13 मार्च 2018. इस दिन भारतीय सेना के वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद रक्षा मामलों की संसद की स्थायी समिति के सामने पेश हुए थे. उन्हें सेना से संबंधित रिपोर्ट सरकार को सौंपनी थी. उन्होंने जो रिपोर्ट सौंपी, उसमें उन्होंने कहा था कि भारतीय सेना के आधे से भी ज्यादा (करीब 65 फीसदी) हथियार पुराने हो चुके हैं. इतने पुराने कि इनसे लड़ाई की ही नहीं जा सकती है. इसके अलावा सेना के पास तोप, मिसाइल और हेलिकॉप्टरों की भी कमी है. और इतनी भयंकर कमी कि अगर भारत को पाकिस्तान और चीन के साथ लड़ाई करनी पड़ जाए, तो भारत उसे कभी जीत नहीं पाएगा.

भारतीय सेना के वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद ने संसदीय समिति के सामने सेना की हकीकत बयान की थी.
लेकिन इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है?
जाहिर है. सेना की ऐसी स्थिति के लिए सीधे तौर पर सरकार जिम्मेदार है. क्योंकि सरकार ने सेना को इतने पैसे ही नहीं दिए हैं कि वो हथियार और दूसरी ज़रूरी चीजों को खरीद सके. अभी इसी साल की बात करें तो भारतीय सेना को हथियारों, हेलिकॉप्टर और दूसरी ज़रूरी चीजों की खरीद के लिए कुल 37 हजार 121 करोड़ रुपये चाहिए थे. वित्त मंत्री ने जब एक फरवरी 2018 को बजट पेश किया, तो उसमें सेना के लिए 21 हजार 338 करोड़ रुपये ही दिए गए. मतलब साफ है कि सेना ने जितने पैसे मांगे थे उससे 15 हजार 783 करोड़ रुपये कम मिले.
रक्षा मंत्री का दावा कुछ और है और आंकड़े कुछ और

सेना के पास हथियारों और पैसे की कमी के मुद्दे पर रक्षा मंत्री ने 5 जून को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की.
मोदी सरकार के चार साल की उपलब्धियां गिनाने के लिए 5 जून को केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में रक्षा मंत्री ने वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद की उस बात का खंडन किया, जिसमें कहा गया था कि सेना के 65 फीसदी हथियार पुराने पड़ चुके हैं. खुद रक्षा मंत्री ने माना है कि भारतीय सेना के पास हथियारों की कोई कमी नहीं है. रक्षा मंत्री ने आंकड़े जारी करते हुए कहा कि केंद्र ने सेना को 2013-14 में 86,740.71 करोड़ रुपये दिए, लेकिन 79,125.05 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. इसके अलावा 2014-15 में 94,587.95 करोड़ रुपये जारी हुए. इसमें भी 81,886.98 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. 2015-16 में सेना के लिए एक करोड़ रुपये का बजट बढाकर 94,588 करोड़ रुपये कर दिया गया. इसमें भी 79,958.31 करोड़ रुपये ही खर्च हुए. रक्षा मंत्री ने बताया कि 2016-17 में केंद्र ने भारतीय सेना को 86,340 करोड़ रुपये दिए और और खर्च हुए 86,370.92 करोड़ रुपये और 2017-18 में जारी किए गए 86,488.01 करोड़ रुपये और खर्च हुए 90,460.26 करोड़ रुपये. इन आंकड़ों के आखिरी दो साल के पैसे देखिए तो पता चलता है कि सेना का 2016-17 में खर्च मिले हुए पैसे से 30.92 करोड़ रुपये ज्यादा था. वहीं 2017-18 में सेना का खर्च दिए गए पैसे की तुलना में 3,972.25 करोड़ रुपये ज्यादा था.
सेना ने इस साल के पैसे का क्या किया?

