सर, हैपी न्यू ईयर.ठीक 22 सेकेंड बाद, इससे पहले कि घड़ी अगला चक्कर पूरा कर पाती, धड़ाम की आवाज आई. एंपरर अशोका अरब सागर की ओर गिर रहा था. उड़ान भरने के महज तीन मिनट के अंदर. 231 फुट का वो हवाई जहाज 213 लोगों के साथ समूचा समंदर के अंदर समा गया. 190 यात्री, 20 फ्लाइट अटेंडेंट, दो पायलट और एक फ्लाइट इंजिनियर. सभी को समंदर ने भकोस लिया. कोई जिंदा नहीं बचा. इसमें कुल 340 यात्री बैठ सकते थे. वो तो अच्छा हुआ कि प्लेन के उड़ने में देरी होने की वजह से कई यात्रियों ने टिकट कैंसल करवा लिया था. 18 अप्रैल, 1971 को इसने बंबई में अपनी पहली उड़ान भरी थी. 1 जनवरी, 1978 को बंबई के ही आसमान ने इसे आखिरी बार उड़ते हुए देखा.

एयर इंडिया ने पूरी एक एंपरर सीरीज निकाली थी. एंपरर अशोका ने 18 अप्रैल, 1971 को बंबई में अपनी पहली उड़ान भरी थी (फोटो: एयर इंडिया कलेक्टर)
13 घंटे देरी से उड़ा था विमान इस फ्लाइट को सुबह 7:15 मिनट पर दुबई के लिए रवाना होना था. लेकिन वो 13 घंटे देरी से रवाना हुआ. एयर इंडिया ने अपने यात्रियों से देरी के लिए माफी मांगी थी. बताया गया था कि विमान में कुछ तकनीकी खराबी आ गई थी. एक दिन पहले यानी 31 दिसंबर, 1977 को एक चिड़िया विमान के पंख से टकरा गई थी. एयर इंडिया के मैनेजिंग डायरेक्टर थे अप्पूस्वामी. उनके मुताबिक सब चाक-चौबंद कर दिया गया था. सब चाक-चौबंद था, फिर भी इतना बड़ा हादसा? वो भी 747 बोइंग विमान में. चार इंजनों वाले इस विमान के सेफ्टी फीचर्स दुनिया में मशहूर थे. किसी इमर्जेंसी की हालत में अगर उसके दो इंजन बंद भी हो जाते, तो बस बाकी बचे दो इंजनों के सहारे ही ये सही-सलामत जमीन पर लैंड कर सकता था. अमेरिका में बना ये एयरक्राफ्ट पूरी दुनिया में 'जंबो जेट' के नाम से मशहूर था.

ये एंपरर अशोका की ऊपरी मंजिल के लाउंज की तस्वीर है. हर चीज एकदम 'महाराजा' मूड से कदमताल करती लगाई गई थी (फोटो: एयर इंडिया कलेक्टर)
एयर इंडिया इसे अपना 'आसमानी महल' कहती थी ये बहुत आलीशान विमान था. विमान के अंदर की दीवारों पर भारतीय शैली में बनी एक से एक मूर्तियां लगी थीं. ऊपर की मंजिल को एकदम राजसी बनाया गया था. फर्स्ट क्लास लाउंज, बढ़िया कालीन, सोफा, बार सब था. विमान के अलग-अलग हिस्सों में अलग-अलग तरह के रंगीन वॉलपेपर. कहीं फूलों की थीम, कहीं जानवर-पक्षी. एयर इंडिया का मेस्कट था 'महाराजा'. थोड़ा रॉयल अंदाज इस 'महाराजा' से आता था और बाकी का एंपेरर अशोका की ठाठ-बाट से. एयर इंडिया इसे 'आसमानी महल' कहा करती थी. इसके लिए एयर होस्टेस भी खास चुनकर रखी जाती थीं. एयर होस्टेस चमचमाते घाघरा-चोली पहनकर यात्रियों को सर्व करतीं. इसका क्रैश होना बहुत बड़ी खबर थी. बुरी खबर. भारतीय नौसेना और वायु सेना तुरंत बचाव में लग गई. मगर बचाने को बचा कौन था? नाउम्मीद बचाव दल घंटों तक हाथ-पैर मारता रहा. आखिर में जब एक भी जिंदा शख्स की थाह नहीं मिली, तो बचाव दल के अधिकारी ने मायूस होकर बयान दिया:
समंदर ने हवाई जहाज को समूचा निगल लिया. पूरे का पूरा 231 फुट का जहाज.पांच दिन खाक छानने के बाद मिला प्लेन का मलबा इस क्रैश को सबसे पहले देखा था इंडियन नेवी के कमांडर सईद ने. वो अरब सागर में ही पोस्टेड थे. जब उन्होंने देखा, तो एंपरर अशोका 45 डिग्री के ऐंगल पर सीधे समंदर की ओर बढ़ा आ रहा था. कोई आग नहीं लगी थी तब तक उसमें. विमान की हेडलाइट भी जल रही थी. फिर कुछ सेकंड ऐसे ही बीते और जोर की आवाज आई. और देखते ही देखते सब समंदर के पेट में. चार दिन तक बचाव दल को विमान का कोई निशान नहीं मिला. फिर पांचवें रोज, यानी 6 जनवरी को एक मछली पकड़ने वाली नाव ने प्लेन के पीछे का हिस्सा देखा. समंदर में दूर-दूर तक बिखर गया इसका मलबा. इसी दिन एंपरर अशोका का फ्लाइट डेटा रिकॉर्डर (FDR) भी नेवी के हाथ लग गया. इतने बेहतरीन विमान का ऐसा हश्र कैसे हुआ, ये जानने के लिए एयर इंडिया ने FDR को वॉशिंगटन भेजा. ताकि वहां के विशेषज्ञ ठीक-ठीक वजह बता सकें.

