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युवक को मुआवजा देने के लिए जिस DM की सैलरी कटेगी, अब उन्होंने बताई एक-एक बात

जलगांव के डीएम आयुष प्रसाद ने पूरे मामले पर सफाई देते हुए कहा कि आरोपी के आपराधिक रिकॉर्ड को देखते हुए पुलिस के प्रस्ताव पर ही उसे MPDA के तहत हिरासत में लेने का आदेश दिया गया. हालांकि आदेश जारी होने के एक साल बाद उसे हिरासत में लिया गया.

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डीएम आय़ुष प्रसाद. (Photo: X/@VoiceOfMalegaon)

बॉम्बे हाई कोर्ट ने जलगांव के DM आयुष प्रसाद की सैलरी से दो लाख रुपये मुआवजे का आदेश दिया था. जिसके बाद डीएम आयुष प्रसाद ने अपने पक्ष में सफाई दी है. उन्होंने लल्लनटॉप से बातचीत में कहा कि हाई कोर्ट द्वारा की गई टिप्पणियों के कई पहलू उनके अनुसार गलतफहमी पर आधारित हैं. DM ने साफ किया कि उनके द्वारा दिए गए आदेश और कार्रवाई पूरी तरह नियमों के अनुसार थीं.

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डीएम का पक्ष

आयुष प्रसाद ने बताया कि मामला देवीदास सपकाले नामक युवक से जुड़ा है, जिसका लंबा आपराधिक रिकॉर्ड रहा है. वह जलगांव के मेहरुण इलाके में गैंग एक्टिविटीज में शामिल था और स्थानीय लोग भी उससे परेशान थे. पिछले दो साल में उस पर कई आपराधिक मामले दर्ज हुए, जिनमें हत्या के प्रयास और आर्म्स एक्ट से जुड़े केस भी शामिल थे.

एक मामले में युवक से बॉन्ड भरवाया गया था, लेकिन उसने उसका उल्लंघन किया था. इसके बाद SDM ने उसे एक क्षेत्र से दूर रहने का ऑर्डर दिया, जिसे उसने भी उल्लंघन किया. फिर उस पर चार केस हुए. नाबालिग रहते हुए भी उस पर एक केस था. उस पर दर्ज मामलों में एक केस 307 के आर्म्स एक्ट से जुड़ा था. इस केस में युवक समेत चार लोग दो मोटरसाइकिल से गए थे और कुछ लोगों को धमकी देते हुए उन पर गोली चलाई. यह सब दो साल के अंदर हुआ. इसलिए उसके खिलाफ प्रिवेंटिव डिटेंशन का ऑर्डर दिया गया. उसकी उम्र लगभग 20 साल की है.

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डीएम ने बताया कि उसके आपराधिक रिकॉर्ड को देखते हुए पुलिस के प्रस्ताव पर उसे MPDA के तहत हिरासत में लेने का आदेश दिया गया. हालांकि आदेश जारी होने के एक साल बाद उसे हिरासत में लिया गया. इस संबंध में उन्होंने कहा,

18 जुलाई को आरोपी के खिलाफ MPDA का ऑर्डर दिया गया, लेकिन उस पर JFMC कोर्ट में पहले ही हत्या के प्रयास का एक मामला चल रहा था. उस पर दो लोगों पर गोली चलाने का आरोप था. हालांकि, गोली किसी को लगी नहीं, लेकिन उसने फायरिंग की थी. 19 जुलाई को JFMC कोर्ट ने कहा कि चूंकि यह पहले से जेल में है, इसलिए उसे हिरासत में लेने की अनुमति नहीं दे रहे हैं. फिर जब उसको इस मामले में सेशन कोर्ट ने बेल दी तो नियम के अनुसार राज्य सरकार के एडवाइजरी बोर्ड के सामने MPDA का प्रस्ताव रखा गया. एडवाइजरी बोर्ड ने माना कि शख्स को हिरासत में रखना जरूरी है. इसलिए आदेश जारी रखा गया.