भारतीय सेना ने केंद्र सरकार से जितने पैसे मांगे थे और जितने पैसे मिले उसमें करीब 15 हजार करोड़ रुपये का अंतर है.
सेना ने पहले से भी हथियार खरीद रखे हैं, जिनके पैसे अभी तक नहीं दिए जा सके हैं. इसके अलावा करीब 30 लाख ऐसे रिटायर्ड जवान और अधिकारी हैं, जिन्हें हर महीने पेंशन दी जाती है. सेना को इस साल के लिए मिला पूरा पैसा पुरानी देनदारी और पेंशन में ही खर्च हो गया. जिस बचे हुए 15 हजार करोड़ रुपये से सेना हल्के हेलिक़प्टर, एंटी टैंक मिसाइल, एयर डिफेंस मिसाइल, असाल्ट राइफल, लाइट मशीनगन, कार्बानइन और गोला-बारूद खरीदने वाली थी, वो पैसे केंद्र सरकार ने सेना को दिए ही नहीं. नतीजा ये है कि सेना अब इस साल भी ये हथियार नहीं खरीद पाएगी.
और ये स्थिति पिछले 10 साल से है
ये भारतीय सेना की सबसे कड़वी सच्चाई है कि सेना के पास पिछले 10 साल से उतने हथियार और गोला-बारूद और संसाधन उपलब्ध नहीं हो पाए हैं, जितनी उसकी ज़रूरत है. भारत के रक्षा मंत्री की ओर से हर 10 साल में एक रिपोर्ट तैयार की जाती है. इस रिपोर्ट का मजमून ये होता है कि अगर भारत की चीन और पाकिस्तान के साथ एक साथ लड़ाई शुरू हो जाए, तो भारत उसके लिए कितना तैयार है. अभी फिलहाल केंद्रीय रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से ये रिपोर्ट तो तैयार नहीं की गई है, लेकिन वाइस चीफ लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद का रक्षा समिति के सामने दिया गया बयान स्थितियों को बताने के लिए काफी है.
10 दिनों की बड़ी लड़ाई के लायक भी नहीं हैं हथियार

ये बात कई बार सामने आ चुकी है कि भारतीय सेना हथियारों की कमी से जूझ रही है.
आम तौर पर भारतीय सेना का बॉर्डर पर हर रोज पाकिस्तान के साथ छोटा-मोटा मुकाबला होता ही रहता है. लेकिन सेना खुद को एक लड़ाई के लिए हमेशा तैयार रखती है, जिसे 10 आई कहा जाता है. सामान्य भाषा में समझें तो गहन जंग, जिसका मतलब है गोला और बारूद की वो खपत, जिसमें टैंक और तोप आम दिनों के मुकाबले में तीन गुना ज्यादा बम के गोले और राकेट दाग सकें. लेकिन सेना इस 10 आई के लिए भी तैयार नहीं है. और पाकिस्तान-चीन के साथ एक लड़ाई छिड़ना तो बड़ी बात है. और ये स्थिति तब है जब भारतीय सेना पहले खुद को 40 आई के लिए तैयार रखती थी. जब सेना को 40 आई वाली स्थिति को बरकरार रखना मुश्किल हो गया, तो वो इसमें चार गुनी कचौटी करके 10 आई पर ले आई. और अब की हालत ये है कि 10 आई को भी सेना बरकरार नहीं रख पा रही है.
और फिर सेना ने लिया वो फैसला, जिससे सच्चाई सामने आ गई

