तारीख़ थी 29 जुलाई 2019. एक बहती नदी पर थमा हुआ पुल. नदी है नेत्रावती. श्रृंगगिरि पर्वत से निकलकर पश्चिम समुद्र की ओर जाती नेत्रावती नदी. शाम के धुंधलके में एक गाड़ी आती है. गाड़ी में बैठा शख्स बीच नदी के ऊपर पुल पर गाड़ी से उतर जाता है. ड्राइवर को जाने के लिए कहता है. ड्राइवर गाड़ी लेकर निकल जाता है. उसके बाद उस आदमी को किसी ने नहीं देखा.
CCD के मालिक की वो कहानी जो मोटिवेट तो करती है, पर डराती भी है
बहुत थोड़ा से बहुत कुछ और उसके बाद कुछ नहीं तक की दास्तां...

बाद में एक मछुआरा बताता है कि उसने किसी को नदी में कूदते हुए देखा था. या शायद गिरते हुए देखा हो. और अगले दिन जब शेयर बाज़ार खुला तो एक कंपनी ने ज़बरदस्त गिरावट देखी.
90 हज़ार+चिकमंगलूर+कॉफी= यहां से शुरू होती है कहानीदेख कोई और भी रहा था. लेकिन साल था 1956. कर्नाटक का चिकमंगलूर. वेस्टर्न घाट में बसा मद्धम-मद्धम तापमान वाला कर्नाटक का एक हिल स्टेशन. चंदन और कॉफी के लिए मशहूर एक शहर. एक परिवार ज़मीन देख रहा था. ख़ानदानी पेशा था कॉफ़ी उगाना. भाइयों के बंटवारे से हिस्से में आए 90 हज़ार रुपए. ज़मीन ख़रीदी 479 एकड़. ये वही साल था जब इस परिवार में एक बच्चा पैदा हुआ. नाम रखा वी जी सिद्धार्थ.
ये उसी CCD की कहानी है.
कॉफी बागान संभालना था, मगर दिमाग लगा स्टॉक एक्सचेंज में पिता के कॉफी उगाने का कारोबार अच्छा था. उसे संभालने की जिम्मेदारी सिद्धार्थ पर आई. मंगलुरु यूनिवर्सिटी से इकॉनमिक्स में मास्टर्स करते हुए सिद्धार्थ उधेड़बुन में थे. रास्ता कोई हाथ लग नहीं रहा था. हाथ लगी एक फाइनैंशल मैगज़ीन. इसमें प्रोफाइल थी महेंद्र कंपानी की. बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) के पूर्व प्रेज़िडेंट.
मुनाफे के पैसों से खूब सारे कॉफी बागान खरीदे पढ़ा और पहुंचे कंपानी के पास. साल था 1983. दो साल तक काम किया सिद्धार्थ ने कंपानी के साथ. ऐनलिस्ट के तौर पर. फिर बेंगलुरु आकर अपना ट्रेडिंग का काम शुरू कर लिया. बहुत मुनाफा हुआ. सिद्धार्थ ने 'सिवान सिक्यॉरिटीज़ प्राइवेट लिमिटेड' नाम से एक कैपिटल फर्म बनाकर मुनाफे के पैसों से और कॉफी बागान खरीदने शुरू किए. करीब साढ़े तीन हज़ार एकड़. फिर आया साल 1992. अभी हर्षद मेहता वाला कांड सामने नहीं आया था. इसके सुर्खियों में आने से करीब 15 दिन पहले की बात है. सिद्धार्थ के मन में जाने क्या आया. उन्होंने स्टॉक मार्केट का अपना सारा निवेश बेचा और निकल लिए. दो हफ़्ते बाद शेयर बाज़ार के डिजिटल मलबे में अनगिनत सपनों की लाशें थीं.
नुकसान में आने की कहानी, शॉर्ट में जानिएउन सब ने जिन्होंने मुझपर भरोसा किया, मैं उन सबसे बहुत बहुत मुआफ़ी मांगता हूं. मैंने उन्हें निराश किया है. एक व्यवसायी के तौर पर मैं नाकाम हो गया हूं. मैंने बहुत लंबे समय तक संघर्ष किया, मगर आज मैं हिम्मत हार गया हूं. एक निजी इक्विटी पार्टनर मुझपर शेयर वापस खरीदने का दबाव डाल रहा है.
