क्रांति के जरिए अपने देश क्यूबा को खड़ा करने वाला एक सिपाही फिदेल कास्त्रो अब नहीं रहा. लंबे समय से आंतों की बीमारी से जूझ रहे कास्त्रो का 90 साल की उम्र में निधन हो गया. उनके छोटे भाई राउल कास्त्रो के हवाले से क्यूबा के सरकारी चैनल ने इसकी खबर दी.
फिदेल कास्त्रो के भारत से जुड़े 3 शानदार किस्से
भारत से टनों गेहूं गया था, जब क्यूबा दिक्कत में था.

क्यूबा में कम्युनिस्ट क्रांति लाने वाले फिदेल तानाशाह फुलखेंशियो बतिस्ता को सत्ता से हटाकर देश के हीरो बने थे. इसके बाद वो 40 सालों से ज्यादा वक्त तक अमेरिका और कैपिटलिज्म से लड़ते रहे. बताते हैं कि CIA ने 638 बार उन्हें मारने की कोशिश की, लेकिन हमेशा नाकाम रहे. फिदेल की पूरी जिंदगी बहुत ही करिश्माई और आकर्षक है. एक शख्स, जिसे बोलने में महारत थी. वो घंटों लंबे भाषण देता था. उसके इंटरव्यू लेने वाले खुद को फंसा हुआ महसूस करते थे. वो बहस को अपने पक्ष में खींचकर ही दम लेता था. उस पर कई लड़कियां जान छिड़कती थीं. वो किसी का अहसान कभी नहीं भूलता था.
उन्हीं फिदेल कास्त्रो से भारत की भी कुछ यादें जुड़ी हैं. आइए उन्हें साझा करते हैं:
1. जब युवा फिदेल से मिलने पहुंचे नेहरू
1960 में संयुक्त राष्ट्र संघ अपनी 15वीं एनिवर्सरी मना रहा था. इवेंट रखा गया था अमेरिका के न्यूयॉर्क में, जहां दुनियाभर के दिग्गज नेताओं का जमावड़ा लगा था. कुछ अमेरिका को पसंद करने वाले थे, कुछ नापसंद करने वाले. फिदेल कास्त्रो भी न्यूयॉर्क पहुंचे, लेकिन उनके और अमेरिका के रिश्ते इतने तल्ख थे कि न्यूयॉर्क का कोई भी होटल उन्हें छत देने को राजी नहीं था.
फिदेल ने एक दिन तो क्यूबाई दूतावास में गुजार लिया, लेकिन अगले दिन उन्होंने संयुक्त राष्ट्र के जनरल सेक्रेटरी डैग हैमलशोल्ड से कहा कि अगर उनके और उनके प्रतिनिधि मंडल के रहने का इंतजाम नहीं किया गया, तो वो UN के ऑफिस के बाहर तंबू गाड़ लेंगे. खैर, इसकी नौबत नहीं आई. टेरेसा होटल उन्हें जगह देने को राजी हो गया.
इसके बाद होटल में जो शख्स सबसे पहले फिदेल कास्त्रो से मिलने गया था, वो जवाहर लाल नेहरू थे. इस घटना का जिक्र भारत के पूर्व विदेश मंत्री नटवर सिंह ने BBC को दिए एक इंटरव्यू में किया था. नटवर भी वहां कास्त्रो से मिले थे. नटवर के मुताबिक कास्त्रो ने कहा था, 'मेरी उम्र उस समय 34 साल थी. मुझे अंतरराष्ट्रीय राजनीति का कोई तजुर्बा नहीं था. उस समय नेहरू ने मेरा हौसला बढ़ाया था. उनकी वजह से मुझमें गजब का कॉन्फिडेंस पैदा हुआ था. मैं उनका ये अहसान नहीं भूल सकता.'
2. फिदेल ने बताया उनकी बंदूक में गोली नहीं होती है
जवानी के दिनों में फिदेल हमेशा सैनिक वर्दी में रहते थे. 1993 में भारत के कम्युनिस्ट नेता ज्योति बसु और सीताराम येचुरी उनसे मिलने क्यूबा गए थे. कास्त्रो से मुलाकात के बाद अगले दिन दोनों भारत लौटने के लिए हवाना एयरपोर्ट पहुंचे. वो वहां VIP लाउंज में बैठे हुए थे, तभी अचानक लाउंज खाली करा दिया गया. बसु और येचुरी को समझ में नहीं आया कि ऐसा क्यों किया गया. तभी उन्होंने देखा कि फिदेल कास्त्रो चले आ रहे हैं. फिदेल दोनों को विदा करने आए थे.
उस समय येचुरी के कंधे पर एक बैग था. फिदेल ने पूछा उसमें क्या है तो येचुरी बोले कि कुछ किताबें हैं. फिदेल ने कहा, 'तुम तो आ गए, लेकिन कोई सामने इस तरह बैग लेकर नहीं आता है. न जाने उसमें क्या हो. CIA कई बार मुझे मारने की कोशिश कर चुकी है.' येचुरी ने उनसे कहा कि उनके पास तो पिस्तौल है, तो उन्हें किस बात का डर. इस पर कास्त्रो बोले, 'ये राज समझ लो आज. ये पिस्तौल हमने अपने दुश्मनों को डराने के लिए रखी है, लेकिन इसमें कभी गोली नहीं होती है.'
कास्त्रो को नजदीकी लोगों में से एक मेक्सिको के महान लेखक गाब्रियल गार्सिया ने कास्त्रो के बारे में लिखा है कि वो 'मैं' के बजाय, हमेशा 'हम' कहकर बात करते थे.
3. कास्त्रो बोले, 'सुरजीत सोप और सुरजीत ब्रेड पर जिंदा रहेगा क्यूबा'
1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद क्यूबा की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गई थी, क्योंकि इस मामले में क्यूबा काफी हद तक सोवियत संघ पर निर्भर था. ऐसे में भारत के वामपंथी नेता हरकिशन सिंह सुरजीत ने पार्टी की तरफ से क्यूबा को 10 हजार टन गेहूं भिजवाने का फैसला लिया. इस किस्से के बारे में येचुरी बताते हैं, 'उस समय क्यूबा अपना सामान दुनिया में कहीं और नहीं भेज सकता था. न तो उनके पास खाने के लिए खाना था और न नहाने के लिए साबुन. ऐसे में कॉमरेड सुरजीत ने ऐलान किया कि वो क्यूबा को गेहूं भेजकर मदद करेंगे. उन्होंने लोगों से अनाज और पैसे जमा किए.'
ये वो वक्त था, जब भारत में नरसिम्हा राव की सरकार थी. येचुरी बताते हैं, 'सुरजीत के प्रयास से पंजाब की मंडियों से अनाज लेकर एक खास ट्रेन कोलकाता बंदरगाह भेजी गई थी. फिर वहां से 'कैरिबियन प्रिंसेस' नाम का शिप गेहूं लेकर क्यूबा गया था. सुरजीत ने नरसिम्हा राव से भी कहा था कि जब वो 10 हजार टन गेहूं भेज रहे हैं, तो सरकार को भी इतनी ही मदद करनी चाहिए. सरकार ने बात मानी और उतना ही गेहूं और भेजा. साथ में 10 हजार साबुन भी भेजे गए.'
जब वो शिप क्यूबा पहुंचा, तो फिदेल कास्त्रो खुद उसे रिसीव करने पहुंचे और उन्होंने खास तौर से सुरजीत को बुलवाया. उस वक्त कास्त्रो ने कहा था, 'सुरजीत सोप और सुरजीत ब्रेड से क्यूबा कुछ दिनों तक जिंदा रहेगा.'
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