कांग्रेस नेता और कांग्रेस संसदीय दल की चेयरपर्सन सोनिया गांधी ने इजरायल और ईरान के बीच चल रहे विवाद पर भारत सरकार की चुप्पी की कड़ी आलोचना की है. उन्होंने कहा कि भारत की सरकार ने इजरायल के हमलों पर चुप्पी साधकर ना केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत की आवाज को दबाया है, बल्कि देश के नैतिक मूल्यों का भी त्याग किया है.
ईरान पर इज़रायल के हमलों के बाद भारत की चुप्पी पर सोनिया गांधी ने सरकार को घेरा
Sonia Gandhi ने कहा कि पहले Israel ने Gaza में बमबारी की तो भारत चुप्पी साधे रहा. अब इजरायल ने Iran पर हमला किया तो भी भारत का वही रुख है. सोनिया गांधी ने जोर दिया कि India को ईरान-इजरायल मामले में अपनी आवाज बुलंद करने की जरूरत है.

भारत सरकार की चुप्पी पर सवाल
सोनिया गांधी ने शनिवार, 21 जून को 'दी हिंदू' में छपे एक आर्टिकल में ये बातें कही हैं. उन्होंने इजरायल के फिलिस्तीन और ईरान पर किए गए हमलों की कड़ी आलोचना की. उन्होंने कहा कि इजरायल ने गाजा में बमबारी करके ना सिर्फ हजारों निर्दोष लोगों की जान ली, बल्कि एक बार फिर अपनी क्रूरता का परिचय दिया. इसके बावजूद भारतीय सरकार ने इस पर कोई ठोस बयान नहीं दिया.
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि भारत सरकार पहले गाजा में इजरायल के हमले पर चुप थी और ईरान के साथ चल रहे संघर्ष के दौरान भी भारत सरकार ऐसा ही कर रही है. उनका कहना है कि इस चुप्पी से भारत के अपने मूल्यों का उल्लंघन हो रहा है, क्योंकि भारत हमेशा से शांति और न्याय की बात करता आया है.
इजरायल के हमलों पर चुप्पी
सोनिया गांधी ने कहा कि जब इजरायल ने ईरान पर हमला किया, तब भी भारत ने कोई मजबूत प्रतिक्रिया नहीं दी. यह हमला ऐसे समय हुआ था, जब ईरान और अमेरिका के बीच बातचीत शुरू होने वाली थी. पांच दौर की वार्ता पहले ही हो चुकी थी और जून में छठा दौर तय था.
इसके अलावा मार्च 2025 में अमेरिकी खुफिया एजेंसी 'नेशनल इंटेलिजेंस ऑफ दी यूनाइटेड स्टेट्स' की डायरेक्टर तुलसी गबार्ड ने कांग्रेस ये साफ बताया था कि ईरान का परमाणु हथियार कार्यक्रम नहीं चला रहा है.
तुलसी गबार्ड यह भी कहा था कि ईरान के सुप्रीम लीडर अली खामेनेई ने 2003 में इस कार्यक्रम के सस्पेंड होने के बाद से इसे फिर से शुरू करने की इजाजत नहीं दी है. इसके बावजूद इजरायल ने हमले किए, जिससे शांति प्रक्रिया को नुकसान पहुंचा.
नेतन्याहू और ट्रंप की आलोचना
सोनिया गांधी ने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू और अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की नीतियों की आलोचना की. उन्होंने कहा कि नेतन्याहू की सरकार हमेशा संघर्ष को बढ़ावा देती रही है और शांति के लिए कोई कदम नहीं उठाया. नेतन्याहू की नीतियों ने इजरायल और फिलिस्तीन के बीच संघर्ष को और बढ़ाया है.
सोनिया गांधी ने आरोप लगाया कि बेंजामिन नेतन्याहू की सरकार ने अवैध बस्तियों का लगातार विस्तार किया है. गांधी का आरोप है कि नेतन्याहू के अति-राष्ट्रवादी गुटों के साथ गठबंधन और टू-स्टेट सॉल्यूशन में रुकावट डालने से ना केवल फिलिस्तीनी लोगों का दर्द बढ़ा है, बल्कि बड़े पैमाने पर क्षेत्र को संघर्ष की तरफ धकेला है.
गांधी ने कहा कि इतिहास हमें याद दिलाता है कि नेतन्याहू ने नफरत की उस आग को हवा देने में मदद की, जिसकी वजह से 1995 में प्रधानमंत्री यित्जाक राबिन की हत्या हुई. इससे इजरायल और फिलिस्तीनियों के बीच सबसे उम्मीदभरी शांति पहलों में से एक का खात्मा हो गया.
सोनिया गांधी ने डॉनल्ड ट्रंप पर भी निशाना साधा. उन्होंने बताया कि यह बेहद खेदजनक है कि ट्रंप ने अमेरिका के कभी खत्म ना होने वाले युद्धों और सैन्य-औद्योगिक प्रभावों के खिलाफ आवाज उठाई थी. लेकिन अब वे विनाशकारी रास्ते में चलने के लिए तैयार दिखाई देते हैं.
ट्रंप ने खुद बार-बार बताया है कि कैसे इराक के पास सामूहिक विनाश के हथियार होने के बारे में जानबूझकर झूठे दावों ने एक महंगे युद्ध को जन्म दिया जिसने क्षेत्र को अस्थिर कर दिया और इराक में भारी विनाश हुआ.
