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ये सीलिंग क्या होती है जिसका दिल्ली में बड़ा हल्ला है

सीलिंग से जुड़े सवालों के ये हैं जवाब.

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देश की राजधानी दिल्ली में पिछले तीन महीनों से सीलिंग का बहुत हल्ला है. मकानों, दुकानों से लेकर बाजारों में दिल्ली नगर निगम सीलिंग कर रहा है. व्यापारी सड़कों पर धरने दे रहे हैं, नेता सदनों से लेकर अब सुप्रीम कोर्ट तक के चक्कर लगा रहे हैं. मगर दिल्ली में सीलिंग बदस्तूर जारी है. लाखों लोग इससे प्रभावित हैं .सीलिंग से जुड़े तमाम सवालों के ये हैं जवाब...
# सीलिंग है क्या और कौन करता प्रॉपर्टी सील?
किसी का घर सील हो गया है, किसी की दुकान और किसी का पूरा शॉपिंग कॉम्पलेक्स. इस तरह की तमाम खबरें दिल्ली में सुनने को मिल रही हैं. ताले पर सफेद पट्टी लपेट कर ऊपर से लाल रंग के मोम से सील कर दिया जाता है. सीलिंग से मतलब उस प्रॉपर्टी के इस्तेमाल को गैरकानूनी बनाना है जिस पर किसी भी तरह के नियमों के उल्लंघन का दोषी पाया गया है. सील लग गई मतलब उस प्रॉपर्टी को तब तक कोई यूज नहीं कर सकता, जब तक उस पर लगे ऑब्जेक्शन को दूर न किया जाए. अब सवाल ये कि कौन करता है प्रॉपर्टी सील. सीलिंग ज्यादातर केसों में नगर निगम करता है. या फिर वो बॉडी जो किसी शहर के निर्माण और विकास कार्यों के लिए बनी होती है. जैसे दिल्ली में दिल्ली विकास निगम (DDA). कोर्ट के आदेश के साथ किसी भी निर्माण को सील किया जाता है. उदाहरण के तौर पर दिल्ली में सीलिंग ड्राइव को सुप्रीम कोर्ट नियुक्त एक मॉनिटरिंग कमेटी चला रही है. ग्राउंड पर जाकर दिल्ली नगर निगम (MCD) इस मॉनिटरिंग कमेटी के दिशा-निर्देश पर सीलिंग कर रही है.
# कहां- कहां हो रही है प्रॉपर्टी सील?
दिल्ली में इसकी शुरुआत फरवरी महीने के पहले हफ्ते  में हुई थी. दक्षिणी दिल्ली के छत्तरपुर में फार्म हाउस, बैंक्वेट हॉल, मार्वल और पत्थर की दुकानों समेत कई शोरूम सील हुए थे. तब से सीलिंग ड्राइव लगभग पूरी दिल्ली में चल रही है. इनमें लाजपत नगर मार्केट, अमर कॉलोनी, ख़ान मार्केट, सरोजनी नगर, मॉडल टाउन, करोल बाग, कमला नगर, गांधी नगर, ग्रेटर कैलाश, ग्रीन पार्क और तिलक नगर जैसी जगहें शामिल हैं. दिल्ली में सुप्रीम कोर्ट ने एक कमेटी का गठन किया है जिसे मॉनिटरिंग कमेटी कहते हैं. ये कमेटी पूरी दिल्ली में उन जगहों को सील करवा रही है जहां रेसिडेंशियल प्रॉपर्टी को व्यापारिक गतिविधियों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. यानी जिस प्रॉपर्टी को रिहायशी उद्देश्य के लिए इस्तेमाल करने का परमिट दिया गया है, उसका व्यापारिक कामों में यूज करना गैरकानूनी है.
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# सीलिंग का असल कारण क्या है?
दिल्ली के बहुत सारे इलाकों में पहले मिक्सड लैंड यूज की इजाजत थी. यानी नीचे दुकान और ऊपर मकान बनाया जा सकता था. मगर टाइम के साथ लोगों ने अपनी जरूरतों के हिसाब से पूरी बिल्डिंग में ही कमर्शियल एक्टिविटी शुरू कर दीं. उदाहरण के लिए खान मार्केट और लाजपत नगर में पूरी बिल्डिंग में ही शोरूम खुल गए. फिर साल 2006 में मिक्सड लैंड यूज को खत्म कर दिया गया और इन इलाकों को कमर्शियल घोषित कर दिया गया. लोगों से कहा गया कि वो कनवर्जन चार्ज जमा करके प्रॉपर्टी का लैंड यूज बदलवा लें. मगर 10 सालों से भी ज्यादा समय बीतने और सीलिंग पर सुप्रीम कोर्ट की स्टे के चलते, स्थित वही बनी रही. अब इसी तरह की दुकानों, मकानों और शॉपिंग कॉम्पलेक्सों को दिल्ली नगर निगम सील कर रही है जिन्होंने कनवर्जन चार्ज जमा नहीं करवाया है और लैंड यूज भी चेंज नहीं करवाया है.
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सीलिंग के विरोध में व्यापारी धरनों पर हैं और धंधा ठप्प पड़ा है.

