6 और 7 मई 2025 की दरम्यानी रात भारत ने ऑपरेशन सिंदूर (Operation Sindoor) लॉन्च किया. बौखलाए पाकिस्तान ने भारत के नागरिकों पर ड्रोन और मिसाइलों से हमले शुरू कर दिए. हालांकि कोई हमला कामयाब नहीं हुआ. वजह, भारत का एयर डिफेंस सिस्टम (Air Defence System). भारत के सुदर्शन चक्र कहे जाने वाले S-400 एयर डिफेंस सिस्टम ने शानदार काम किया. और अब खबर आई है कि भारत इसी तर्ज पर, लंबी दूरी के लिए, अपना खुद का स्वदेशी एयर डिफेंस सिस्टम डेवलप कर रहा है. इस सिस्टम के डेवलपमेंट को 'प्रोजेक्ट कुशा' (Project Kusha) का नाम दिया गया है. तो समझते हैं, कि क्या है ये प्रोजेक्ट? और कैसे इसके बनने से भारत रूस के S-500 सिस्टम के बराबर आ जाएगा.
S-400 छोड़ो, अब भारत का 'Kusha' करेगा हवा में राज! चीन-पाकिस्तान का नया सिरदर्द
S-400 Air Defence System की तर्ज पर, लंबी दूरी के लिए, अपना खुद का स्वदेशी एयर डिफेस सिस्टम डेवलप कर रहा है. इस सिस्टम को Project Kusha का नाम दिया गया है.


इस प्रोजेक्ट की नींव या यूं कहें कि आइडिया 2018 में आया. DRDO और सेनाओं ने इस पर शोध शुरू हुआ. ये वही समय था जब भारत ने रूस से लॉन्ग रेंज सर्फेस टू एयर मिसाइल सिस्टम (LR-SAM) की कैटेगरी में आने वाले S-400 एयर डिफेंस सिस्टम की डील की थी. इसके बाद मई 2022 में भारत की कैबिनेट कमेटी ऑन सिक्योरिटी (CCS) ने इस प्रोजेक्ट को मंजूरी दे दी. CCS ने इसके डेवलपमेंट के लिए 4.7 बिलियन डॉलर (लगभग 40 हजार करोड़) का फंड अलॉट किया.
इस सिस्टम को डेवलप करने का काम दिया गया डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट लेबोरेट्री (DRDL) को. ये DRDO के मातहत काम करने वाली एक लैब है. इसके अलावा इसके डेवलपमेंट में भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (BEL) भी इसके डेवलपमेंट में एक भागीदार के तौर पर शामिल है. चूंकि ये प्रोग्राम अभी डेवलपमेंट स्टेज में है, इसलिए इसकी क्षमता क्या होगी, ये जानकारी अभी सामने नहीं आई है. हालांकि प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों के हवाले से कई बार ये बताया गया है कि इस प्रोजेक्ट के तहत DRDO इसे रूस के S-500 की क्षमता तक ले जाएगी.

इस प्रोजेक्ट के तीन फेज हैं. पहले फेज़ में मिसाइल्स का डेवलपमेंट होना है, जो इस तरह के सिस्टम से लंबी दूरी तय कर सकें. इन्हें इंटरसेप्टर्स कहा जाता है. इस सिस्टम में तीन इंटरसेप्टर्स होंगे जिन्हें M1, M2 और M3 नाम दिया गया है. इन तीनों की रेंज अलग होगी. माने जितनी दूरी पर टारगेट होगा, उसके अनुसार इंटरसेप्टर का इस्तेमाल किया जाएगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक इनकी रेंज 150 से 350 किलोमीटर तक हो सकती है. इन मिसाइल्स को M1, M2 और M3 नाम दिया गया है.
किल व्हीकलदूसरा है किल व्हीकल(Kill Vehicle). जैसा कि नाम से स्पष्ट है, यह वास्तव में एक विशेष प्रकार का वाहन होता है. पर हमारी-आपकी गाड़ी से अलग इसमें कई सारे सिस्टम्स होंगे जो एक इंटरसेप्टर को टारगेट तक पहुंचने में मदद करेंगे. इसे ऐसे समझिए कि सिस्टम के रडार ने किसी हवाई खतरे को ढूंढ लिया. अब मिसाइल लॉन्च करने की देरी है. लेकिन लॉन्च होने के बाद मिसाइल को कैसे पता होगा कि उसे जाना कहां है? हो सकता है उसका टारगेट मैनुवर (हवा में रास्ता बदलना) कर रहा हो. ऐसे में मिसाइल का जमीन पर मौजूद अपनी कमांड पोस्ट से संपर्क बनाए रखने के लिए इसमें कई सिस्टम्स लगाए जाते हैं. किल व्हीकल दरअसल पूरी मिसाइल में लगे सिस्टम्स का सिस्टम है.

