साल 2021. दिल्ली के एक थाने में सब इन्स्पेक्टर (SI) धर्मेंद्र कुमार अपनी चेयर में बैठे हैं. उनके सामने मटमैली हो चुकी डोरी से बंधी और धूल से भरी हुई एक फ़ाइल रखी है. फ़ाइल को झाड़कर इंस्पेक्टर धर्मेंद्र एक पन्ना पलटते हैं. ये एक 25 साल पुराने केस की फ़ाइल थी. मामला मर्डर का था. आरोपी फरार थे. और केस ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था. क़ानून के घर देर है, अंधेर नहीं. ये साबित करने के इरादे से इन्स्पेक्टर धर्मेंद्र ने मामले की दोबारा जांच शुरू की. लेकिन जांच हो कहां से? सुराग के नाम पर पुलिस के पास कुछ नहीं था. यहां तक कि आरोपियों की तस्वीर भी नहीं. जिस ऑफिसर ने केस की शुरुआती जांच की थी. वो रिटायर हो चुके थे. और केस से जुड़े बाकी सब लोगों से भी कांटेक्ट नहीं हो पा रहा था. केस सुलझाना मुश्किल था.
जब पुलिस ने भंडारा कराकर 25 साल पुराने केस की गुत्थी सुलझाई
एक आरोपी को पकड़ने के लिए पहले पुलिस ने ख़ुद को इंश्योरेंस एजेंट बताया. फिर दूसरे आरोपी को पकड़ने के लिए तीन बार भंडारे का आयोजन किया.

लेकिन फिर पुलिस के हाथ एक नाम लगा. कहानी शुरू हुई एक इंश्योरेंस स्कीम के नाटक से. भेष बदले गए. फ़र्ज़ी फॉर्म भरवाए गए. फ्री रिक्शा की स्कीम निकाली गई. और जब इनसे भी बात न बनी, तो अंत में पुलिस को करना पड़ा एक भंडारा. दरअसल ये 1997 में हुए एक क़त्ल की कहानी है. इस क़त्ल के आरोपियों को पुलिस ने कैसे खोजकर निकाला? इस पर होगी बात.
टिल्लू और रामू1997 का साल था. जगह दिल्ली के तुगलकाबाद इलाक़े का वाल्मीकि मोहल्ला. पिछली रात घर में पार्टी थी, इसलिए सुनीता उस रोज़ थोड़ा देर से उठी. सुनीता घर के आँगन में आई, तो देखा वहां खून फैला हुआ था. पास में उसके पति किशन लाल की लाश पड़ी हुई थी. किशन के शरीर पर किसी ने चाकू से वार किया था. सुनीता ये नजारा देखकर बेसुध हो गई. होश आया, तो सुनीता को पिछली रात की कुछ बातें भी याद आई. जब उसने अपने पति को दो लोगों से बातें करते हुए देखा था. रामू और टिल्लू. रामू, टिल्लू की बहन का पति था. दोनों किशन लाल का घर खरीदना चाहते थे. ये कहानी सुनीता ने पुलिस को बताई. पुलिस रामू और टिल्लू को खोजने गई, तो पता चला दोनों गायब हैं. ये वो दौर था, जब मोबाइल फ़ोन आम नहीं हुए थे. सर्विलांस का कोई ज़रिया नहीं था. पुलिस ने कई महीनों तक दोनों को खोजने की कोशिश की. लेकिन जब उनका कुछ पता नहीं चला, तो पटियाला हाउस कोर्ट ने दोनों को भगौड़ा अपराधी घोषित कर दिया. और केस पुलिस की फाइलों में दब गया.
फिर कहानी पहुंची साल 2021 में. तब इस केस को दोबारा खोला गया. अबकी बार पुलिस ने नए सिरे से टिल्लू और रामू की खोज शुरू की. रामू के बारे में पुलिस को इतना पता था कि वो उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद का रहने वाला है. पुलिस पूछताछ में पता चला कि इतने सालों में रामू एक बार भी घर नहीं लौटा. केस का कोई सिरा नजर ही नहीं आ रहा था. इसलिए पुलिस पहुंची सीधा सुनीता के पास, जिनके पति के क़त्ल का केस था. पुलिस तुग़लकाबाद के वाल्मिकी मुहल्ले गई, लेकिन सुनीता वहां से घर छोड़कर चली गई थीं. किस्मत से पुलिस को सुनीता के नये पते के बारे में जानकारी मिली. पुलिस सुनीता के नए एड्रेस पर पहुंची. सुनीता की उम्र अब काफी हो चुकी थी. जब पुलिस ने उन्हें बताया कि उनके पति के मर्डर का केस दोबारा खोल रहे हैं, तब सुनीता ने जवाब दिया कि वो आगे बढ़ चुकी है. और दोबारा पुराने घावों को जिन्दा नहीं करना चाहतीं.
