इस इंसान के सिर पर छह करोड़, 90 लाख 80 हज़ार रुपये का इनाम था. इनाम रखा था अमेरिका ने.
इनाम उसे मिलना था, जो हम्ज़ा के ठिकाने की जानकारी दे. इनाम की वजह ये कि हम्ज़ा बेटा था ओसामा का. अल-क़ायदा में अपने पिता का वारिस. 2017 में अमेरिका ने उसे आतंकियों की अपनी लिस्ट में जोड़ा था. उसने अमेरिका समेत कई पश्चिमी देशों में हमले की अपील करते हुए वीडियो जारी किए थे. कहा था कि जिहादी उसके पिता ओसामा बिन लादेन को मारे जाने का बदला लें. उसने सऊदी अरब के लोगों को बगावत के लिए भी कहा था. इसके बाद सऊदी ने हम्ज़ा की नागरिकता छीन ली थी. अब ख़बर आई है कि हम्ज़ा मारा गया.

अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने जनवरी 2017 में हम्ज़ा को अपने ग्लोबल आतंकियों की लिस्ट में डाला था. ये FBI की वेबसाइट पर उसके बारे में दी गई जानकारी का स्क्रीनशॉट है.
पहले ही मारा गया था, बताया अब गया है मौत कब हुई, कहां हुई, किस महीने-किस साल हुई, ये नहीं बताया गया है. न्यू यॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन के शुरुआती दो सालों में ही हम्ज़ा मारा गया था. ट्रंप ने जनवरी 2017 में राष्ट्रपति का कार्यभार संभाला था. फरवरी 2019 में अमेरिकी स्टेट डिपार्टमेंट ने हम्ज़ा पर इनाम रखा. बकौल NYT, हम्ज़ा पर ये इनाम रखने से पहले ही वो मारा जा चुका था. मगर तब तक अमेरिकी सेना और खुफिया एजेंसियों ने इसकी पुष्टि नहीं की थी. हम्ज़ा का मारा जाना अमेरिका के लिए एक सांकेतिक जीत से ज्यादा कुछ नहीं. क्योंकि वो अब तक इतना ख़तरनाक नहीं हो पाया था कि अमेरिका को नुकसान पहुंचा सके. न ही अल-क़ायदा ही इतना सक्रिय रह गया था. मगर ख़बरें ऐसी हैं कि हम्ज़ा को अल-क़ायदा की बागडोर संभालने के लिए तैयार किया जा रहा था. उसकी लीडरशिप में ये आतंकवादी संगठन फिर से पहले की तरह ख़तरनाक हो सकेगा. ओसामा का बेटा होने की वजह से वो अंतरराष्ट्रीय जिहादी संगठनों को एकजुट करने की भूमिका भी निभा सकता था. अब चूंकि हम्ज़ा मारा जा चुका है, तो अल-क़ायदा की ये प्लानिंग भी नाकाम रही. अमेरिका की जीत बस इतनी ही है.
FBI के पूर्व एजेंट अली सूफान ने अल-कायदा पर काफी काम किया है. उन्होंने हम्ज़ा की एक लंबी-चौड़ी प्रोफाइल भी लिखी.
हमारी ये हम्ज़ा की प्रोफाइल भी अली के लिखे पर लिखी गई है.
ओसामा और ख़ैरिया की शादी ओसामा अपनी सारी बीवियों से प्यार करता था. मगर पसंदीदा थी ख़ैरिया. पेशे से बाल मनोवैज्ञानिक. ओसामा से उसकी मुलाकात यूं हुई कि लादेन की पहली बीवी नजवा का बेटा साद दिमागी तौर पर थोड़ा बीमार था. उसे इलाज के लिए ख़ैरिया के क्लिनिक ले जाया गया. ख़ैरिया पतली-दुबली. 34-35 साल की कुवांरी. ओसामा उम्र में ख़ैरिया से सात बरस छोटा था. बेहद अमीर था. अफ़गानिस्तान में सोवियत के साथ चल रही जंग में मुजाहिदीनों के लिए फंड जमा करके उसने नाम भी कमा लिया था. और, उसकी दो शादियां भी हो चुकी थीं. तो यूं हुआ कि ओसामा की पहली नजवा ने अपने शौहर को शह दी. कहा, वो ख़ैरिया की ओर बढ़े. नजवा को लगा था कि अगर ख़ैरिया की शादी हो गई ओसामा से, तो वो परिवार में ही आ जाएगी. फिर चाइल्ड साइकोलॉजिस्ट की उसकी ट्रेनिंग साद को चंगा करने में मददगार साबित होगी. ओसामा और ख़ैरिया का निकाह हो गया.
