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पानी भरा हो तो सड़क पर चलने से बचें, किडनी में पहुंच रहा है खतरनाक बैक्टीरिया

सड़क पर भरे पानी से लेप्टोस्पायरोसिस हो सकता है. डॉक्टर से जानिए कि लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी क्यों होती है. ये बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया, शरीर में कैसे जाते हैं. इसके लक्षण क्या हैं और इससे बचा कैसे जा सकता है.

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पानी भरी सड़क पर चलने से लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी हो सकती है (फोटो: Freepik)

इस बार क्या जम के बारिश हो रही है. अब कुछ लोग इससे बहुत खुश हैं, तो कुछ लोग दुखी. खासकर वो लोग, जिनके यहां ज़रा-सी बारिश होते ही पानी भर जाता है. देशभर में ऐसी सैकड़ों जगह हैं. मगर सुर्खियों में अक्सर मुंबई, गुरुग्राम ही रहते हैं.

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पानी भरने से न सिर्फ़ जीना मुहाल हो जाता है, बल्कि बीमारियां भी घेर लेती हैं. नहीं, नहीं, हम डेंगू, मलेरिया, चिकनगुनिया की बात नहीं कर रहे. ये तो हर साल का है. हम बात कर रहे हैं लेप्टोस्पायरोसिस नाम की बीमारी की. जिसने इस बार बारिश में लोगों को परेशान कर दिया है. खासकर मुंबई में रहने वालों को. मुंबई में लेप्टोस्पायरोसिस के मामले बहुत तेज़ी से बढ़ रहे हैं.

इन्फेक्शन इतना फैल गया है कि BMC ने कहा है, जो लोग बारिश के पानी से भरी सड़कों से गुज़रे हैं, उन्हें 72 घंटों के अंदर लेप्टोस्पायरोसिस से बचने के लिए दवाएं ले लेनी चाहिए. 

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दरअसल, लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी बारिश से हो रहे जल भराव की वजह से फैल रही है. ये सिर्फ मुंबई ही नहीं, हर उस जगह हो सकती है जहां पानी भरता है. इसलिए अगर आप पानी से भरी सड़कों से होते हुए ऑफिस जाते हैं. बाज़ार जाते हैं या किसी भी वजह से ऐसी सड़कों से गुज़रना पड़ता है तो सावधान हो जाइए. आपको लेप्टोस्पायरोसिस का ख़तरा है.  

डॉक्टर से जानिए कि लेप्टोस्पायरोसिस बीमारी क्यों होती है. ये बीमारी पैदा करने वाले बैक्टीरिया, शरीर में कैसे जाते हैं. इसके लक्षण क्या हैं और इससे बचा कैसे जा सकता है.

लेप्टोस्पायरोसिस क्या होता है?

ये हमें बताया डॉ. प्रभात रंजन सिन्हा ने. 

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dr prabhat ranjan sinha
डॉ. प्रभात रंजन सिन्हा, सीनियर कंसल्टेंट, इंटरनल मेडिसिन, आकाश हेल्थकेयर

बारिश के मौसम में जल-जमाव और फ्लडिंग की समस्या बहुत आम है. पानी के भरने से बहुत तरह की बीमारियां हो सकती हैं. दूषित पानी से होने वाली कुछ बीमारियां हैं- डायरिया, पेचिश, वायरल हेपेटाइटिस, गैस्ट्रोएंटेराइटिस और लेप्टोस्पायरोसिस. 

लेप्टोस्पायरोसिस एक तरह का बैक्टीरिया होता है. इसे स्पाइरोकीट बैक्टीरिया कहा जाता है. ये बैक्टीरिया रोडेंट, जैसे चूहे, गिलहरी और जानवरों में पाया जाता है. 

जब जानवरों के शरीर में रहने वाले बैक्टीरिया इंसानों के शरीर में पहुंचकर इन्फेक्शन पैदा करते हैं, तो उसे ज़ूनोटिक डिज़ीज़ कहते हैं. यानी ऐसी बीमारी जो जानवरों से होती है.

