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हमें इस नए तरह के पॉर्न की बेहद जरूरत है

दसियों ऐड, पॉपअप और वीडियो में नकलीपन, कब तक देखेंगे?

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एक औरत, चमकदार हील की सैंडल पहने हुए, लिपस्टिक लगाए, खूबसूरत सी लॉन्जरे पहने कामुकता के मद में चीखती है. वो बीच-बीच में कैमरे की ओर देखती है. वो आपको प्रेरित करती है कि आप ये कल्पना करें कि आप उसके साथ हैं. उसके साथ जो भी पुरुष है, वो पॉर्न देखने वाला व्यक्ति है. पॉर्न फिल्म में पुरुष एक्टर कौन है, ये ज़रूरी नहीं है. कई बार तो उसकी शक्ल तक नहीं दिखती. पूरा फोकस औरत पर होता है. ये पॉर्न शूट करने का ढंग है.
जब बात पॉर्न देखने वालों की होती है, हम ये मानकर चलते हैं कि पॉर्न का दर्शक पुरुष है, इसलिए भोग की वस्तु औरत का शरीर ही रहता है. भले वो स्ट्रेट पॉर्न हो या लेस्बियन.
जब हम कोई फिल्म देखते हैं या किताब पढ़ते हैं, उसे अच्छा कहने की एक वजह ये भी होती है कि वो असल जिंदगी के कितना करीब है. हम उससे कितना जुड़ाव महसूस कर रहे हैं. मगर मेनस्ट्रीम पॉर्न में ऐसा नहीं होता. वो हर सीन में आपको याद दिलाता रहेगा कि वो नकली है. इन फिल्मों में जो भी होता है, वो हमारी सेक्स लाइफ का सच नहीं होता. ये बात अलग है कि हम चाहते हैं हमारी सेक्स लाइफ पॉर्न जैसी ही हो.
पॉर्न हमें ये नहीं दिखाता कि हमारी सेक्स लाइफ कैसी है. पॉर्न हमें ये दिखाता है कि हमारी सेक्स लाइफ कैसी नहीं है. और जैसी नहीं है, जो हमें असल जीवन में नहीं मिलता, उसे पाने के लिए हम पॉर्न की तरफ भागते हैं. ये कहना जरूरी नहीं कि चाहते और न चाहते हुए भी इससे सीखते हैं.
हम सीखते हैं कि कैसे पॉर्न का मतलब केवल उभरे हुए स्तन और वैक्स किए हुए गुप्तांग हैं. हम सीखते हैं कि एक औरत का शरीर कैसा होना चाहिए. हम सीखते हैं कि एक पुरुष को कितना लंबा-चौड़ा होना चाहिए. और सबसे बड़ी बात, ये समझते हैं कि एक औरत को वही पुरुष संतुष्ट कर सकता है, जिसका लिंग किसी औसत लिंग से बेहद बड़ा हो. एक असली पुरुष वही है, जिसके लिंग में आधे घंटे तक तनाव बना रहे. जो न सिर्फ झूठ है, बल्कि लोगों को अप्राकृतिक ढंग से ऐसा करने के लिए उकसाता है.
और जरूरी नहीं कि मेनस्ट्रीम पॉर्न की वेबसाइट पर दिखने वाला हर वीडियो औरत की इजाज़त से बना हो. इन्हीं वेबसाइट पर छोटे क्लिप्स भी मिलते हैं, जो बिना औरत की इजाज़त के बनाए जाते हैं. मसलन, छिपकर शूट किया गया सेक्स, ट्रायल रूम, होटल रूम या लेडीज टॉयलेट में छिपे हुए कैमरों से बने वीडियो.
इसके अलावा बहुत सा मेनस्ट्रीम पॉर्न ये भी बताता है कि रेप नॉर्मल है. कि औरत को इसमें मज़ा आता है. और अगर उसके साथ ज़बरदस्ती करो, तो एक समय के बाद वो इसमें आनंद लेने लगती है. मगर क्या सचमुच औरतें रेप में आनंद लेती हैं? जिस तरह लड़कियों को बालों से पकड़ पुरुष इन फिल्मों में उनके मुंह में अपना लिंग डाल देते हैं, क्या असल जिंदगी में वो क्राइम नहीं है?
हम फिल्मों के पहले तमाम नोटिस देखते हैं कि ये स्टंट ट्राय न करें. धूम्रपान से कैंसर होता है. मगर पॉर्न फिल्मों के पहले ऐसा कोई नोटिस नहीं होता. जिन लोगों की सेक्स एजुकेशन पॉर्न फिल्मों के सहारे होती है, वो तो यही मानते हुए बड़े होंगे कि यही सच है. सेक्स का असल तरीका यही है.

