ईरान (Iran) इस वक्त दोहरी मार झेल रहा है. एक तरफ इजरायल (Israel) 13 जून से लगातार हवाई हमले कर रहा है. दूसरी तरफ घरेलू मोर्चे पर भी हालात दुरुस्त नहीं हैं. 1979 की इस्लामिक क्रांति (Islamic Revolution) के बाद सत्ता पर काबिज इस्लामिक रिजीम तेजी से अलोकप्रिय हो रहा है. भ्रष्टाचार, चुनावों में धांधली और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने वाली नीतियों के चलते ईरान के भीतर कई फॉल्टलाइन्स बन गए हैं. ईरान में पैदा हुए फॉल्टलाइन्स के कारणों पर एक नजर डालते हैं.
इजरायल और अमेरिका तो हैं ही, ईरान अपने घर में भी कई मुश्किलों में फंसा है
Iran में Islamic Regime का सामाजिक आधार कमजोर होता दिख रहा है. भ्रष्टाचार, चुनावों में धांधली और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने वाली नीतियों के चलते ईरान के भीतर कई फॉल्टलाइन्स बन गए हैं.

इस्लामी क्रांति के बाद सत्ता में आए इस्लामिक रिजीम की लोकप्रियता तेजी से घट रही है. जनता के मूड का विश्लेषण करने वाली एक सर्वे एजेंसी GAMAAN ने साल 2022 में एक सर्वे कराया था. इस सर्वे में लगभग 90 फीसदी लोगों ने बताया कि वो ईरान में शासन प्रणाली के तौर पर इस्लामिक रिपब्लिक का समर्थन नहीं करते हैं. इसके अलावा 73 फीसदी लोगों ने राजनीति को धर्म से अलग रखने के पक्ष में अपनी राय दी.
ईरान में सभी विचारधारा के लोगों ने सेकुलर डेमोक्रेसी और मानवाधिकारों के सम्मान की मांग उठाई है. इसमें महिला अधिकार कार्यकर्ता, छात्र, मजदूर, जातीय अल्पसंख्यक (Ethnic Minorities), राजतंत्र के समर्थक, धर्मनिरपेक्ष राज्य के समर्थक और यहां तक कि कुछ पारंपरिक धार्मिक समूह भी शामिल हैं.
साल 2022-23 के 'वीमेन, लाइफ, फ्रीडम' के नारे के तहत महिलाओं ने बड़े पैमाने पर हिजाब कानून के विरोध में प्रदर्शन किया. यह प्रोटेस्ट मोरल पुलिस की हिरासत में महसा अमिनी की मौत के बाद शुरू हुआ था. अमिनी को ड्रेस कोड के उल्लंघन के लिए गिरफ्तार किया गया था.
इस्लामिक रिजीम को अनिवार्य हिजाब कानून को लागू करने में लगातार विरोध का सामना करना पड़ रहा है, क्योंकि लाखों महिलाएं इसका खुलेआम विरोध कर रही हैं. दूसरी तरफ ईरानी सरकार में शामिल कट्टरपंथी गुट अधिकारियों पर सख्ती से हिजाब कानून को लागू करने का दबाव बना रहे हैं. ईरान मानवाधिकार एनजीओ द्वारा प्रकाशित की गई एक रिपोर्ट के अनुसार साल 2024 में ईरानी जेलों में 31 महिलाओं को फांसी दी गई. यह आंकड़ा पिछले 17 सालों में सबसे ज्यादा है.
आर्थिक संकट और संस्थागत भ्रष्टाचारईरान को पिछले कुछ सालों से अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के चलते दिक्कत का सामना करना पड़ा है. लेकिन भ्रष्टाचार और खराब आर्थिक मैनेजमेंट ने देश को कहीं ज्यादा डैमेज किया है. साल 2023 में ईरान में मुद्रास्फीति की दर 40 फीसदी के ऊपर थी. वहीं युवा बेरोजगारी की दर 20 फीसदी से अधिक थी.
कई समुदायों को बिजली और पानी की दिक्कतों का सामना करना पड़ा. जिसके चलते विरोध प्रदर्शन भी हुए. ट्रेडिंग इकोनॉमिक्स के मुताबिक प्रमुख शहरों में बिजली की कटौती के चलते कारखाने ठप हो गए. और इससे बड़ी संख्या में लोग बेरोजगार हुए.
इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) ईरानी अर्थव्यवस्था के बड़े हिस्से को नियंत्रित करता है. इसमें बैंकिंग, तेल, कंस्ट्रक्शन और टेलीकॉम शामिल हैं. IRGC की जनता के प्रति कोई जवाबदेही नहीं है. इस मनमाना एकाधिकार ने ईरान के प्राइवेट सेक्टर को लगभग खत्म कर दिया है. और एक बेहद भ्रष्ट आर्थिक व्यवस्था का निर्माण किया है.
हाल के महीनों में, ईरानी सरकारी मीडिया ने देश भर में 200 से ज़्यादा प्रदर्शनों की रिपोर्ट की है, जिसमें सेवानिवृत्त कर्मचारी, कर्मचारी, स्वास्थ्य सेवा पेशेवर, छात्र और व्यापारी शामिल थे, जिनमें मुख्य रूप से आर्थिक कठिनाइयों पर ध्यान केंद्रित किया गया था, जिसमें कम वेतन और कई महीनों तक वेतन न मिलना शामिल है. इन सबके कारण सत्तारूढ़ शासन ने कठोर सामाजिक नियम और सेंसरशिप कानून लागू करने का प्रयास किया है.