# क्या पहली बार हो रही है दिल्ली में सीलिंग?
दिल्ली में इतने बड़े स्तर पर सीलिंग पहली बार नहीं हो रही है. इससे पहले साल 2006 में दिल्ली हाईकोर्ट ने अवैध निर्माण हटाने और सील करने के आदेश दिए थे. खूब विरोध प्रदर्शनों के बीच चार लोगों की मौत भी हुई थी. उसी के चलते सुप्रीम कोर्ट ने ये मॉनिटरिंग कमेटी बनाई थी और अवैध निमार्णों को सील करने के आदेश दिए थे. उस दौरान कांग्रेस की सरकार केंद्र में थी और लोगों को सीलिंग और डिमोलिशन से राहत दिलाने के लिए सरकार ने मास्टर प्लान 2021 में संसोधन कर दिया था. कांग्रेस के अजय माकन उस वक्त शहरी विकास मंत्री थे और उन्होंने ही उस वक्त सीलिंग से राहत दिलाने के लिए मिक्स्ड लैंड यूज को खत्म कराया था.
अब दिसंबर 2017 में मॉनिटरिंग कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी एक रिपोर्ट जमा की. उसमें दिल्ली में प्रॉपर्टी नियमों के घोर उल्लंघन और अवैध निर्माण को हाइलाइट किया गया था. उसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने इस कमेटी को अपने साल 2012 के सीलिंग पर स्टे के आदेश का हटा दिया और इस कमेटी को प्रभावशाली तरीके से दिल्ली में प्रॉपर्टी नियमों को लागू करने की पावर दी. तब से ये कमेटी अपनी निगरानी में MCD से इस तरह नियमों का उल्लंघन करने वाली निर्माणों को सील करवा रही है.
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2007 से मिक्स्ड लैंड यूज खत्म कर दिया गया था.

# ये मास्टर प्लान क्या होता है?
किसी भी शहर के विकास के लिए जो नियम कायदे और विजन सरकार का होता है, उसे मास्टर प्लान कहा जाता है. उसमें तमाम वो कायदे कानून लिखे होते हैं कि कहां कितनी चौड़ी सड़क होगी, कितनी ऊंची इमारत होगी, कहां अस्पताल और कैसा बाजार होगा, आदि जानकारियां इसमें होती हैं. अभी मास्टर प्लान 2021 लागू है. DDA इसे पेश करता है और लागू करवाता है. दिल्ली में पहली बार मास्टर प्लान 1962 में लाया गया और साल 1981 तक ये लागू रहा. समय के साथ उस जगह की जरूरतें भी बदलती हैं और दिल्ली में 1981 के बाद मास्टर प्लान 2001 लागू हुआ. अब दिल्ली में मास्टर प्लान 2021 लागू है. वैसे हैरानी की बात ये भी है कि केंद्र सरकार 2021 के मास्टर प्लान में अभी तक 248 संसोधन करवा चुकी है.
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दिल्ली के विकास के लिए डीडीए बनाता है मास्टर प्लान.

# पार्किंग नियमों की अनदेखी पर भी हो रही है सीलिंग?
दिल्ली जैसे महानगरों में वाहनों का अंबार है. 2017 के आंकड़ों के हिसाब से अकेली दिल्ली में एक करोड़ वाहन हैं. इस बार सीलिंग का सबसे बड़ा कारण पार्किंग नियमों की अनदेखी भी है. दिल्ली में नगर निगम और डीडीए जब किसी भी बिल्डिंग का नक्शा पास करते हैं तो उसमें ग्राउंड फ्लोर में पार्किंग अनिवार्य है. बिना पार्किंग बनाए नक्शा पास  ही नहीं होता है. अब हो ये रहा था कि शुरुआत में ग्राउंड फ्लोर को पार्किंग के लिए छोड़ देते थे और नक्शा तो पास करवा लेते हैं. मगर गाड़ियां बाहर सड़क पर ही खड़ी करते हैं. फिर ग्राउंड प्लोर पर या तो रिहायश बन जाती है या फिर कोई दफ्तर, क्लीनिक या कोचिंग सेंटर. इस बार की सीलिंग में इस तरह के ग्राउंड फ्लोर को भी सील किया गया है. हो ये भी रहा था कि बिल्डरों ने पार्किंग लॉट को फ्लोर बनाकर बेच दिया और अब जो वहां ऑफिस या घर बनाकर रह रहा है उस पर सीलिंग की गाज़ गिर गई.
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नक्शे में पार्किंग हैं मगर वाहन सड़कों पर ही खड़े होते हैं.

