असम (Assam) में नागरिकता (Citizenship) मामले को लेकर अपनाई गई कानूनी प्रक्रिया पर गंभीर सवाल उठे हैं. एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि मामूली गलतियों की वजह से 1.6 लाख लोगों को असम में ‘विदेशी’ घोषित कर दिया गया है. ये गलतियां मामूली स्पेलिंग मिस्टेक के साथ-साथ उचित टाइटल और वास्तविक नाम के बीच के भ्रम से जुड़ी हुई हैं. नई रिपोर्ट ने फॉरेनर्स ट्रिब्यूनल्स (FTs) और गुवाहाटी हाई कोर्ट के द्वारा अपनाई गई प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं.
'स्पेलिंग में गलती थी तो लाखों लोगों को विदेशी करार दे दिया... ', इस रिपोर्ट ने असम का 'सच' बता दिया
एक नई रिपोर्ट में दावा किया गया है कि Assam में नागरिकता को लेकर अपनाई गई कानूनी प्रक्रिया में विश्वसनीय मौखिक गवाही को भी खारिज कर दिया गया. पूरी प्रक्रिया पर कई गंभीर सवाल उठाए गए हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में नागरिकता मामलों की देखरेख करने वाले कानूनी ढांचों पर तत्काल पुनर्विचार करने की आवश्यकता है. क्योंकि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को अपडेट करने के लिए पूरे देश में असम जैसी प्रक्रिया अपनाने की संभावना है.
दावा किया गया है कि इस प्रक्रिया में विश्वसनीय मौखिक गवाही को भी खारिज कर दिया गया. ये निष्कर्ष गुवाहाटी हाई कोर्ट के 1,200 से ज्यादा आदेशों, सुप्रीम कोर्ट के प्रमुख फैसलों और ट्रिब्यूनल्स के आदेशों के विश्लेषण के साथ-साथ वकीलों और वादियों के साथ इंटरव्यू के आधार पर आधारित है. इस रिपोर्ट में ऐसे कई मामलों का जिक्र किया गया है.
केस 1
बारपेटा के रहने वाले रहमान अली ने 2012 में नागरिकता के लिए दस्तावेज जमा किए थे. इनमें उनके पिता का नाम खुर्शीद अली लिखा था. एक साल बाद, अधिकारियों ने ये कहते हुए उनका दावा खारिज कर दिया कि ये एक ‘विसंगति’ है. क्योंकि 1965 और 1970 की मतदाता सूची में उनके पिता का नाम फुरशेद अली लिखा था, जबकि 1989, 1997 और 2010 की लिस्ट में उनका नाम सही रूप से खुर्शीद ही दर्ज था.
केस 2
महराजन नेसा के चाचा की गवाही 2019 में खारिज कर दी गई थी. क्योंकि उन्हें इस बात की जानकारी नहीं थी कि उनके पिता ने बक्सा जिले के गोबर्धना गांव में कब जमीन खरीदी थी. इसे एक ऐसा सवाल माना गया है, जो उनकी नागरिकता की स्थिति के लिए जरूरी नहीं था.
केस 3
2019 में इब्राहिम अली की याचिका भी खारिज कर दी गई. क्योंकि 1989 की मतदाता सूची में उनके पिता का नाम 'स्वर्गीय नूरुल' लिखा था. और 1965 और 1970 की मतदाता सूची में उनका नाम 'नूरुल इस्लाम' लिखा था.
केस 4
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, आतिफा बेगम बरभुइया अपने एक पारिवारिक मित्र के लिए गवाही देने गईं. लेकिन उनकी ये गवाही नहीं मानी गई कि वकुल अली का नाम, 1965 की मतदाता सूची में गलत तरीके से तुआकुल अली लिखा गया हो सकता है.
केस 5
2010 में अदालत ने कहा कि राजेंद्र दास के पिता के नाम में ‘विसंगति’ है. क्योंकि 1970 में उनका नाम राधा चरण और 1966 में राधाचरण दास लिखा गया था.
केस 6
2019 में अदालत ने जहूरा बीबी की रिट को खारिज कर दिया. क्योंकि वो ये साबित करने में विफल रहीं कि अलेपुद्दीन सेख, अलेक उद्दीन सेख और अलीम उद्दीन शेख एक ही व्यक्ति के नाम हैं. इस नाम को रिकॉर्ड में लगातार गलत तरीके से लिखा गया था.
इसके अलावा कई अन्य मामलों के बारे में भी बताया गया है. रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि 85,000 से ज्यादा मामले अब भी लंबित हैं.
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किसने तैयार की ये रिपोर्ट?इस रिपोर्ट को ‘अनमेकिंग सिटीजन्स: द आर्किटेक्ट ऑफ राइट्स वायलेशन एंड एक्सक्लूजन इन इंडिया सिटीजनशिप ट्रायल्स’ टाइटल दिया गया है. इसे तैयार किया है, बेंगलुरु स्थित ‘नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी’ और 'द क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी ऑफ लंदन' ने. मोहसिन आलम भट, आरुषि गुप्ता और शार्दुल गोपुजकर ने इसे तैयार किया है.
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