The EurAsian Times की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ महीनों में ईरान में 200 से ज्यादा विरोध प्रदर्शन हुए हैं. इन प्रदर्शनों में रिटायर्ड कर्मचारी, मजदूर, हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स, छात्र और व्यापारी शामिल रहे हैं. ये प्रदर्शन आर्थिक परेशानियों को केंद्र में रख कर हुए हैं. इनमें कम वेतन और महीनों का बकाया भुगतान जैसे मुद्दे शामिल हैं. इन विरोध प्रदर्शनों को रोकने के लिए ईरान की सरकार ने सामाजिक नियम कड़े किए हैं. और कई तरह के सेंसरशिप कानून भी बनाए हैं.
इलेक्टोरल सिस्टम पर सवाल उठे हैंईरान में वोटिंग टर्नआउट में भारी गिरावट दर्ज हुई है. साल 2021 के राष्ट्रपति चुनाव में वोटिंग टर्नआउट 48 फीसदी रहा. ये 1979 के बाद से सबसे कम है. कई वोटर्स ने विरोध के तौर पर अपने बैलेट को नष्ट कर दिया.
पॉलिटिकल इस्लाम, लोकतंत्र और मानवाधिकार जैसे विषयों की एक्सपर्ट ईरानी स्कॉलर डॉ. फरीबा पारसा ने बताया कि स्वतंत्र रिसर्च से पता चला है कि वास्तविक वोटिंग 20 फीसदी के आसपास ही रही है. फरीबा पारसा ने आगे बताया,
प्रॉक्सी नेटवर्क का घटता प्रभावईरान में होने वाले चुनावों में सरकार का कड़ा नियंत्रण रहा है. इस्लामिक रिजीम के एप्रूव किए गए कैंडिडेट ही चुनाव में हिस्सा ले सकते हैं. इसके चलते अधिकतर नागरिकों के लिए वोटिंग का कोई मतलब नहीं रह गया है. प्रत्येक चुनाव अब उम्मीद के बजाय निराशा को जन्म देता है. ईरान में एक ऐसा शासन है जिसके पास कोई विश्वसनीय लोकतांत्रिक जनादेश नहीं है. साथ ही एक लीडरशिप स्ट्रक्चर है जो सम्मान और विश्वास अर्जित करने में असफल रही है.
ईरान मिडिल ईस्ट में अपना प्रभाव बनाए रखने के लिए प्रॉक्सी मिलिशिया का इस्तेमाल करता रहा है. इन मिलिशिया ग्रुप्स में लेबनान में हिजबुल्लाह, यमन में हूती, सीरिया और इराक के मिलिशिया समूह, गाजा में हमास और फिलिस्तीन इस्लामिक जिहादी ग्रुप शामिल हैं. लेकिन इस मोर्चे पर ईरान को तगड़ा झटका लगा है. इजरायल के साथ चल रहे संघर्ष में गाजा को काफी नुकसान उठाना पड़ा है.
वहीं लेबनान में ईरान समर्थित मिलिशिया ग्रुप हिजबुल्लाह को राजनीतिक रूप से अलग-थलग कर दिया गया है. लेबनानी जनता में तेजी से हिजबुल्लाह का समर्थन कम हो रहा है. सीरिया में बशर अल असद की सत्ता से बेदखली ने ईरान की स्थिति को बेहद कमजोर कर दिया है.
जबकि इराक में ईरान समर्थित मिलिशिया लगभग खत्म हो गए हैं. इनमें से अधिकतर राष्ट्रीय सेना का हिस्सा बन गए हैं. इराक की सरकार पर तेहरान से दूरी बनाने का दबाव बढ़ रहा है. यमन में अमेरिका और ब्रिटेन के हवाई हमलों ने हूती विद्रोहियों को काफी कमजोर कर दिया है.
IRGC, कुर्द्स फोर्स का भी संचालन करता है. कुद्स फोर्स, पूरे मिडिल ईस्ट में प्रॉक्सी मिलिशिया नेटवर्क को हथियार, ट्रेनिंग देने और इनका समर्थन करने वाली एक संस्था है. कुद्स फोर्स ईरान की विदेश नीति का आधार रही है. लेकिन ये संस्था भी तेजी से अपना प्रभाव खोती जा रही है.
परेशानी खड़ा करता न्यूक्लियर प्रोग्रामईरान का न्यूक्लियर प्रोग्राम एक समय अंतरराष्ट्रीय वार्ता में उनके मोलभाव का सबसे बड़ा हथियार था. लेकिन अब ये सबसे बड़ी परेशानी का सबब बन गया है. अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ने तो अब खुलेआम समझौता करने या फिर परिणाम भुगतने की चुनौती दे डाली है. न्यूक्लियर प्रोग्राम के चलते अमेरिका और यूरोपीय देशों ने कई तरह के प्रतिबंध लगा दिए थे. हालांकि पिछले दिनों अधिकतर प्रतिबंध हटा लिए गए. लेकिन दशकों से चल रहे भ्रष्टाचार और इन आर्थिक प्रतिबंधों के चलते ईरान की अर्थव्यवस्था को उबरने में काफी संघर्ष करना पड़ेगा.
ईरान में इस्लामिक रिजीम का सामाजिक आधार कमजोर होता दिख रहा है. लेकिन सिक्योरिटी फोर्सेज की मदद से इसने अभी ईरान पर अपना मजबूत नियंत्रण बनाए रखा है. 86 साल के अयातुल्ला अली खामनेई के नेतृत्व वाला इस्लामिक रिजीम कई मुश्किलों से घिरा हुआ है. लेकिन इस्लामिक रिजीम की समाप्ति के बारे में बहुत भरोसे के साथ कुछ भी कहना अभी जल्दबाजी होगी.
वीडियो: तारीख: ईरान क्यों बनाना चाहता है न्यूक्लियर बम?