भारतीय रेल नित नए कीर्तिमान स्थापित कर रही है. लेकिन ये कीर्तिमान गर्व नहीं, शर्म करने वाले हैं. ये कीर्तिमान हैं ट्रेनों के लेट पहुंचने के. मतलब हालात तो ये हैं कि अब अगर कोई ट्रेन ऑन टाइम हो तो शायद कई लोगों की ट्रेन मिस हो जाए.
लेकिन बस अब बहुत हुआ. अब लगता है कि भारतीय रेल के दिन ज़ल्द ही बहुरने वाले हैं. अब शायद ऑन टाइम पहुंचने के मामले में भारतीय रेल जापान की ट्रेनों को भी पीछे छोड़ दें.
और ऐसा किसी करिश्मे के चलते नहीं, उस चीज़ के चलते संभव हुआ है, जिस चीज़ को करने में ये सरकार नहीं, पिछली सारी सरकारें ‘बिना किसी अपवाद के’ माहिर रही हैं – ‘प्राप्तांक बढ़ाने के बदले, पूर्णांक घटाकर फेलियर को डिस्टिंक्शन दिलवा देना.’ सीधे-सीधे कहें तो ये काम आपकी ट्रेन के पहुंचने का टाइम बढ़ाकर किया जा रहा है. ये खबर इंडियन एक्सप्रेस ने छापी है.
# चेन्नई एक्सप्रेस –
दक्षिणी रेलवे ने ट्रेनों के रन-टाइम को आधे से एक घंटे तक बढ़ा दिया है. मतलब जिस ट्रेन का रन टाइम पहले 6 घंटे था अब उसका रन टाइम बदल कर साढ़े छः से सात घंटे कर दिया है. और ऐसा एक दो नहीं, नब्बे के करीब ट्रेनों के साथ किया गया है.

इंतज़ार, इंतज़ार, इंतज़ार...
दूसरी भाषा में कहें कि जो ट्रेन पहले एक घंटे लेट कहलाई जाती, अब ऑन टाइम कहलाई जाएगी.
# दिल्ली अभी दूर है -

दिल्लीवाले दुल्हनिया लेने के लिए 2 घंटे देरी से आएंगे.
दिल्ली से संचालित होने वाली ट्रेनों के भी रन-टाइम को बढ़ाने के रास्ते में कदम बढ़ने शुरू हो गए हैं. और ऐसा, फिर से नब्बे के करीब ट्रेनों के साथ होगा.
# गाड़ी रुला रही है -
अगर आप किसी खेल में लगातार हार रहे हों तो आप या तो जी तोड़ मेहनत करें, या फिर खेल के नियम ही बदल दें. सरकारें हमेशा दूसरा रास्ता चुनती आईं हैं. और ये मामला भी कोई अपवाद नहीं है. इससे पहले GDP से लेकर बेरोजगारों को कैलकुलेट करने के मामले में भी मोदी सरकार ने ये शाणपट्टी दिखाई है.

अब ये कौन कह रहा है कि 'बुल लेट' ट्रेन का मतलब बैलों से चलने वाली गाड़ी और वो भी लेट?
एक तरफ अपनी पीठ थपथपाने वाले स्व-निर्मित रिपोर्ट कार्ड और दूसरी तरफ अगर कोई तटस्थ रिपोर्ट सरकार के ख़िलाफ़ हो तो उसे नकारने में सरकार कोई हील-हुज्जत नहीं करती.
# जब वी 'लेट' -

ट्रेन गीत का सेकंड होम है.
खैर, आप जाते-जाते शे’र मुलाईज़ा फरमाइए –
अपना चेहरा न बदला गया, आईने से खफ़ा हो गए.
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