सोनिया गांधी ने कहा कि अब अपनी ही खूफिया एजेंसी की डायरेक्टर के बयान को खारिज करके ट्रंप का ये कहना कि ईरान परमाणु हथियार के करीब है, एक खतरनाक कदम है. सोनिया गांधी ने कहा कि ट्रंप को यह बात समझनी चाहिए कि ईरान पर झूठे आरोप लगाना गलत है, क्योंकि इस तरह के कदम से सिर्फ क्षेत्रीय स्थिरता को खतरा होगा.
अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप ईरान-इजरायल संघर्ष में अमेरिकी सेना को उतारने पर विचार कर रहे हैं. एपी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस पर ईरान के विदेश मंत्री अब्बास अराघची ने कहा, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण होगा." शनिवार, 21 जून को तुर्किए के इस्तांबुल में इस्लामिक सहयोग संगठन (ICO) की बैठक के दौरान बोलते हुए उन्होंने कहा, "मुझे लगता है कि यह सभी के लिए बहुत-बहुत खतरनाक होगा."
दोहरे मापदंड पर सवाल
सोनिया गांधी ने यह भी सवाल उठाया कि क्यों दुनिया भर में इजरायल के परमाणु हथियारों पर चुप्पी साधी जाती है, जबकि ईरान पर लगातार आरोप लगाए जाते हैं. इजरायल के पास परमाणु हथियार हैं, लेकिन उसने कभी उन्हें औपचारिक रूप से स्वीकार नहीं किया. इस तरह के दाहरे मापदंड की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि इजरायल के उलट ईरान परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर कर चुका है. 2015 में हुए परमाणु समझौते के दौरान ईरान ने अपने यूरेनियम संवर्धन को रोकने का वादा किया था, लेकिन 2018 में अमेरिका ने एकतरफा तरीके से इस समझौते को तोड़ दिया. इस फैसले ने पूरे मध्य-पूर्व क्षेत्र की स्थिति को और ज्यादा मुश्किल बना दिया.
ईरान पुराना दोस्त
सोनिया गांधी ने कहा कि ईरान के साथ भारत के साथ ऐतिहासिक रिश्ते हैं. इसलिए ईरान पर लगे प्रतिबंधों का खामियाजा भारत ने भी भुगता है. इन प्रतिबंधों ने भारत के अहम स्ट्रेटेजिक और इकोनॉमिक प्रोजेक्ट्स, जैसे इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर और चाबहार पोर्ट के विकास को प्रभावित किया. इन प्रोजेक्ट्स का मकसद मध्य एशिया और अफगानिस्तान के साथ भारत की कनेक्टिविटी को मजबूत करना है.
ईरान भारत का पुराना मित्र है. ईरान ने कई बार भारत का समर्थन किया है, जैसे 1994 में जम्मू और कश्मीर के मुद्दे पर भारत के पक्ष में वोट करना. वास्तव में इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान अपने पूर्ववर्ती शाही ईरान राज्य की तुलना में भारत के साथ कहीं ज्यादा सहयोगी रहा है. जबकि मोहम्मद रजा पहलवी शासित ईरान 1965 और 1971 के युद्धों में पाकिस्तान की ओर झुका था.
वहीं, भारत और इजरायल के बीच भी रणनीतिक संबंध मजबूत हुए हैं. ऐसे हालात में भारत के पास शांति और तनाव कम करने के लिए एक अहम नैतिक जिम्मेदारी और कूटनीतिक ताकत है. पश्चिम एशिया में लाखों भारतीय नागरिक काम कर रहे हैं, इसलिए इस क्षेत्र में शांति भारत के राष्ट्रीय हित से जुड़ी हुई है.
अभी देर नहीं हुई, भारत कदम उठाए
सोनिया गांधी ने कहा कि पश्चिमी देशों से मिले बिना शर्त समर्थन के बल पर इजरायल ने ईरान के खिलाफ कार्रवाई की. भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने 7 अक्टूबर 2023 को हमास के हमलों की कड़ी निंदा की थी, लेकिन इजरायल के अत्यधिक और अनुपातहीन जवाब पर भारत सरकार की चुप्पी चिंता का विषय है. गाजा में 55,000 से ज्यादा फिलिस्तीनी लोग मारे गए हैं, पूरा इलाका तबाह हो चुका है और वहां भुखमरी की स्थिति बन गई है.
इस मानवीय संकट के बावजूद नरेंद्र मोदी सरकार ने लंबे समय से अपनाए गए टू-स्टेट सॉल्यूशन से अपनी प्रतिबद्धता को छोड़ दिया है. भारत सरकार का गाजा की तबाही और ईरान पर बढ़ते हमलों पर चुप रहना हमारे नैतिक और कूटनीतिक सिद्धांतों से दूर हटने जैसा है. यह हमारे मूल्यों का त्याग और भारत की आवाज का कमजोर होना है.
सोनिया गांधी ने कहा कि अभी भी बहुत देर नहीं हुई है. भारत को साफ तौर पर चाहिए, जिम्मेदारी से काम करना चाहिए और तनाव कम करने और पश्चिम एशिया में बातचीत की वापसी को बढ़ावा देने के लिए हर उपलब्ध कूटनीतिक चैनल का इस्तेमाल करना चाहिए.
वीडियो: ईरान से लड़ने में इजरायल को हर दिन कितना पैसा खर्च करना पड़ रहा?