हिंदी साहित्य के वरिष्ठ साहित्यकार पद्मश्री रामदरश मिश्र (Ramdarash Mishra) नहीं रहे. 101 साल की उम्र में उनका निधन हो गया. बेटी स्मिता मिश्रा ने उनके निधन की जानकारी दी. आजतक की रिपोर्ट के मुताबिक, रामदरश मिश्र पिछले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे और दिल्ली के द्वारका स्थित बेटे शशांक के घर पर उनका इलाज चल रहा था. शुक्रवार, 31 अक्टूबर की शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली. शनिवार को पालम स्थित मंगलापुरी श्मशान घाट पर सुबह 11 बजे उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
मेरी कविते! जो बीत गया वो भी मुझमें जीवित है तुम्हारे सहारे... नहीं रहे प्रो. रामदरश मिश्र
वरिष्ठ कवि-साहित्यकार Ramdarash Mishra पिछले कई महीनों से अस्वस्थ चल रहे थे. शुक्रवार, 31 अक्टूबर की शाम को उन्होंने अंतिम सांस ली. कविता ने उन्हें यश, पुरस्कार, सम्मान बहुत कुछ दिया. सरस्वती सम्मान, साहित्य अकादमी, शलाका सम्मान, व्यास सम्मान समेत साहित्य के तमाम बड़े पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया.


15 अगस्त, 1924 को, उत्तर प्रदेश में गोरखपुर के डुमरी गांव में रामदरश मिश्र का जन्म हुआ. एक ऐसा कवि-लेखक जिसने समय की सांसों को अपने शब्दों में बांधा. 1947 में मैट्रिक के लिए वे वाराणसी आए और बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (BHU) में एडमिशन लिया. यहीं से इंटरमीडियट, बी.ए., एम.ए. और पीएच.डी. की डिग्री हासिल की.
इसके बाद, गुजरात में शिक्षक के तौर पर उन्होंने कई साल काम किया. 1964 में वे दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़ गए और दिल्ली के स्थायी निवासी बन गए. 1990 में दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पद से रिटायर्ड होने के बाद दिल्ली में ही उन्होंने आखिरी सांस ली.
कविता ने उन्हें यश, पुरस्कार, सम्मान बहुत कुछ दिया. सरस्वती सम्मान, साहित्य अकादमी, शलाका सम्मान, व्यास सम्मान समेत साहित्य के तमाम बड़े पुरस्कारों से उन्हें नवाजा गया. ‘मैं तो यहां हूं’ काव्य‑संग्रह के लिए उन्हें 2021 में ‘सरस्वती सम्मान’ मिला था. वहीं, ‘आग की हंसी’ संग्रह के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ (2015) मिला था. इसी साल साहित्य जगत में अमूल्य योगदान के लिए उन्हें देश के चौथे सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया.
रामदरश मिश्र की प्रमुख रचनाएंसाहित्यकार रामदरश मिश्र ने कविता, कहानी, उपन्यास, संस्मरण, आलोचना जैसी कई विधाओं में अपना हाथ आजमाया. उनकी लेखनी कभी गांव की गलियों की याद दिलाती हैं, तो कभी शहर की जन-आवाज की लय में डूबती थी. उनकी कविताओं में भाषा का कोई प्रदर्शन नहीं था, बल्कि एक विश्वास था, जो मन में धीरे से उतरता और अपनी जगह बना लेता.
रामदरश मिश्र ने 150 से ज्यादा किताबें लिखी. उनकी प्रमुख रचनाओं में उनकी कविता‑संग्रह ‘मैं तो यहां हूं’, ‘आग की हंसी’, उपन्यास ‘पानी के प्राचीर’, ‘जल टूटता हुआ’, ‘अपने लोग’ और कहानी‑संग्रह ‘खाली घर’, ‘इकसठ कहानियां’ शामिल हैं.
रामदरश मिश्र की एक बहुचर्चित हिंदी गजल के कुछ शेर उनके संघर्ष की पूरी कहानी कह डालते हैं-
बनाया है मैंने ये घर धीरे-धीरे,
खुले मेरे ख़्वाबों के पर धीरे-धीरे
किसी को गिराया न ख़ुद को उछाला,
कटा ज़िंदगी का सफ़र धीरे-धीरे
जहां आप पहुंचे छ्लांगे लगाकर,
वहां मैं भी आया मगर धीरे-धीरे
न हंस कर न रोकर किसी में उडे़ला,
पिया खुद ही अपना ज़हर धीरे-धीरे
उनकी विदाई से साहित्य जगत को एक गहरी खलिश हुई है. कविताओं में एक शताब्दी का स्वर लिए भले ही उनकी देह हमारे बीच नहीं है, लेकिन सच तो यह है कि वे अब भी यहीं हैं और यहीं रहेंगे. उन्हीं की कविता 'आभारी हूं कविते!' की कुछ पंक्तियों के जरिए कहूं तो-
"तुमने मुझे कितना कुछ दिया
मेरी कविते!
जो बीत गया
वह भी मुझमें जीवित है तुम्हारे सहारे."
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