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हफ्ते में 90 घंटे काम की बात करने वाले सुब्रमण्यन के मुताबिक 'भारतीय मजदूर काम नहीं करना चाहते'

SN Subrahmanyan ने कहा है कि कंस्ट्रक्शन लाइन में मजदूरों का मिलना मुश्किल हो गया है. क्योंकि उनको अपने गृहनगर में आराम मिल रहा है और इस कारण से वो काम करने के लिए प्रवास (माईग्रेशन) नहीं करना चाह रहे.

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सुब्रमण्यन ने मजदूरों को मिलने वाली सरकारी योजनाओं पर सवाल उठाया है. (फाइल फोटो: इंडिया टुडे)

लार्सन एंड टुब्रो के चेयरमैन एसएन सुब्रमण्यन (L&T Chairman SN Subrahmanyan) के एक बयान फिर से विवाद हो गया है. इस बार उन्होंने मजदूरों को मिलने वाली सरकारी कल्याणकारी योजनाओं पर टिप्पणी की है. उन्होंने कहा है कि इन वेलफेयर स्कीम्स के कारण मजदूर काम पर नहीं आना चाहते. मजदूर इसके बदले आराम को प्राथमिकता देने लगे हैं.

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11 फरवरी को चेन्नई में CII के मिस्टिक साउथ ग्लोबल लिंकेज समिट 2025 में बोल रहे थे. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस दौरान उन्होंने कहा कि कंस्ट्रक्शन लाइन में मजदूरों का मिलना मुश्किल हो गया है. क्योंकि उनको अपने गृहनगर में आराम मिल रहा है और इस कारण से वो काम करने के लिए प्रवास नहीं करना चाह रहे. सुब्रमण्यन ने कहा कि मनरेगा, डायरेक्ट बेनिफ्ट ट्रांसफर और जन धन जैसी सरकारी योजनाओं के कारण मजदूरों को जुटाना मुश्किल हो गया है.

उन्होंने कहा,

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मजदूर अवसरों के लिए आगे आने को तैयार नहीं हैं. हो सकता है कि उनकी स्थानीय अर्थव्यवस्था अच्छी चल रही हो, या हो सकता है कि ये सरकारी योजनाओं की वजह से हो. मजदूरों की कमी से भारत के बुनियादी ढांचे के निर्माण पर असर पड़ेगा.

ये भी पढ़ें: 'पत्नी को कब तक घूरेंगे, 90 घंटे काम करें' का क्या मतलब है, एसएन सुब्रमण्यन की कंपनी ने बताया

उन्होंने आगे कहा कि भापत में प्रवास एक अजीबोगरीब समस्या है, L&T को चार लाख कर्मचारियों की  जरूरत के लिए 16 लाख लोगों की भर्ती करनी पड़ रही है. उन्होंने कहा कि मिडिल ईस्ट में मजदूरों की संख्या भारत की तुलना में 3 से 3.5 गुणा अधिक है.

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सुब्रमण्यन के मुताबिक, उनकी कंपनी के पास मजदूरों को जुटाने, उनकी भर्ती करने और उनको काम पर लगाने के लिए एक डेडिकेटेड टीम है. इसके बावजूद मजदूरों को काम पर रखने में उनकी कंपनी को चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. उन्होंने आगे कहा,

जब मैं ग्रेजुएट इंजीनियर के तौर पर L&T में शामिल हुआ, तो मेरे बॉस ने कहा कि अगर आप चेन्नई से हैं, तो दिल्ली जाकर काम करें. लेकिन आज, अगर मैं चेन्नई के किसी व्यक्ति से दिल्ली में काम करने के लिए कहता हूं, तो वो मना कर देता है. आज काम करने की दुनिया अलग है और हमें ये देखना होगा कि एचआर पॉलिसी को कैसे लचीला बनाया जाए.

पिछले महीने सुब्रमण्यन ने 'वर्क-लाइफ बैलेंस' पर एक विवादित बयान देकर बवाल खड़ा कर दिया था. उन्होंने कहा था कि वो चाहते हैं कि लोग हफ्ते में 90 घंटे काम करें. बकौल सुब्रमण्यन, वो चाहते हैं कि लोग वीकेंड पर भी ऑफिस आकर काम करें. उन्होंने अपने कर्मचारियों से कहा था कि वीकेंड पर घर में बैठकर वो अपनी पत्नी को कितनी घूरेंगे या उनकी पत्नी उनको कितनी देर घूरेंगी. सुब्रमण्यन के इस बयान की खूब आलोचना की गई.

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