एक अपर क्लास परिवार जो साउथ मुंबई के बड़े से फ्लैट में रहता है. एक रिटायर्ड आदमी, उसकी वाइफ, दो बेटे. इनकी लाइफ में सबकुछ अपर क्लास है. इनका बड़ा बेटा एक फेमस डॉक्टर है, छोटा बेटा खुद को कवि कहता है. ये अखबार के पेज 3 पर रहने वाले लोग हैं. बड़े-बड़े लोगों से मिलते हैं, बड़ी-बड़ी पार्टियों में जाते हैं. फिर इनकी लाइफ में कुछ ऐसा होता है जिससे हास्य पैदा होता है. ये बड़ी बात थी बड़े बेटे साहिल का एक 'मिडिल क्लास' लड़की से प्यार हो जाना. एक पंजाबी लड़की, मनीषा. मनीषा वो सबकुछ है जो उसकी सास माया नहीं है. या यूं कहें, माया में जितनी कमियां होनी चाहिए वो मनीषा में हैं. मगर साहिल से उससे प्रेम कर लिया है. माया साराभाई चूंकि खुद को प्रोग्रेसिव मानती है, बेचारी अपने बेटे को लव मैरिज करने से मना नहीं कर सकती.
तो माया पेट्रोल उगलती है. अपनी बहू को तेजाबी ताने देती है. लेकिन चूंकि वो उन 'मिडिल क्लास' टीवी सीरियल की सास जैसी नहीं दिखना चाहती, हर ताने के बाद वो कहते है, 'डोंट माइंड बेटा', मैं तो मजाक कर रही थी.
साराभाई वर्सेस साराभाई 2004 में एक वीकली शो की तरह लॉन्च हुआ था. फ्लॉप हो गया. फिर उसकी सभी कड़ियों को डेली एपिसोड की तरह लॉन्च किया गया. यूं कहें कि पहली बार किस्मत अच्छी नहीं थी. दूसरी बार शो दबाकर चला. मगर फिर भी उतना नहीं चला कि इसका दूसरा सीजन लाया जाए. TRP गिरने लगीं. और ये शो बंद होने के बाद हुआ कि उसे डाउनलोड कर देखा गया. ये असल में शो बंद होने के बाद हुआ कि लोगों ने इसे नए जूनून के साथ देखा. और इतना देखा कि सीरियल बनाने वालों से लोग इसे फिर से बनाने की मांग करने लगे. कुछ साल पहले इसे बनाने वाले जमनादास मजेठिया ने पब्लिक में मना कर दिया कि इसका दूसरा सीजन नहीं आएगा. ये शायद नेटफ्लिक्स मॉडल है, या लोगों का बाहर के टीवी से बढ़ता हुआ आकर्षण, या इंटरनेट के दौर में नए नए शो देखने की चाहत, कि साराभाई को दोबारा लॉन्च किया जा रहा है. कहा जा रहा मार्च के एंड में शूटिंग होगी. और शूटिंग के पहले ही इतना हल्ला है, कि सबकी फेसबुक वॉल पर एक ही खबर छाई हुई है: साराभाई इज बैक!
साराभाई इसलिए ऐतिहासिक शो था
कॉमेडी शो बहुत हैं. रिकॉर्ड तोड़ TRP वाले. मसलन कपिल शर्मा के शो. या कई अवॉर्ड जीतने वाला 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा'. मगर साराभाई इस शो का बाप था. कई लिहाजों से.
1. डेली सोप के ड्रामे से मुक्ति साराभाई उस दौर में बना जब केबल टीवी सबके घर पहुंच चुका था. अब वो दौर ख़तम हो रहा था जब घर वाले कहते थे कि केबल टीवी लगवाने से बच्चे बिगड़ जाते हैं. केबल टीवी अब जरूरत बन गया था. केबल टीवी के आने से डेली सोप आ गए थे. सास-बहू का ट्रेंड नया था, 'इन' था. हर शो में एक ही चीज हो रही थी. लड़कियां ब्याह कर बहुएं बन रही थीं. पतियों का प्यार पाना चाह रही थीं. सास की सेवा कर रही थीं. आदर्श बहुओं के इस दौर में आती है 'मोनिषा'. इसे खाना बनाना नहीं आता. घर तो कभी साफ़ रख ही नहीं सकती. इसको दो चीजों से मतलब है, हर दुकान में लगने वाली सेल से और हर तरह से पैसे बचाने से. शो में अक्सर 'तेरा पति सिर्फ तेरा है' नाम के सीरियल का जिक्र आता रहता है. ये असल में हर वो शो है जो उस समय डेली सोप के नाम से प्रचलित था. सास और बहू के बीच का टेंशन साराभाई में भी है. लेकिन अपने समय से डेली सोप पर एक धारदार सटायर की तरह. ये शो डेली शो में हो रहे हर तरह के ड्रामे और संवेदनाओं के 'ओवर द टॉप' चित्रण का बड़े प्यार से मजाक उड़ा रहा था.
