
तब वाजपेयी प्रधानमंत्री थे और आडवाणी गृहमंत्री. दोनों नहीं चाहते थे कि CBI की टीम धीरुभाई अंबानी के घर छापा मारे.
जब धीरूभाई अंबानी के घर छापा पड़ा ये 19 नवंबर, 1998 की बात है. सुबह के ठीक आठ बजे थे. सफेद ऐम्बेंसडर में बैठे CBI अफसरों की एक टीम मुंबई के पॉश इलाके कफ परेड में बने धीरूभाई अंबानी के घर पहुंची. उनके पास सर्च वॉरंट था. साथ के साथ, मुंबई और दिल्ली में रिलायंस के दफ्तरों पर भी छापेमारी हुई. करीब आठ घंटे तक चली ये रेड. पूरा घर, दफ्तर खंगाल लिया. सालों से भारत में ऐसा नहीं हुआ था. कि इतनी बड़ी कंपनी पर यूं छापा मारा जाए. CBI जांच कर रही थी ऑफिशल सीक्रेट्स ऐक्ट के उल्लंघन की. CBI तलाश रही थी कि क्या अंबानी परिवार और रिलायंस के पास कोई गोपनीय सरकारी फाइल है?

त्रिनाथ मिश्रा
शुरुआत में रिलायंस ने इस बात से ही इनकार किया कि कोई छापा पड़ा है. मगर ये कोई छोटी खबर तो थी नहीं कि दबा ली जाए. अगले दिन, यानी 20 नवंबर को रिलायंस ने माना कि रेड पड़ी थी. आउटलुक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक, CBI सूत्रों ने बताया कि
छापेमारी में कुछ खास कागजात बरामद हुए हैं. जो कि इंडियन ऑइल कॉर्पोरेशन और रिलायंस पेट्रोलियम के बीच हुई डील पर रोशनी डालते हैं. बताते हैं कि डील में परदे के पीछे क्या हो रहा था. सूत्रों ने आउटलुक को बताया कि जो कागजात मिले, वो पेट्रोलियम मंत्रालय के क्लासिफाइड डॉक्यूमेंट्स हैं. और वो ऑफिशल सीक्रेट्स ऐक्ट की परिधि में आते हैं.
CBI अंबानी के घर तक पहुंची कैसे? ये सारा मामला दाऊद इब्राहिम के एक गुर्गे रोमेश शर्मा की दिल्ली में हुई गिरफ्तारी से शुरू हुआ था. दिल्ली पुलिस ने कहा कि उसे शर्मा और रिलायंस इंडस्ट्रीज के दिल्ली में प्रेजिडेंट रहे वी बालासुब्रमणियम के बीच लिंक मिले हैं. अंबानी के यहां छापा पड़ने से पहले 28 अक्टूबर को सुब्रमणियम के यहां भी छापा पड़ा था. उनके दफ्तर से कुछ ऐसे कागज मिले कि उसके ऊपर ऑफिशल सीक्रेट्स ऐक्ट के तहत मामला भी दर्ज हुआ.
रिलायंस ने सुब्रमणियम मामले से खुद को अलग करने की कोशिश की. कहा, रोमेश शर्मा के साथ लिंक उसकी निजी बात है. कंपनी का कोई लेना-देना नहीं इससे. मगर जो कागजात मिले थे, वो पेट्रोलियम मंत्रालय से जुड़े थे. सवाल था कि ये सुब्रमणियम ने निजी हैसियत से कैसे हासिल किया होगा? रिलायंस पर इस तरह के इल्जाम लगते आए थे. कि उनको सरकारी पॉलिसी के बारे में पहले से पता होता है. इससे वो अपनी स्ट्रैटजी पहले ही तैयार कर लेते हैं. यहां तक कि रिलायंस पर ये इल्जाम भी लगा कि उन्हें वित्तमंत्री द्वारा बजट पेश किए जाने से पहले ही बजट में दिए गए प्रस्तावों की जानकारी मिल जाती थी.

त्रिनाथ मिश्रा
ये सारी स्थितियां थीं, जिन्हें मद्देनजर रखते हुए CBI ने धीरूभाई अंबानी के यहां छापा मारा था. मगर वाजपेयी और आडवाणी इसके समर्थन में नहीं थे. उन्होंने साफ जता दिया था कि वो ये नहीं चाहते. लेकिन फिर भी अगर त्रिनाथ मिश्रा रेड डालना चाहते हैं, तो वो अपने मन की कर सकते हैं. शायद इसके पीछे एक वजह सुप्रीम कोर्ट भी थी. दिसंबर 1997 में SC ने CBI डायरेक्टर की नियुक्ति को लेकर कुछ नियम बनाए थे. इसके बाद सरकार के लिए खुलेआम दखलंदाजी करना थोड़ा मुश्किल हो गया था.
रेड के बाद विपक्ष ने इल्जाम लगाया कि ये असल में बीजेपी की राजनीति है. वो आने वाले विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ऐसा कर रही है. ये दिखाने की कोशिश कर रही है कि वो अंबानी जैसी मजबूत शख्सियत पर हाथ डालने से भी नहीं हिचकती. हालांकि ये आरोप कहां तक सही थे, पता नहीं. क्योंकि वाजपेयी और प्रमोद महाजन, दोनों अंबानी के करीबी कहे जाते थे.
कहते हैं कि रिलायंस को पहले ही भनक लग गई थी कि CBI धीरुभाई के यहां छापा मारने वाली है. इसकी एक वजह ये भी है कि सुब्रमणियम के यहां रेड पड़ने के बाद वो आगाह हो गए थे. फिर उस रेड और इस रेड के बीच 21 दिनों का अंतर भी तो था. CBI, दिल्ली पुलिस और आयकर विभाग के बीच कॉर्डिनेशन में भी दिक्कत हुई. रेड का नतीजा ये हुआ कि बस नौ महीने के कार्यकाल के बाद त्रिनाथ मिश्रा पद से हटा दिए गए. 1998 में उन्हें CBI में स्पेशल डायरेक्टर बनाया गया था. निदेशक डी आर कार्तिकेयन के रिटायर होने के बाद उन्हें एजेंसी का कार्यकारी प्रमुख बना दिया गया. कुल मिलाकर 14 महीने रहे वो यहां. फिर उनकी छुट्टी कर दी गई.

