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'इससे केवल उद्योगपतियों को फायदा होगा... ', एक्सपर्ट ने गिनाईं नए लेबर कानून की कमियां

सीनियर एडवोकेट और श्रम कानूनों की विशेषज्ञ गायत्री सिंह ने चार नए लेबर कोड्स को मजदूर विरोधी और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाला बताया है. उनके मुताबिक नए लेबर कोड से कामगारों को फायदा नहीं होगा.

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संगठित क्षेत्र के कर्मचारियों के लिए काम करने वाले संगठनों ने भी लेबर कोड को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है. (इंडिया टुडे)

भारत में चार नए लेबर कोड (Labour Code) लागू हो गए हैं. सरकार इसे आजादी के बाद का सबसे बड़ा श्रम सुधार बता रही है. वहीं कई मजदूर संगठनों ने इसे मजदूर विरोधी और उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाने वाला बताया है. उनके मुताबिक नए लेबर कोड से कामगारों का शोषण बढ़ेगा और इसे पूंजीपतियों के दबाव में तैयार किया गया है.

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इंडियन एक्सप्रेस ने चार लेबर कोड्स के मसले पर सीनियर एडवोकेट और श्रम कानूनों की विशेषज्ञ गायत्री सिंह से बात की है. उनका मानना है कि नए कोड के तहत असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के हितों की अनदेखी की गई है. और ये कोड पूरी तरह से व्यापारिक घरानों को फायदा पहुंचाने वाले हैं.

नए लेबर कोड उद्योगपतियों के हित में 

गायत्री सिंह ने बताया कि नए लेबर कोड पूरी तरह से व्यावसायिक घरानों के हित में हैं. उनके व्यापार को आसान बनाने के लिए इन्हें लाया गया है. यह मजदूरों के उन अधिकारों को छीनता है जो उन्हें कई दशकों की लड़ाई के बाद मिले थे. नए कोड में मजदूरों को कोई अधिकार नहीं मिलता.

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संगठित क्षेत्र के श्रमिकों के अधिकारों में कटौती

संगठित क्षेत्र के श्रमिकों को नए लेबर कोड्स से नुकसान उठाना पड़ेगा. पुराने लेबर कानून के तहत उनको कार्यकाल की सुरक्षा, रोजगार की सुरक्षा, नियमित नौकरी, सेवा समाप्ति और  छंटनी को लेकर जो अधिकार मिले थे, वो सब खत्म हो जाएंगे. भारत के टोटल वर्कफोर्स में लगभग 3 फीसदी संख्या संगठित क्षेत्र की है. उनके लिए किए गए प्रावधानों को अब समाप्त कर दिया गया है.

असंगठित क्षेत्र के मजदूरों की असुरक्षा बरकरार

एक तरफ संगठित क्षेत्र के मजदूरों को इन कोड्स से कोई फायदा नहीं हुआ है. दूसरी तरफ असंगठित क्षेत्र के मजदूरों के लिए भी इसमें कुछ खास नहीं है. उनको सामाजिक सुरक्षा देने की बात कही गई है. लेकिन उनके लिए बहुत ठोस प्रावधान नहीं किए गए हैं.

न्यूनतम फ्लोर वेज से राज्यों की परेशानी बढ़ेगी

सरकार ने तय किया है कि फ्लोर वेज यानी न्यूनतम मजदूरी की एक तय सीमा होगी, जो देश भर के वर्कर्स के लिए एक समान होगी. यह सीमा जीने के लिए जरूरी न्यूनतम मानकों के आधार पर तय की जाएगी. राज्य सरकारों को इस तय सीमा से ऊपर ही अपनी न्यूनतम मजदूरी तय करनी होगी. गायत्री सिंह का कहना है, 

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केंद्र सरकार ने फ्लोर वेज के लिए एक कमेटी बनाई थी, जिसने न्यूनतम फ्लोर वेज प्रतिदिन 178 रुपये रखने की सिफारिश की थी. लेकिन ये कर्नाटक और केरल जैसे राज्यों से काफी कम है, जहां पहले से ही न्यूनतम मजदूरी काफी ज्यादा है. उदाहरण के तौर पर कर्नाटक में यह 300 से 500 रुपये प्रतिदिन तक है. वहीं केरल में लगभग 700 रुपये प्रतिदिन है.

लैंगिग समानता को लेकर ठोस कदम नहीं

नए लेबर कोड में महिलाओं के लिए समान वेतन की बात की गई है. लेकिन दिक्कत इसकी परिभाषा को लेकर है. अभी इसमें केवल मूल वेतन, महंगाई भत्ता और रिटेनिंग भत्ता ही शामिल है. उदाहरण के लिए एक पुरुष क्लर्क को एक महिला क्लर्क के बराबर मूल वेतन (बेसिक सैलरी) मिल सकता है, लेकिन अगर भत्ते भी शामिल कर दिए जाएं तो पुरुष को ज्यादा भत्ता मिल सकता है.

गिग वर्कर्स और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए कुछ नहीं

सरकार ने नए लेबर कोड में गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स को भी शामिल किया है. गायत्री सिंह का कहना है कि गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर्स के लिए बस एक ही फायदे का काम हुआ है. उनको रजिस्ट्रेशन का अधिकार दिया जाएगा. सभी गिग वर्कर्स के लिए रजिस्ट्रेशन कराना अनिवार्य है. लेकिन रजिस्ट्रेशन कराने पर क्या फायदा मिलेगा इसको लेकर कोई स्पष्टता नहीं है.

वीडियो: खर्चा पानी: न्यू लेबर कोड से नौकरियों पर खतरा?

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