अब सैनिकों के जूते भी बाजार से खरीदे जाएंगे. (फोटो : KiwiReport)
10 आई को बरकरार रखना सेना की जिम्मेदारी है. अगर देश में किसी तरह का संकट होता है, तो उससे निपटने के लिए सेना को ही आगे आना पड़ता है. इस बार भी जब सेना को केंद्र की ओर से ज़रूरत के मुताबिक पैसे नहीं मिले, तो सेना ने अपने कुछ खर्चों में कटौती की कोशिश की. इकनॉमिक टाइम्स के मुताबिक इसी कोशिश का शुरुआती नतीजा है वो फैसला, जिसमें कहा गया है कि सैनिकों को उनकी वर्दी, बेल्ट, जूते और ऐसी कई चीजें बाजार से खरीदनी पड़ेंगी. इसके अलावा सैनिकों के इस्तेमाल की गाड़ियों के कल-पुर्जे भी खुले बाजार से खरीदे जाएंगे. इससे पहले ये सारा सामान सरकारी ऑर्डिनेंस फैक्ट्री में बनता था. अभी तक देश की ये ऑर्डिनेंस फैक्ट्री वर्दी, बेल्ट, जूते, छोटे हथियार और गाड़ियों के कलपुर्जे का कुल 94 फीसदी सप्लाई करती थी. बाकी खुले बाजार से खरीदा जाता था. लेकिन खर्च बढ़ने की वजह से सेना ने तय किया है कि ऑर्डिनेंस फैक्ट्री पर होने वाले खर्च में कटौती की जाए. इस कटौती के जरिए ऑर्डिनेंस फैक्ट्री से होने वाली सप्लाई करीब-करीब आधी कर दी जाएगी. इसकी वजह से सेना के पास जो पैसा इकट्ठा होगा, उसका इस्तेमाल वो अपने 10 आई को बरकरार रखने और आपात स्थिति के लिए ज़रूरी गोला-बारूद और हथियारों की खरीद में करेगी. ये पैसा हर साल करीब-करीब 3500 से चार हजार करोड़ रुपये होगा. ऐसा करके सेना अगले तीन साल में 10 (आई) को बरकरार कर लेगी.

सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत का कहना है कि सेना की प्राथमिकता में उसके ज़रूरी हथियार और गोला-बारूद हैं.
इस फैसले के पीछे 28 मार्च 2018 को सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत का वो बयान भी है, जिसमें उन्होंने कहा था कि जो बजट उपलब्ध है, उसी के आधार पर मदों में फेरबदल करके सैन्य तैयारियां की जाएंगी. उन्होंने साफ तौर पर कहा था कि सैनिकों के लिए तो घर बनवाने भी ज़रूरी हैं, लेकिन प्राथमिकताएं तय करनी होंगी. और प्राथमिकता है सेना को जंग के लिए तैयार करना. पीएम मोदी ने भी दिसंबर 2015 में कहा था कि दुनिया के देश अपने सैनिकों की संख्या में कटौती कर रहे हैं, लेकिन उन्हें तकनीकी तौर पर विकसित कर रहे हैं. भारत अब भी सैनिकों की संख्या में बढ़ोतरी कर रहा है और साथ ही तकनीकी तौर पर भी विकसित हो रहा है. लेकिन दोनों ही काम एक साथ नहीं हो सकते हैं. इस बयान से ही साफ था कि सरकार के पास इतने पैसे नहीं हैं कि वो सेना की हर ज़रूरत को पूरा कर सके.
सेना ने की थी सर्जिकल स्ट्राइक, हथियार खरीदने के लिए नहीं मिले सरकार से पैसे
सितंबर 2016 में भारतीय सेना ने पाकिस्तान पर सर्जिकल स्ट्राइक की थी. इस सर्जिकल स्ट्राइक की सफलता के बाद आनन-फानन में सेना के लिए 11,738 करोड़ रुपये के हथियार खरीदे गए. लेकिन केंद्र सरकार की ओर से सेना को अतिरिक्त पैसे नहीं दिए गए. इन हथियारों की खरीद उन्हीं पैसों में से हुई, जो केंद्र सरकार की ओर से हर साल सेना को दिए जाते हैं.
पाकिस्तान और चीन के साथ एक साथ लड़ाई का डर कभी भी सच हो सकता है