पुलिस निराश थी. तभी सुनीता का बेटा सनी आगे आया. किशन लाल की हत्या के वक़्त सुनीता पेट से थीं. सनी अब बड़ा हो चुका था. उसने पुलिस से कहा कि वो अपने पिता के कातिलों को ढूंढने में हर ज़रूरी मदद करेगा. इसके बाद पुलिस को सुनीता और सनी के पास से एक महत्वपूर्ण सुराग मिला. पता चला कि हत्या के एक आरोपी रामू का एक बड़ा भाई भी था. उसकी और उसकी पत्नी की मृत्यु हो चुकी थी, लेकिन उसका एक बेटा था- शिवकर. उसने लाली नाम की लड़की से शादी की थी और लाली का ससुराल सुनीता के घर के नजदीक था. सुनीता ने पुलिस को ये भी बताया कि लाली की सास की मौत, एक रोड एक्सीडेंट में हुई थी. शिवकर इंश्योरेंस का क्लेम लेने की कोशिश कर रहा था, लेकिन मामला फंस गया था. पुलिस ने ये पूरी कहानी सुनी. लेकिन सवाल अब भी वही, रामू और टिल्लू तक कैसे पहुंचा जाए. पुलिस ने सोचा क्यों न इंश्योरेंस वाले मामले उठाकर कुछ राज उगलवाए जाएं. यहां से शुरू हुआ एक नाटक.

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पुलिस को लाली के नजदीकियों का पता मिल गया था. वहां से उन्हें लाली और शिवकर का पता मिला, जो उत्तम नगर में रहते थे. हिंदुस्तान टाइम्स की 2022 की एक रिपोर्ट के अनुसार, पुलिस वाले शिवकर और लाली के घर पहुंचे, लेकिन पुलिस वाले बनकर नहीं, इंश्योरेंस एजेंट बनकर. पुलिस ने शिवकर को बताया कि इंश्योरेंस का कुछ पैसा मिलना बाक़ी है, लेकिन इसके लिए शिवकर को बाक़ी परिवार के बारे में बताना पड़ेगा. पुलिस ने शिवकर से कहा कि सभी परिवार वालों से नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट लेना ज़रूरी है. शिवकर ने अपने सभी परिवार, नाते रिश्तेदारों का नाम पता बता दिया. हालांकि उसने रामू के बारे में कुछ नहीं कहा. पुलिस पशोपेश में. रामू के बारे में पूछने पर शिवकर चौकन्ना हो जाता, इसलिए पुलिस ने उससे कुछ फॉर्म भरवाए और वापस चली गई. कुछ रोज़ बाद पुलिस एक बार फिर शिवकर के पास पहुंची. इस बार नए लोग गए. शिवकर से कहा गया कि फॉर्म में कुछ ग़लती हो गई. बातों-बातों में उन्होंने शिवकर से रामू के बारे में भी पूछ लिया. शिवकर को रामू का कुछ पता नहीं था. हालांकि, उसके पास रामू के बेटे आकाश का फ़ोन नंबर था. फ़ोन नंबर लेकर पुलिस लौट आई. लेकिन जब नंबर मिलाया, तो वो बंद निकला. फिर पुलिस ने आकाश के नंबर को ट्रेस किया, तो पता चला कि वो नंबर लखनऊ में है. दिल्ली से पुलिस की एक टीम सीधा रवाना हुई लखनऊ.

लखनऊ में पुलिस को जो पता मिला था, वो खाली था. आकाश वहां से जा चुका था. ये एक और डेड एन्ड था. इसके बाद पुलिस ने आकाश को फ़ेसबुक पर खोजा. वहां आकाश के एक दोस्त का कॉन्टैक्ट मिला. दोस्त ने आकाश का नया पता बताया. आकाश लखनऊ के कपूरथला इलाक़े में रहता था. पुलिस वहां जाकर उससे मिली. इस बार भी उन्होंने आकाश को अपनी असली पहचान नहीं बताई. सिर्फ़ कहा कि एक इंश्योरेंस के मामले में वो रामू को तलाश रहे हैं. पुलिस को यहां से भी मायूसी हाथ लगी. बेटा होने के बावजूद आकाश को रामू के बारे में पता नहीं था. उसने कहा कि उसके पिता का नाम रामू नहीं, अशोक यादव है और दोनों के बीच सालों से बात नहीं हुई है. रामू ही अशोक यादव है या पुलिस से कुछ गलती हो गई, ये पक्का करने के लिए अशोक यादव से मिलना ज़रूरी था. आकाश ने पुलिस को बताया कि अशोक जानकीपुरम इलाक़े में रिक्शा चलाता है. पुलिस सीधे वहां पहुंची. पुलिस वहां भी भेष बदलकर पहुंची. क्योंकि अगर अशोक यादव ही रामू था, तो वो पुलिस को देखते ही भाग जाता. लिहाजा पुलिस ने जानकी पुरम इलाके के कुछ रिक्शा वालों से मुलाक़ात की. उन्हें बताया कि सरकार ने एक फ्री रिक्शा स्कीम निकाली है. इसी के सिलसिले में वो अशोक यादव से मिलना चाहते हैं. यहां से पुलिस को पता चला कि अशोक रेलवे स्टेशन के पास रिक्शा चलाता है.
