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अठावले की '15 लाख' वाली बात को हंसी में उड़ा देने से हमारा ही नुकसान होने जा रहा है!

कहा है कि 15 लाख धीरे-धीरे लोगों के खाते में जाएगा. जानिए क्यूं इस बात को सीरियसली लिया जाना चाहिए.

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एक खबर है. हर जगह से आप तक पहुंच ही गई होगी. नहीं पहुंची तो हम बताते हैं और पहुंच गई है तो केवल एक पैरा में रिविज़न कर लीजिए फिर मुद्दे की बात पर आते हैं -
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि उनकी सरकार आने पर सभी के खाते में 15-15 लाख रुपये आएंगे, लेकिन सत्ता में आने पर सरकार की ओर से ऐसा कुछ भी नहीं किया गया जिसको लेकर विपक्ष लगातार मुद्दा बनाता रहा है. अब एक केंद्रीय मंत्री ने कहा है कि 15 लाख धीरे-धीरे लोगों के खाते में जाएगा.
महाराष्ट्र के सांगली जिले में केंद्रीय समाजिक न्याय मंत्री रामदास अठावले ने ये बात बोलते हुए आगे बताया कि इतनी बड़ी रकम सरकार के पास नहीं है, आरबीआई से मांग रहे हैं, लेकिन वो दे नहीं रहे. इसलिए यह (15 लाख रुपए का लोगों के खाते में आना) एक साथ यह नहीं हो पाएगा, लेकिन धीरे-धीरे हो जाएगा.
प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि विदेश में इतना कालाधन है कि अगर देश में वापस आ जाए, तो हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख होंगे! प्रधानमंत्री नरेंंद्र मोदी ने 2014 में चुनाव प्रचार के दौरान कहा था कि विदेश में इतना कालाधन है कि अगर देश में वापस आ जाए, तो हर व्यक्ति के खाते में 15 लाख होंगे!

आप लोगों को ये बात सुनकर हंसी आ सकती है मंत्री जी की बुद्धि पर. लेकिन...
...लेकिन आना दरअसल गुस्सा चाहिए. क्यूंकि ये लोग दूसरों को बेवकूफ समझते हैं. उनको बेवकूफ समझते हैं जिनके चलते ये वो बने हैं, जो ये हैं. ये अपने सपोर्टस को बेवकूफ़ समझते हैं. ये दरअसल आपको-हमको बेवकूफ समझते हैं. कहें कुछ भी, लेकिन एक अकेली यही बात सच है!
और इनके लिए ख़ुशी की बात ये है कि हम ही इन्हें बार-बार चुनकर इनकी इस सोच पर मुहर लगाते हैं. इनके बारे में खुद कुछ बुरा तो क्या ही कहेंगे, इनकी आलोचना 'सुनना' भी पसंद नहीं करते. क्यूं?
इनके सवाल पूछना तो दूर, उल्टा इनसे सवाल पूछने वालों से सवाल पूछने लगते हैं. क्यूं?
कहीं से भी इनको बचा ले जाने की सोचते हैं. किसी एक्सक्यूज़, किसी स्ट्रॉमैन, किसी भी तरीके से.
रामदास की बात को सीरियसली लिया जाना चाहिए. ऐसी किसी भी बात को सीरियसली लिया जाना चाहिए, रामदास की बात को सीरियसली लिया जाना चाहिए. ऐसी किसी भी बात को सीरियसली लिया जाना चाहिए.

सोचिए कि क्या सोचकर ऐसी बातें कर जाते हैं ये?
जानते हैं आश्चर्य की बात क्या है? वो ये कि जबकि इनके इस और इस जैसे कई कथन इनके झूठ और इनकी अनैतिकता को पूरी तरह सिद्ध करते हैं फिर भी ये हाथ जोड़कर जनता से वोट मांगने और जनता के सेवक बनने का ढोंग कैसे करने लगते हैं? और इनकी ये बातें जनता को स्वीकार्य कैसे हैं?
हमें इन पर नहीं अपने आप पर हंसना चाहिए. इन पर हंसकर हम अपना ही भारी नुकसान कर रहे हैं.
क्या हम इन जैसों को संसद या विधानसभा पहुंचा कर इनकी महफ़िलों में हंसी के पात्र नहीं बन रहे हैं? कि देखो इन्हें फिर उसी मुद्दे से, उसी वादे से फंसा लिया. कि देखो सत्तर साल से गरीबी पर, कि देखो तीस साल से राम मंदिर पर ये ‘बेवकूफ’ बनते आए हैं और आगे भी बनते आएंगे.
आपको क्यूं नहीं आता गुस्सा? आप सड़क पर न उतरिए बेशक लेकिन सोचिए. सोचना दरअसल सबसे बड़ी क्रांति है.
काश अबकी बार कहा जा सकता मंत्री जी से कि धीरे-धीरे खाते में 15 लाख आए न आएं, मगर धीरे-धीरे आपकी नियत हमारी समझ में ज़रूर आ गई है.
अंत में इतना ही कहना है कि केवल एक बात तीस सेकेंड सोचिए – क्या ये लोग इश्वर हैं जो हम किसी भी स्थिति में इनका साथ छोड़ने के लिए राज़ी नहीं होते?


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