साल 2017 में डोकलाम में भारत और चीन के सैनिक 72 दिनों तक आमने-सामने खड़े थे.
भारत अपना सबसे बड़ा दुश्मन पाकिस्तान को मानता है. लेकिन सेना की मानें तो देश का सबसे बड़ा दुश्मन चीन है. भारत की पाकिस्तान के साथ 760 किमी लंबी नियंत्रण रेखा पर 2003 में युद्ध विराम हुआ था. तब से अब तक ब्रह्मपुत्र में बहुत पानी बह चुका है. युद्धविराम के बाद पाकिस्तान की ये सीमा रेखा हाल के दिनों में सबसे ज्यादा हिंसक रही है. हर रोज भारतीय और पाकिस्तानी सेना के बीच गोलीबारी हो रही है और ये स्थितियां कभी भी गंभीर युद्ध की ओर ढकेल सकती हैं. इसके अलावा भारत की चीन के साथ करीब 4,000 किमी लंबी सीमा रेखा है और 2017 में इस सीमा रेखा पर 72 दिनों तक टकराव की स्थिति बनी रही थी. भले ही मामला सुलझ गया हो, लेकिन भारतीय सेना की बदहाल स्थिति से चीन भी नावाकिफ तो नहीं ही होगा. ऐसे में जंग की स्थिति में भारत को होने वाले बड़े नुकसान से इन्कार नहीं किया जा सकता है.
सबसे बुरी स्थिति 1962 में थी, आज भी कमोबेश ऐसा ही है

1962 में चीन के साथ हुई लड़ाई में मिली हार का दंश भारत आज भी झेल रहा है.
1962 में जब भारत और चीन के बीच लड़ाई हुई थी, तो भारत को उस वक्त हार का मुंह देखना पड़ा था. वजह ये थी कि उस वक्त भी भारतीय सेना के पास हथियारों की कमी थी और चीन की सेना हम पर भारी पड़ गई थी. आज भी कुछ ऐसी ही स्थिति है. भारत फिलहाल सेना पर करीब 3 हजार अरब रुपये खर्च करता है. वहीं अगर चीन से तुलना की जाए, तो चीन करीब 12 हजार अरब रुपये का खर्च अपनी सेना पर करता है. आंकड़े खुद ही गवाही दे रहे हैं कि भारत और चीन की सेना के बीच कितना बड़ा फासला है.
चार साल में और बढ़ गई बदहाली

तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल वीके सिंह (कुर्सी पर बैठे हुए) की लिखी चिट्ठी मीडिया में लीक हो गई थी.
2012 में सेना प्रमुख थे जनरल वीके सिंह. उन्होंने सरकार को चिट्ठी लिखकर सेना की बदहाली के बारे में बताया था. उनकी ये चिट्ठी मीडिया में लीक हो गई थी. इसमें सामने आया था कि सरकार सेना के प्रति उदासीन हो गई है. भारतीय सेना में टैंक हैं, लेकिन उसमें गोला-बारूद नहीं है. एयर डिफेंस सिस्टम है लेकिन उसमें मिसाइल नहीं हैं. सेना के जवान हैं, लेकिन उनके पास एंटी टैंक मिसाइल और ज़रूरी हथियार भी नहीं हैं. मीडिया में ये खत सामने आने के बाद हंगामा हो गया था. इसके बाद चिट्ठी लिखने जैसी परंपरा को खत्म कर दिया गया. सरकार ने तय किया कि सेना के उपाध्यक्ष रक्षा के लिए बनी संसदीय समिति के सामने हर साल पेश होंगे और सेना की स्थितियां बताएंगे. ऐसा इसलिए था, क्योंकि सेना के जंग की तैयारी और उसके लिए ज़रूरी हथियारों की खरीद की जिम्मेदारी सेना के उपाध्यक्ष पर ही है. 2015 में सेना के उपाध्यक्ष थे लेफ्टिनेंट जनरल फिलिप कंबोज. जब वो संसदीय समिति के सामने पेश हुए थे, तो उन्होंने बताया था कि सेना के 50 फीसदी हथियार पुराने हो चुके हैं और उनसे जंग नहीं लड़ी जा सकती है. अब जब इस साल लेफ्टिनेंट जनरल शरत चंद संसदीय समिति के सामने पेश हुए, तो ये आंकड़ा बढ़कर 65 फीसदी हो गया है.
ज़रूरत हथियारों की है, जिसके लिए चाहिए 46,000 करोड़ रुपये
जब सेना खुद ही मान चुकी है कि उसके 65 फीसदी हथियार पुराने पड़ चुके हैं, तो जाहिर है उन्हें नए सिरे से खरीदना पड़ेगा. और ये वो हथियार हैं, जिनके बिना सेना एक दिन भी नहीं चल सकती है. इसके अलावा और भी बेहद ज़रूरी हथियार हैं, जिनकी खरीद की जानी है.
1. गोला-बारूद इसके लिए 9980 करोड़ रुपये की ज़रूरत है. इस गोला-बारूद में तोपखाने, रॉकेट लॉन्चर और टैंक भी शामिल हैं.
2. हेलिकॉप्टर सेना को अपने पुराने हो चुके चेतक और चीता हेलिकॉप्टर को बदलना है और उसकी जगह उसे रूसी हेलिकॉप्टर कामोव केए 226 टी की ज़रूरत है. इसके लिए 6600 करोड़ रुपये चाहिए. इनमें से 60 हेलिकॉप्टर रूस से आने हैं, बाकि 140 हेलिकॉप्टर देश में बनने हैं.
3. एंटी-टैंक मिसाइल इजराइल से 1600 स्पाइक मिसाइल लांचर और 8356 लांचर लेने हैं. लेकिन ये सौदा जनवरी 2018 में रद हो गया है. नए सिरे से सौदा हुआ है और इसके लिए 3186 करोड़ रुपये की ज़रूरत है.
4.जमीन से हवा में मार करने वाली मिसाइल सेना को हवाई हमले से बचाने के लिए ऐसी मिसाइलों की ज़रूरत है. इसके लिए 4500 करोड़ रुपये चाहिए.
5.एंटी एयर क्राफ्ट मिसाइलें इसके लिए 6140 करोड़ रुपये भारतीय सेना को चाहिए. इनमें मिसाइलों के अलावा लॉन्चर भी शामिल हैं.
6.छोटे हथियार तीनों सेना के छोटे हथियार भी पुराने पड़ चुके हैं. इसके लिए 16,000 करोड़ रुपये चाहिए. इनमें स्नाइपर राइफल, लाइट मशीनगन, असॉल्ट राइफल और कारबाइनें शामिल हैं.
नई बटालियन का गठन कर रही है सेना

बर्फीले पहाड़ों पर लड़ाई के लिए सेना एक नई बटालियन तैयार कर रही है.
भारतीय सेना एक नए माउंटेन स्ट्राइक कोर का गठन कर रही है. इसके लिए 88 हजार सैनिकों की भर्ती की जानी है. इसकी वजह से कुल 64 हजार करोड़ रुपये का खर्च बढ़ेगा. इसका मकसद चीन को मुंहतोड़ जवाब देना है, लेकिन पैसे की कमी की वजह से इस स्ट्राइक कोर का गठन उन्हीं हथियारों के बल पर किया जा रहा है, जिन्हें सेना पुराना और खराब बता चुकी है.
कुल मिलाकर भारतीय सेना के लिहाज से स्थितियां पूरी तरह से ठीक नहीं हैं. पहले सेना के लिए जो हथियार और दूसरी चीजें बाहर से खरीदी जाती थीं, उनपर टैक्स नहीं लगता था. जीएसटी के लागू होने के बाद सेना के लिए हो रही खरीद पर भी टैक्स लगने लगा है. इसके अलावा सेल्स टैक्स भी लगा दिया गया है. नतीजा ये है कि जिस मद में पहले सरकार के 100 रुपये खर्च होते थे, अब वहां पर 115 रुपये खर्च होने लगे हैं. अगर 100 रुपये में 15 की बढ़ोतरी दिख रही है तो सोचिए सेना का कुल खर्च तो करीब 22 हजार करोड़ रुपये है. इसकी 15 फीसदी रकम करीब 3300 करोड़ रुपये होगी. और इस रकम से सरकार सेना के लिए कई ज़रूरी चीजें खरीद सकती थी.
(इस्तेमाल किए कई आंकड़े इंडिया टुडे के 16 मई 2018 के अंक से लिए गए हैं.)