2. ये फैमिली कॉमेडी का नया दौर था ये वो दौर भी था जब गुजराती हाउसहोल्ड मेनस्ट्रीम टीवी में उतर रहा था. सीरियल में गुजराती परिवार खूब दिख रहे थे. सीधे पल्ले की साड़ियां आ रही थीं. ये सीरियल आदर्श परिवार दिखा रहे थे. ऐसे में एक परिवार ये भी था. जो हंसता था, दूसरों को हंसाता था. ये सीरियल हमें दिखा रहे थे कि कैसे एक पितृसत्तात्मक सेटअप वाले परिवार में एक पुरुष सारे फैसला लेता है. हमें आदर्श पिता, आदर्श दादा मिल रहे थे. समझदार, शांत स्वभाव वाले. ऐसे ही समय इंद्रवदन आपको बच्चों सी शैतानियों से हंसा रहा था. दूध का गिलास सिंक में पलट रहा था. अलमारी में चॉकलेट छिपा रहा था. और वो सब कर रहा था जो एक अव्वल दर्जे का खुराफाती बच्चा करता है. ये वो बाप था जो मां-बेटे में लड़ाई करवा दे. जो सबको भड़का के खुद मज़े लेता था. माया और मोनिषा में चिढ़ थी. इसलिए वो एक दूसरे के खिलाफ साज़िश नहीं रचती थीं. आमने-सामने लड़ती थीं. माया अपने हर गुस्से को सोफेस्टिकेशन से छिपा देती थी. और मोनिषा तो बेचारी भोली थी. वो तो कुछ समझती ही नहीं थी. ये परिवार नया था. ये सास-बहू रिश्ते नए थे. साराभाई vs साराभाई हमें बता रहा था कि एक परिवार का मतलब केवल रोना ही नहीं है. ठीक वही चीज जो 'खिचड़ी' सीरियल एक दो साल पहले कर रहा था. 'खिचड़ी' में भी हास्य था, मगर साराभाई में हास्य के साथ सटायर था.
3. सटायर, जो हमें आज तक देखने को नहीं मिलता है माया साराभाई खुद को एक्टिविस्ट मानती है. गरीबों की मदद करने के लिए चैरिटी करती हैं. मगर घर में बैठे हाई क्लास पार्टी देती है. अनाथ आश्रम में दान करती है. और उसे सेलिब्रेट करने के लिए बड़ी पार्टी देती है. कोई नया गहना या साड़ी खरीदती है तो इस बात का ख़ास ध्यान रखती है कि उसे दिखा सके. लोगों को उसका दाम बचा सके. हर तरह का शोऑफ उसके नेचर में है. ये सटायर साउथ मुंबई में रहने वाले अमीर, खुद को इंटेलेक्चुअल कहने वाले उस वर्ग पर था, जो VIP इनविटेशन से हर नाटक में सबसे अच्छी सीट पर बैठता है, मगर समझता धेला भर नहीं है. रोसेश की कविताएं भी ऐसी ही थीं. उनको सुनना फनी था. लेकिन उसके खुद को कवि मानने में ये बात छिपी थी कि जिनके पास ढेरों पैसे होते हैं, वो बिना कोई भी टैलेंट हुए खुद को कैसे प्रमोट कर लेते हैं. रोसेश जैसे कई कवि और लेखक देश भर में हैं जो पैसों के दम पर अपनी किताबें छपवाते हैं. मगर असल में उनके पास कंटेंट के नाम पर कुछ नहीं होता.
4. सटायर मिडिल क्लास पर भी था वो जो हर चीज रख लेते हैं. पुराने डिब्बे, बोतल, टूटा फूटा सबकुछ, कि इसे बेचकर पैसे बना लेंगे. सब्जी के साथ धनिया फ्री में डलवा लेंगे. मॉल में एक्स्ट्रा पैसे दे देंगे मगर रिक्शे वाले से बहस करेंगे. दोपहर में डेली सोप देखेंगे. बिना स्वास्थ्य का ख़याल रखे सुबह सुबह नाश्ते में रात की बची बिरयानी खा लेंगे. या मक्खन डालकर परांठे खा लेंगे.
5. ये दिल्ली और मुंबई की लड़ाई थी मोनिषा दिल्ली का प्रतीक थी. लाउड, नाचने गाने, बात-बात पर गाली दे देने वाली. वहीं मोनिषा 'बॉम्बे' थी. शांत, हाई क्लास, कम बोलने वाली.
शो की अपनी कमियां भी थीं
मधु फूफा के सुन न पाने का मज़ाक उड़ाना और जगह जगह सेक्सिस्ट और रेसिस्ट चुटकुले होना शो में शामिल था. मगर शो इसी बात पर आधारित नहीं था, जैसे आजकल के पॉपुलर कॉमेडी शो होते हैं. ये शो की कमियां थीं. उम्मीद है आने वाली वेब सीरीज में वो इस तरह के चुटकुलों से बचेंगे. जब फैमिली सिटकॉम की बात आती है, हम 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' जैसे शो की बात करते हैं. हम इसके रॉ गुजराती ह्यूमर की बात करते हैं. जबकि असल में ये काम खिचड़ी और साराभाई जैसे शो ने काफी पहले ही शुरू कर दिया था.
ऑल सेड एंड डन, अब तो बस शो का इंतज़ार है.