सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) को सख्त हिदायत दी है कि उन्हें कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा, न कि किसी ‘बदमाश’ की तरह. साल 2022 में शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के तहत गिरफ्तारी, तलाशी और जब्ती की ED की शक्तियों को बरकरार रखा था. इसी फैसले पर पुनर्विचार की मांग करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर की गई थीं.
ED को सुप्रीम लताड़: ‘बदमाशों’ की तरह नहीं, कानून के मुताबिक चलो!
ED की ओर से दलील दी गई कि 'बदमाशों' के पास बहुत सारे साधन हैं, जबकि जांच अधिकारी के पास नहीं है. उन्होंने आरोप लगाया कि इन याचिकाओं के जरिए जांच में देरी करने की कोशिश की जाती है.

7 अगस्त को इन्हीं याचिकाओं पर जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस उज्जल भुइयां और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने सुनवाई की. इस दौरान ED की ओर से पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू ने कहा कि ये याचिकाएं विचार करने योग्य नहीं हैं. उन्होंने दलील दी कि ‘बदमाशों’ के पास बहुत सारे साधन हैं, जबकि जांच अधिकारी के पास उतने साधन नहीं हैं. उन्होंने आरोप लगाया कि इन याचिकाओं के जरिए जांच में देरी करने की कोशिश की जाती है.
इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने सख्त लहजे में ED से कहा,
10 प्रतिशत से भी कम कनविक्शनआप बदमाश की तरह काम नहीं कर सकते. आपको कानून के दायरे में रहकर काम करना होगा.
कानून लागू करने और कानून का उल्लंघन करने में अंतर होता है…
जस्टिस उज्जल भुइयां ने ED की कार्यशैली पर चिंता जताई और कहा,
मैंने एक अदालती कार्यवाही में देखा था कि आपने लगभग 5,000 से अधिक 'एनफोर्समेंट केस इंफॉर्मेशन रिपोर्ट' (ECIR) दर्ज किए हैं. 2015 से 2025 तक कनविक्शन (दोषसिद्धी) की दर 10 प्रतिशत से भी कम है. इसलिए हम आग्रह कर रहे हैं कि आप अपनी जांच प्रक्रिया में सुधार करें, अपने गवाहों की गुणवत्ता में सुधार करें.
हम लोगों की स्वतंत्रता के बारे में बात कर रहे हैं. हम ED की छवि को लेकर भी चिंतित हैं. 5 से 6 साल की न्यायिक हिरासत के बाद, अगर लोग बरी हो जाते हैं, तो इसका भुगतान कौन करेगा.
एसवी राजू ने दावा किया कि PMLA मामलों में बरी किए जाने वाले लोगों की संख्या बहुत कम है. उन्होंने दलील दी कि इन मामलों की सुनवाई में इसलिए देरी होती है, क्योंकि प्रभावशाली आरोपी कई वकीलों से एक के बाद एक करके कई आवेदन दाखिल कराते हैं. इससे कार्यवाही लंबी खींचती है. उन्होंने कहा कि जांच अधिकारी भी इन कारणों से मजबूर हैं.
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5 हजार में से मात्र 4 केस में सजालाइव लॉ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल भी एक अन्य मामले की सुनवाई करते हुए, जस्टिस भुइयां ने बताया था कि दस साल में, PMLA के तहत दर्ज 5,000 मामलों में से केवल 40 मामलों में सजा हुई है.
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