14 सितंबर 2022 की सुबह पुलिस रेलवे स्टेशन पहुंची. वहां किसी ने उन्हें एक आदमी की तरफ इशारा कर बताया, 'यही अशोक यादव है'. पुलिस अशोक यादव से मिली और स्कीम के बारे में बताते हुए उसका असली नाम पूछा. अशोक यादव ने कहा वो किसी रामू को नहीं जानता. उसने इस बात से भी साफ़ इंकार कर दिया कि वो कभी दिल्ली में रहता था. अब पुलिस क्या करे. उनके पास रामू की कोई तस्वीर नहीं थी. इसलिए आख़िर में सुनीता को लखनऊ बुलाया गया.
14 सितम्बर की शाम सुनीता और सनी लखनऊ पहुंचे. अशोक यादव को 20 सेकेंड घूरने के बाद सुनीता चिल्ला पड़ी. हाँ यही रामू है. इसके बाद वो बेहोश हो गई. पुलिस के पास अब एक पुख्ता गवाह था. उन्होंने अशोक यादव से सख्ती से पूछताछ की. आख़िरकार उसने स्वीकार कर लिया कि वही रामू है. हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार रामू ने अपने गुनाह का इकरार भी कर लिया. उसने हत्या की वजह भी बताई. हुआ ये था कि रामू और टिल्लू, किशन लाल का घर खरीदना चाहते थे. रात को तीनों शराब पार्टी में मिले. तीनों में किसी बात को लेकर बहस हुई और कथित रूप से टिल्लू और रामू ने किशन लाल का ख़ून कर दिया. रामू अपना जुर्म कबूलने के बाद जेल भेज दिया गया. हालांकि इस केस का एक आरोपी अभी भी पुलिस की पहुंच से दूर था. टिल्लू.
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भंडाराटिल्लू के बारे में जानकारी जुटाते-जुटाते पुलिस को पता चला कि टिल्लू बाबा बन गया है. उसने अपना नाम रामदास रख लिया था. वो मंदिरों के चक्कर लगाते हुए अक्सर धर्मशालाओं में रुका करता था. 2023 में पुलिस को पता चला कि टिल्लू कन्याकुमारी में है. लेकिन पुलिस वहां पहुंचती, इससे पहले ही टिल्लू उर्फ़ रामदास पुरी जगन्नाथ चला गया. वहां से ट्रेस करते-करते पुलिस ने पता लगाया कि अप्रैल 2024 से वो ऋषिकेश में रह रहा है. हालांकि टिल्लू के पास एक मोबाइल था, लेकिन वो रेयर ही उसका इस्तेमाल करता था. इसके अलावा पुलिस के पास उसकी भी फोटोग्राफ नहीं थी. इसलिए पुलिस को बहुत सावधानी से आगे बढ़ना था. टिल्लू की फील्डिंग लगाने के लिए पुलिस ने भेष बदलकर ऋषिकेश की रेकी की. वहां पुलिस को एक टिप मिली. जिसके अनुसार टिल्लू उर्फ़ रामदास, कुछ मंदिरों में जाता था. और वहीं भोग आदि से उसका खाने का इंतज़ाम हो जाया करता था. टिप हासिल कर पुलिस ने टिल्लू को पकड़ने का एक प्लान बनाया. कैसे?

पुलिस की टीम ने एक भंडारे का आयोजन किया. उन्हें उम्मीद थी टिल्लू भंडारे में खाने ज़रूर आएगा. लेकिन पहली बार में पुलिस को निराशा हाथ लगी. टिल्लू भंडारे में नहीं आया. इसके बाद पुलिस ने दो और भंडारे किए. तीसरे भंडारे में जैसे ही टिल्लू पहुंचा. पुलिस ने उसे धर दबोचा. इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, पूछताछ में टिल्लू ने भी अपना जुर्म कबूल कर लिया. पुलिस को ये भी पता चला कि टिल्लू ने रामदास नाम से आधार कार्ड बनवा लिया था. ताकि वो पुलिस से बच सकें. उसे उम्मीद थी कि 25 साल बाद इस केस को सब भूल गए होंगे. लेकिन ऐसा नहीं हुआ. टिल्लू उर्फ़ रामदास और रामू दोनों पकड़े गए. दोनों पर अब केस चलेगा. फिलहाल इस केस ने एक बात तो प्रूव कर दी. पुलिस चाहे तो 25 साल पुराना केस भी सॉल्व कर सकती है.
वीडियो: तारीख: 25 साल पुराना मर्डर केस, भंडारा खाने के चक्कर में फंस गया आरोपी