लेप्टोस्पायरोसिस का बैक्टीरिया शरीर में कैसे आता है?

लेप्टोस्पायरोसिस का बैक्टीरिया जानवरों की किडनी में जमा होता है. अब किडनी का काम यूरिन बनाना है. इसलिए ये बैक्टीरिया यूरिन के ज़रिए जानवरों के शरीर से बाहर निकलता है. अगर जानवरों का इन्फेक्टेड यूरिन पानी में जाकर मिल जाए, तो वो पानी दूषित हो जाता है. फिर अगर ये पानी पी लिया जाए, स्किन के संपर्क में आ जाए या घाव में लग जाए तो ये बैक्टीरिया खून में मिल सकता है. नतीजा? इससे इंसानों में भी इन्फेक्शन हो जाता है. 

जब बैक्टीरिया शरीर में घुसता है तो तुरंत लक्षण नहीं दिखते. इन्फेक्शन को पनपने में 3-15 दिन का समय लग सकता है. ये इंसान की इम्यूनिटी पर निर्भर करता है. शरीर में घुसने के बाद ये बैक्टीरिया अंदर-ही-अंदर बढ़ते हैं. लेप्टोस्पायरोसिस का बैक्टीरिया इंसानों की किडनी में जाकर बैठ जाता है. वहां से पूरे शरीर में फैलना शुरू होता है.

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लेप्टोस्पायरोसिस के शुरुआती लक्षण वायरल बुखार और फ्लू जैसे होते हैं (फोटो: Freepik)

लक्षण

लेप्टोस्पायरोसिस के शुरुआती लक्षण वायरल बुखार और फ्लू जैसे होते हैं. जैसे सर्दी-ज़ुकाम, तेज़ बुखार, आंखों में लाली, सिर दर्द, जोड़ों में दर्द. 

ऐसा नहीं है कि लेप्टोस्पायरोसिस सबमें घातक होता है. कुछ लोगों में रिकवरी हो जाती है. 92-95% लोग इन लक्षणों के बाद ठीक हो जाते हैं. लेकिन कुछ मरीज़ों में लक्षण गंभीर हो जाते हैं. किडनी फेलियर, लिवर फेलियेर, पीलिया, लंग्स में इन्फेक्शन या हैमरेज भी हो सकता है. 

बचाव

खुला ज़ख्म है तो दूषित पानी में न जाएं. जहां जल-जमाव है, वहां न जाएं. दूषित पानी न पिएं, न उसमें खेलें. अगर ऐसे पानी में जाना पड़ रहा है तो पूरी सावधानी के साथ जाएं. रबर के जूते और हैंड ग्लव्स पहनें. अगर लक्षण महसूस हों तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं. 

लेप्टोस्पायरोसिस बहुत गंभीर बीमारी नहीं है. लेकिन कुछ लोगों में ये गंभीर रूप ले सकती है. खासकर उनमें, जिनकी इम्यूनिटी कमज़ोर है. जैसा डॉक्टर साहब ने बताया, लेप्टोस्पायरोसिस के ज़्यादातर मामले हल्के होते हैं. लक्षणों के आधार पर इलाज होता है. एंटीबायोटिक्स दी जाती हैं और लोग ठीक हो जाते हैं. क्रिटिकल पेशेंट्स को अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत पड़ती है. इसलिए अगर लेप्टोस्पायरोसिस के लक्षण महसूस हो रहे हैं तो डॉक्टर को ज़रूर दिखाएं.

(यहां बताई गई बातें, इलाज के तरीके और खुराक की जो सलाह दी जाती है, वो विशेषज्ञों के अनुभव पर आधारित है. किसी भी सलाह को अमल में लाने से पहले अपने डॉक्टर से ज़रूर पूछें. दी लल्लनटॉप आपको अपने आप दवाइयां लेने की सलाह नहीं देता.)

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