पाकिस्तान की एक जगह है और अमेरिका का एक एयरक्राफ्ट. क्रम से पढ़ें- किराना हिल्स और ‘B350’. ये दो कीवर्ड्स जिनके इर्द गिर्द एक बड़ा दावा किया गया. मसलन की इनको इस बात का आधार बनाया गया कि पाकिस्तान के परमाणु हथियार सुरक्षित नहीं हैं. और इन्हीं के कारण पाकिस्तान को भारत से सीजफायर की बात करनी पड़ी.
पाकिस्तान की न्यूक्लियर साइट पर अमेरिकी विमान B350 के दिखने के दावे, क्या बला है ये?
‘B350’ अमेरिका में न्यूक्लियर इमरजेंसी के लिए इस्तेमाल होता है. अमेरिका के पास 'B350AMS' मॉडल है. 'B350' एयरक्राफ्ट भारत के पास भी है. हमारे पास इसका 'B350ER' मॉडल है. हमारे यहां ये दूसरी तरह के मिलिट्री ऑपरेशन्स के लिए इस्तेमाल होता है. इस एयरक्राफ्ट को 'छोटा पैक बड़ा धमाका' क्यों कहते हैं और ये चर्चा में क्यों हैं?

10 मई की सुबह जब भारत ने पाकिस्तान के प्रमुख एयरबेस पर हमला किया. दावा ये किया गया कि इस दौरान सरगोधा में किराना हिल्स पर पाकिस्तान का 'न्यूक्लियर कमांड सेंटर' है. यानी कि पाकिस्तान ने यहां पर अपने परमाणु हथियार रखे हैं. दावा ये भी किया गया कि यहां या इसके आसपास धमाका हुआ.
इसके बाद एंट्री हुई ‘B350’ की. पूरा नाम- ‘Beechcraft King Air 350’. इसकी चर्चा इसलिए हुई क्योंकि ऐसा दावा किया गया कि अमेरिका का ‘B350’ एयरक्राफ्ट, हमलों के बाद पाकिस्तान पहुंचा है. अमेरिका ये एयरक्राफ्ट न्यूक्लियर इमरजेंसी के समय इस्तेमाल होता है. मतलब कि तब जब कहीं परमाणु हथियारों के कारण रेडिएशन हो. इन दावों की सच्चाई क्या है? इसको जानने से पहले इस एयरक्राफ्ट के बारे में सबकुछ जानेंगे.
‘B350’ अमेरिका में न्यूक्लियर इमरजेंसी के लिए इस्तेमाल होता है. अमेरिका के पास ‘B350AMS’ मॉडल है. ‘B350’ एयरक्राफ्ट भारत के पास भी है. हमारे पास इसका ‘B350ER’ मॉडल है. हमारे यहां ये दूसरी तरह के मिलिट्री ऑपरेशन्स के लिए इस्तेमाल होता है.
जब बात देश की सुरक्षा, आपदा राहत या खुफिया मिशनों की आती है, तो ज्यादातर लोग टैंक, फाइटर जेट्स या भारी-भरकम हेलीकॉप्टर की कल्पना करते हैं. लेकिन भारत का ‘B350ER’ एक ऐसा हवाई योद्धा है जो चुपचाप, बेहद स्मार्ट तरीके से बड़े काम कर रहा है. पहली नजर में ये एक छोटा, दो इंजन वाला विमान लगता है. लेकिन जैसे-जैसे इसकी परतें खुलती हैं, सामने आता है एक हाई-टेक, मल्टीटास्किंग ‘हवाई जासूस’.
‘Beechcraft King Air 350ER’ दरअसल एक ट्विन-इंजन टर्बोप्रॉप एयरक्राफ्ट है. इसे अमेरिका की कंपनी ‘Beechcraft’ (अब Textron Aviation) ने तैयार किया है. इसे खासतौर पर लंबी दूरी की निगरानी, मिशन, मेडिकल इमरजेंसी और खुफिया कार्यों के लिए डिजाइन किया गया है.
भारत ने इस ‘मल्टीपर्पज एयरक्राफ्ट’ को अमेरिका से खरीदा. हालांकि डील की सटीक जानकारी सरकार ने सार्वजनिक नहीं की है, लेकिन अनुमान है कि भारतीय वायुसेना, नौसेना और कुछ खुफिया एजेंसियों के पास मिलाकर Beechcraft के करीब 50 विमान हैं. जिनमें कई 350ER मॉडल भी शामिल हैं. ये विमान धीरे-धीरे भारत के डिफेंस इंफ्रास्ट्रक्चर का अभिन्न हिस्सा बनते जा रहे हैं.
तकनीकी खूबियां: छोटा मगर ताकतवरKing Air 350ER की सबसे बड़ी ताकत इसकी टेक्नोलॉजी और भरोसेमंद परफॉर्मेंस है. आइए कमाल के फीचर्स जानते हैं-
- इंजन: 2 × Pratt & Whitney PT6A-60A टर्बोप्रॉप, हर एक 1,050 हॉर्सपावर वाला.
- स्पीड: 578 किमी/घंटा (क्रूज स्पीड).
- रेंज: एक बार में उड़ सकता है 4,985 किमी तक.
- अधिकतम ऊंचाई: 35,000 फीट.
