संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) संसद की एक ऐसी कमिटी है, जिसमें किसी विधेयक के बारे में गहराई से विचार-विमर्श किया जाता है. इसमें सत्ता और विपक्ष दोनों ही दलों के सांसद होते हैं, जिन्हें लोकसभा स्पीकर नामित करते हैं. ऐसी ही एक जेपीसी की आजकल चर्चा है, जिसका गठन नहीं हो पा रहा है. यह जेपीसी सरकार के उस संविधान संशोधन विधेयक के लिए बनाई जानी है, जिसमें आपराधिक मामलों में गिरफ्तार प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद से हटाने का प्रावधान है.
विपक्षी दलों के बिना बन सकती है संसदीय समिति? मोदी सरकार सोच तो रही है!
पीएम, सीएम और मंत्रियों को पद से हटाने वाले बिल को जेपीसी को भेज दिया गया है. लेकिन अभी तक जेपीसी का गठन नहीं हो पाया है. इसकी वजह विपक्ष का जेपीसी का बहिष्कार है. ऐसे में बिना बड़े विपक्षी दलों के जेपीसी के गठन की संभावना है.


सदन में भारी विरोध और हंगामे के बीच मोदी सरकार ने ये बिल 20 अगस्त 2025 को पास करा लिया था. लेकिन जिस दिन ये बिल पास हुआ, उसी दिन लोकसभा ने इसे जेपीसी के पास भेज दिया ताकि पक्ष और विपक्ष मिलकर इस पर गहन विचार कर सकें. लेकिन तीन महीने के बीत जाने के बाद भी अभी तक जेपीसी के सदस्यों का ऐलान नहीं हो पाया है. इसका कारण विपक्ष का जेपीसी का बहिष्कार करने का फैसला है, जिसकी वजह से ऊहापोह की स्थिति बनी हुई है.
इंडियन एक्सप्रेस ने एक सरकारी सूत्र के हवाले से बताया है कि विपक्षी दलों को कई बार रिमाइंडर भेजा गया है लेकिन अभी तक उन्होंने लोकसभा स्पीकर को ये नहीं बताया है कि वे जेपीसी के लिए किसी का नामांकन करेंगे या उसका बहिष्कार करेंगे.
ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी ने इस बिल का ये कहते हुए विरोध किया था कि विपक्षी दलों के नेताओं को निशाना बनाने के लिए ये बिल लाया गया है. ऐसे में जेपीसी का कोई मतलब नहीं है. इसे लेकर विपक्षी दलों के गठबंधन INDIA में मतभेद खड़े हो गए हैं. लेफ्ट पार्टियां और कांग्रेस जेपीसी का हिस्सा बनना चाहती हैं जबकि सपा और TMC जेपीसी के बहिष्कार पर उतारू हैं.
TMC ने तो इसे ‘तमाशा’ बताया और कहा कि जेपीसी में वह अपने मेंबर्स नहीं भेजेगी. पार्टी का कहना है कि संसद के दोनों सदनों में सत्तारूढ़ दल की संख्या ज्यादा होने की वजह से ये समितियां सत्तारूढ़ दल के पक्ष में झुकी हुई हैं.

इन सबकी वजह से ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि बिना बड़े विपक्षी दलों के जेपीसी के गठन की चर्चा चलने लगी है. इसके लिए जिन विकल्पों पर विचार किया जा रहा है, उसमें एनडीए के घटक दलों, कुछ छोटी पार्टियों और स्वतंत्र सांसदों को मिलाकर एक पैनल बनाना शामिल है.
ऐसा होता है तो यह भारत के संसदीय इतिहास में ‘अभूतपूर्व’ घटना होगी. अभूतपूर्व माने ऐसी स्थिति जो पहले कभी नहीं हुई. लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि अगर बिना विपक्ष के जेपीसी बनती है तो इसकी विश्वसनीयता पर सवाल खड़े होंगे. यह एक पेचीदा स्थिति होगी.
आचार्य के मुताबिक, संयुक्त संसदीय समिति के सदस्यों को लोकसभा के स्पीकर नामित करते हैं. इनमें अलग-अलग पार्टियों के संसद में उनकी संख्या के आधार पर सदस्य होते हैं. लेकिन अभी तक स्पीकर ओम बिड़ला की ओर से इसके लिए किसी भी सदस्य को नामित नहीं किया गया है क्योंकि स्पीकर एक आंशिक या अधूरी समिति का गठन नहीं कर सकते.
आचार्य ने कहा कि अगर जेपीसी में केवल सत्ता पक्ष के लोग सदस्य होंगे तो हम ये नहीं कह सकते कि एक कंप्लीट जेपीसी बन गई है. यह तो एक एनडीए समिति होगी, जिसमें सिर्फ एनडीए के लोग होंगे. यह संसदीय समिति नहीं कही जाएगी. अगर इसमें प्रमुख विपक्षी दलों के लोग नहीं होंगे तो इसकी कोई विश्वसनीयता नहीं होगी.
अब इस स्थिति से कैसे निपटा जा सकता है?
इसका जवाब देते हुए पीडीटी आचार्य कहते हैं कि लोकसभा स्पीकर ओम बिरला सभी दलों की एक बैठक बुला सकते हैं. इसमें वह नाराज विपक्षी दलों के सदस्यों को जेपीसी में शामिल होने के लिए मना सकते हैं ताकि ऐसी अभूतपूर्व स्थिति से बचा जा सके. उन्होंने आगे कहा कि आम सहमति के साथ ही इस पर कोई फैसला लिया जा सकता है.
INDIA ब्लॉक में गतिरोधजो खबरें सामने आ रही हैं, उससे लगता है कि विपक्षी दल अभी तक एकजुटता से इस पर फैसला नहीं ले पाए हैं कि उन्हें जेपीसी में शामिल होना है या नहीं. लोकसभा में कांग्रेस के चीफ व्हिप मणिकम टैगोर ने से कहा,
हमने अभी तक जेपीसी पैनल में शामिल होने का कोई फैसला नहीं किया है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी समेत कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व इस मुद्दे पर इंडिया ब्लॉक के अन्य दलों के साथ चर्चा करेगा. कांग्रेस इस पर आम सहमति बनाने की कोशिश करेगी. क्योंकि हम चाहते हैं कि इस पर जो भी फैसला हो, वह इंडिया ब्लॉक का हो. सिर्फ कांग्रेस का नहीं.
हालांकि, लोकसभा में 99 सदस्यों वाली सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी कांग्रेस चाहती है कि INDIA ब्लॉक के दलों को जेपीसी में शामिल होना चाहिए. 23 अगस्त 2025 को इकनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट में कांग्रेस के एक नेता बिना नाम बताए कहते हैं कि यह जानते हुए भी कि जेपीसी का नेतृत्व बीजेपी के पास होगा. समित में एनडीए का प्रभुत्व भी होगा. कांग्रेस की इच्छा है कि वह जेपीसी में शामिल हो. क्योंकि यह विपक्षी दलों के लिए एक महत्वपूर्ण फोरम है, जहां वो प्रस्तावों पर जोरदार ढंग से आलोचना दर्ज करा सकते हैं. इससे उस पर जनमत बनाने में मदद मिल सकती है.
कांग्रेस नेता वक्फ बिल का उदाहरण के तौर पर जिक्र करते हैं कि कैसे उस पर विपक्ष की असहमति का सुप्रीम कोर्ट ने भी संज्ञान लिया था. उन्होंने आगे कहा कि जेपीसी में शामिल होने के लिए वह गठबंधन के सहयोगी दलों से बातचीत कर रहे हैं.
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