लेते रहे जो पार्टी सदस्यों के गले नहीं उतरा. इस कारण से कइयों ने पार्टी छोड़ दी और कई नाराज चल रहे थे. पार्टी हाईकमान को इस बारे में बताया गया था, लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया. फिर पार्टी और परिवार को बचाने के लिए लीडरशिप को बदलने का फैसला किया गया. यह सबकुछ सिर्फ एक व्यक्ति के कारण हुआ. उनके एडवाइज़र के कारण."
प्रिंस राज के आरोपों पर चिराग खेमे से आधिकारिक प्रतिक्रिया भी आई है. लोजपा के प्रवक्ता अशरफ अंसारी ने कहा,
"2020 में पार्टी अकेले चुनाव लड़ी और 25 लाख वोट प्राप्त हुए. पार्टी का विस्तार हुआ. पार्टी को चिराग पासवान के नाम पर 6 प्रतिशत वोट मिले. और राजनीति में चिराग का बड़ा नाम हुआ. आजकल प्रिंस मीडिया में सौरभ पांडेय के खिलाफ बयानबाजी कर रहे हैं, लेकिन हकीक़त यही है कि समस्तीपुर लोकसभा उपचुनाव में उनकी जीत सुनिश्चित करने के लिए उसी सौरभ ने दिन-रात एक कर दिया था."
लोजपा प्रवक्ता इस पूरे घटनाक्रम के लिए नीतीश कुमार को घेरना नहीं भूले. उन्होंने कहा,
"आज जो लोग पीठ पर खंजर घोप रहे हैं. वो नीतीश कुमार के इशारे पर काम कर रहे हैं. सौरभ पांडेय ने कभी नीतीश जी के पक्ष में बात नहीं की. इसके कारण आज यह सभी निष्काषित सांसद नीतीश के कहने पर सौरभ पांडेय का विरोध करते हैं. यह सभी चाहते थे कि चिराग, नीतीश से हाथ मिला लें. पशुपति पारस जी को बिहार से ज़्यादा नीतीश कुमार की चिंता थी, इसलिए वह चुनाव में भी उनके प्रचार में लगे हुए थे. अब मंत्री बनने के लालच में चाचा ने सब खेल नीतीश के इशारे पर किया है."
कौन हैं सौरभ पांडेय? सौरभ पांडेय खुद राजनीतिक परिवार से आते हैं. उनके पिता मणिशंकर पांडे उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य रह चुके हैं. उनकी पहचान कांग्रेसी नेता के तौर पर है. लेकिन 2018 में उन्होंने लोक जनशक्ति पार्टी का दामन थाम लिया था. वे पार्टी की उत्तर प्रदेश ईकाई के अध्यक्ष भी हैं. कहा जाता है कि मणिशंकर पांडे के रामविलास पासवान के साथ पारिवारिक रिश्ते थे. और इसी रिश्ते के कारण सौरभ पांडेय और चिराग की दोस्ती भी दशकों पुरानी है. सौरभ पेशे से वकील हैं और शुरुआती दिनों में मुंबई हाईकोर्ट में प्रैक्टिस भी की है. लेकिन राजनीतिक परिवार से आने के कारण खुद को राजनीति से दूर रख पाना सौरभ के लिए आसान नहीं था. पर वह सक्रिय राजनीति में नहीं आए. हालांकि अपने मित्र चिराग के ज़रिए इसका हिस्सा ज़रूर बन गए. फिल्मी करियर को अलविदा कहने के बाद जब चिराग ने राजनीति में कदम रखा तब से सौरभ उनके साथ हो लिए. दोनों ने साथ में ही राजनीति का ककहरा सीखा. चिराग लोजपा का चेहरा बन गए और पार्टी के भीतर सौरभ पांडे उनके सेनापति. बीतते वक्त के साथ उनका कद भी पार्टी में बढ़ता गया. वे 'बिहार फर्स्ट, बिहारी फर्स्ट' ड्राफ्ट कमिटी के सदस्य भी रह चुके हैं.
Saurabh Pandey With Prince Raj प्रिंस राज के साथ सौरभ पांडेय (बायीं तरफ)

अब आते हैं लोजपा में मचे घमासान पर. इसकी नींव रखी गई बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान. जब पार्टी ने बिहार में एनडीए से अलग होने का फैसला किया. पशुपति पारस गुट का कहना है कि यह गलत फैसला था और इससे पार्टी को भारी नुकसान हुआ. वहीं, सौरभ पांडेय के करीबी सूत्रों ने बताया कि पार्टी के पास अकेले जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा था. क्योंकि एनडीए ने सिर्फ 15 सीटों पर उम्मदीवार उतारने का प्रस्ताव दिया था. जिस पार्टी के 6 सांसद हों, वो सिर्फ 15 विधानसभा सीटों पर कैसे चुनाव लड़ सकती है. मामला आत्म सम्मान का था. यह पार्टी के किसी भी नेता को मंजूर नहीं था. ऐसे में एनडीए से अलग होने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. भले ही आज सब उस फैसले को गलत ठहरा रहे हों, उस वक्त हर किसी की रज़ामंदी थी. जब चिराग पासवान ने अध्यक्ष के तौर पर फैसला कर लिया, तब सौरभ का रोल सिर्फ उसे ग्राउंड पर एग्जीक्यूट करने का था.