मगर क्या पॉर्न को बदला नहीं जा सकता है?

जैसे फ़िल्में बदल रही हैं, वैसे ही पॉर्न भी बदल सकता है. बदल रहा है. कहने वाले इसे 'एथिकल' पॉर्न भी कहते हैं. यानी वो पॉर्न, जिसमें किसी भी व्यक्ति के अधिकारों के हनन को न दिखाया जाए. इसे फेमिनिस्ट पॉर्न भी कहते हैं, क्योंकि ये औरतों के शोषण को बढ़ावा नहीं देता. ये पुरुष और पुरुष, स्त्री और स्त्री, समलैंगिकों के बीच की बराबरी पर आधारित होता है. इसमें शोषण नहीं होता, टॉर्चर नहीं होता. इसमें दोनों मॉडल्स के बीच सहमति होती है. ये पॉर्न अधिकतर तस्वीरों में दिखता है.
ऐसी ही एक पॉर्न मैगज़ीन शुरू करने वाली औरत हैं मैकेंज़ी पेक. मैकेंज़ी ने अंग्रेजी अखबार द इंडिपेंडेंट से बातचीत में मेनस्ट्रीम पॉर्न के बारे में अपने मन की बात कही.
'पॉर्न इंडस्ट्री की कमी ये है कि ये अधिकतर लोगों को संतुष्ट नहीं कर पाता है. दुनिया में जितने तरह के शरीर होते हैं, जितनी तरह की शारीरिक इच्छाएं होती हैं, वो मेनस्ट्रीम पॉर्न में दिखता ही नहीं है. लोग एक ही तरह के पॉर्न से बोर हो चुके हैं. वो कुछ नया देखना चाहते हैं. एक पॉर्न वीडियो, जो नकली न हो. जिसमें आत्मा हो. और वो सब कुछ हो, जो सेक्स के दौरान हम करते हैं.
मेनस्ट्रीम पॉर्न इंटरनेट पर जीता है. इंटरनेट यूजर परेशान हो जाता है, क्योंकि किसी भी पॉर्न वेबसाइट को खोलते ही दसियों ऐड और पॉपअप खुल जाते हैं. हर कोई वहां पैसे कमाना चाहता है. यूजर को लुभाना चाहता है. यूजर को शोषण करने वाला कंटेंट दिखाया जाता है. कई बार ये ओरिजिनल नहीं होता, बल्कि दूसरी वेबसाइट से चुराया हुआ होता है. ऐसे में प्रिंट में दिया हुआ पॉर्न यूजर को भटकने के बचाता है. यूजर निराश नहीं होता.'
ये पॉर्न हमारी असल जिंदगी से दूर नहीं होता है. इनके मॉडल किसी एक 'बॉडी टाइप' के नहीं होते. ये हमें नहीं बताते कि कामुकता क्या होती है. हमारे सामने वो दुनिया नहीं पेश करते, जो सच्चाई से दूर हो.
मेनस्ट्रीम पॉर्न का दूसरा नाम ही शोषण है. चाहे वो यूजर का हो या स्क्रीन पर दिखाया जाने वाला वीडियो हो. चूंकि इस तरह के पॉर्न के हम इतने आदी हैं, हम समझ नहीं पाते कि इसमें कुछ गलत हो रहा है. सेक्स के दौरान शोषण होना हमारे लिए आम है. सेक्स के दौरान पुरुष का 'डॉमिनेटिंग' पोजीशन में होना भी आम है. सेक्स मूल्यतः पुरुष का काम है और औरत उसमें प्रयोग में लाई जाने वाली एक वस्तु है, ये आम सोच है. इसी सोच से हमारी गालियां भी उपजी हैं, जो मां और बहन के साथ संबंध बनाने की बात करती हैं.
पॉर्न सुख देता है. और शायद ही इंटरनेट यूज करने वाला कोई ऐसा व्यक्ति हो, जिसने किसी न किसी रूप में पोर्नोग्राफी को ग्रहण न किया हो. दुनिया की सबसे पॉपुलर इंडस्ट्री में से एक पॉर्न में अगर इस तरह के बदलाव आ रहे हैं, तो काबिल-ए-तारीफ है.


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