The Lallantop

Guillain-Barré Syndrome से महाराष्ट्र में दूसरी मौत, एक्टिव केस 127 के ऊपर पहुंचे

अब तक गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के 127 संदिग्ध मामलों की पहचान की गई है. जिसमें 2 लोगों की मौत भी शामिल हैं.

post-main-image
GBS से पीड़ित व्यक्तियों में से 20 वर्तमान में वेंटिलेटर सपोर्ट में हैं. (फोटो- AI)

महाराष्ट्र में गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) से पीड़ित एक और व्यक्ति की मौत हो गई है. राज्य में इस सिंड्रोम से हुई ये दूसरी मौत है. इससे पहले सोलापुर में एक 40 वर्षीय व्यक्ति की GBS से मौत हो गई थी. रिपोर्ट्स के मुताबिक कुछ दिन पहले वो पुणे गया था. माना जा रहा है कि पुणे में ही वो इस बीमारी से संक्रमित हुआ था.

GBS से राज्य में पहली मौत की सूचना इस हफ्ते के शुरू में मिली थी. स्वास्थ्य अधिकारियों ने पुष्टि की है कि पुणे में GBS मामलों की संख्या अब 110 से अधिक हो गई है. इकोनॉमिक्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक सोलापुर सरकारी मेडिकल कॉलेज के डीन डॉक्टर संजीव ठाकुर ने बताया,

"सांस फूलने, निचले अंगों में कमजोरी, डायरिया जैसे लक्षणों से पीड़ित एक मरीज को 18 जनवरी को सोलापुर के एक निजी अस्पताल में भर्ती कराया गया था. जहां पर उसे बार-बार वेंटिलेटर सपोर्ट पर रखा जा रहा था. 26 जनवरी को उसकी मौत हो गई."

वहीं 29 जनवरी को महाराष्ट्र स्वास्थ्य विभाग ने एक बयान में कहा,

"अब तक गिलियन-बैरे सिंड्रोम (GBS) के 127 संदिग्ध मामलों की पहचान की गई है. जिसमें 2 लोगों की मौत भी शामिल हैं. इनमें से 72 मरीजों में GBS की पुष्टि हुई है. 23 मरीज पुणे नगर निगम से, 73 पीएमसी क्षेत्र से, 13 पिंपरी चिंचवाड़ नगर निगम से, 9 पुणे ग्रामीण से और 9 अन्य जिलों से सामने आए हैं. पीड़ित व्यक्तियों में से 20 वर्तमान में वेंटिलेटर सपोर्ट में हैं.”

गुलियन बैरे सिंड्रोम क्या होता है?

गुलियन बैरे सिंड्रोम एक रेयर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है, यानी आमतौर पर इसके मामले नहीं देखे जाते हैं. इसमें पेरीफेरल नर्व्स ( Peripheral Nervous System) डैमेज हो जाती हैं. इस वजह से हाथ-पैरों में कमजोरी आने लगती है. GBS के बारे में जानना इसलिए ज़रूरी है क्योंकि ये एक गंभीर न्यूरोलॉजिकल बीमारी है. अगर समय रहते GBS की जांच कर इलाज किया जाए तो मरीज पूरी तरह से ठीक हो सकता है.

दो तरीकों से होता है इलाज

- पहला तरीका है इंट्रावीनस इम्युनोग्लोबुलिन (Intravenous Immunoglobulin) या IVIG.
- दूसरा तरीका है प्लाज्माफेरेसिस (Plasmapheresis).

सही जांच के बाद ही हॉस्पिटल में इन दोनों तरीकों से मरीज का इलाज किया जाता है. इसलिए ये जरूरी है कि अगर हाथ-पैरों में कमजोरी महसूस हो रही है, खासकर किसी इंफेक्शन या दस्त के बाद. और कमजोरी बढ़ती ही जा रही है, तो तुरंत किसी न्यूरोलॉजिस्ट को दिखाएं ताकि समय रहते GBS का इलाज हो सके.

वीडियो: सेहतः क्या है न्यूरो-ऑकुलर सिंड्रोम, अंतरिक्ष जाने वालों को होता है