ख़ैरिया बस ओसामा की बीवी नहीं थी. उसकी सलाहकार भी थी अल-कायदा की लीडरशिप हो या परिवार, ख़ैरिया की बुद्धि हर जगह सराही जाती. वो शांत थी, प्रेशर में भी हिम्मत नहीं हारती थी. सब उसकी बड़ी कद्र करते थे. 1991 में ओसामा ने अल-क़ायदा का ठिकाना बदलकर सूडान कर दिया. यहां ख़ैरिया ने अल-क़ायदा के लोगों की बीवियों और बच्चों को इस्लाम पढ़ाना शुरू किया. संगठन के स्तर पर भी उसका बहुत योगदान था. फिर क्या हुआ कि अल-क़ायदा को सूडान से भी निकाल दिया गया. ओसामा अपना लाव-लश्कर लेकर पहुंचा अफगानिस्तान. तब हम्ज़ा रहा होगा करीब सात बरस का. अल-क़ायदा को पनाह मिल गई. तालिबान ने भी उन्हें अपना लिया.

न्यू यॉर्क टाइम्स के मुताबिक, ट्रंप प्रशासन के शुरुआती दो सालों के दरम्यान ही मार दिया जा चुका था हम्ज़ा. जनवरी 2019 में ट्रंप ने बतौर राष्ट्रपति अपने दो साल पूरे किए (फोटो: FBI)
बचपन से ही हम्ज़ा जिहादी वीडियो में आने लगा यहां ओसामा ने रहने के लिए चुनी कंधार के बाहर का तरनाक फार्म्स. एकदम अलग-थलग. ओसामा की भागम-भाग और खतरे वाली ज़िंदगी में उसकी पहली दो बीवियों- खादिज़ा और नजवा ने उसका साथ छोड़ दिया. मगर ख़ैरिया और सिहम उसके साथ रहीं. हर हाल में. यहीं अफगानिस्तान में हम्ज़ा अपने पिता का फेवरिट हो गया. वो नाबालिग ही था, तब से अपने पिता के साथ जिहाद वाले वीडियो में दिखने लगा. वो भड़काऊ और हिंसक अपीलें करता. उसके भाषण देने की शैली लोगों को प्रभावित करती.
9/11 से एक दिन पहले... 10 सितंबर, 2001. अगले दिन ओसामा और उसका आतंकवादी संगठन अपने सबसे बड़े हमले को अंजाम देने वाले थे. वर्ल्ड ट्रेड टावर पर अटैक. इसके बाद वो अमेरिका के टारगेट पर आने वाले थे. ये सब ध्यान में रखकर ओसामा खुद तोरा बोरा की पहाड़ियों में चला गया. और बीवियों-बच्चों को उसने भेज दिया पाकिस्तान. ओसामा को लगा था, मुजाहिदीन जंग के समय जैसे पाकिस्तान में पनाह मिली थी वैसा ही अब भी होगा. मगर परवेज मुर्शरफ़ अमेरिका के साथ थे. ओसामा के परिवार को खतरा था. सो उसने परिवार को ईरान भेजने का फैसला किया.
ओसामा और हम्ज़ा की आखिरी मुलाकात 2001 के नवंबर महीने की शुरुआत थी. अफ़गानिस्तान के जलालाबाद से दक्षिण की एक पहाड़ी. एक पहाड़ी की ढलान. वहां एक जैतून के पेड़ की छांव में ओसामा ने अपने तीन जवान बेटों- बकर, खालिद और हम्ज़ा- से विदा ली. विदाई के वक़्त तीनों को एक-एक मिसबाह (प्रार्थना में काम आने वाली वो मनके वाली माला) थमाई. कहा, अल्लाह में भरोसा रखना. बेटों को रोता छोड़कर फिर ओसामा तोरा बोरा की पहाड़ियों में गुम हो गया. बकर, ख़ालिद और हम्ज़ा- तीनों आगे चलकर तीन राह चले. बकर ने खुद को अल-क़ायदा से अलग कर लिया. कहीं दूर चला गया. ख़ालिद मई 2011 में एबटाबाद के उस कंपाउंड में अपने पिता की हिफ़ाजत करते हुए मारा गया. और तीसरा हम्ज़ा, जिसकी ये कहानी है. जो फिर कभी अपने पिता से नहीं मिल सका.
ईरान की कैद में रहे हम्ज़ा-ख़ैरिया ईरान शिया मुल्क और ओसामा कट्टर सुन्नी. लेकिन अमेरिका का दुश्मन होने की वजह से उस वक़्त ईरान इकलौती जगह थी दुनिया में जहां ओसामा का परिवार बच सकता था. बाकियों के साथ हम्ज़ा और उसकी मां भी यहीं भेजे गए. उन्हें लगा वो ईरान के बिना जाने उनके यहां छुप जाएंगे. यहां से डरा-सहमा हम्ज़ा अपने पिता को चिट्ठियां लिखा करता था. और जवाबी चिट्ठियों में ओसामा उसे भविष्य के लिए तैयार करता. उधर ईरान शुरू से जानता था कि ओसामा का परिवार और अल-क़ायदा के लोग उसकी मिट्टी पर हैं. 2003 में आकर ऐसा हुआ कि ईरान ने अल-क़ायदा के तमाम लोगों और ओसामा के परिवार को पकड़ लिया. अगले कुछ सालों तक हम्ज़ा अपनी मां के साथ तेहरान में रहा, ईरानी सेना की निगरानी में. ईरान के लिए ये एक गारंटी थी कि अल-क़ायदा उसके ऊपर हमला नहीं करेगा.