त्रिनाथ मिश्रा
क्या हुआ, कैसे हुआ, इस पर ओपन मैगजीन ने एक लेख छापा.
जून 2013 में. इसमें त्रिनाथ मिश्रा ने अपना पक्ष रखा. उनका कहना था कि सरकार उनके ऊपर दबाव बना रही थी. प्रधानमंत्री कार्यालय और गृहमंत्री का ऑफिस, दोनों उनके काम में दखलंदाजी दे रहा था. सरकार चाहती थी कि कुछ खास केस खास तरीके से हैंडल किए जाएं. उन्होंने कहा-
मुझे महसूस हुआ कि मेरी सरकार से अच्छी बन नहीं रही. इसकी वजह ये थी कि सरकार चाहती थी कि मैं कुछ खास मामलों को खास तरीके से हैंडल करूं. प्रधानमंत्री का कार्यालय मेरे काम-काज में दखल देता था. गृह मंत्रालय दखलंदाजी करता था. मुझे लग गया कि मैं उनकी 'उम्मीदों' पर खरा नहीं उतर सकूंगा. अगर मैं ऐसा करता, तो अपनी ड्यूटी, अपनी प्रतिबद्धताओं के साथ गलत करता. मेरे कार्यकाल में CBI डायरेक्टर का कार्यकाल तय नहीं होता था. ये चीज सरकारी कृपा पर निर्भर थी. मेरे जाने के बाद टेन्योर तय हुआ.
जब मेरे ऊपर सरकारी दबाव दिया जाने लगा, तो मैंने साफ कहा. कि उन्हें मेरी जगह कोई और अफसर खोज लेना चाहिए. जो उनकी हां में हां मिलाए. मैं इस तरह का आदमी नहीं. उस वक्त मानस बेजबरुआ एन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट के निदेशक थे. उनका तबादला कर दिया गया था. अचानक हुए उनके ट्रांसफर पर मीडिया में भी काफी बातें हुईं. फिर अदालत के आदेश के बाद उन्हें वापस बहाल किया गया. ऐसे में सरकार को लगा कि अगर उन्होंने मुझे कहीं और भेजा, तो मैं भी शायद अदालत चला जाऊं. मैंने उन्हें भरोसा दिया कि मैं ऐसा कुछ नहीं करने वाला. न ही मैं लॉबिंग करूंगा. कि वो मुझे लेकर जो भी फैसला लेंगे, मैं वो मान लूंगा.

बाईं तरफ त्रिनाथ मिश्रा
CBI से अपनी छुट्टी के बारे में बताते हुए त्रिनाथ मिश्रा ने लिखा है-
मुझसे कहा गया कि इस केस में ऐसा करो. मैंने कहा, ये कानून के खिलाफ है. इस पर मुझे जवाब मिला- फिर भी देख लीजिए. आखिरकार मुझे कहना पड़ा कि माफ कीजिए, मुझसे ये नहीं होगा.इसी लेख में त्रिनाथ मिश्रा ने लिखा है कि सरकार हर मामले में टांग नहीं अड़ाती. ऐसे केस जहां कोई सीनियर अधिकारी या केंद्र सरकार के मंत्री या फिर कोई केंद्रीय एजेंसी एन्वॉल्व होती है, वहां राजनैतिक दबाव पड़ता है CBI पर. तब ऊपर से ऑर्डर आता है कि इस केस में ऐसा करो. उस केस में वैसा करो. इंडिया टुडे ने मार्च 2011 के अपने एक आर्टिकल में RTI के मार्फत बताया था कि जनवरी 2008 से दिसंबर 2009 के बीच CBI ने 23 बड़े अधिकारियों (ज्यादातर जॉइंट सेक्रटरी रैंक के) के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच की. मगर उसे इन अफसरों के खिलाफ मुकदमा चलाने की इजाजत नहीं दी गई.

कोलगेट स्कैम की जांच के वक्त सुप्रीम कोर्ट को मनमोहन सिंह सरकार से कहना पड़ा था. कि वो इस बात की तस्दीक करे कि CBI के ऊपर कोई प्रेशर न बनाया जाए. कि CBI को बिना किसी दबाव के निष्पक्ष होकर काम करने दिया जाए.
CBI निदेशक ने PM से कहा- आजाद होकर काम करने दीजिए मार्च 2011 में इंडिया टुडे में छपे एक लेख में CBI के उस समय के डायरेक्टर अमर प्रताप सिंह से जुड़ा एक वाकया है. CBI टू जी स्कैम की जांच कर रही थी. अमर एक दिन PMO पहुंचे. प्रधानमंत्री थे मनमोहन सिंह. उन्होंने मनमोहन सिंह से शिकयती लहजे में कहा कि CBI के ऊपर टेलिकॉम मंत्री ए राजा के केस में जांच धीमी करने का दबाव बनाया जा रहा है. अमर प्रताप सिंह ने मनमोहन से कहा-
अगर सरकार चाहती है कि इस केस की जांच सही तरह हो, तो मुझे आजाद होकर, बिना किसी दबाव के काम करने देना होगा.
वीडियो: क्या रफाएल की फाइल मांगने पर सीबीआई के आलोक वर्मा की छुट्टी कर दी