किल व्हीकल में सबसे आगे, जहां मिसाइल का नुकीला हिस्सा होता है, उसे 'सीकर बे' कहते हैं. ये वो हिस्सा है जो टारगेट तक पहुंचने के लिए मिसाइल को रास्ता दिखाने का काम करता है. इसके ठीक पीछे डेटा लिंक सिस्टम होता है. यानी वह जानकारी, जो लक्ष्य को नष्ट करने के लिए आवश्यक होती है, वो इसमें रियल टाइम में अपडेट होती रहती है.
तीसरा हिस्सा जो सबसे अहम माना जाता है, वो है वॉरहेड. यानी वो जगह जहां हथियार या विस्फोटक लगाए जाते हैं. अब ये देखना दिलचस्प होगा कि प्रोजेक्ट कुशा की मिसाइल्स का वॉरहेड किस तरह के हथियार ले जाने में सक्षम होगा. चौथा हिस्सा होता है एवियॉनिक्स का. ये वो हिस्सा है जो लगातार डेटा लिंक और सीकर बे से संपर्क में रहता है. डेटा लिंक में फीड हो रही जानकारी के अनुसार ये मिसाइल को हवा में रास्ता बदलने में मदद करता है. आपने मिसाइल्स में पंख जैसे फिन्स लगे देखे होंगे. यही हिस्सा एवियॉनिक्स कहलाता है.
और आखिर में इसमें होते हैं दो पल्स सिस्टम. ये वो सिस्टम हैं जो मिसाइल को ऊपर उड़ने में मदद करते हैं. इन्हीं में लगा ईंधन जलने पर मिसाइल लॉन्च होती है. आमतौर पर मिसाइल्स में 2 पल्स सिस्टम होते हैं. सबसे पिछला हिस्सा जिसे बूस्टर कहते हैं वो लॉन्च के कुछ देर बाद अलग हो जाता है. फिर इसके आगे लगा पल्स सिस्टम हमले के लिए आगे जाता है. ये कुछ वैसा ही है जैसा रिले रेस में होता है. एक एथलीट एक पॉइंट तक बेटन लेकर जाता है. फिर अगले खिलाड़ी को थमा कर कहता है, आगे तुम संभालो. यही काम दोनों पल्स सिस्टम्स की जुगलबंदी भी करती है.

कई बार ये कहा जाता है कि आने वाला युग हवाई युद्ध का होगा. खासकर बियॉन्ड विजुअल रेंज (BVR) हथियारों का. इनमें सैनिकों को खतरा कम होता है. वो अपनी जमीन, अपने एयरस्पेस से ही सैंकड़ों किलोमीटर दूर दुश्मन पर सटीक निशाना लगा सकते हैं. और इन BVR हथियारों से जो चीज़ बचा सकती है, वो है एक उन्नत एयर डिफेंस सिस्टम. ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हमने देखा कि कैसे भारत के तमाम एयर डिफेंस सिस्टम्स ने पाकिस्तानी हवाई हमलों को नाकाम किया. आने वाले समय में भी इनकी जरूरत पड़ सकती है.
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S-400 अभी 400 किलोमीटर की दूरी तक खतरों को मार गिराने में सक्षम है. प्रोजेक्ट कुशा के तहत बनने वाला सिस्टम भी इसी के अल्ले-पल्ले रेंज प्रदान करेगा. हालांकि ख़बरें ये भी हैं कि भविष्य के वॉरफेयर को ध्यान में रखते हुए भारत इसकी रेंज बढ़ाने पर भी विचार कर रहा है. यानी ये सिस्टम रूस के S-500 को पीछे छोड़ देगा. इसीलिए इसे एक्सटेंडेड रेंज सिस्टम भी कहा जा रहा है. इंडियन नेवी और इंडियन एयरफोर्स ने फिलहाल इसके 8 स्क्वाड्रन्स की मांग की है. लेकिन भविष्य में इनकी संख्या को और भी बढ़ाया जा सकता है.
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