एंपरर अशोका के अंदर की दीवारों पर यूं ही अलग-अलग किस्म के चित्र बने थे. कई तरह की थीम थी. खास रंग, खास तस्वीरें. एयर इंडिया को अपनी इस फ्लीट पर बहुत गर्व था (फोटो: एयर इंडिया कलेक्टर)
किसी साजिश की वजह से हुआ हादसा? हवा में कई तरह की अफवाहें तैर रही थीं. इंटेलिजेंस ब्यूरो और नागरिक उड्डयन मंत्रालय भी जांच में जुटे थे. हाई कोर्ट के एक जज की देख-रेख में अलग जांच हो रही थी. करीब डेढ़ साल पहले ही 11 अक्टूबर, 1976 को इंडियन एयरलाइन्स के एक विमान 'कैरावल' में बड़ा हादसा हो चुका था. विमान में सवार सारे 90 लोग मारे गए थे. एयर इंडिया ने तब रोल्स रॉयल के इंजनों पर ठीकरा फोड़कर काम चला लिया था. मगर ये तो बोइंग था. वो भी बोइंग 747. सो लोग बातें करने लगे कि हो न हो, कोई साजिश हुई है.

बोइंग 747 उस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा और शानदार विमान था. इसके नाम पर स्पेशल डाक टिकट भी जारी हुए थे.
एक गिरफ्तार तांत्रिक बाबा के समर्थकों ने कराया क्रैश? बात आई कि 28 दिसंबर को एयर इंडिया के लंदन ऑफिस में एक धमकी वाला फोन भी आया था. फोन करने वाले ने विमान को बीच हवा में उड़ाने की धमकी दी थी. उस दौर में एक बाबा हुए थे. प्रभात रंजन सरकार. भारत के सातवें राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने इन्हें 'भारत के सबसे बड़े आधुनिक दार्शनिकों' में गिना था. ये जो ज्ञान देते थे, उसमें थोड़ा तंत्र था, थोड़ा वेद था. इनकी थिअरी थी- प्रोग्रेसिव यूटिलाइजेशन थिअरी. शॉर्ट में PROUT. आसान भाषा में, आनंद मार्गी. इनके भक्त खुद को प्राउटिस्ट कहा करते थे. 1971 में एक मर्डर केस में पी आर सरकार को अरेस्ट कर लिया गया. इनके भक्त और समर्थक इन्हें छुड़ाने की कोशिश कर रहे थे. तो बात चली कि एंपेरर अशोका के साथ हुए हादसे के पीछे इन्हीं लोगों का हाथ था. सुनने में आया कि धमकी मिलने के बाद एयर इंडिया का एक अधिकारी लंदन से भागा-भागा बंबई पहुंचा.

प्रभात रंजन सरकार. 1922 में पैदा हुए, 1990 में गुजर गए. 1971 में एक मर्डर केस के सिलसिले में इनको गिरफ्तार कर लिया गया. इनके समर्थकों का भी नाम जुड़ा एंपरर अशोका के साथ हुए हादसे के साथ.
126 यात्रियों ने उड़ान से पहले क्यों कैंसल कराया टिकट? मरने वालों में शामिल एक शख्स के रिश्तेदार ने बड़ी सनसनीखेज बात कही. इन जनाब का नाम था ललित कुमार भाटिया. इन्होंने दावा कि एंपरर अशोका से दुबई जा रहे करीब 126 लोगों ने अपना टिकट कैंसल करा दिया था. उन्हें खबर मिली थी कि प्लेन में बम है. एयर इंडिया ने बम वाली बात को खारिज कर दिया. टिकट कैंसल कराने वाली बात पर उसका जवाब था कि ऐसा तो होता ही रहता है. चूंकि विमान तय समय से 13 घंटे देरी के साथ रवाना हुआ था, तो शायद इसीलिए ज्यादा यात्रियों ने टिकट कैंसल करा लिया और किसी और एयरलाइन्स में टिकट ले लिया. इसकी भी काट आई. जानकारों ने कहा कि मुंबई-दुबई बड़ा व्यस्त रूट है. आखिरी समय में इतने सारे लोगों को बुकिंग मिलना बड़ी मुश्किल बात थी. पुलिस ने इस अफवाह को बड़ी गंभीरता से लिया. जितने भी लोगों ने टिकट कैंसल कराया था, उन सबसे बात की. पूछा कि क्यों कराया कैंसल.