- पेलोड क्षमता: 3,240 किलोग्राम.
और ये सब महज एक छोटे, कॉम्पैक्ट एयरक्राफ्ट में!
अंदर से है बिल्कुल डिजिटलइस विमान में लगा है ‘Collins Pro Line 21’ एवियोनिक्स सिस्टम. यानी कि उड़ता हुआ डिजिटल कंट्रोल रूम! इसमें हैं-
- तीन टचस्क्रीन डिस्प्ले.
- सिंथेटिक विजन.
- मौसम का रडार.
- टेरेन अवॉइडेंस सिस्टम.
- EO/IR सेंसर (दिन-रात निगरानी के लिए).
- इसके चलते ये विमान सिर्फ उड़ता नहीं, हर पल आसपास की हरकतों को रिकॉर्ड और विश्लेषण भी करता है.
‘King Air 350ER’ की असली ताकत इसकी वर्सटिलिटी है. चाहे निगरानी हो या मेडिकल इमरजेंसी, ये हर भूमिका में अव्वल है.
- बॉर्डर और कोस्टल निगरानी- सीमा पार दुश्मन की हलचल पर पैनी नजर.
- आपदा राहत- बाढ़, भूकंप जैसे संकट में सबसे तेज पहुंचने वाला सहायक.
- एयर एम्बुलेंस- मेडिकल इमरजेंसी में जान बचाने वाला देवदूत.
- पायलट ट्रेनिंग- नए पायलटों को तैयार करने का भरोसेमंद प्लेटफॉर्मदुनिया में कहां-कहां उड़ रहा है ये?
भारत ही नहीं, अमेरिका, फ्रांस, कुवैत, पाकिस्तान जैसे कई देश इस एयरक्राफ्ट का इस्तेमाल करते हैं.
अमेरिका में इसे “MC-12W Liberty” नाम से जाना जाता है और इसका उपयोग मुख्यतः निगरानी और इंटेलिजेंस ऑपरेशनों के लिए होता है.
एक King Air 350ER की कीमत करीब 8 मिलियन डॉलर यानी लगभग ₹60 करोड़ रुपये है. भारत ने इसकी कितनी यूनिट्स खरीदी हैं? ये जानकारी गोपनीय है. लेकिन इतना साफ है कि ये विमान अब हमारी वायुसेना और रक्षा एजेंसियों की रीढ़ बन चुके हैं.
ये उस एयरक्राफ्ट की मिसाल है जो दिखने में तो मामूली लगता है, लेकिन काम ऐसा करता है जो बड़े-बड़े जेट्स भी नहीं कर पाते. इसकी कुछ और विशेषताएं भी हैं-
- सटीकता के साथ निगरानी.
- तेज रिस्पॉन्स.
- हाईटेक सेंसर.
- मल्टी-मिशन रोल्स में कमाल की परफॉर्मेंस.
ये ऐसा जहाज है जो जरूरत पड़ने पर चुपचाप उड़ान भरता है. न कोई शोर, न कोई दिखावा. लेकिन काम ऐसा करता है कि जमीन पर बदलाव दिखता है. बाढ़ में फंसे लोगों की मदद करनी हो या मेडिकल इमरजेंसी में किसी की जान बचानी हो. इस विमान ने हर बार खुद को एक भरोसेमंद साथी साबित किया है. और यही वजह है कि इसे "भारत के उड़ते हुए आंख-कान" कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा.
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किराना हिल्स की सच्चाई?कई पत्रकारों ने पाकिस्तान के 'परमाणु कमांड सेंटर' को लेकर अपने-अपने सूत्रों के हवाले से जानकारी दी है. लेकिन इस पूरी चर्चा में तीन सबसे अहम स्टेक होल्डर्स हैं? पहला- पाकिस्तान, दूसरा भारत और तीसरा अमेरिका.
पाकिस्तान ने अब तक आधिकारिक रूप से इस बात को स्वीकार नहीं किया है. भारत ने भी स्वीकार नहीं किया है. मसलन कि 12 मई को हुई प्रेस कॉन्फ्रेंस में इंडियन एयर मार्शल अवधेश भारती ने इस बारे में सवाल में पूछा गया. एक पत्रकार ने पूछा,
क्या भारत ने किराना हिल्स को निशाना बनाया जहां पाकिस्तान के न्यूक्लियर हथियार हैं?
इस पर चुटकी लेते हुए एयर मार्शल भारती ने कहा,
हमें ये बताने के लिए शुक्रिया कि पाकिस्तान की परमाणु फैसिलिटी किराना हिल्स पर स्थित है. हमने किराना हिल्स को निशाना नहीं बनाया, चाहे वहां जो कुछ भी रहा हो. मैंने कल अपनी ब्रीफिंग में भी किराना हिल्स का जिक्र नहीं किया था.
अब नंबर आता अमेरिका का पक्ष जानने का. अमेरिकी विदेश विभाग के प्रिंसिपल डिप्टी स्पोक्सपर्सन टॉमी पिगॉट से पूछा गया, "क्या अमेरिका ने अपनी कोई टीम रेडिएशन की जांच के लिए पाकिस्तान भेजी है. उन्होने जवाब दिया कि इस वक्त उनके पास इस बारे में बात करने या कोई अंदाजा लगाने के लिए कुछ नहीं है.
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