जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अबदुल्ला (Omar Abdullah) ने कहा है कि आर्टिकल 370 को एक अस्थाई व्यवस्था इसलिए बताया गया, क्योंकि 1947 में भारत में विलय के समय इसकी कानूनी स्थिति पूरी तरह से स्पष्ट नहीं थी. भविष्य में जनमत संग्रह के आधार पर इस पर निर्णय लेने का वादा किया गया था.
मीरवाइज को CRPF सुरक्षा, जम्मू-कश्मीर में जनमत संग्रह... CM अब्दुल्ला के इस इंटरव्यू पर तगड़ा बवाल
मुख्यमंत्री Omar Abdullah ने कहा कि जब Jammu Kashmir का विलय परमानेंट था तो आर्टिकल 370 टेंपररी कैसे हुआ. उन्होंने अलगाववादी नेता Mirwaiz को मिली CRPF सुरक्षा पर भी सवाल उठाया. उनके बयान पर विपक्ष के नेताओं ने भी प्रतक्रिया दी है.

मीडिया संस्थान News18 को 25 फरवरी को दिए एक इंटरव्यू में उनसे इस विषय पर सवाल पूछा गया था. जवाब में उन्होंने कहा कि आर्टिकल 370 के अस्थाई होने की बात हमेशा की जाती है लेकिन ऐसा क्यों था, इसकी बात नहीं की जाती. अगर ये अस्थाई था तो कितने सालों के लिए था? कोई समय सीमा तय थी क्या? उन्होंने आगे कहा,
विलय के समय जम्मू कश्मीर के लोगों से वादा किया गया था. इसी वादे के तहत आर्टिकल 370 को अस्थाई बनाया गया था. वादा जनमत संग्रह का था. उस समय जम्मू कश्मीर की स्थिति आधिकारिक रूप से पूरी तरह स्पष्ट नहीं थी. ऐसा माना गया था कि इसका भविष्य लोकतांत्रिक तरीकों से तय किया जाएगा.
हाल ही में पूर्व CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने BBC के एक इंटरव्यू में भी इसी सवाल का जवाब दिया था. उन्होंने आर्टिकल 370 को कुछ समय के लिए लाई गई व्यवस्था के रूप में परिभाषित किया था. अबदुल्ला ने कहा कि आर्टिकल 370 के साथ ‘टेंपरेरी या ट्रांजिशनल’ शब्द के जुड़े होने के कारण थे.
उन्होंने विलय के दस्तावेज और शर्तों पर फिर से विचार करने की मांग की. 1947 में इन दस्तावेजों पर राजा हरि सिंह और भारत सरकार ने हस्ताक्षर किए थे. उन्होंने आगे कहा,
समय के साथ विलय एक ‘डन डील’ (परमानेंट) हो गया. लेकिन इसके लिए जो शर्तें थीं और जो फ्रेमवर्क था, वो… दोनों पहलुओं को समान रूप से माना जाना चाहिए. ना कि एक (विलय) को स्थाई और दूसरे (आर्टिकल 370) को अस्थाई माना जाना चाहिए. हमने तो दोनों को परमानेंट माना था. विलय के लिए तय किए गए ढांचे में कोई बदलाव नहीं होना चाहिए.
हालांकि, मुख्यमंत्री ने 2019 में आर्टिकल 370 के हटने के बाद से जम्मू कश्मीर के माहौल में आए बदलाव की तारीफ की. लेकिन उन्होंने ये भी कहा कि ये फैसला लेने से पहले वहां के लोगों की राय नहीं ली गई.
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Mirwaiz की सुरक्षा पर क्या कहा?अबदुल्ला ने इस दौरान अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारूक को लेकर भी प्रतिक्रिया दी. उन्होंने कहा कि इससे पहले सोचा भी नहीं जा सकता था कि मीरवाइज को CRPF कवर दिया जाएगा.
इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि 2019 में जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को खत्म करने के बाद से अलगाववादी राजनीति में गिरावट देखी गई है. क्या आपने कभी सोचा था कि मीरवाइज को केंद्र से CRPF कवर मिलेगा? मैं इसके बारे में नहीं सोच सकता था... लेकिन स्थिति बदल गई है.
हालांकि, मीरवाइज के ऑफिस ने इस बात का खंडन किया है. उन्होंने इस बयान को “बेतुका” करार दिया है. मीरवाइज के ऑफिस से जारी बयान में कहा गया,
विपक्षी नेताओं ने सवाल उठाएCM अब्दुल्ला से समझदारी की बात करने की उम्मीद की जाती है. परिस्थितियों को अच्छी तरह से जानते हुए भी मीरवाइज उमर फारूक को दी गई सुरक्षा के पीछे कोई उद्देश्य बताना, बेहद खेदजनक और बहुत ही खराब है. इस तरह की गैरजिम्मेदाराना बातें उनकी इनसिक्योरिटी को दिखाता है.
विपक्षी दल पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) के विधायक वहीद-उर-रहमान पर्रा ने अबदुल्ला के बयानों पर सवाल उठाया. उन्होंने X पर लिखा,
अगर कश्मीर आज शांत दिखता है, तो इसकी वजह UAPA और PSA (पब्लिक सेफ्टी एक्ट) जैसे कानूनों का लागू होना, NIA की गतिविधियां, घरों और संपत्तियों की जब्ती, लगातार प्रोफाइलिंग, कठोर कानूनों के तहत कैदियों को बाहर रखना और अनुच्छेद 311 के तहत कर्मचारियों को बर्खास्त करना है.
उन्होंने कहा कि अब्दुल्ला का बयान उनके चुनावी घोषणापत्र से बिल्कुल उलट है.
जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (JKPC) के अध्यक्ष सज्जाद लोन ने भी अब्दुल्ला के टिप्पणी की आलोचना की है. उन्होंने कहा है कि मीरवाइज को निशाना बनाना उन्हें और ज्यादा जोखिम में डालता है, ये जानते हुए कि उनके परिवार ने पहले ही भारी कीमत चुकाई है. सज्जाद ने कहा कि सैकड़ों कब्रों, दरगाहों और मस्जिदों की सुरक्षा JKP और CRPF करती है, तो मीरवाइज को मुद्दा क्यों बनाया जा रहा है?
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