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उन लोगों की सुनिए, जिन्होंने अटल को अमीनाबाद की गलियों में रहते देखा है

1954 से पहले अटल दीनदयाल उपाध्याय के साथ लखनऊ में रहते थे.

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सबसे दाएं खड़े अटल

नफ़ासत के शहर लखनऊ में एक इलाका है अमीनाबाद. कहने वाले इसे लखनऊ का दिल भी कहते हैं. यहां एक बड़ा और खूबसूरत बाज़ार लगता है. ये आज की तारीख में भले जाम का मारा हो, लेकिन यहां आपको पूरा लखनऊ देखने को मिलेगा. जो लखनऊ का है और जो लखनऊ का हो रहा है... सब.

तो इस लखनऊ से अटल का गहरा नाता रहा है. और ये रिश्ता सिर्फ चुनाव लड़ने का नहीं है. अटल पैदा ज़रूर ग्वालियर में हुए, लेकिन उनके अड्रेस के कॉलम में एक नाम और आता है- लखनऊ. देश की आज़ादी और 1954 में अपना पहला चुनाव लड़ने के बीच अटल लखनऊ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारक थे.

इन दिनों वो लखनऊ के इसी अमीनाबाद में रहा करते थे. यहां एक मारवाड़ी गली है. उसी में अटल का कमरा था, जिसमें उनके साझीदार थे दीनदयाल उपाध्याय. पत्रकार रतन मणि लाल अपने एक लेख में उन लोगों की प्रतिक्रियाओं का ज़िक्र करते हैं, जिन्होंने अटल को लखनऊ में रहते देखा है. लोगों के ये वाकये एक स्टेट्समैन से इतर अटल बिहारी के व्यक्ति जीवन की छवि को उभारते हैं.

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प्रचारक के दिनों में अटल ने लखनऊ में इतनी साइकिल चलाई कि वो लखनऊ की करीब-करीब हर गली से वाकिफ हो गए थे. जिन्होंने भी उनके साथ वक्त गुज़ारा है, वो रतन मणि लाल को अटल की उदारता और खुशदिल मिजाज़ी के किस्से सुनाते हैं.

लखनऊ दूरदर्शन केंद्र के आत्मा प्रकाश मिश्रा याद करते हैं, 'दूसरों से मिलते समय उन्होंने अहंकार को कभी आड़े नहीं आने दिया. 1999 में लखनऊ में हुए आकाशवाणी अवॉर्ड्स प्रोग्राम में उन्होंने मेरे काम की तारीफ की थी. मैं पहली बार ऐसा कोई कार्यक्रम कर रहा था और बहुत नर्वस था. वाजपेयी ये भांप गए और उन्होंने मुझसे बात करके चीज़ें आसान कर दीं.'

लखनऊ के रहने वाले वैदिक ज्योतिषी देश दीपक तिवारी बताते हैं कि जब भी कोई किसी परेशानी में होता था, तो अटल के पास हमेशा उस आदमी के लिए कोई न कोई सलाह होती थी. देश दीपक की बहन की शादी अटल के भतीजे से हुई है, तो देश दीपक उन्हें मामाश्री बुलाते थे. पारिवारिक जीवन में में अटल की भूमिकाएं बताते हुए देश दीपक कहते हैं, 'वाजपेयी ने किसी को भी उनके पद और प्रतिष्ठा का गलत इस्तेमाल नहीं करने दिया. एक नेता और परिवार के मुखिया के तौर पर उनकी भूमिकाएं बिल्कुल अलग-अलग थीं.'

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बीजेपी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सदस्य रहे लखनऊ के केके शुक्ला 1993 का एक किस्सा बताते हैं, जब अटल बाबरी मस्ज़िद विध्वंस से बहुत दुखी हो गए थे. केके बताते हैं, 'उस समय बीजेपी के महासचिव राजनाथ सिंह सूर्य ने अटल पर चुटकी लेते हुए मीडिया से कहा था कि वाजपेयी कविता की चार लाइनें दोहराने के अलावा कुछ नहीं कर सकते. जब वाजपेयी को उनके इस कॉमेंट के बारे में पता चला, तो उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.'

'बाद में अटल एक होली-मिलन समारोह में गए, जहां सूर्य भी मौजूद थे. जब वहां वाजपेयी से कुछ कहने का आग्रह किया गया, तो उन्होंने एक कविता की चार लाइनें ही बोलीं. ज़ाहिर है कि निशाना सूर्य की तरफ था. लेकिन ये अटल की उदारता ही थी कि बाद में उन्होंने सूर्य की उस टिप्पणी को भूलते हुए उनका नाम राज्यसभा के लिए प्रस्तावित किया था.'


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