# सीलिंग के लिए कौन है जिम्मेदार?
दिल्ली में लगातार जनसंख्या बढ़ रही है. जब 1961 में पहली बार मास्टर प्लान आया था तो यहां करीब 26 लाख लोग रहते थे. 2011 आते आते ये आंकड़ा 2 करोड़ के पास पहुंच गया है. 2021 तक ढाई करोड़ छू जाएगा. जनसंख्या जिस रफ्तार से बढ़ी है, उस रफ्तार से न तो लोगों में प्रॉपर्टी नियमों के प्रति जागरूकता बढ़ी और न ही सरकारों समेत नगर निगमों ने इस बारे में कोई दिलचस्पी दिखाई. 2006 में दिल्ली में मिक्सड लैंड यूज को खत्म कर दिया गया मगर ज्यादातर लोगों ने कनवर्जन चार्ज जमा नहीं करवाया. दिल्ली नगर निगम की इतनी ढिलाई रही कि वो लोगों से ये वसूल ही नहीं कर पाई. अब सुप्रीम कोर्ट के ऑर्डर के बाद सीलिंग होने से लोगों पर लाखों का कनवर्जन चार्ज बकाया हो गया है.
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MCD सालों से सीलिंग को टाल रही है मगर सख्ती से नियमों को लागू करवा पाने में असमर्थ है.

# क्या कहती हैं राजनीतिक पार्टियां?
दिल्ली में सीलिंग की मार सबसे ज्यादा व्यापारियों पर पड़ी है. ये व्यापारी वर्ग हर पार्टी का वोट बैंक भी है. पहले नोटबंदी से त्रस्त हुए, फिर जीएसटी ने कमर तोड़ी और अब सीलिंग से खासे नाराज हैं. यूं तो अब दिल्ली की तीनों पार्टियां एक साथ आकर सीलिंग से राहत दिलाने की बात कर रही हैं मगर अभी तक इन पार्टियों का ये स्टैंड रहा है-
बीजेपी: बीजेपी 15 सालों से एमसीडी में है और ये मान भी रही है कि सीलिंग बड़ी समस्या है. केंद्र में भी बीजेपी सरकार है और इस मुद्दे पर घिरी हुई है. विरोधी घेर रहे हैं कि 15 सालों से भाजपा ने सीलिंग पर कुछ नहीं किया. मगर बीजेपी इस चीज का क्रेडिट जरूर ले रही है कि उसने डीडीए के जरिए कनवर्जन चार्ज 80 हजार रूपए प्रति वर्ग फुट से घटाकर 22 हजार रूपए प्रति वर्ग फुट करवा दिया है जो अभी नोटिफाई नहीं  हुआ है. साथ ही कांग्रेस पर आरोप लगा रही है कि लंबे समय तक दिल्ली और सेंटर में रहते हुए इसका कोई पर्मानेंट समाधान नहीं निकाला.
कांग्रेस: कांग्रेस भी ये कहकर बच रही है कि साल 2006 में मास्टर प्लान में संसोधन कर शीला सरकार ने दिल्ली को सीलिंग से राहत दिलाई थी, मगर असल में ये गहरे घाव पर बैंडेज लगाने का काम था. अब कांग्रेस बीजेपी और आम आदमी पार्टी पर जिम्मेदारी डाल कर बच रही है कि दोनों ही सीलिंग के मुद्दे को लेकर सीरियस नहीं  हैं.
आम आदमी पार्टी: दिल्ली में सरकार चला रहे अरविंद केजरीवाल भी खुद को व्यापारियों के साथ खड़ा बता रहे हैं. वो कह रहे हैं कि एमसीडी में बीजेपी है, डीडीए भी सेंटर के हाथ में है और सेंटर में भाजपा है. तो सीलिंग पर सेंटर को दखल देना चाहिए. केजरीवाल ने सभी पार्टियों को इस मामले में एक साथ आने की अपील की है, साथ ही ये भी कहा था कि अगर सीलिंग न रूकी तो वो अनशन पर भी बैठ सकते हैं.
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तीनों बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी खुद को व्यापारियों के साथ बता रही हैं, मगर असल में कोई कुछ करने की स्थिति में है नहीं.



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