ये हम्ज़ा के निकाह वाले समय की तस्वीर है. 2017 में CIA ने हम्ज़ा के शादी वाले दिन का वीडियो जारी किया था. उसी की स्टिल फोटो है ये (फोटो: AP)
एक-दूसरे के कैदियों की हेरा-फेरी हुई और हम्ज़ा रिहा हो पाया यहां ख़ैरिया ने हम्ज़ा को सारी मजहबी तालीम दिलवाई. यहीं पर हम्ज़ा की शादी हुई. बच्चे भी हुए. हम्ज़ा अपना सबकुछ देकर बस किसी तरह पिता के साथ होना चाहता था. बीवी-बच्चे, कोई भी चीज उसके हिंसक इरादे बदल नहीं पाई. 2010 में आकर ओसामा को ईरान की गिरफ़्त से अपने लोगों को आज़ाद करवाने का जरिया मिला. पाकिस्तानी कबीलों की मदद से उनके हाथ लगा ईरान का एक डिप्लोमैट. ईरान और ओसामा के बीच डील हुई. मिडिएटर बना हक्कानी नेटवर्क. अगस्त 2010 में ईरानी डिप्लोमैट के बदले हम्ज़ा, उसकी मां, बीवी और बच्चे रिहा कर दिए गए. ये सब के सब वज़ीरिस्तान आ गए. जहां अल-कायदा के लोगों की हिफ़ाजत करते थे पाकिस्तानी आतंकवादी संगठन.
हम्ज़ा के एबटाबाद पहुंचने से पहले ओसामा मारा गया इस समय तक ओसामा का परिवार काफी बिखर गया था. कोई सऊदी, कोई सीरिया, कोई क़तर. हम्ज़ा को क़तर भेजना चाहता था ओसामा. ओसामा ने उसे अल-क़ायदा का प्रवक्ता बनाने का सोचा था. मगर फिर हम्ज़ा वज़ीरिस्तान बुला लिया गया. ओसामा का एक बेटा साद अमेरिकी मिसाइल के हमले में मारा गया था. हम्ज़ा को एबटाबाद बुलाने की प्लानिंग हुई. मगर इससे पहले कि वो वहां पहुंच पाता, मई 2011 में ओसामा मारा गया.
ओसामा की मौत के चार साल तक हम्ज़ा की ख़बर नहीं आई हम्ज़ा की मां को पाकिस्तान ने गिरफ़्तार कर लिया. वहां से उसे सऊदी भेज दिया गया. मगर हम्ज़ा की कोई खबर नहीं थी. चार साल तक वो लापता रहा. इस बीच अल जवाहिरी ने संभाली अल-क़ायदा की कमान. फिर अगस्त 2015 में आया हम्ज़ा का एक ऑडियो मेसेज. जवाहिरी के साथ. इसमें हम्ज़ा ने अपने पिता और भाई ख़ालिद के 'शहादत' की बात की. जिहादियों को एकजुट होने को कहा. 2016 में भी उसके दो-तीन ऐसे ही ऑडियो आए. फिर जनवरी 2017 में US स्टेट डिपार्टमेंट ने हम्ज़ा को आतंकियों की अपनी लिस्ट में डाल दिया. इसके बाद भी कुछ ऑडियो मेसेज आए उसके. रूसी, अमेरिकी, यहूदी ठिकानों पर हमले की अपील करता. जेरुसलेम को हासिल करने की बात करता.
दूसरा ओसामा बनने का सपना पाले मारा गया हम्ज़ा अल-क़ायदा दुनिया के सबसे ख़तरनाक आतंकवादी संगठनों में था. हज़ारों जिहादी थे इसमें. पैसा भी अथाह था. ख़बर आई थी कि इस्लामिक स्टेट जब सुर्खियां बना रहा था, तब अल-क़ायदा ताकत बटोर रहा था. इसने कई जगहों पर स्थानीय जिहादी संगठनों के साथ हाथ मिलाकर खुद को पसार लिया है. अफ्रीका, यमन, दक्षिण एशिया, सीरिया, मिस्त्र, इन सारी जगहों पर. जैसे- अल कायदा इन इंडियन सबकॉन्टिनेंट. जो भारत, अफगानिस्तान, पाकिस्तान, म्यांमार और बांग्लादेश में सक्रिय है. हम्ज़ा में ये संगठन ओसामा जैसी लीडरशिप देख रहा था. जो सबको साथ लेकर चल सके. उसके पास ओसामा का नाम था. हम्ज़ा का मारा जाना यकीनन अल-क़ायदा के लिए बड़ी चोट है. एक और भी चीज है. अगर हम्ज़ा ओसामा का बेटा नहीं होता. अगर उसे वैसी परवरिश नहीं मिली होती, तो वो शायद ऐसा नहीं होता. कितने मिसकैरिज़ के बाद जाकर ख़ैरिया को हम्ज़ा पैदा हुआ. उसे आतंकवाद की राह पर शह देने वाली मां ज़िंदा है, बेटा मर गया.
शंघाई सहयोग संगठन: पीएम मोदी ने इमरान खान के सामने ही पाकिस्तान को खरी खोटी सुना दी