ये एंपरर अशोका के फर्स्ट क्लाब केबिन की तस्वीर है. एकदम हैंडपिक्ड लक्जरी. टिपिकल महाराजा स्टाइल. ये लक्जरी ही थी शायद जिसकी वजह से कहते हैं कि उस दौर में एयर इंडिया से सफर करने वालों को एयर इंडिया का चस्का लग जाता था.
हादसे की वजह: एटीट्यूड बिगड़ गया था प्लेन का इंसान का एटीट्यूड यानी बर्ताव खराब हो जाए, तो वो बर्बाद हो जाता है. ऐसे ही एंपरर अशोका के भी 'एटिट्यूड' में दिक्कत आ गई थी. विमान में एक चीज होती है- एटीट्यूड डायरेक्टर इंडिकेटर (ADI). ये मशीन पायलट को बताती है कि जमीन की सतह के हिसाब से एयरक्राफ्ट की पॉजिशन क्या है. माने, दाहिने है कि बायें है. सांताक्रूज एयरपोर्ट से उड़ान भरने के तुरंत बाद एंपरर अशोका का ये ADI बिगड़ गया. उसने पायलट को बताया कि विमान दाहिनी ओर झुका हुआ है. जबकि उस समय प्लेन सीधा था. ADI के सिग्नल को सही मानते हुए पायलट ने विमान को लेफ्ट झुका दिया. ताकि एयरक्राफ्ट बैलेंस हो जाए. चूंकि विमान पहले से ही सीधा उड़ रहा था, सो लेफ्ट झुकाए जाने पर गड़बड़ी हो गई. और इसी वजह से प्लेन क्रैश हुआ. ये बहुत बड़ा हादसा था.

23 जून, 1985 को तड़के सुबह एयर इंडिया का एक और विमान 'कनिष्क' टोरंटो से बंबई की उड़ान के दौरान क्रैश होकर अटलांटिक में गिर गया. सभी 329 यात्री और 22 क्रू सदस्य मारे गए. कोई नहीं बचा. इस प्लेन का नाम कुषाण वंश के महान राजा कनिष्क के नाम पर रखा गया था (फोटो: एयर इंडिया कलेक्टर)
इस हादसे से करीब एक साल पहले दो बोइंग 747 विमान भिड़े, 583 लोग मारे गए बोइंग 747 में हुआ ये इकलौता बड़ा हादसा नहीं था. 1977 के जाड़ों की बात है. रविवार की एक दोपहर स्पेन के टेनेराइफ नॉर्थ एयरपोर्ट (पहले इसका नाम लोस रोडोस था) के रनवे पर दो बोइंग 747 विमान आपस में भिड़ गए. इस हादसे में 583 लोग मारे गए थे. दोनों में से किसी भी एयरक्राफ्ट को उस समय उस एयरपोर्ट पर नहीं होना था. इनमें से एक विमान KLM का था और दूसरा Pan Am का. KLM का गठन 1919 में हुआ था. ये दुनिया की सबसे पुरानी लगातार ऑपरेटिंग एयरलाइन थी. अपने सुरक्षा इंतजामों और वक्त पर चलने की पाबंदी के लिए जाना जाता था KLM. उधर Pan Am विमानों की दुनिया की सबसे लीजेंडरी एयरलाइन मानी जाती थी. बोइंग 747 उस वक्त दुनिया का सबसे बड़ा विमान हुआ करता था. सबसे ग्लैमरस भी. और शायद ये ही वजह थी कि बोइंग 747 के साथ हादसे हो सकते हैं, ये आशंका भी सबको चौंका देती थी. एयर इंडिया की मैगजीन 'द मैजिक कार्पेट' ने एंपरर अशोक की पहली उड़ान का जिक्र कुछ इस तरह किया था:
लाल और सफेद रंग के अपने ट्रेडमार्क रंग में रंगा एंपरर अशोक जब पहली बार उड़ा था, तब वायुसेना के दो मिग-21 विमान उसे एस्कॉर्ट कर रहे थे. सांताक्रूज हवाई अड्डे पर उसे देखने के लिए हजारों लोग जुटे थे. कई जाने-माने लोग, आम आदमी. जैसे ही एंपरर अशोका लैंड होने लगा, उसके पीछे आ रहे दोनों मिग 21 विमानों ने हवा में कलाबाजी दिखाई और देखते ही देखते नीले आसमान में गायब हो गए.
कहां वो दिन और कहां इसके क्रैश होने की कहानी. कहावत है, धरती और आकाश के अंतर की. यहां भी दो चरमों का अंतर था. आसमान का खिलौना टूटकर समंदर में बिखर गया था. अरब सागर की तलहटी पर आज भी उसके कुछ पुर्जे पड़े होंगे. इधर-उधर. तितर-बितर. कुछ कहानियां ऐसे भी ढलती हैं.
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