The Lallantop

भारत-पाकिस्तान जिस संघर्षविराम समझौते का पालन करने पर सहमत हुए हैं, उसमें आखिर लिखा क्या है?

इस समझौते के तहत पाकिस्तान ने हर मसला संयम से सुलझाने की बात कही है.

post-main-image
2003 में रमजान के महीने में भारत-पाक के बीच संघर्षविराम पर सहमति बनी थी.

भारत और पाकिस्तान के बीच एक बार फिर 2003 के संघर्षविराम समझौते (Ceasefire agreement of 2003) का सम्मान करने पर सहमति बनी है. कल दोनों देशों के सैन्य अभियान महानिदेशकों (DGMOs) ने संयुक्त बयान जारी कर इस समझौते का पालन करने की घोषणा की है. इसमें कहा गया है कि दोनों देशों के DGMO इस बात पर भी सहमत हुए हैं कि कोई मसला उठने पर भी संयम बरकरार रखा जाएगा. बयान के मुताबिक, अधिकारियों के बीच हाॅटलाइन संपर्क तथा स्थानीय कमांडरों की फ्लैग मीटिंग के जरिए मसलों का हल निकाला जाएगा.


पाकिस्तान की तरफ से अक्सर कश्मीर में नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर गोलीबारी की जाती रही है जिसमें कई बार नियंत्रण रेखा पर गश्त कर रहे भारतीय जवानों की जान चली जाती है.
पाकिस्तान की तरफ से अक्सर कश्मीर में नियंत्रण रेखा का उल्लंघन कर गोलीबारी की जाती रही है जिसमें कई बार नियंत्रण रेखा पर गश्त कर रहे भारतीय जवानों की जान चली जाती है.

क्या था 2003 का संघर्षविराम समझौता?

1997 में इंद्र कुमार गुजराल देश के प्रधानमंत्री बने. प्रधानमंत्री बनते ही उन्होंने पड़ोसी देशों के साथ संबंध सुधारने की पहल तेज कर दी. उनकी इस पहल को 'गुजराल डाक्ट्रिन' का नाम दिया गया. अगले बरस इंद्र कुमार गुजराल की जगह अटल बिहारी वाजपेयी आ गए. उन्होंने भी पड़ोसी देशों, खासकर पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने की गुजराल सरकार की पहल को जारी रखा. इसी के तहत वाजपेयी ने 1999 में लाहौर बस यात्रा की थी. तब एक साझा घोषणापत्र जारी किया गया था. इसमें तमाम विवादास्पद मुद्दों को ठंडे बस्ते में डालकर आपसी सहयोग बढ़ाने पर बल देने की बात कही गई थी. लेकिन 3 महीने बाद ही पाकिस्तान की सेना ने करगिल में घुसपैठ कर दी और शांति प्रक्रिया पटरी से उतर गई.

अक्टूबर 1999 आते-आते पाकिस्तान में लोकतंत्र का गला घोंट कर जनरल परवेज मुशर्रफ ने सैनिक सरकार बना ली. इसके बाद शांति प्रक्रिया बहाल हो पाना लगभग असंभव हो गया. फिर भी 2001 में प्रधानमंत्री वाजपेयी ने पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय सहयोग बढ़ाने की एकतरफा पहल की. जनरल मुशर्रफ को शांति वार्ता के लिए आगरा बुलाया गया. लेकिन वह प्रक्रिया भी पटरी से उतर गई. फिर उसी साल दिसंबर में भारतीय संसद पर हमला हो गया. इसके बाद बातचीत की रही-सही संभावना भी समाप्त हो गई.

इसके बाद 2002 में दिखावे के लिए ही सही, मुशर्रफ ने पाकिस्तान में चुनाव करवा दिए. उन्होंने मीर जफरुल्लाह खान जमाली के नेतृत्व में सैनिक शासन के हस्तक्षेप वाली एक डमी सरकार बनवा दी. फिर उसके बाद डिप्लोमेटिक लेवल पर बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई. नवंबर 2003 में रमजान का पवित्र महीना चल रहा था और उसी दरम्यान 22 नवंबर को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री मीर जफरूल्लाह खान जमाली ने रमजान के पवित्र महीने की दुहाई देते हुए एकतरफा सीजफायर (संघर्षविराम) का एलान कर दिया था.


अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मीर जफरूल्लाह खान जमाली (बाएं).
अटल बिहारी वाजपेयी के साथ मीर जफरूल्लाह खान जमाली (बाएं).

भारत के लिए इससे बड़ी खुशी की बात और क्या हो सकती थी. क्योंकि अब तक तो वही शांति बहाली के लिए पहल करता आया था. लिहाजा भारत ने जमाली की इस एकतरफा घोषणा का स्वागत किया. इसके बाद दोनों देशों के सैन्य एवं विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के बीच बातचीत शुरू हुई और इस पर सहमति बन गई कि 'कोई भी एक-दूसरे पर गोली नहीं चलाएगा एवं सीमा/लाइन ऑफ कंट्रोल पर किसी भी परिस्थिति में बातचीत के जरिए मसला हल करने की कोशिश की जाएगी.

24-25 नवंबर 2003 की दरम्यानी रात भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नवतेज सरना ने इस संघर्षविराम समझौते की घोषणा की और अगले दिन पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता मेजर जनरल शौकत सुल्तान ने इस समझौते की पुष्टि की थी.
2003 में भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नवतेज सरना ने संघर्षविराम समझौते का एलान किया था.
2003 में भारत की तरफ से विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता नवतेज सरना ने संघर्षविराम समझौते का एलान किया था.

इसके बाद 3 साल तक तो सबकुछ ठीक-ठाक चला. लेकिन 2006 से पाकिस्तानी सैनिकों ने कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर फिर गोलीबारी शुरू कर दी. सीजफायर का उल्लंघन पाकिस्तान की तरफ से ही हुआ था. 2015 में भारतीय सेना की तरफ से फिर कोशिश हुई कि 2003 के समझौते का पालन किया जाए. इसके लिए दोनों देशों के सैन्य अधिकारियों की बैठकें भी हुईं. लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ. सिर्फ 2020 में ही पाकिस्तान की तरफ से 5246 बार संघर्षविराम समझौते का उल्लंघन कर फायरिंग की गई. उरी, पठानकोट और पुलवामा समेत कई बड़े हमले हुए. इसके बावजूद अब एक बार फिर उम्मीद की जा रही है कि इस बार पाकिस्तान संघर्षविराम समझौते का पालन करेगा. आखिर उम्मीद पर तो दुनिया कायम है.