वो लेनदेन छह महीने पहले हो चुका है. उसके लिए मैंने एक दोस्त से बहुत सारे रुपये उधार लिए थे. मैं अब और नहीं झेल सकता ये प्रेशर. बाकी लेनदारों की तरफ से मिल रहे हद से ज्यादा दबाव के कारण मैं अब सरेंडर कर रहा हूं. मैंने बहुत कोशिश की, मगर एक मुनाफ़ा कमाने वाले बिज़नस का मॉडल नहीं बना पाया. मैं कभी किसी को धोखा नहीं देना चाहता था.
29 तारीख को वी जी सिद्धार्थ के लापता होने की खबर आते ही शेयर मार्केट में भूचाल आ गया. शेयर 20% नीचे गिर गए. मने जिसने कैफे कॉफ़ी डे में 100 रुपए लगाए थे, उसके एक दिन के कारोबार में ही 80 रुपए रह गए. लेकिन सौ रुपए के शेयर कौन ही खरीदता है. इसलिए नुकसान करोड़ों में हुआ. कुल 2128 करोड़ रुपयों का.
लेकिन ये तो तब की बात है जब सिद्धार्थ लापता हो चुके थे. उससे पहले कहानी क्या थी? बहुत सी दिक्कतें थीं. जैसे -
# उन पर सितंबर 2017 से ही अघोषित संपत्ति रखने के मामले में जांच चल रही थी. इन्कम टैक्स विभाग ने सिद्धार्थ की उन संपत्तियों की जांच चला रखी थी जिन संपत्तियों पर टैक्स ना देने का अंदेशा था. अपनी चिट्ठी में भी सिद्धार्थ ने इन्कम टैक्स के पूर्व डीजी पर आरोप लगाए हैं कि सिद्धार्थ को प्रताड़ित किया गया. 2017 में सिद्धार्थ के खिलाफ़ 700 करोड़ के कर चोरी की जांच शुरू हुई. जो अभी भी जारी है.
# कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री एस एम कृष्णा के दामाद हैं वी जी सिद्धार्थ. कहने वाले ये भी कहते हैं कि जब जांच शुरू हुई तो एस एम कृष्णा 2017 में भाजपा में आ गए.
# पिछली तिमाही में CCD को 67 करोड़ का घाटा हुआ था. लेकिन सालाना टर्न ओवर 4, 264 करोड़ का रहा. 127 करोड़ का मुनाफ़ा
# सिद्धार्थ का अपना इन्वेस्टमेंट सेन्स बहुत तगड़ा था. हालांकि सबसे बड़ा दांव माइंडट्री रही. निवेश के दो दशक बाद उन्होंने 20.31% स्टेक बेचा तो 2850 करोड़ रुपये से ज्यादा प्रॉफिट हासिल किया और फिर शेयर बेच डाले एल एंड टी को. तीन हज़ार करोड़ से ज़्यादा रुपए मिले थे. ये भी नाकाफी थे. सब कर्ज़ा चुकाने में चले गए.
# उनपर बायबैक का दबाव था. बायबैक मने अपनी कंपनी के शेयरों को वापस खरीदने का दबाव. और ये दबाव कौन डाल रहा था? उनके लास्ट लेटर में इसका कोई ज़िक्र नहीं है, लेकिन उसी लैटर में लिखा गया है कि कोई ‘इक्विटी पार्टनर’ दबाव डाल रहा है.
यही वो मिस्ट्री है जो अभी तक सुलझी नहीं है. कंपनी पर कौन दबाव डाल रहा था. कौन है वो ‘इक्विटी पार्टनर’. बाज़ार ये रहस्य सुलझा रहा है. कहने वाले कह रहे हैं कि CCD से ज़्यादा नुकसान वाली कंपनियां अभी भी चल रही हैं. CCD पर बाज़ार का क़र्ज़ था ज़रूर, लेकिन उसे पाटने के साधन भी थे. अगर थोड़ा समय सिद्धार्थ और रुक जाते तो शायद बात बन जाती.
# लेकिन बात बनी नहीं
29 जुलाई 2019 की शाम मछुआरे ने जो देखा, वो पुलिस को मिल गया. लेकिन उस मछुआरे के देखने और उस चीज़ के मिलने में 24 घंटे से ज़्यादा का वक़्त लगा. और पानी के अंदर इंसान ज़्यादा से ज़्यादा कुछ मिनट ही सांस ले सकता है. वी जी सिद्धार्थ का बेजान जिस्म पुलिस को मिल चुका है. कॉफ़ी किंग का सफ़र ख़त्म हो चुका है.
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