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43 बार सुनवाई टालने पर सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट को फटकारा, आरोपी को तुरंत दी बेल

Justice BR Gawai और Justice NV Anjaria की बेंच ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में High Courts से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे मामले को लंबे समय तक लंबित रखें. और समय-समय पर सुनवाई स्थगित करने के अलावा कुछ न करें.

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सुप्रीम कोर्ट(बाएं) ने इलाहाबाद हाईकोर्ट (बाएं) को फटकार लगाई है. (इंडिया टुडे)

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने एक व्यक्ति की जमानत याचिका पर 43 बार सुनवाई स्थगित किए जाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad High Court) को फटकार लगाई है. मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस बीआर गवई (Justice BR Gawai) और जस्टिस एनवी अंजारिया (Justice NV Anjaria) की बेंच ने कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में इस तरह से बार-बार सुनवाई स्थगित करना स्वीकार्य नहीं है.

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बार एंड बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट ने साढ़े तीन साल से भ्रष्टाचार के मामले में जेल में बंद आरोपी रामनाथ मिश्रा को जमानत दे दी है. इसके साथ ही 43 बार सुनवाई स्थगित करने के लिए शीर्ष कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट की आलोचना की. जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एनवी अंजारिया की बेंच ने कहा ,

 संवैधानिक न्यायालयों को जमानत के मामलों पर तेजी से विचार करना चाहिए. व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में किसी भी हाईकोर्ट से यह अपेक्षा नहीं की जाती कि वे मामले को लंबे समय तक लंबित रखे. और समय-समय पर सुनवाई स्थगित करने के अलावा कुछ न करें.

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सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने कहा कि मौजूदा मामले में 43 बार सुनवाई स्थगित की जा चुकी है. और आरोपी साढ़े तीन साल से जेल में है. लिहाजा उसे जमानत देना उचित रहेगा. मामले में सीबीआई का पक्ष रख रहे एडिशनल सॉलिसिटर जनरल एस डी संजय ने जमानत याचिका का विरोध किया. उन्होंने कहा कि जब तक मामला हाईकोर्ट में लंबित है तो जमानत देना गलत मिसाल कायम करेगा.

जस्टिस गवई और जस्टिस अंजारिया की बेंच ने उनकी दलीलों को खारिज करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता के लंबे समय से जेल में रहने और मामले को बार-बार स्थगित किए जाने के कारण उनके पास हस्तक्षेप करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा है.

सुप्रीम कोर्ट ने ये भी बताया कि इसी साल मई में उसने इसी मामले में एक सह अभियुक्त को जमानत दे दी थी, क्योंकि हाईकोर्ट ने उसकी जमानत याचिका पर 27 बार सुनवाई स्थगित की थी. तब भी कोर्ट ने टिप्पणी की थी कि ऐसे मामलों को अधर में लटकाए रखना व्यक्तिगत स्वतंत्रता की संवैधानिक गारंटी को कमजोर करता है. 

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जस्टिस गवई और जस्टिस अंजारिया की बेंच ने आरोपी को जमानत देते हुए कहा कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के मामलों में देरी को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता. साथ ही कोर्ट ने निचली अदालत को कानून के अनुसार कार्यवाही जारी रखने का निर्देश दिया. 

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