हिरासत आदेश और मराठी दस्तावेज़

डीएम ने कोर्ट की टिप्पणी पर हैरानी जताई कि हिरासत के ऑर्डर में मराठी दस्तावेज नहीं दिए गए. उनका कहना है,

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मुझे हैरानी है कि कोर्ट ने ऐसा क्यों कहा. जबकि उसे ऑर्डर के हर पेज को मराठी में अनुवाद करके दिया गया था. पेज में उसके यह मानते हुए सिग्नेचर भी हैं कि उसे पूरा ऑर्डर विस्तार से समझाया गया है.

उन्होंने टाइपिंग मिस्टेक की सफाई देते हुए कहा,

मराठी का ऑर्डर पूरी तरह सही था. उसके अंग्रेजी अनुवाद में ट्रांसलेटर ने एक गलती कर दी थी. उसने एक दूसरा केस भी जोड़ दिया था, जिसका सपकाले से लेना-देना ही नहीं है. इसे मानवीय भूल बताया गया है और कहा है कि अंग्रेजी अनुवाद में एक लाइन के अलावा किसी भी दस्तावेज में कोई गलती नहीं है.

जज विभा कंकनवाड़ी पर टिप्पणी

डीएम ने मामले पर फैसला सुनाने वाली जज विभा कंकनवाड़ी पर भी बात की. उन्होंने कहा,

जस्टिस विभा ने पिछले एक से डेढ़ महीने में पांच कलेक्टरों के खिलाफ कुछ न कुछ ऑर्डर निकाले, जिसमें कहा गया कि अधिकारियों को जानकारी नहीं है या उन्हें फिर से ट्रेनिंग में भेज देना चाहिए. वह 6 महीने में रिटायर हो रही हैं. उनका बेंच क्रिमिनल से सिविल में शिफ्ट हो रहा है. इस स्टेज में उन्होंने फाइनल ऑर्डर निकाला. अगर आप MPDA महाराष्ट्र का सेक्शन 16 सर्च करेंगे तो इसमें लिखा है कि आरोपी पर कोई भी लायबिलिटी या मुआवजा देय नहीं होता है, अगर नीयत सही है तो. नीयत खराब होने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि आज तक मैंने उस आदमी को देखा भी नहीं है. अगर जज को लगता है कि मेरी नीयत खराब थी तो उन्हें मुझे नोटिस देना चाहिए था. ऐसा कोई नोटिस नहीं है.

उन्होंने आगे कहा,

MPDA एक्ट में नियम है कि इसके लिए कोई मुआवजा नहीं देना होगा. अगर फिर भी आप विशेष अधिकार का इस्तेमाल करके मुआवजा देना चाहते हैं तो उसे किस आधार पर कैलकुलेट किया यह भी बताना चाहिए.” DM ने यह भी बताया कि राज्य सरकार अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में विशेष अपील फाइल करेगी.

यह भी पढ़ें- DM के आदेश पर युवक को हुई जेल, कोर्ट ने कहा- ‘सैलरी से मुआवजा वसूले सरकार’

क्या है पूरा मामला?

देवीदास सपकाले जून 2025 से 1 अक्टूबर 2025 तक MPDA के तहत हिरासत में रखा गया था. हाई कोर्ट ने 7 अक्टूबर के आदेश में कहा था कि मामले में अधिकारियों का आचरण गंभीर है. उन्होंने हिरासत के आदेश को पहले ठंडे बस्ते में डाल दिया और जब उसे दूसरे मामले में जमानत मिली तो उसे फिर हिरासत में लिया गया.

कोर्ट ने ‘जानबूझकर की गई’ इस देरी पर कोई उचित स्पष्टीकरण न देने और कस्टडी ऑर्डर में हुई गलती को गंभीर पाया. हाई कोर्ट ने यह भी कहा कि सपकाले मराठी मीडियम का छात्र था और उसे जरूरी दस्तावेजों का मराठी में ट्रांसलेशन नहीं दिया गया, जिससे उसका अपना पक्ष रखने का अधिकार प्रभावित हुआ. इसके आधार पर कोर्ट ने डीएम की सैलरी से दो लाख रुपये मुआवजे के तौर पर देने का आदेश दिया.

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